विमीय विश्लेषण

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अभियान्त्रिकी और भौतिकी में, विमीय विश्लेषण विभिन्न भौतिक राशियों के मध्य उनके मूल मात्रकों (दैर्घ्य, द्रव्यमान, समय, वैद्युतिक धारा, ऊष्मगतिक ताप, पदार्थ की मात्रा तथा दीप्त तैव्र्य) और मापन के मात्रक की पहचान करके उनके मध्य सम्बन्धों का विश्लेषण और गणना या तुलना के रूप में इन विमाओं का सन्धान है। सभी मात्रकों में साधारणतः दशमलव होने के कारण, एक विमीय मात्रक से दूसरी में मात्रकों का रूपान्तरण प्रायः मीटरी या एसआई के भीतर दूसरों की तुलना में सहज होता है।

समतुलनीय भौतिक राशियाँ एक ही प्रकार की होती हैं और उनका एक ही विमा होता है, और उनकी सीधे एक दूसरे से तुलना की जा सकती है, भले ही वे मापन की विभिन्न मात्रकों में व्यक्त की गई हों, उदाहरणार्थ गज़ और मीटर, पाउण्ड (द्रव्यमान) और किलोग्राम, सेकण्ड और वर्ष

अतुलनीय भौतिक राशियाँ विभिन्न प्रकार की होती हैं और उनके विभिन्न विमा होते हैं, और उनकी एक-दूसरे से सीधे तुलना नहीं की जा सकती, चाहे वे किसी भी मात्रक में व्यक्त की गई हों, उदाहरणार्थ मीटर और किलोग्राम, सेकण्ड और किलोग्राम, मीटर और सेकण्ड।

किसी भी भौतिक रूप से सार्थक समीकरण, या असमिका के बाएँ और दाएँ पक्ष में समान विमा होने चाहिए, इस गुण को विमीय समांगता सिद्धान्त के रूप में जाना जाता है। विमीय समांगता की जाँच विमीय विश्लेषण का एक सामान्य अनुप्रयोग है, जो अवकलज समीकरणों और संगणनाओं पर एक सम्भाव्यता जाँच के रूप में कार्य करता है। यह व्युत्पन्न समीकरणों में एक मार्गदर्शक और बाधा के रूप में भी कार्य करता है जो अधिक कठोर व्युत्पत्ति के अभाव में एक भौतिक प्रणाली का वर्णन कर सकता है।

विकास का इतिहास

न्यूटन द्वारा लिखित पुस्तक 'प्रिंसीपिया' (Principia) में विमाएँ तथा विमीय विश्लेषण 'सादृश्य का सिद्धांत' (Principle of Similitude) नाम से वर्णित हैं। इस विषय को बढ़ाने में जिन लोगों ने योगदान दिया है, वे हैं : ई. बकिंघम (E. Buckingham), लार्ड रैलि (Lord Rayleigh) और पी. डब्ल्यू. ब्रिजमैन (P. W. Bridgman)। प्रारंभ में विमीय विश्लेषण यांत्रिकी (mechanics) की समस्याओं में प्रयुक्त किया गया, किंतु आजकल यह सभी प्रकार की भौतिकी एवं इंजीनियरी की समस्याओं में प्रयुक्त होने लगा है। विमीय विश्लेषण का मान उसकी इस क्षमता में है कि भौतिकविज्ञानी और इंजीनियर के प्रतिदिन की सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक समस्याओं के समाधान में यह सहायक होता है।

परिचय

सारांश
परिप्रेक्ष्य

भौतिक राशि के विमा को मूल भौतिक विमाओं के गुणा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, प्रत्येक को एक पूर्णांक घात तक चढ़ाया जाता है। भौतिक राशि का विमा उसकी मात्रा को व्यक्त करने हेतु प्रयोग किए जाने वाले किसी मापनी या मात्रक से अधिक मौलिक है।

गणितीय रूप से, मात्रा X का विमा इस प्रकार दिया जाया है:, जहाँ a, b, c, d, e, f, g विमीय घातांक हैं। किसी राशि को गुरु कोष्ठक [ ] से घेरने का यह अर्थ है कि उस राशि की विमा पर विचार किया जा रहा है।

