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हार्ड डिस्क ड्राइव[3] (जिसे हार्ड डिस्क,[4] हार्ड ड्राइव,[5], सख्त चक्रिका संचालक, डेटा भंडारण यन्त्र या HDD भी कहते हैं) एक आँकड़ों को सहेज कर सुरक्षित रखने वाला यन्त्र है, जो डिजिटल जानकारी चुम्बकीय रूप से लिख और पढ़ (पुनः प्राप्त) सकता है। इसमें घूमने वाले डिस्क्स (चिपटी गोल वस्तु,चक्रिका) होते हैं जिन्हें चुम्बकीय पदार्थ [6]से लेप किया जाता है। बिजली न होने पर भी डेटा भंडारण यन्त्र आंकड़ों को सुरक्षित रखता है। डेटा भंडारण यन्त्र से आँकड़ों को बेतरतीब (रैंडम -एक्सेस) तरीके से पढ़ा जाता है। इसका मतलब है कि आँकड़ों के समूह को भंडारण यन्त्र में किसी भी जगह लिखकर सुरक्षित किया जा सकता है। मतलब आँकड़ों का भंडारण किसी खास क्रम में करने की आवश्यकता नहीं है।
हार्ड डिस्क (सख्त चक्रिका संचालक) की आंतरिक संरचना | |
आविष्कार तिथि | १४ दिसम्बर १९५४[1] |
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आविष्कारकर्ता | आईबीएम की टीम |
जोड़ता है |
मेज़बान अनुकूलक द्वारा मदरबोर्ड से via one of: |
बाजार क्षेत्र |
डेस्कटॉप मोबाइल कम्प्यूटिंग उपक्रम अभिकलन उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक |
इसका अविष्कार १९५६ [7] में आइ०बी०ऍम० नामक कंपनी में हुआ था। १९६० के दशक तक आँकडा भंडारण यन्त्र सभी सामान्य कार्य के संगणकों में सबसे प्रचलित अतिरिक्त/सहायक भंडारण यन्त्र बन गया। आँकड़ा भंडारण यन्त्र में नियमित रूप से सुधार होने लगा और आज सर्वर और व्यक्तिगत संगणकों के ज़माने में भी इसने अपनी जगह स्थिर रखी है। २०० से भी ज़्यादा औद्योगिक इकाइयों ने डेटा भंडारण यन्त्र (HDD) बनाये हैं। हलाँकि ज़्यादातर डेटा भंडारण यन्त्र आज सीगेट(Segate),तोशिबा (Toshiba) और वेस्टर्न डिजिटल बनाते हैं। सारी दुनिया में आंकडा भंडारण यन्त्र का राजस्व २०१३ में $ ३२ बिलियन था जो की २०१२ की तुलना में ३% कम था।
डेटा भंडारण यन्त्र को उसकी भंडारण क्षमता और प्रदर्शन के आधार पर विश्लेषित किया जाता हैं। डेटा भंडारण यन्त्र की क्षमता बाइट्स में होती हैं। १०२४ बाइट को १ किलोबाइट कहा जाता है। उसी तरह से १०२४ किलोबाइट को १ मेगाबाइट कहा जाता है। १०२४ मेगाबाइट को १ गीगाबाइट कहते है और १०२४ गीगाबाइट को १ टेराबाइट कहा जाता है। डेटा भंडारण यन्त्र का पूरा भंडारण स्थान उपयोगकर्ता के लिए उपलब्ध नहीं होता क्यूंकि कुछ हिस्सा प्रचालन तन्त्र(ऑपरेटिंग सिस्टम) को रखने और कुछ और हिस्सा फाइल सिस्टम के लिए और कुछ हिस्सा संभवतः अंदरुनी अतिरेकता (अंग्रेज़ी: inbuilt redundancy) गलती सुधारने और डेटा पुन:प्राप्ति के लिए होता है। आंकडों को लिखने वाले नोक(हेड) के पटरी तक पहुंचने के समय और पढ़ते वक़्त वांछित क्षेत्र के नोक के नीचे तक पहुंचने में लगने वाले समय और आँकड़ों के यन्त्र से आवागमन की गति के आधार पर प्रदर्शन क्षमता का निर्धारण किया जाता है।
