Loading AI tools
आदित्यों की माता विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
अदिती एक प्रतिष्ठित हिन्दू देवी है। पुराणों के आधार पर वे महर्षि कश्यप की पहली पत्नी थीं।[1][2] वेदों के आधार पर इनका कोई पति नहीं है, ऋग्वेद में इन को ब्रह्म शक्ति माना गया है। इनके बारह पुत्र हुए जो आदित्य कहलाए (अदितेः अपत्यं पुमान् आदित्यः)। उन्हें देवता भी कहा जाता है। अतः अदिती को देवमाता कहा जाता है। संस्कृत शब्द अदिती का अर्थ होता है 'असीम'। इंद्र, विवस्वान, वामन, पूषा, वरुण, पूषा, अंशुमान, पर्जन्य, त्वष्टा, भग, मित्र, अर्यमा और इनके पुत्र हैं ।
अदिति | |
---|---|
देवमाता | |
ब्रह्मा के साथ अदिति (दक्षिणतः) १९ शताब्दी का चित्र | |
संबंध | सरस्वती का अवतार[उद्धरण चाहिए] |
अस्त्र | असि, त्रिशूल |
जीवनसाथी | कश्यप |
माता-पिता | |
भाई-बहन | दिति, कद्रू, क्रोधवशा, विनता, दनु, सुरसा, सुरभि, पतंगी, यामिनी, अनिष्ठा, काष्ठा, मुनि, तिमि , ताम्रा, इला सरमा सहित अन्य बहनें |
संतान | इन्द्र, सूर्य देवता, पर्जन्य, अंशुमान्, पूषा, मित्र, वरुण, अर्यमा, धाता, भग, त्वष्टा और वामन |
सवारी | कुक्कुट |
शास्त्र | 'ऋग्वेद' |
अदिती दक्ष प्रजापति की सबसे बड़ी पुत्री थी। इनका विवाह ऋषि कश्यप से हुआ था। अदिती की १६ सपत्नी थीं। जिनमे एक का नाम दिति था। इनकी सपत्नी इनकी बहन भी थीं। दिति के पुत्र दैत्य कहलाते हैं ( दितेः पुत्राः दैत्याः)। अदिती के बारह पुत्र हुए जिनमें से मित्र, वरुण, धाता, अर्यमा, अंश, भग, विवस्वान्, आदित्य, इन्द्र, वामन इत्यादि प्रमुख हैं। खगोलीय दृष्टि से अन्तरिक्ष में द्वादश आदित्य भ्रमण करते हैं, वे आदित्य अदिती के पुत्र हैं। अदिती के पुण्यबल से ही उनके पुत्रों को देवत्व प्राप्त हुआ।
अदिती का एक पुत्र उनके गर्भ में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था। परन्तु अदिती ने अपने तपोबल से उसे पुनरुज्जीवित किया था। उस पुत्र का नाम मार्तण्ड था। वह मार्तण्ड विश्वकल्याण के लिये अन्तरिक्ष में गतमान् है।
ऋग्वेद में अदिती को माता के रूप में स्वीकारा गया है। उस मातृदेवी की स्तुति में उस वेद में बीस मंत्र कहे गए हैं। उन मन्त्रों में अदितीर्द्यौः ये मन्त्र अदिती को माता के रूप में प्रदर्शित करता है -
“ | अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स-पिता स-पुत्रः । विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् [3]॥ |
” |
यह मित्रावरुण, अर्यमन्, रुद्रों, आदित्यों इंद्र आदि की माता हैं। इंद्र और आदित्यों को शक्ति अदिती से ही प्राप्त होती है। उसके मातृत्व की ओर संकेत अथर्ववेद (7.6.2) और वाजसनेयिसंहिता (21,5) में भी हुआ है। इस प्रकार उसका स्वाभाविक स्वत्व शिशुओं पर है और ऋग्वैदिक ऋषि अपने देवताओं सहित बार बार उसकी शरण जाता है एवं कठिनाइयों में उससे रक्षा की अपेक्षा करता है।
अदिती अपने शाब्दिक अर्थ में बंधनहीनता और स्वतंत्रता की द्योतक है। 'दिति' का अर्थ बँधकर और 'दा' का बाँधना होता है। इसी से पाप के बंधन से रहित होना भी अदिती के संपर्क से ही संभव माना गया है। ऋग्वेद (1,162,22) में उससे पापों से मुक्त करने की प्रार्थना की गई है। कुछ अर्थों में उसे गो का भी पर्याय माना गया है। ऋग्वेद का वह प्रसिद्ध मंत्र (8,101,15)- मा गां अनागां अदिती वधिष्ट- गाय रूपी अदिती को न मारो। -जिसमें गोहत्या का निषेध माना जाता है - इसी अदिती से संबंध रखता है। इसी मातृदेवी की उपासना के लिए किसी न किसी रूप में बनाई मृण्मूर्तियां प्राचीन काल में सिंधुनद से भूमध्यसागर तक बनी थीं।
स्वर्गलोक की सत्ता के लोभ में दैत्यों और देवों में शत्रुता हो गई। दैत्यों और देवों के परस्पर युद्ध आरम्भ हो गये। एक समय दोनों पक्षों में भयङ्कर युद्ध हुआ। अनेक वर्षों तक वो युद्ध चला। उस युद्ध में देवों का दैत्यों स पराजय हो गया। सभी देव वनो में विचरण करने लगे। उनकी दुर्दशा को देखकर अदिती और कश्यप भी दुःखी हुए। पश्चात् नारद मुनि के द्वारा सूर्योपासना का उपाय बताया गया। अदिती ने अनेक वर्षों पर्यन्त सूर्य की घोर तपस्या की। सूर्य देव अदिती के तप से प्रसन्न हुए। उन्होंने साक्षात् दर्शन दिये और वरदान माँगने को कहा।
