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लूथर गुलिक (Luther Halsey Gulick ; 1892–1993) लोक प्रशासन के एक विशेषज्ञ एवं सिद्धान्तकार थे।
1892 ई. में जापान के 'ओसाका' नामक शहर में लूथर गुलिक का जन्म हुआ था। कोलम्बिया विश्वविद्यालय से उन्होंने 1920 ई. में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। 1939 ई. में उन्होंने डी. लिट तथा 1954 ई. में डी. एस. एल. की उपाधि प्राप्त की। प्रथम महायुद्ध के समय सन् 1914–1918 तक लूथर गुलिक ने राष्ट्रीय रक्षा परिषद ने अपने महत्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन किया। 1960–62 ई. के बीच उन्होंने 'Institute of Public Administration' न्यूयार्क के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। लूथर गुलिक ने एक प्रोफेसर के रूप में कार्य करने के साथ-साथ प्रशासनिक सलाहकार के रूप में भी कार्य किया।
लूथर गुलिक को सामान्य प्रशासन के साथ-साथ सैनिक और औद्योगिक प्रशासन का अनुभव एवं ज्ञान था। यही कारण था कि उन्होंने विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। लूथर गुलिक का योगदान लेखन के क्षेत्र में भी कम नहीं है। उन्होंने प्रशासन और प्रबन्ध पर कई पुस्तकों की रचना की एवं लेख प्रकाशित कराया। उनकी रचनाओं में प्रमुख हैं-
लोक प्रशासन के प्रति लूथर गुलिक के योगदान को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है –
लोक प्रशासन एक गतिशील एवं विकासशील विषय है। इसलिए इसके कार्य क्षेत्र को सुनिश्चित करना कठिन एवं दुरूह कार्य है। यह राज्य से जुडा हुआ विषय है और राज्य के समक्ष विभिन्न प्रकार की नयी नयी समस्याएं आती रहती है, जिनका निदान उसे ढूंढना होता है। लोक कल्याणकारी राज्य के लक्ष्य प्राप्ति के सदंर्भ में तो लोक प्रशासन का कार्य क्षेत्र और व्यापक हो गया है तथा इसके महत्व में भी जबर्दस्त वृद्धि हुई है।
लोक प्रशासन के कार्य–क्षेत्र के सम्बन्ध में विद्वानों के बीच मतभेद कायम है। जहाँ तक लूथर गुलिक के मत का सवाल है तो उन्होंने लोक प्रशासन में सामान्य कार्यों के अतिरिक्त प्रशासन की कार्यपालिका शाखा के कार्यों को शामिल किया है।
लूथर गुलिक के द्वारा प्रशासन तथा लोक प्रशासन को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। प्रशासन के सम्बन्ध में लूथर गुलिक कहते है कि प्रशासन का सम्बन्ध कार्य समाप्ति और निर्धारित उद्देश्यों की परिपूर्ति से है। लोक प्रशासन को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा है कि-
लूथर गुलिक ने Papers on the Science of Administration, (1937) नामक अपनी पुस्तक में संगठन के सिद्धान्तों की सूची निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत की है –
(1) कार्य का विभाजन
(2) विभागीय संगठनों के आधार
(3) पदसोपान
(4) सौदेश्य समन्वय
(5) समितियों के अन्तर्गत समन्वय
(6) विकेन्द्रीकरण
(7) ओदश की एकता (युनिटी ऑफ कमाण्ड)
(8) लाइन तथा स्टाफ
(9) प्रत्यायोजन
(10) नियन्त्रण का क्षेत्र
लूथर गुलिक ने मुख्य कार्यपालक के कार्यों को 'पोस्टकार्ब फार्मूले' के द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया है। गुलिक का विचार है कि पोस्टकार्ब का फार्मूला मुख्य कार्यपालक के कार्यों के कार्यात्मक पक्षों की विवेचना करता है। फार्मूले का प्रत्येक शब्द किसी न किसी गतिविधि को अधिव्यक्त करता है, जो इस प्रकार है :
P–Planning नियोजन
O–Organising संगठन
S–Slatping कार्मिक वर्ग
D–Directing निर्देश देना "'C"'- Control. नियंत्रण Co–Coordinator समन्वय
R–Reporting रिपोर्ट
B–Budgeting बजट
संगठन की सक्रियता, कार्य–कुशलता एवं सफलता के लिए उसे सुविधानुसार विभिन्न विभागों एवं उपविभागो में विभाजित करना आवश्यक होता है। इसके साथ यह भी आवश्यक होता है कि संगठन के विभाजित विभाग या उप–विभाग मिलकर कार्यों को सम्पादित करें। इसी संदर्भ में लूथर गुलिक ने विभागीय संगठनो के निर्माण के चार प्रमुख आधार बतलायें हैं –
विशेष उद्देश्य या कार्य की दृष्टि से जब किसी संगठन का निर्माण किया जाता है तब इसे संगठन का कार्यात्मक सिद्धांत कहा जाता है। वास्तव में विभागीय संगठनों का मुख्य आधार कार्य अथवा लक्ष्य ही होता है। सभी प्रकार के संगठनों के निर्माण में इसी की प्रधानता होती है।
विभागीय संगठन के निर्माण के द्वितीय आधार के रूप में लूथर गुलिक ने प्रक्रिया को रखा है। प्रक्रिया का तात्पर्य उस योग्यता और ज्ञान से है जिसका सम्बन्ध विशेषीकरण की प्रवृति से होता है। प्रक्रिया को ध्यान में रखकर ही संगठन का विभाजन किया जाता है, उदाहरण के लिए – चिकित्सा विभाग, शिक्षा विभाग, प्रौद्योगिकी विभाग आदि।
विभागीय संगठन के निर्माण के तृतीय आधार के रूप में लूथर मुलिक ने व्यक्तियों को रखा है। सभी प्रकार के संगठनों की विशेषता होती है कि वह सभी प्रकार की सेवा व सुविधा उन व्यक्तियों को उपलब्ध कराये जिनको ध्यान में रखकर संगठन का गठन किया गया है। पुनर्वास विभाग, सामाजिक कल्याण विभाग, अल्पसंख्यकों के लिए कल्याण संस्थान आदि की स्थापना का आधार व्यक्ति ही होते है। लूथर गुलिक ने स्थान को भी विभागीय संगठन का एक आधार माना है। विभागों की स्थापना में स्थान का महत्व बहुत होता है। संगठन में नियंत्रण का क्षेत्र, आदेश की एकता, समन्वय तथा संचार आदि स्थान से प्रभावित होते है। कार्यों के शीघ्र सम्पादन के लिए विदेश विभाग के विभिन्न प्रभाग 'स्थान' पर ही आधारित होते हैं। लूथर गुलिक संगठन का मुख्य आधार कार्य विभाजन को मानते थे.
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