आज के डेटा भंडारण यन्त्र मेज पर रखे जा सकने वाले संगणकों (डेस्कटॉप कंप्यूटर) के लिए ३.५ इंच और गोद में रखे जा सकने वाले संगणकों में २.५ इंच के होते हैं। डेटा भंडारण यन्त्र मुख्य प्रणाली से साटा, यूएसबी Archived 2020-10-22 at the वेबैक मशीन या एस.ए.एस(सीरियल अटैच्ड SCSI) जैसे मानक विद्युत् चालक तारों से जुड़े होते हैं। २०१४ तक डेटा भंडारण यन्त्र को अतिरिक्त या सहायक भंडारण के क्षेत्र में ठोस अवस्था वाले संचालक के रूप में टक्कर देने वाली तकनीक थी फ्लैश मेमोरी | आने वाले समय में यह माना जा रहा है कि हार्ड डिस्क अपना आधिपत्य जारी रखेगी लेकिन जहाँ गति और बिजली की कम खपत ज़्यादा ज़रूरी हैं वहाँ ठोस अवस्था वाले उपकरण (सॉलिड स्टेट डिवाइस) को हार्ड डिस्क की जगह पर इस्तेमाल किया जा रहा है।
हार्ड डिस्क अर्थात सख्त चक्रिका संचालक (HDD) को पहली बार १९५६ में आई बी एम के वास्तविक समय ट्रांसक्शन प्रोसेसिंग कंप्यूटर के लिए डेटा भंडारण युक्ति (डेटा सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया विशेष यन्त्र) के रूप में पेश किया गया था। यह सामान्य उपयोग, मेनफ़्रेम और छोटे कंप्यूटर पर इस्तेमाल करने के लिए भी विकसित किया गया था। यह पहला आई बी ऍम ड्राइव ३५० आर मैक दो रेफ्रीजिरेटर के समान बड़ा था और यह ५ मिलियन ६ बिट अक्षरों को (३.७५ मेगाबाइट)[8] रखने की क्षमता रखता था। यह आँकड़ों को ५० डिस्क (गोलाकार चक्रिका) के ढेर पर सहेजता था।
१९६२ में आईबीऍम मॉडेल १३११ ने डिस्क ड्राइव लाया जो वाशिंग मशीन के आकार का था और यह एक हटा सकने वाले डिस्क पैक पर २० लाख अक्षरों को सुरक्षित रख सकता था। उपयोगकर्ता अतिरिक्त पैक खरीद सकते थे और उन्हें ज़रुरत के अनुसार आपस में बदल सकते थे, बिलकुल चुंबकीय टेप के रील की तरह। इसके बाद के डिस्क पैक ड्राइव्स जो आईबीऍम और दूसरी कम्पनियों ने बनाये थे, कम्प्यूटर्स में इस्तेमाल होने लगे और १९८० के दशक तक यह ३०० मेगाबाइट की क्षमता तक पहुंच गए। जिन HDD को कम्प्यूटरों से हटाया नहीं जा सकता था उन्हें "फिक्स्ड डिस्क" ड्राइव कहा जाता हैं।
कुछ उच्च निष्पादन क्षमता वाले एचडीडी बनाये गए थे जिसमे प्रति पटरी एक नोक थी जैसे आईबीऍम 2305 ताकि नोक (जिसे पेंसिल भी कह सकते हैं) को एक पटरी से दूसरी पटरी तक ले जाने में जो समय व्यतीत होता है, उसे बचाया जा सके। इन्हें "फिक्स्ड हेड" या "हेड पर ट्रैक" डिस्क ड्राइव कहा जाता था। यह बहुत मँहगे थे और इन्हे अब बनाया नहीं जाता।
१९७३ में आई बी ऍम ने एक नए किस्म की एचडीडी लॉन्च की जिसको "विनचेस्टर" कूट नाम दिया गया था। इसमें प्राथमिक तौर से खास बात यह थी की बिजली चले जाने पर डिस्क हेड पूरी तरह से प्लाटर से अलग नहीं होता था। बल्कि यह हेड डिस्क के एक खास जगह में रुकता था तब जब डिस्क का घूमना बंद हो जाता था। फिर से शुरू होने पर डिस्क हेड वही से शुरुआत करता था। यह हेड प्रवर्तक प्रणाली के खर्चे को कम करने में कारगर साबित हुआ। विनचेस्टर प्रौद्योगिकी के पहले ड्राइव्स में हटाये जा सकने वाले गोलाकार हिस्से होते थे। इसमें डिस्क पैक और लिखने व पढ़ने वाली नोक प्रणाली होती थी। प्रवर्तक मोटर से जुड़े हुए चक्के में ही रहता था। इसके बाद वाले "विंचेस्टर" ड्राइव्स में हटाये जा सकने वाले डिस्क पैक को हटा और वापस गैर हटाने योग्य (जाम) डिस्क प्लांटर्स (चक्रिका/धातु के चक्के) का इस्तेमाल होने लगा।
