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सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय
1875 से 1939 तक बड़ोदा रियासत के महाराजा / From Wikipedia, the free encyclopedia
सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (मूल नाम : श्रीमन्त गोपालराव गायकवाड ; 11 मार्च, 1863 – 6 फरवरी, 1939) सन १८७५ से १९३९ तक बड़ोदा रियासत के महाराजा थे। वे एक दूरदर्शी एवं विद्वान शासक थे। उन्होने अपने शासनकाल में वडोदरा की कायापलट कर दी थी। इनको भारतीय पुस्तकालय आंदोलन का जनक भी माना गया है। इन्होने इस आन्दोलन की शुरुआत सन 1910 मे की थी। इन्होंने ही भीमराव अम्बेडकर को विदेश पढ़ने जाने के लिए छात्रवृति प्रदान की थी। महाराजा सयाजीराव विजया बैंक (अब बैंक ऑफ़ बड़ौदा) के संस्थापक भी थे। उन्हें भारत का अंतिम आदर्श राजा कहा जाता है। वे आधुनिक भारत की निर्मिति प्रक्रिया के एक शिल्पी माने जाते हैं।
सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय | |
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Farzand-i-Khas-i-Daulat-i-Inglishia, Shrimant Maharaja Sir , Sena Khas Khel Shamsher Bahadur Maharaja Gaekwad of Baroda, GCSI, GCIE, KIH | |
![]() Sayajirao III Gaekwad, Maharaja of Baroda, 1919 | |
King of Baroda | |
शासनावधि | 10 April 1875 – 6 February 1939 |
राज्याभिषेक | 10 April 1875 (in Baroda) |
पूर्ववर्ती | Malhar Rao Gaekwad Madhav Rao Thanjavurkar (de facto) |
उत्तरवर्ती | Pratap Singh Rao Gaekwad |
जन्म | 11 मार्च 1863ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
निधन | 6 फ़रवरी 1939(1939-02-06) (उम्र 75)[1]ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
समाधि | ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
संगिनी | Chimnabai of Tanjore Lakshmibai Mohite |
संतान | Shrimant Maharajkumari Bajubai Gaekwad Shrimant Maharajkumari Putlabai Gaekwad Yuvaraj Sahib Fatehsinhrao Gaekwad Shrimant Maharajkumar Jaisinghrao Gaekwad Shrimant Maharajkumar Shivajirao Gaekwad Maharani Indira Devi Shrimant Maharajkumar Dhairyashilrao Gaekwad |
राजवंश | Gaekwad |
पिता | Kashirao Gaekwad |
धर्म | हिन्दू धर्म |
हस्ताक्षर | ![]() |
राज्य चलाना एक शास्त्र है, इसलिए राजा का ज्ञानसम्पन्न होना अत्यधिक आवश्यक है, इसे जानकर सयाजीराव ने स्वयं ज्ञान पाया। उन्होंने विश्वभर की शासन पद्धतियों का अध्ययन किया। सुशासन और जनता के ज्ञानात्मक प्रबोधन कार्य से जनकल्याण का व्रत हाथ में लिया। शिक्षण और विज्ञान ही प्रगति तथा परिवर्तन का साधन है, इसे महाराजा ने अच्छी तरह जाना था। इसलिए मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, सुशासन, विधि-न्याय, खेती, उद्योगों को मदद, सामाजिक-धार्मिक सुधार, जाति-धर्मों के बीच की ऊँच-नीच को समाप्त करके समता, मानवता और सर्वधर्म समभाव के मार्ग को चुना था।
महाराजा सयाजीराव शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और वाङ्मयीन कलाओं के आश्रयदाता थे। देश के अनेक युगपुरुषों और संस्थाओं को उन्होंने सहायता प्रदान की जिनमें दादाभाई नौरोजी, नामदार गोखले, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, न्यायमूर्ति रानडे, महात्मा फुले, राजर्षि शाहू, डॉ. आम्बेडकर, मदनमोहन मालवीय, कर्मवीर भाऊराव, वीर सावरकर, महर्षि शिंदे का नामोल्लेख किया जा सकता है। अनेक संस्थाओं और व्यक्तियों को महाराजा की ओर से करोड़ों रुपयों की सहायता मिली. महाराज सयाजीराव गायकवाड़ मराठा कुनबी (कुर्मी) जाती के थे। महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ स्वतंत्रता सेनानियों के समर्थक और प्रतिभाशाली लेखक थे, उनके व्यक्तित्व की यह नई पहचान बनी थी। उनकी किताबें, भाषण, पत्र, आदेश और दैनंदिनी देश का अनमोल खजाना है। सुशासन और जनकल्याण में मुक्ति की खोज करनेवाले सयाजीराव का बलशाली भारत ही सपना था।