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शेख मुजीबुर्रहमान
बांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति / From Wikipedia, the free encyclopedia
शेख़ मुजीबुर रहमान (बाङ्ला: শেখ মুজিবুর রহমান; १७ मार्च १९२० – १५ अगस्त १९७५) बांग्लादेश के संस्थापक नेता, महान अगुआ एवं प्रथम राष्ट्रपति थे। उन्हें सामान्यतः बंगलादेश का जनक कहा जाता है। वे अवामी लीग के अध्यक्ष थे।[1] उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सशस्त्र संग्राम की अगुवाई करते हुए बांग्लादेश को मुक्ति दिलाई। वे बांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति बने और बाद में प्रधानमंत्री भी बने। वे 'शेख़ मुजीब' के नाम से भी प्रसिद्ध थे। उन्हें 'बंगबन्धु' की पदवी से सम्मानित किया गया।
सामान्य तथ्य बङ्गबन्धु शेख मुजिबुर रहमान, प्रधानमंत्री ...
बङ्गबन्धु शेख मुजिबुर रहमान | |
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बाङ्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति | |
पद बहाल १७ अप्रिल १९७१ – १२ जनवरी १९७२ | |
प्रधानमंत्री | ताजुद्दीन अहमद |
उत्तरा धिकारी | सैयद नजरुल इस्लाम (अस्थायी) |
बाङ्लादेश के द्वितीय प्रधानमन्त्री | |
पद बहाल १२ जनवरी १९७२ – २४ जनवरी १९७५ | |
राष्ट्रपति | अबु साइद चौधुरी मोहाम्मदउल्लाह |
पूर्वा धिकारी | ताजुद्दीन अहमद |
उत्तरा धिकारी | मोहम्मद मंसूर अली |
बाङ्लादेश के चौथे राष्ट्रपति | |
पद बहाल २५ जनवरी १९७५ – १५ अगस्त १९७५ | |
प्रधानमंत्री | मोहम्मद मंसूर अली |
पूर्वा धिकारी | मोहाम्मदउल्लाह |
उत्तरा धिकारी | खन्दकार मोशताक अहमद |
जन्म | साँचा:जन्म मिति टुङ्गिपाडा, गोपालगञ्ज, फरीदपुर ज़िला, बाङ्ला राज्य , बेलायती भारत (वर्तमान बांंग्लादेश)ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
मृत्यु | साँचा:मृत्यु मिति तथा वर्ष अपने निवासस्थान, धानमण्डी, ढाका, बांंग्लादेशਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
नागरिकता | साँचा:झण्डा (सन् १९४७ सम्म) साँचा:झण्डा (सन् १९७१ भन्दा पहिला) साँचा:झण्डा |
राष्ट्रीयता | बाङ्लादेशी |
राजनीतिक दल | बाङ्लादेश कृषक श्रमिक आवामी लीग (सन् १९७५) |
अन्य राजनीतिक संबद्धताऐं |
अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (सन् १९४९ भन्दा पहिला) बांग्लादेश अवामी लीग (१९४९-१९७५) |
जीवन संगी | बेगम फजिलातुन्नेसा |
बच्चे | शेख हसीना शेख रेहाना शेख कामाल शेख जामाल शेख रासेल |
शैक्षिक सम्बद्धता | मौलाना आजाद महाविद्यालय ढाका विश्वविद्यालय |
हस्ताक्षर | ![]() |
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बांग्लादेश की मुक्ति के तीन वर्ष के भीतर ही १५ अगस्त १९७५ को सैनिक तख़्तापलट के द्वारा उनकी हत्या कर दी गई। उनकी दो बेटियों में एक शेख हसीना तख़्तापलट के बाद जर्मनी से दिल्ली आईं और १९८१ तक दिल्ली रही तथा १९८१ के बाद बांग्लादेश जाकार पिता की राजनैतिक विरासत को संभाला।