यान्त्रिकी में सभी भौतिक राशियों को विमाओं [L], [M] और [T] के पदों में व्यक्त किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, किसी वस्तु द्वारा घेरा गया आयतन उसकी दैर्घ्य, विस्तार और औच्च्य अथवा तीन दैर्घ्यों के गुणन द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसलिए, आयतन का विमीय सूत्र = [L] × [L] × [L] = [L³]। क्योंकि, आयतन, द्रव्यमान और समय पर निर्भर नहीं करता, इसलिए यह कहा जाता है कि आयतन में द्रव्यमान की शून्य विमा, [M⁰], समय की शून्य विमा [T⁰] तथा लम्बाई की 3 विमाएँ [L³] हैं।

कुछ यान्त्रिक व्युत्पन्न राशियों की विमाएँ तथा मात्रक निम्नलिखित हैं:

अधिक जानकारी , ...
भौतिक राशिप्रतीकमात्रकविमीय सूत्र
आवृत्तिfHz (=1/s)
कोणीय वेगω1/s
वेगvm/s
त्वरणam/s²
संवेगpm kg/s
घनत्वρkg/m³
बलFN (= kg ·m/s²)
विशिष्ट भारγN/m³
दाब, प्रतिबलpN/m²
यंग प्रत्यास्थता गुणांकEN/m²
ऊर्जाWJ (= m²·kg/s²)
शक्तिPW (= m²·kg/s³)
गतिक श्यानताμN·s/m²
काइनेटिक श्यानताνm²/s
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विमीय विश्लेषण के सिद्धांत

सारांश
परिप्रेक्ष्य

जल किसी समीकरण का रूप मापन (measurement) के मौलिक मात्रकों (fundamental units) पर निर्भर नहीं करता, तब वह विमीय रूप से समांगी (Homogeneous) कहलाता है। उदाहरण के लिए, सरल लोलक का दोलनकाल T = (1/2 pi) * (1/g)0.5 मान्य है चाहे लंबाई फुट या मीटर में नापी गई हो, अथवा समय T मिनट या सेकंड में नापा गया हो। किसी प्रश्न के विमीय विश्लेषण का प्रथम सोपान प्रश्न में आए चरों (variables) का निर्णय करता है। यदि घटना (phenomenon) में वे चर, जो वास्तव में प्रभावहीन हैं, प्रयुक्त होते हैं, तो अंतिम समीकरण में बड़ी संख्या में पद दिखाई पड़ेंगे। फिर हम प्रदत्त चर-समुच्चय (set) के विमाविहीन उत्पादों (products) के पूर्ण समुच्चय का परिकलन (calculation) करते हैं और उनके बीच एक सामान्य संबंध लिखते हैं। इस संबंध में ई. बकिंहैम द्वारा प्रणीत निम्नलिखित मौलिक प्रमेय महत्वपूर्ण है :

यदि कोई समीकरण विमीय रूप से समांगी है, तो वह विमाविहीन उत्पादों के पूर्ण समुच्चय के, जिसकी संख्या प्रश्न में समाविष्ट भौतिक चरों की संख्या एवं मौलिक प्राथमिक राशियों की संख्या के अंतर (जिनके पदों में वे व्यक्त किए जाते हैं) के बराबर होती है, संबंध में बदला जा सकता है।

विलोमत: इसे इस तरह कहा जा सकता है कि यदि मौलिक चरों का संबंध इन चरों के उत्पादों के निम्नतम समुच्चय में बदला जा सकता है, तो ये सभी उत्पाद विमाविहीन होंगे। बकिंहैम का प्रमेय, जिसे द्वितीय (p) प्रमेय भी कहते हैं, विमीय विश्लेषण के संपूर्ण सिद्धांत का सारांश प्रस्तुत करता है।

उदाहरण

सारांश
परिप्रेक्ष्य

किसी पाइप से तरल का प्रवाह होने पर दाब में कमी होती जाती है। माना यह कमी निम्नलिखित राशियों पर निर्भर करती है-

जहाँ से तक नियतक संख्याएँ हैं।और,

दोनों तरफ की राशियों की विमाओं को लिकहर सरल करने पर,

विमीय विश्लेषण के सिद्धान्त के अनुसार, एक ही भौतिक राशि पर दोनों तरफ घात समान होंगे। अतः

for

उपरोक्त समीकरणों को हल करने पर (B और E को छोड़कर शेष राशियों का बिलोपन करने पर)

अन्ततः निम्नलिखित सूत्र प्राप्त होते हैं:

जहाँ Re – रेनल्ड्स संख्या, Eu – आइलर संख्या है।

इन्हें भी देखें

बाहरी काड़ियाँ

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