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अधिवर्ष, ऐसा वर्ष होता जिसमें एक दिन या एक माह (जैसा कि चान्द्र-सौर वर्ष में ) अधिक होता है। इसका उद्देश्य कलेण्डर या पंचांग के वर्ष को खगोलीय वर्ष के साथ बनाकर रखना है। कलेण्डर या पंचांग वर्ष में पूरे पूरे दिन ही हो सकते है लेकिन खगोलीय घटनाओं को लगने वाला समय पूरे पूरे दिनों में विभाजित नहीं हो पाता है। अगर अधिवर्ष नहीं रखे जाएँ तो वार्षिक प्राकृतिक घटनाएँ (जैसे मौसम ) पंचांग या कलेण्डर के सापेक्ष धीरे धीरे अलग समय पर होने लगेंगी । अधिवर्ष में एक दिन या महीन जोड़कर सामाजिक पंचांग और प्राकृतिक घटना के बीच समय का तारतम्य बना रहता है। जो वर्ष अधिवर्ष नहीं होते उनको सामान्य वर्ष कहा जाता है। अधिवर्ष में जो दिन बढ़ाया जाता है उसे अधिदिन (leap day ) कहते हैं। अधिवर्ष में जो माह बढ़ाया जाता है उसे अधिमास कहते हैं।
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ग्रेगोरियन कैलेंडर में अधिवर्ष ३६६ दिन का होता है जबकि सामान्य वर्ष ३६५ दिन का होता है। हिब्रू कैलेंडर में करीब १९ वर्षों में १३ बार एक चान्द्रमास बढ़ाया जाता है । हिन्दू पंचांग में करीब ३२ महीनों (चन्द्रमास ) में एक माह बढ़ा दिया जाता है।
ग्रेगोरियन कैलेंडर जो आजकल विश्वभर में प्रयोग में आता है , उसके अधिवर्ष के नियम इस प्रकार हैं , यदि चार से विभाजित नहीं होता तो वर्ष अधिवर्ष नहीं है ,
अन्यथा यदि ४ से और ४०० से विभाजित होता है तो अधिवर्ष हैं
अन्यथा यदि ४ से और १०० से विभाजित होता है तो अधिवर्ष हैं
अन्यथा यदि ४ से विभाजित होता है तो अधिवर्ष हैं
इसको सरल भाषा में ऐसे भी समझ जा सकता है कि शताब्दी वर्षों को छोड़कर चार से विभाजित होने वाले वर्ष अधिवर्ष होते हैं , लेकिन शताब्दी वर्ष तभी अधिवर्ष होते हैं जब वे ४०० से विभाजित होते हों।
उदाहरण के लिए
१८९६ अधिवर्ष है
१९०० अधिवर्ष नहीं है
१९०४ अधिवर्ष है
१९०५ अधिवर्ष नहीं है
१९९६ अधिवर्ष है
१९९७ अधिवर्ष नहीं है
२००० अधिवर्ष है
२१०० अधिवर्ष नहीं है
अयनांत , विषुवों के समय UTC, मकर संक्रांति का समय IST[1] | ||||||||||
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वर्ष | विषुव मार्च | अयनांत जून | विषुव सितंबर | अयनांत दिसंबर | मकर संक्रांति जनवरी | |||||
दिन | समय | दिन | समय | दिन | समय | दिन | समय | दिन | समय | |
2020 | 20 | 03:50 | 20 | 21:43 | 22 | 13:31 | 21 | 10:03 | 15 | 02:06 |
2021 | 20 | 09:37 | 21 | 03:32 | 22 | 19:21 | 21 | 15:59 | 14 | 08:14 |
2022 | 20 | 15:33 | 21 | 09:14 | 23 | 01:04 | 21 | 21:48 | 14 | 14:28 |
2023 | 20 | 21:25 | 21 | 14:58 | 23 | 06:50 | 22 | 03:28 | 14 | 20:43 |
2024 | 20 | 03:07 | 20 | 20:51 | 22 | 12:44 | 21 | 09:20 | 15 | 02:42 |
2025 | 20 | 09:02 | 21 | 02:42 | 22 | 18:20 | 21 | 15:03 | 14 | 08:54 |
2026 | 20 | 14:46 | 21 | 08:25 | 23 | 00:06 | 21 | 20:50 | 14 | 15:05 |
2027 | 20 | 20:25 | 21 | 14:11 | 23 | 06:02 | 22 | 02:43 | 14 | 21:09 |
2028 | 20 | 02:17 | 20 | 20:02 | 22 | 11:45 | 21 | 08:20 | 15 | 03:22 |
2029 | 20 | 08:01 | 21 | 01:48 | 22 | 17:37 | 21 | 14:14 | 14 | 09:25 |
विषुव (दिन रात बराबर होना ) , अयनांत , मकर संक्रांति इत्यादि की तिथियों पर प्रभाव होता है जो इस सारणी से देखा जा सकता है। हम देख सकते हैं कि कैसे विषुवों , दिसम्बर अयनांत ( उत्तरायण का आरम्भ ) , जून अयनांत ( दक्षिणायन का आरम्भ ), और मकर संक्रांति चार वर्षों में एक दिन आगे बढ़ जाते हैं। अधिवर्ष का उद्देश्य है दिसम्बर अयनांत की तिथि को २१ दिसम्बर और जून अयनांत को २१ जून पर उसी समय बनाए रखना, जिससे मौसम और कलेण्डर में सदैव तारतम्य बना रहे। दो जून अयनांत के बीच करीब ३६५.२४२२ दिनों का समय होता है , जिसे ग्रेगोरियन कैलेंडर का एक वर्ष का कहा जाता है । वर्ष में केवल ३६५ दिन होते हैं, ०.२४२२ दिन की कमी को पूरा करने के लिए चार वर्ष बाद पूरा दिन जोड़ा जाता है। लेकिन ०.२४२२ दिन को ४०० से गुना करें तो लगभग ९७ दिन आते हैं अर्थात् ४०० वर्षों में १०० अधिवर्ष नहीं होने चाहिए केवल ९७ अधिवर्ष होने चाहिए। इसलिए हर ४०० वर्ष में केवल एक शताब्दी वर्ष को अधिवर्ष रखा जाता है और शेष तीन शताब्दी वर्षों को अधिवर्ष नहीं रखा जाता है। इस प्रकार अधिवर्ष की ये प्रणाली कुछ हजार वर्ष तक जून अयनांत और कलेण्डर में तारतम्य बनाकर रख सकती।
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