पहले विंचेस्टर ड्राइव्स के प्लांटर्स १४ इंच के व्यास वाले हुआ करते थे। कुछ साल बाद इस बात की सम्भावना ढूंढा जाने लगा कि अगर प्लांटर्स छोटे हों तो शायद उससे कुछ और फायदे हो सकते हैं। ८ इंच व्यास के प्लांटर्स वाले ड्राइव्स आये और इनके बाद ५ १/४ इंच व्यास के प्लांटर्स वाले ड्राइव्स भी आये। ५ १/४ इंच वाले ड्राइव्स को उस समय में तेज़ी से बढ़ते हुए व्यक्तिगत कम्प्यूटर्स के बाज़ार के लिए रूपांकित किया गया था।
१९८० के दशक के शुरुआत में HDD बहुत मँहगे थे, लेकिन १९८० के दशक के अंत तक इनके भाव इतने कम हो गए कि सबसे सस्ते कम्प्यूटरों में भी इनको इस्तेमाल किया जाने लगा।
१९८० के दशक के शुरुआत में ज़्यादातर HDD व्यक्तिगत कंप्यूटर उपयोगकर्ता को अलग से उप प्रणाली के तौर पर बेचा जाता था। इस उप प्रणाली को ड्राइव निर्माता के नाम से नहीं बल्कि उप प्रणाली निर्माता के नाम से बेचा जाता था जैसे कोर्वस सिस्टम्स, टॉलग्रास टेक्नोलॉजीस या तो फिर निर्माता के नाम से जैसे एप्पल प्रोफाइल। आई०बी०ऍम० पीसी/एक्स टी जो आई बी ऍम ने 1983 में लॉन्च किया था, में एक १० मेगाबाइट का अंदरूनी एचडीडी था और इसके बाद से ही व्यक्तिगत कम्प्यूटर्स में अंदरूनी एचडीडी नियमित तौर से इस्तेमाल होने लगे।
एप्पल मैकिनटोश पर बाहरी एचडीडी लम्बे समय तक इस्तेमाल किये जाते रहे। १९८६ से १९९८ के बीच बाहरी एचडीडी को जोडने के लिए हरेक मैकिनटोश कंप्यूटर में पीछे के तरफ एक एस सी एस आई पोर्ट हुआ करता था।
२०११ के थाईलैंड में आये बाढ़ ने कई डेटा भंडारण यन्त्र उत्पादक सयंत्रों को नुकसान पहुचाया था जिससे २०१२-२०१३ के बीच डेटा भंडारण यन्त्र के कीमतों में इज़ाफ़ा हुआ था।
एचडीडी के अविष्कार के बाद निरंतर तरीके से उनकी हवाई घनत्व में इज़ाफ़ा होता रहा है।
मापदण्ड | प्रथम गड़ना | वर्तमान गड़ना | बढोतरी |
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धारण शक्ति/ क्षमता (स्वरूपित) | 3.75 मेगाबाइटस [8] | 8 टेराबाइटस | एक के मुकाबले बीस लाख |
भौतिक आयतन | 68 घन फुट (1.9 मी3)[lower-alpha 1][7] | 2.1 घन इंच (34 घन सेंटीमीटर)[9] | एक के मुकाबले 57000 |
वज़न | 2,000 पौंड (910 कि॰ग्राम)[7] | 2.2 औंस (62 ग्राम)[9] | एक के मुकाबले 15000 |
औसत अभिगम काल | लगभग 600 मिलीसेकण्ड्स [7] | कुछ मिलीसेकण्ड्स | लगभग एक के मुकाबले 200 |
मूल्य | 9,200 अमेरिकी $ प्रति मेगाबाइट[10][संदिग्ध] | 2013 से < $0.05 प्रति गीगाबाइट [11] | एक के मुकाबले 180,000,000 |
हवाई घनत्व | २००० [बिट[बिट्स]] प्रति वर्ग इंच[12] | २०१४ में ८२६ गीगाबाइट प्रति इंच वर्ग [13] | एक के मुकाबले > 400,000,000 |
डेटा भंडारण यन्त्र पर फेर्रोमैगनेटिक Archived 2020-10-22 at the वेबैक मशीन पदार्थ की एक पतली फिल्म होती है जिसे आकृष्ट करके डेटा भंडारण यन्त्र आँकणों को सहेजता है। क्रमबद्ध तरीके से चुम्बकीय क्षेत्र के दिशा का बदलाव बाइनरी डेटा बिट्स को दर्शाता है। चुंबकीकरण के बदलाव को जाँच करके डेटा डिस्क/यन्त्र से पढ़ा जाता है। एक कूट लेखन विधि इस्तेमाल करके डेटा को सांकेतिक शब्दों में बदला जाता है। जैसे रन लेंथ लिमिटेड कूट लेखन विधि। जो डेटा को चुम्बकीय दिशा के परिवर्तन के अनुसार प्रस्तुत करता हैं।
