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हाइड्रोजन आबंध
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हाइड्रोजन बन्ध एक ऋणात्मक परमाणु और नाइट्रोजन, ऑक्सीजन या फ्लोरीन से जुड़े एक हाइड्रोजन परमाणु के बीच द्विध्रुव-द्विध्रुव बल का परिणाम होता है। हाइड्रोजन बन्ध की ऊर्जा (लगभग ५ से ३० किलोजूल/मोल) एक मन्द (Weak) संयोजी बन्ध(Covalent bond) -(१५५ कि.जी/मोल) से तुलनीय होती है। एक खास संयोजी बन्ध अन्तराण्विक हाइड्रोजन बन्ध से लगभग २० गुना शक्तिशाली होता है। यह बन्ध अणुओं के बीच (अन्तराण्विक), या एक ही अणुके भिन्न भागों के बीच भी बन सकते हैं।[2] हाइड्रोजन बन्ध एक मजबूत स्थिर डाइपोल-डाइपोल वान डर वाल बल होता है, किन्तु संयोजी बंध, आयनिक बन्ध और धात्विक बन्धों से कमज़ोर होता है। हाइड्रोजन बन्ध संयोजी बंध एवं इलेक्ट्रोस्टैटिक अन्तराण्विक आकर्षण के बीच का होता है। इस प्रकार के बन्ध कार्बनिक अणुओं (डी एन ए) एवं अकार्बनिक अणुओं (जल) दोनों में ही पाए जाते हैं।
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अन्तराण्विक हाइड्रोजन बन्ध ही जल के ऊंचे उबलने के बिन्दु (१००° से) के लिए उत्तरदायी होता है। यही बल द्वितीयक, तृतीयक एवं चतुर्थ श्रेणी के प्रोटीन एवं न्यूक्लिक अम्ल की संरचनाएं बनाता है।
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-@abhishekmarwadi02
हाइड्रोजन बन्ध :-
किसी अणु के हाइड्रोजन परमाणु तथा किसी समान अथवा भिन्न प्रकार के दूसरे अणु के प्रबल विद्युत् ऋणात्मक परमाणु के बीच के आकर्षण बल को हाइड्रोजन बन्ध कहते है। इसे बिंदुकित रेखा प्रदर्शित करते हैं। हाइड्रोजन बन्ध दो प्रकार का होता है: (1) अन्तर अणुक हाइड्रोजन बन्ध, जैसे - N H 3
में ।
(2) अन्तःअणुक हाइड्रोजन बन्ध, जैसे - ऑर्थोनाइट्रोफीनॉल में yas