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एपीजे अब्दुल कलाम सर का आत्मकथा विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
विंग्स ऑफ फायर: एन आटोबायोग्राफी ऑफ एपीजे अब्दुल कलाम (१९९९), भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की आत्मकथा है। इसके सह-लेखक अरुण तिवारी हैं। इसमें अब्दुल कलाम के बचपन से लेकर लगभग १९९९ तक के जीवन सफर के बारे में बताया गया है। मूल रूप में अंग्रेजी में प्रकाशित यह किताब, विश्व की १३ भाषाओ में अनूदित हो चुकी है। जिसमे भारत की प्रमुख भाषाएँ हिंदी, गुजराती, तेलगु, तमिल, मराठी, मलयालम के साथ-साथ कोरियन, चीनी और ब्रेल लिपि भी शामिल है।[1]
विंग्स ऑफ़ फ़ायर: एन ऑटोबायोग्राफी | |
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विंग्स ऑफ फायर: एन आटोबायोग्राफी ऑफ एपीजे अब्दुल कलाम | |
लेखक | अब्दुल कलाम, अरूण तिवारी |
देश | भारत |
भाषा | अंग्रेजी |
विषय | आत्मकथा |
प्रकाशक | युनीवर्सीटिज प्रेस |
प्रकाशन तिथि | १९९९ |
मीडिया प्रकार | मुद्रण |
पृष्ठ | १८० |
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ | 81-7371-146-1 |
आत्मकथा ४ भागों में विभाजित है।
अनुस्थापन (Orientation) शीर्षक से लिखा गया पहला भाग, तीन अध्यायों में विभाजित है। इसमें डॉ॰ अब्दुल कलाम के बचपन से लेकर पहले ३२ वर्षो के संस्मर्णो का वर्णन है। इन वर्षों में डॉ॰ कलाम के बचपन, शिक्षा और शुरूआती कार्यजीवन के बारे में बताया गया है। डॉ॰ कलाम का जन्म तमिलनाडु में रामेश्वरम में मध्यम वर्गीय तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके परिवार, चचरे भाईयों, शिक्षकों और अन्य लोगों से पडे प्रभावों के बारे में वर्णन किया गया है। रामेश्वरम में प्राइमरी स्कूल में पढ़ने के बाद, डॉ॰ कलाम शवार्टज़ हाई स्कूल, रामनाथपुरम गए और वहाँ से उच्च शिक्षा के लिए सेंट जोसफ़ कालेज, तिरुचिरापल्ली (त्रिची) गए। उनके शिक्षा के बारे में किए गए वर्णन में वे अपने शिक्षकों और उनके साथ हुए अनुभवों के बारे में बताते हैं। सेंट जोज़िफ़ कालेज से बीएससी पास करने के बाद विमान-विज्ञान की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालोजी (MIT) में दाखिला लिया। १९५८ में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेकनॉलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। एम आई टी से एक प्रशिक्षार्थी के रूप में वह एच ए एल बैंगलोर गए। इसके बाद डॉ॰ कलाम ने डी टी डी एंड पी (वायु) के तकनीकी केन्द्र (सिविल विमानन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक के रूप में २५० मासिक मूल वेतन पर नौकरी आरंभ की। इस भाग के अंत में वे ६ महीने के प्रशिक्षण के लिए नासा, अमेरिका जाते हैं।
सृजन (Creation) भाग, ७ अध्यायो में है, अध्याय ४ से अध्याय १० तक। इसमें डॉ॰ कलाम के जीवन के १७ सालों (१९६३-१९८०) का वर्णन है। इस भाग में, इन वर्षो में हुए उनके काम और भारत के तकनीकी विकास की कहानी मिलती है। डॉ॰ कलाम इसरो में काम करने वाले एक इंजीनीयर से देश की बहुचर्चित तकनीकी परियोजना, एसएलवी के प्रमुख बनते हैं। इस दौरान उनको अन्य छोटी बड़ी सफलता और असफलाताओं से सामना करना पड़ता है। वे न केवल उच्च अधिकारियों का वर्णन करते है वरन कई उभरते हुए वैज्ञानिकों के साथ हुए अनुभवों के बारे में भी लिखते हैं। १९७६ में उनके पिता का देहांत होता है। १९८१ में उन्हें पद्मभूषण मिलता है। इस भाग के अंत में वे डीआरडीएल के निर्देशक के रूप में चुने जाते हैं।
प्रसादन (Propitiation) इस भाग में डॉ॰ कलाम के जीवन के अगले १० सालों के बारे में लिखा गया है। यह भाग ५ अध्यायो में है, अध्याय ११ से अध्याय १४ तक। इस भाग में उनके द्वारा डीआरडीएल में किए उनके प्रबंधन संबंधित कार्यो का ज्यादा वर्णन है। डीआरडीएल प्रयोगशाला डॉ॰ कलाम के प्रबंधन के अंतर्गत आत्मविश्वास के साथ भारत के मिसाइल परियोजना का निर्माण करती है। इस भाग में वे वर्णन करते हैं कि कैसे वे इस काम को अंजाम देने के लिए व्यक्तियों का चुनाव करते हैं। उनके रास्ते में आई मुश्किलों को हल करने के लिए वे पारंपरिक शैली से हटकर नए निर्णय लेते हैं। वे शिक्षण संस्थाओं के साथ भी भागीदारी करते हैं।
अवलोकन (Contemplation) नामक अंतिम भाग २ अध्यायो में है, अध्याय १५ और अध्याय १६। इसमेंं डॉ॰ कलाम के जीवन के अगले ९ सालों (१९९१-१९९९) तक का वर्णन है। इस भाग में डॉ॰ कलाम अपने जीवन के अनुभवों, ज्ञान और विचार को संकलित करते हैं। वर्ष १९९७ में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होते हैं और देश की आने वाली पीढ़ी को संदेश देते हैं।
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