एक एचडीडी में तकला (धुरी पे घूमती छोटी सुई) होता हैं जो सपाट गोल डिस्क (इन्हे प्लांटर्स भी कहा जाता हैं ) को पकड़े रहती हैं। प्लांटर्स साधारणतः गैर चुम्बकीय पदार्थ जैसे एलुमिनियम एलाय , शीशा या सिरेमिक से बने होते है। इन प्लांटर्स के ऊपर चुम्बकीय पदार्थ की लेप की जाती हैं जो डेटा पकड़े रहती हैं। इस चुम्बकीय पदार्थ के परत की मोटाई १० से २० नैनोमीटर होती हैं और उसकी सुरक्षा के लिए उसके ऊपर कार्बन की एक परत भी होती हैं। यह चुम्बकीय पदार्थ की परत पेपर के मोटाई से भी कम होती हैं जो की ७०००० से १८०००० नैनोमीटर होती हैं।
आजकल के हार्ड डिस्क के प्लांटर्स को अलग अलग रफ़्तार में घुमाया जाता हैं यह वहनीय यंत्रो में ४२०० घुमाव प्रति मिनटसे लेकर उच्च प्रदर्शन क्षमता वाले सर्वर में १५००० आरपीएम तक होती हैं। पहला एचडीडी १२०० आरपीएम की गति से घुमा था और कई वर्ष तक सारे एचडीडी ३६०० आरपीएम में घूमते थे। दिसंबर २०१३ तक ज़्यादातर उपभोकता श्रेणी के एचडीडी ५४०० आरपीएम या ७२०० घुमाव प्रति मिनट की रफ़्तार में घूमते हैं।
प्लाटर जैसे ही रीड - राइट हेड के नीचे घूमता हैं उस समय सूचना प्लाटर पर से पढ़ी जाती हैं या लिखी जाती हैं। रीड - राइट हेड और प्लाटर में दूरी बहुत कम होती हैं बस कुछ नैनोमीटर। रीड - राइट हेड उसके नीचे के चुम्बकीय पदार्थ को पढ़ने और बदलने का काम करता हैं।
आधुनिक एचडीडी में हर चुम्बकीय प्लाटर (जो की एक तकले/धुरी से जुडी होता हैं ) के ऊपर एक रीड - राइट हेड होता हैं जो की एक समान भुजा से जुड़ा हुआ होता हैं। एक गति देनेवाली भुजा (एक्सेस आर्म) हेड को डिस्क के घूमते समय एक वृत्त-चाप की दिशा में हिलाती हैं ताकि हरेक हेड प्लाटर के पुरे सतह तक पहुंच सके। इस भुजा को हिलाने के लिए वायस क्वायल एक्चुएटर या कुछ पुराने डिज़ाइन में स्टेपर मोटर इस्तेमाल किया जाता हैं। ड्राइव में जो चुम्बकीय प्लेट लगी होती है उसके ऊपर प्रकाशीय तापावरोधन किया जाता है। पहले के हार्ड डिस्क ड्राइव्स में स्थिर/एक ही बिट्स पर सेकंड के तरीके से लिखा जाता था इसलिए हर पटरी पर डेटा सामान होता था। लेकिन आधुनिक डिस्क ड्राइव्स में जोन बिट रिकॉर्डिंग इस्तेमाल करते हैं इसमें लिखने की रफ़्तार अंदर से बाहर के ट्रैक/पटरी में जाते हुए बढ़ती रहती हैं इससे बाहर के पटरियों में ज़्यादा डेटा सुरक्षित रख सकते हैं।
आधुनिक उपकरणों में चुम्बकीय क्षेत्र के छोटे साइज के कारण इस बात की सम्भावना हैं की वह अपनी चुम्बकीय स्तिथि गर्मी के कारण खो सकता हैं। गर्मी के वजह से हुई इस चुंबकीय अस्थिरता को "सुपरपेरामैग्नेटिक लिमिट" भी कहा जाता हैं। इस स्तिथि से बचने के लिए प्लांटर्स को दो समानांतर चुम्बकीय परतो से लेप किया जाता हैं इनके बीच एक ३ अणु मोटाई का एक गैरचुम्बकीय परत रहता हैं। दोनों परतो में विपरीत दिशा में चुम्बकीय प्रभाव होता हैं, इस प्रकार दोनों परत एक दूसरे को सुदृढ़ करते हैं। गर्मी के प्रभाव से निपटने के लिए एक और तकनीक इस्तेमाल होती हैं इसका नाम परपेँडिकुलर रिकॉर्डिंग हैं। इससे रिकॉर्डिंग डेंसिटी भी ज़्यादा मिलती हैं २००५ में इसे पहली बार शिप किया गया था आज कई HDD यह तकनीक इस्तेमाल कर रही हैं।
