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लेखन का इतिहास हमें दिखाता है कि भाषा किस तरह से अक्षरों या अन्य चिह्नों [1] द्वारा लिखी गयी और लिपियों के विकास को समझने की कोशिश करता है।
विभिन्न मानव सभ्यताओं में लेखन प्रणालीयों का विकास हुआ है, परन्तु इन प्रणालीयों के पहले आध्यलिपियों का उपयोग हुआ, जिनमें वैचारिक या स्मृति-सहायक चिन्हों काम आते थे। सच्चे लेखन, जिसमें भाषिक उच्चारण को इस तरह कूट बना सकते ताकी पढ़ने वाला लिखित शब्द से काफी हद तक भाषिक उच्चारण बना सके, बादमें बना। सच्चे लेखन आध्यलिपि से अलग है। आध्यलिपि अधिकतर व्याकरणिक शब्दों और प्रत्ययों को कूटित नहीं करती है, जिस वजय से लेखक के मतलब को समझना कठिन या असंभव हो जाता है। क्यूनिफॉर्म लिपि दुनिया की सबसे पहली लिपियों में से एक है। [2]
अधिकतर जनें जो इसमें काम करते है सहमत हैं कि सच्चे लेखन का निर्माण कम से कम दो प्राचीन सभ्यताओं में हुआ था (अंकों को छोड़ कर, उनका निर्माण सच्चे लेखन से कही पहले हो चुका था), पर हो सकता है कि और में भी निर्माण हुआ हो। ऐसा मानते है कि सुमेर में ३४०० ईसा पूर्व में निर्माण हुआ और मध्यअमेरिका में ३०० ईसा पूर्व तक निर्माण हो चुका था।[3]
स्वतंत्रे लेखन प्रणालियों मिस्र में ३१०० ईसा पूर्व के आसपास और चीन में १२०० ई.पू. के आसपास हुई,[4] लेकिन इतिहासकारों इस बात पर सहमत नहीं हैं कि यह दोनो प्रणालियां दूसरी लिपियों के जानकारी के बिना बनी या फिर सांस्कृतिक प्रसार द्वारा सुमेर की लिपि का कोई असर रहा इन दोनो लिपियों के बनने में। यह संभव है कि भाषा को लिखत रूप में बनाने की सोच व्यापारियों द्वारा फैल गयी, लेकिन सुमेर की प्रणाली खुद नहीं फैली (ऐसे पहा ह्मोंग और चेरोकी पाठ्यक्रम की लिपियां बनी)।
कई लोग प्राचीन चीनी चिन्हों को स्वतंत्र आविष्कार मानते हैं क्योंकि १) प्राचीन चीन और मध्य पूर्व के बीच संपर्क का सबूत नहीं है,[5] और २) मेसोपोटामिया और चीन की लिपियां की लॉगोग्राफी का ढंग और ध्वन्यात्मक चिट्रण के ढंग में बहुत अंतर है। [6] मिस्र की लिपि मेसोपोटामियाई क्यूनिफॉर्म से अलग है, लेकिन अवधारणाओं में समानताएं से लगता है कि लेखन का विचार मेसोपोटामिया से मिस्र आया हो सकता है। [7] १९९९ में, पुरातत्व पत्रिका ने बताया कि मिस्र के सबसे पुराने चिन्ह ३४०० ईसा पूर्व के हैं, जिस से लेखक को लगता है कि हो सकता है कि मिस्र की लिपि का आधार मेसोपोटामिया के ध्वन्यात्मक चिट्रण थे।[8]
इस तरह के कांस्य युग सिंधु घाटी सभ्यता की सिंधु लिपि, ईस्टर द्वीप की रोन्गोरोन्गो लिपि, और विंका प्रतीकों पर वाद विवाद चल रहा है। यह सारी लिपियां अनिर्णीत हैं, और इसलिए यह अज्ञात है कि क्या वे सच्चे लेखन, आध्यलिपि , या कुछ और हैं।
प्रतीकात्मक संचार प्रणाली लेखन प्रणाली से अलग होती है क्योंकि प्रतीकात्मक संचार प्रणाली को समझने के लिये कुछ हद तक उस से जुड़ी बोली भी समझनी होती। प्रतीकात्मक प्रणाली, जैसे कि सूचना संकेत , पुताई , मानचित्र और गणित समझने के लिये अधिकतर कोई बोली के ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है। प्रत्येक मानव समुदाय भाषा का उपयोग करती है, जिस वजय से कई को लगता है कि यह मानवता का परिभाषित प्रतीक है (भाषा की उत्पत्ति देखें)। लेखन प्रणालीयों का विकास छिटपुट, असमान तरह से और धीमी गति से हुआ है। पारंपरिक मौखिक प्रणालियों का आंशिक निराकरण किया लेखन प्रणालीयों ने, परन्तू यह भी छिटपुट, असमान तरह से और धीमी गति से हुआ है। एक बार स्थापित होने के बाद, लेखन प्रणाली अपने बोले गए समकक्षों की तुलना में धीरे बदलती है और अक्सर ऐसी विशेषताओं और अभिव्यक्तियों को बचाती है जो अब बोली हुई भाषा में मौजूद नहीं हैं। लेखन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इस से समाज लगातार और अधिक विस्तार से जानकारी अंकित कर सकता है, जो कि केवल बोली में याद रखना कठिन होता। लेखन काम में लेकर समाज को ज्ञान बांटने में सहयोग मिलता है।
प्रागितिहास और प्रारंभिक लेखन के इतिहास के बीच विद्वान एक अंतर मानते हैं [9] परन्तु इस बात पर सहमत नहीं हैं कि कब प्रागितिहास इतिहास बन जाता है और कब आध्य-लेखन "सच्चा लेखन" बन जाता है। अर्थ काफी हद तक व्यक्तिपरक है। [10] सामान्यतय, लिखना ज्ञान का अभिलेख बनाने का तरीका है जो कि अक्षरों से बना हो, जो कि खुद ग्लिफ़ से बने हो सकते हैं। [11]
कोई क्षेत्र में लेखन का उद्भव होने के कुछ सदियों बाद तक विखंडन शिलालेखों मिलते हैं। इतिहासकार सुसंगत ग्रंथों की उपस्थिति से कोई भी संस्कृति की "ऐतिहासिकता" को चिह्नित करते हैं। [9]
लेखन का आविष्कार झटके से नहीं हुई। प्रतीकों का उपयोग, संभवतः पहले सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए, से धीरे-धीरे पूरा लेखन बना।
प्राचीन काल की सब से प्रसिद्ध चित्र लिपियां हैं:
पुरानी दुनिया में, प्रारंभिक कांस्य युग (४वी सहस्राब्दी ई.पू.) में नवपाषाण लेखन से सच्चे लेखन प्रणाली विकसित हुए। सुमेर के पुरातन (क्यूनीफॉर्म से पहले) लेखन और मिस्र के चित्रलिपि को अधिकतर सबसे पुराने लेखन प्रणालीयों मानते हैं। दोनों अपने पैतृक आध्य-शिक्षित प्रतीक प्रणालियों से ३४००-३१०० ईसा पूर्व के बीच सच्चे लेखन बनते हैं, और लगभग २६०० ईसा पूर्व पहले सुसंगत ग्रंथ मिलते हैं।
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