लिनक्स
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लिनक्स यूनिक्स जैसा एक प्रचालन तन्त्र है। यह ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर अथवा मुक्त स्रोत सॉफ्टवेयर का सबसे कामयाब तथा [4] सबसे लोकप्रिय सॉफ्टवेयर है। यह जीपीएल v 2 लाइसेंस के अन्तर्गत सर्व साधारण के उपयोग हेतु उपलब्ध है और इसका कुछ भाग यूनिक्स से प्रेरित है। मूलतः यह मिनिक्स का विकास कर बनाया गया है। यूनिक्स का विकास, 1960 के दशक में ऐ.टी.&टी. की बेल प्रयोगशाला के द्वारा किया गया। उस समय ऐ.टी.&टी. कम्पनी एक नियन्त्रित इजारेदारी थी इसलिए वह कम्प्यूटर का सौफ्टवेयर नही बेंच सकती थी। उसने इसे, सोर्स कोड के साथ, बिना शर्त, सरकार तथा विश्वविद्यालयों को दे दिया, वे चाहे तो उसमें फेरबदल कर सकते हैं। 1980 के दशक के आते आते यूनिक्स सबसे लोकप्रिय, शक्तिशाली, एवं स्थिर ऑपरेटिंग सिस्टम बन गया, हालांकि उस समय तक उसके कई रूपान्तर आ चुके थे।
उबन्टू 20.10 लिन्क्स का एक अत्यन्त लोकप्रिय वितरण है।[1] | |
विकासक | बहुल |
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Written in | अनेक भाषाओं में |
प्रचालन तंत्र परिवार | यूनिक्स जैसा |
कार्यकारी स्थिति | चालू |
स्रोत प्रतिरूप | मुक्त |
प्रारम्भिक रिलीज़ | १९९१ |
बाजार लक्ष्य | व्यक्तिगत संगणक, इम्बेडेड युक्तियाँ, मोबाइल युक्तियाँ, सर्वर |
में उपलब्ध | बहुभाषीय |
प्लेटफॉर्म | DEC Alpha, ARM, AVR32, Blackfin, ETRAX CRIS, FR-V, H8/300, Hexagon, Itanium, M32R, m68k, Microblaze, MIPS, MN103, OpenRISC, PA-RISC, PowerPC, s390, S+core, SuperH, SPARC, TILE64, Unicore32, x86, Xtensa |
कर्नेल का प्रकार | मोनोलिथिक |
उपयोक्ता स्थान | Various |
प्राथमिक यूज़र इंटरफ़ेस | बहुल |
लाइसेंस | बहुल[2] ("Linux" trademark owned by Linus Torvalds[3] and administered by the Linux Mark Institute) |
यूनिक्स में एक कमी थी – इसको समझना तथा चलाना मुश्किल है। एंड्रयू टेनेनबाम, ऐमस्टरडैम में कंप्यूटर विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उन्होंने इसकी सहायता के लिए मिनिक्स नाम का प्रचालन तन्त्र लिखा। इसमें भी कुछ कमियाँ थीं। लिनूस टोरवाल्ड फिनलैण्ड के हेलसिन्की विश्वविद्यालय में कम्प्यूटर विज्ञान के छात्र थे। उन्होंने मिनिक्स की कमी को दूर करने के लिए एक प्रोग्राम लिखा जो कि बाद में ‘लिनस का यूनिक्स’ या छोटे में लिनक्स कहलाया। इसका सबसे पहला कोर या करनल उन्होने 1991 में इन्टरनेट पर पोस्ट किया। तब तक रिचर्ड स्टालमेन का 'ग्नू' प्रोजेक्ट शुरू हो चुका था। लिनस टोरवाल्ड ने इससे बहुत सारे प्रोग्राम अपने लिनक्स में लिए। इसलिए रिचर्ड स्टालमेन का कहना है कि इसे 'ग्नू-लिनक्स' (GNU-Linux) कहना चाहिये। पर यह नाम, शायद लम्बा रहने के कारण चल नहीं पाया। पर इसका अर्थ यह नहीं है कि लिनक्स की सफलता में ग्नू प्रोजेक्ट का हाथ नहीं है। ग्नू प्रोजेक्ट के बिना लिनक्स सम्भव नहीं था।