एक साधारण HDD में दो विद्युत मोटर होती हैं। एक तकली (Spindle) से लगी हुई मोटर जो चक्रिका (डिस्क) को घुमाती हैं और एक प्रवर्तक मोटर जो रीड/राइट हेड प्रणाली को घूमते हुए चक्रिका के ऊपर ले जाता हैं। चक्रिका से जुड़े हुए मोटर में एक बाहरी रोटर होता हैं जो चक्रिका के साथ जुड़ा होता हैं, विद्युत चालक स्थायी घुमावदार तार [[स्टेटर वाइंडिंग ]]एक जगह स्थापित होती हैं। प्रवर्तक के ठीक विपरीत तकले से जुडी छड़ी के अंत पर एक रीड -राइट हेड (लिखने/पढ़ने वाली नोक) होती हैं। यह लिखने/पढ़ने वाली नोक बहुत पतले विद्युतीय परिपथ से एम्पलीफायर इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ जुड़ा होता हैं जो प्रवर्तक के केन्द्र बिन्दु पर स्थित होता हैं। नोक की सहायक भुजा वजन में बहुत हलकी और ठोस होती है। आधुनिक उपकरणों में इसकी तेज होने की गति 550 g तक हो सकती हैं।
प्रवर्तक एक स्थायी चुम्बक होता हैं। उसमे एक घूमनेवाला क्वॉयल होता हैं जो सही जगह पर लिखने/पढ़ने वाली नोक को चलाता हैं। धातु की एक थाली एक स्क्वाट नेओडिमिनम -आयरन -बोरोन तीव्र प्रवाह वाले चुम्बक को थामे रखती है। इस थाली के नीचे एक घूमनेवाला धातु का लच्छा (क्वॉयल) होता हैं जिसे आवाज़ वाली क्वॉयल भी कहते हैं।यह क्वॉयल (धातु का लच्छा) प्रवर्तक के केंद्र से जुड़ा रहता हैं और इस क्वॉयल के नीचे एक नेओडिमिनम -आयरन -बोरोन चुम्बक होता है। इसे मोटर के एकदम निचले थाली पर चढ़ा कर रखा जाता हैं।
आवाज़ वाली क्वॉयल का आकार एक तीर के नोक के जैसा होता हैं और इसे २ बार लेप किये हुए ताम्बे के चुम्बकीय तार से बनाया जाता हैं। अंदर की सतह ताप रोधन के लिए होती हैं और बाहर की सतह गर्म प्लास्टिक की होती हैं। नोक के दोनों तरफ के क्वॉयल चुम्बकीय क्षेत्र के साथ लगते रहते हैं। जब विद्युत प्रवाह एक धातु के लच्छे के अंदर के दिशा में गमन करती हैं और दूसरे लच्छे के बाहरी दिशा में गमन करती हैं तब एक स्पर्श-रेखीय दबाव उत्पन्न होता हैं जो प्रवर्तक को घुमाता हैं।
HDD के इलेक्ट्रॉनिक्स प्रवर्तक के हरकत को नियंत्रित करती हैं और डिस्क के परिक्रमण या गोलाकार चलने को भी नियंत्रित करती हैं। वह चक्रिका नियंत्रक के निर्देशो के अनुसार चक्रिका से सूचना पढ़ने या लिखने का काम भी करती हैं। ड्राइव इलेक्ट्रॉनिक्स की प्रतिपुष्टि चक्रिका के ख़ास हिस्सों से होती हैं जो सर्वो प्रतिपुष्टि के लिए समर्पित होता हैं। यह या तो फिर पूरी तरह से संकेन्द्रित परिमंडल (समर्पित सर्वो तकनीकी के केस में)होते हैं या वो हिस्से जिसमे असली आंकडें बिखरे हुए (सन्निहित सर्वो तकनीकी के मामले मे) रूप मे होते हैं।
एक डेटा भण्डारण यन्त्र या सख्त चक्रिका संचालक(HDD) में एक या एक से ज़्यादा तेज घूमने वाली चक्रिकाएँ (प्लाटर) और चुंबकीय नोक होते हैं। इन्हे एक चलते हुए प्रवर्तक भुजा के ऊपर रखा जाता हैं ताकि इस नोक की सहायता से चक्रिका के सतह पर आंकडों को लिखा या पढ़ा जा सके।