अदिती ने सूर्य की स्तुति की। तत्पश्चात् अदिती द्वारा वरदान माँगा गया कि – “आप मेरे पुत्र रूप में जन्म लेवें”। कालान्तर में सूर्य का तेज अदिती के गर्भ में प्रतिष्ठित हुआ । किन्तु एक बार अदिती और कश्यप के मध्य कलह उत्पन्न हो गया। क्रोध में कश्यप अदिती के गर्भस्थ शिशु को “मृत” शब्द से सम्बोधित कर बैठे। उसी समय अदिती के गर्भ से एक प्रकाशपुञ्ज बाहर आया। उस प्रकाशपुञ्ज को देखकर कश्यप भयभीत हो गये। कश्यप ने सूर्य से क्षमा याचना की। तब ही आकाशवाणी हुई कि – “आप दोनों इस पुञ्ज का प्रतिदिन पूजन करें। उचित समय होते ही उस पुञ्ज से एक पुत्ररत्न जन्म लेगा। वो आप दोनों की इच्छा को पूर्ण करके ब्रह्माण्ड में स्थित होगा।
समयान्तर में उस पुञ्ज से तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ। वही विवस्वान् नाम से विख्यात है। विवस्वान् का तेज असहनीय था। अतः युद्ध में दैत्य विवस्वान के तेज को देखकर ही पलायन कर गये। सर्वे दैत्य पाताललोक में चले गये। अन्त में विवस्वान् सूर्यदेव स्वरूप में ब्रह्माण्ड के मध्यभाग में स्थित हुए और ब्रह्माण्ड का सञ्चालन करते हैं[4]।
दक्ष प्रजापति की ८४ कन्या थीं उनमें दो थीं दिति और अदिती । कश्यप के साथ उन दोनों और उनकी अन्य बहनों का विवाह हुआ था। अदिती ने इन्द्र को जन्म दिया। वह तेजस्वी था। अतः दिति ने भी महर्षि कश्यप से एक तेजस्वी पुत्र की याचना की। तब महर्षि ने पयोव्रत नामक उत्तम व्रत करने का उपाय प्रदान किया। महर्षि की आज्ञानुसार दिति ने उस व्रत को किया। समयान्तर में दिति का शरीर दुर्बल हो गया।
एक बार अदिती की आज्ञानुसार इन्द्र दिति की सेवा करने के लिये गया। इन्द्र ने छलपूर्वक दिति के गर्भ के सात भाग कर दिये। जब वें शिशु रुदन कर रहे थे, तब इन्द्र ने कहा – “मा रुदन्तु” । तत् पश्चात् पुनः प्रत्येक गर्भ के सात विभाग किये। इस प्रकार उनचास (४९) पुत्रों का जन्म हुआ। वें पुत्र मरुद्गण कहे जाते हैं, जो कि उनचास हैं। इन्द्र के अभद्र कार्य से क्रुद्ध दिति अदिती को शाप देती है कि – “इन्द्र का राज्य शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा। जैसा अदिती ने मेरे गर्भ को गिराया, वैसे ही उसका भी पुत्र जन्म समय में ही नष्ट हो जाएगा”।
शाप के प्रभाव से हि द्वापरयुग में कश्यप ऋषि का वसुदेव के स्वरूप में, अदिती का देवकी के रूप में और दिति का रोहिणी के रूप में जन्म हुआ। देवकी के छ: ( सातवीं संतान बलराम थे ) पुत्रों की कारागार में कंस ने हत्या कर दी। तत् पश्चात् अष्टम पुत्र विष्णु के अवतार भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। अन्त में कृष्ण ने अपने मातुल (मामा) कंस का वध किया था [5]।
राजा बलि असुरराज थे। देवों और राजा बलि के मध्य युद्ध होते ही रहते थे। अन्त में देव पराजित हुए । देवों की स्थिति दयनीय हो चुकी थी। उनकी माता अदिती भी अपने पुत्रों के दुःख से दुःखी थीं। उस समय कश्यप ऋषि वन में तपस्या कर रहे थे। जब उनका तप पूर्ण हुआ, तो अदिती ने देवों की स्थिति सुनाई। देवों के कल्याण के लिये उपाय भी उन्ह से पूछा। पयोव्रत पूर्वक विष्णु की भक्ति का उपाय कश्यप ऋषि ने बताया।
अदिती द्वारा पयोव्रत पूर्वक भगवान् विष्णु की उपासना की गई। कुछ दिनो के अनन्तर भगवान् विष्णु प्रसन्न हुए। भगवान् विष्णु प्रकट हो कर बोले कि – “हे देवि ! आपने श्रद्धा पूर्वक मेरी उपासना की है। अतः “मैं आपके गर्भ से अवतार धारण करूंगा। वह मेरा वामन अवतार होगा। मैं असुरों का संहार और देवों का रक्षण करूंगा” ये आपको वर देता हूँ।
कश्यप ऋषि भविष्यदर्शी थे। अतः वह पूर्व ही अगवत थे कि – “विष्णु अदिती के गर्भ से वामन अवतार धारण करेंगे” । तत्पश्चात् वें अपने तेज से अदिती के गर्भ में प्रवेश कर गये। समयान्तर में भगवान् विष्णु का वामन अवतार हुआ।
गाय भी अदिती का स्वरूप है ऐसा ऋग्वेद के अष्टम मण्डल में प्राप्त होता है –
“ | माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः । प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट ॥१५॥ |
” |
अर्थात् – “गो स्वरूपा अदिती का वध न करें” । गाय को अदिती का स्वरूप माना जाता है।[6]।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.