जितना समय चुंबकीय नोक को सिलिंडर या पटरी में ले जाने में लगे और उसके साथ ही जो समय चक्रिका के हिस्से को नोक के नीचे घूमने में लगे और कितना डेटा हर क्षण में प्रेषित(डेटा प्रेषण दर) हो रहा हैं इन मापदंडो पर ही डेटा भण्डारण यन्त्र का प्रदर्शन निश्चित किया जाता हैं।
आधुनिक डेटा भण्डारण यन्त्र त्रुटि संशोधन कूट का बहुत इस्तेमाल करती हैं खासकर रीड - सोलमन त्रुटि निवारण कूट। यह तकनीक अतिरिक्त बिट सहेज कर रखती हैं। हर डेटा खंड में कुछ अतिरिक्त बिट्स होते हैं जो कुछ गणित के सूत्र इस्तेमाल कर गलतियों को अदृश्य तरीके से सुधारते हैं। यह अतिरिक्त बिट्स डेटा भण्डारण यन्त्र में कुछ जगह ज़रूर ले लेते हैं लेकिन यह डेटा भण्डारण यन्त्र पर ज़्यादा लेखन घनत्व होना संभव बनाती हैं और जो इस प्रक्रिया में जो गलतियाँ आ जाती हैं उन्हें ठीक करना भी संभव बनाती हैं। इसका फल यह होता हैं की डेटा भण्डारण यन्त्र की भंडारण क्षमता ज़्यादा होती हैं। उदाहरण स्वरूप एक १ टीबी क्षमता वाला डेटा भण्डारण यन्त्र जिसमे ५१२ बाइट खंड हैं वह ९३ जीबी अतिरिक्त डेटा भंडारण क्षमता पाता हैं।
एकदम नए डेटा भण्डारण यन्त्र में लघु घनत्व समता जांच कूट (एल. डी. पी. सी.) रीड-सोलमन की जगह लेने लगे हैं। एल. डी. पी. सी. कूट से प्रदर्शन शैनन सीमा के करीब पहुंच जाती हैं। इससे सबसे ज़्यादा भंडारण घनत्व प्राप्त होता हैं।
आकार व उसके गुणक (फॉर्म फैक्टर्स) | स्थिति | लम्बाई [एमएम] | चौडाई [एमएम] | ऊचाई [एमएम] | सर्वोत्तम क्षमता | चक्रिकाएं (अधिकतम) | क्षमता प्रति चक्रिका [जीबी] |
---|---|---|---|---|---|---|---|
3.5" | वर्तमान | 146 | 101.6 | 19 or 25.4 | 8 टीबी[14](2014) | 5 or 7[15][lower-alpha 2] | 1149[14] |
2.5" | वर्तमान | 100 | 69.85 | 5,[16] 7, 9.5,[lower-alpha 3] 12.5, 15, or 19[17] | 2 TB[18] (2012) | 4 | 667[19] |
1.8" | वर्तमान | 78.5[lower-alpha 4] | 54 | 5 or 8 | 320 GB[9] (2009) | 2 | 220 [20] |
8" | अप्रयुक्त/ अप्रचलित | 362 | 241.3 | 117.5 | |||
5.25" एफ एच | अप्रयुक्त/ अप्रचलित | 203 | 146 | 82.6 | 47 जीबी[21] (1998) | 14 | 3.36 |
5.25" एच एच | अप्रयुक्त/ अप्रचलित | 203 | 146 | 41.4 | 19.3 जीबी[22] (1998) | 4[lower-alpha 5] | 4.83 |
1.3" | अप्रयुक्त/ अप्रचलित | 43 | 40 GB[23] (2007) | 1 | 40 | ||
1" (सीएफाआईआई/जेडाआईएफ/आईडीई-फ्लेक्स) | अप्रयुक्त/ अप्रचलित | 42 | 20 जीबी (2006) | 1 | 20 | ||
0.85" | अप्रयुक्त/ अप्रचलित | 32 | 24 | 5 | 8 जीबी[24][25] (2004) | 1 | 8 |
मेनफ़्रेम और छोटे कम्प्यूटर्स के हार्ड डिस्क अलग अलग आकार के हुआ करते थे। यह वाशिंग मशीन की आकार के थे या तो फिर १९ इंच रैक में समा जाये ऐसे आकर के थे। आइबीएम ने १९६२ में model ११३१ डिस्क को बाजार में उतारा। यह १४ इंच के चक्रिकाओं का इस्तेमाल करती थी। यह कई सालों तक मेनफ़्रेम और छोटे कंप्यूटर का मानक आकार रहा। माइक्रोप्रोसेसर आधरित प्रणालियों में इतने बड़े चक्रिकाओं का कभी इस्तेमाल नहीं किया गया।
जैसे जैसे फ्लॉपी डिस्क ड्राइव (एफडीडी) वाली माइक्रोप्रोसेसर की बिक्री बढ़ती गयी एफडीडी अनुकुलक के नाप का हो ऐसे हार्ड डिस्क की मांग भी बढ़ गयी। शुरुवात में माइक्रो कम्प्यूटर्स के एचडीडी के फॉर्म फैक्टर्स ८" इंच, ५.२५ " इंच और ३.५ इंच के एफडीडी जैसे ही थे। बाद में इससे भी छोटे एचडीडी फॉर्म फैक्टर्स आये।
९.५ इंच × ४.६२४ इंच × १४.२५ इंच (२४१.३ एमएम ×११७.५ एमएम × ३६२ एमएम )। १९७९ में शुगर्ट एसोसिएट्स एस.ए १००० पहला फॉर्म फैक्टर अनुकूल एचडीडी था। इसके परिमाप ८" इंच के एफडीडी के अनुकूल थे।
५.७५ इंच × ३.२५ इंच × ८ इंच (१४६.१ एमएम × ८२.५५ एमएम × २०३ एमएम )। एचडीडी में यह छोटा फॉर्म फैक्टर १९८० में सबसे पहले सीगेट ने लाया था। इसका आकार ५१/४ इंच एफडीडी जितना ही था। इसकी उचाई ३.२५ इंच थी।
४ इंच X १ इंच X ५.७५ इंच यह छोटे फॉर्म फैक्टर वाला हार्ड डिस्क ड्राइव सबसे पहले रोडिम ने १९८३ में लाया था। इसकी उचाई हाफ हाइट यानि १.६३ इंच थी। आज इन ड्राइव्स की उचाई १ इंच की होती है। इस फॉर्म फैक्टर्स के हार्ड ड्राइव्स डेस्कटॉप में इस्तेमाल किये जाते हैं।
२.७५ इंच × ०.२७५–०.७५ इंच × ३.९४५ इंच (६९.८५ एमएम × ७–१९ एमएम × १०० एमएम )। यह छोटा फॉर्म फैक्टर सबसे पहले १९८८ में प्रेरीटेक ने लाया था। यह मोबाइल यंत्रो( लैपटॉप, संगीत वादक) और सॉलिड स्टेट ड्राइव्स में हार्ड ड्राइव की तरह इस्तेमाल होता हैं। इसको प्लेस्टेशन ३ और एक्स बॉक्स ३६० वीडियो गेम प्रणालियों में भी इस्तेमाल किया जाता हैं।
५४ mm X ८mm X ७८.५ mm यह फॉर्म फैक्टर सबसे पहले १९९३ में Integral Pehripherals ने लाया था। कुछ समय के लिए इसे डिजिटल ऑडियो प्लेयर्स और सबनोटबुक्स में काफी इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन बाद में इसकी लोकप्रियता बहुत कम हो गयी और यह फॉर्म फैक्टर मार्किट में रेयर होता जा रहा हैं।
४२.८ mm X 5 mm X ३६.४ mm इस फॉर्म फैक्टर को १९९९ में IBM माइक्रोड्राइव के तौर पर प्रस्तुत किया गया था। यह इसलिए बनाया गया था ताकि यह CF Type २ स्लॉट में फिट हो सके। सैमसंग अपने प्रोडक्ट लिटरेचर में अपने इसी फॉर्म फैक्टर को १.३ इंच का बताता हैं।
२४ मिमी X ५ मिमी X ३२ मिमी। तोशिबा ने सबसे पहले इस फॉर्म फैक्टर का ऐलान जनवरी २००४ में किया था। यह फॉर्म फैक्टर मोबाइल फ़ोन और दूसरे छोटे उपकरणों में इस्तेमाल किये जाने हेतु बनाया गया था जिसमे यू एस बी से जुड सकने वाले एचडीडी भी शामिल हैं जो की 4 जी मोबाईल फ़ोन पर वीडियो भंडारण के लिए बना होता हैं। तोशिबा ने ४ जीबी (MK4001MTD) और ८ जीबी (MK8003MTD) वाले संस्करण बनाए। तोशिबा का नाम दुनिया के सबसे छोटे एचडीडी बनाने के लिए गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हैं।
२.५ इंच और ३.५ इंच फॉर्म फैक्टर वाले HDD सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हैं।
२००९ तक हार्ड ड्राइव निर्माताओ ने १.३ इंच , १ इंच और ०.८५ इंच फॉर्म फैक्टर वाले HDD का निर्माण बंध कर दिया हैं क्यूंकि यूऍसबी_फ्लैश_ड्राइव की कीमते घट रही हैं और इनमे को घूमने वाला पुर्जा भी नहीं होता।
डेटा एक्सेस करने में जो समय लगता हैं वह दो कारणों पर निर्भर होती हैं।
(१ ) घूमने वाले चक्र का याँत्रिक स्वभाव।
(२ ) नोक के घूमने की गति।
एक HDD का औसत अभिगम काल (एवरेज एक्सेस टाइम) सारे संभव सीक टाइम का औसत होता हैं मतलब सारे संभावित सीक टाइम को जितने बार आँकणों को पढने की कोशिश हुई हैं उनसे भाग करने पर यह संख्या हमें मिलती हैं। लेकिन व्यवहारिक रूप से यह संख्या हमें सांख्यिकीतरीको (statistical methods) से मिलती हैं।
डिफ्रेगमेंटेशन एक पद्धति हैं जिसे इस्तेमाल करके आँकणों को पढने में जो विलम्ब होता हैं उसे कम से कम किया जा सकता हैं। इसमें सम्बंधित आँकणों को एक दूसरे के करीबी क्षेत्रो में रखा जाता हैं। कुछ कंप्यूटर प्रचालन तंत्र स्वचालित तरीके से ही डिफ्रेगमेंटेशन करते हैं। स्वचालित डिफ्रेगमेंटेशन का लक्ष्य विलम्ब कम करना होता हैं लेकिन इस पद्धति के चलने के समय कुछ देर के लिए HDD का प्रदर्शन धीमा हो जाता हैं।
घूमने की गति बढ़ाकर या सीक टाइम कम करके डेटा एक्सेस करने का समय सुधारा जा सकता हैं। हवाई घनत्व बढ़ाकर थ्रूपुट बढ़ाया जा सकता हैं, इससे डेटा रेट और हेड के नीचे आँकणों की मात्रा बढ़ती हैं जिससे सीक टाइम भी कम होता हैं।
औसतन सीक टाइम हाई एंड सर्वर के हार्ड ड्राइव्स के लिए ४ ms का होता हैं , मोबाइल ड्राइव्स के लिए १५ ms आम मोबाइल ड्राइव्स के लिए १२ ms और डेस्कटॉप हार्ड ड्राइव्स के लिए ९ ms का होता हैं। सबसे पहले हार्ड डिस्क ड्राइव का सीक टाइम ६०० ms था ,१९७० के दशक के मध्य तक ऐसे हार्ड ड्राइव उपलब्ध हो गए थे जिनका सीक टाइम २५ ms जितना था। शुरुवात के कुछ डेस्कटॉप ड्राइव्स में हेड्स को हिलाने के लिए स्टेपर मोटर्स का इस्तेमाल किया जाता था और इसके वजह से सीक टाइम ८०-१२० ms जितना हुआ करता था। लेकिन १९८० के दशक तक इसमें तेज सुधार लाते हुए वॉइस कोइल टाइप अक्टूएशन का इस्तेमाल होने लगा जिससे सीक टाइम २० ms तक कम हो गया। इसके बाद सीक टाइम धीरे धीरे कम होता रहा।
ये विशिष्ट रूप से ६० जीबी से ४ टीबी तक आंकडों का भंडारण करते हैं और ५४०० से १०००० घुमाव प्रति मिनट कि दर से घुमते हैं। इनमें ऑंकणों कि स्थानांतरण गति १जीबी/सेकेंड होती हैं। अगस्त २०१४ तक सबसे अधिक क्षमता वाला डेस्कटॉप एच डी डी ८ टीबी तक आंकणों का भंडारण कर सकता था।]]।[26][27]
विशिष्ट तौर पे कई उपभोक्ताओ द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले संगणक जिनपर की उद्यम सॉफ्टवेयर चलते हैं द्धारा उपयोग किये जाते हैं। जैसे की: लेन-देन प्रसंस्करण डेटाबेस (अंग्रेज़ी: transaction processing databases), इंटरनेट का आधारभूत ढांचा (ईमेल, वेब सर्वर, ई-व्यापार इत्यादि), नियर लाइन भंडारण। [28] उद्यम एचडीडी सामन्यत: २४ घंटे सातो दिन बिना किसी परेशानी के उच्च प्रदर्शन करते हुए चलते रहते हैं। यहाँ अत्यधिक भंडारण क्षमता पाना लक्ष्य नहीं होता है इसलिए मूल्य की तुलना में क्षमता काफी काम होती है।
ये वो एचडीडी होते है जो वीडियो रिकॉर्डर, एमपी३ वादक, वाहनों में लगे होते हैं। चूंकि ये अधिकतर हिलते रहने वाले उपकरणों में लगे होते हैं इसलिए इन्हे आघात प्रतिरोधी बनाया जाता है। इससे बिजली की खपत कम होती है और डाटा भंडारन की क्षमता में व्रधि होती है
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