Loading AI tools
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
लाहौर प्रस्तावना,(उर्दू: قرارداد لاہور, क़रारदाद-ए-लाहौर; बंगाली: লাহোর প্রস্তাব, लाहोर प्रोश्ताब), सन 1940 में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा प्रस्तावित एक आधिकारिक राजनैतिक संकल्पना थी जिसे मुस्लिम लीग के 22 से 24 मार्च 1940 में चले तीन दिवसीय लाहौर सत्र के दौरान पारित किया गया था। इस प्रस्ताव द्वारा ब्रिटिश भारत के उत्तर पश्चिमी पूर्वी क्षेत्रों में, तथाकथित तौर पर, मुसलमानों के लिए "स्वतंत्र रियासतों" की मांग की गई थी एवं उक्तकथित इकाइयों में शामिल प्रांतों को स्वायत्तता एवं संप्रभुता युक्त बनाने की भी बात की गई थी। तत्पश्चात, यह संकल्पना "भारत के मुसलमानों" के लिए पाकिस्तान नामक मैं एक अलग स्वतंत्र स्वायत्त मुल्क बनाने की मांग करने में परिवर्तित हो गया।[1][2][3]
हालांकि पाकिस्तान नाम को चौधरी रहमत अली द्वारा पहले ही प्रस्तावित कर दिया गया था परंतु [4] सन 1933 तक मजलूम हक मोहम्मद अली जिन्ना एवं अन्य मुसलमान नेता हिंदू मुस्लिम एकता के सिद्धांत पर दृढ़ थे,[5] परंतु अंग्रेजों द्वारा लगातार प्रचारित किए जा रहे विभाजन प्रोत्साह गलतफहमियों मैं हिंदुओं में मुसलमानों के प्रति अविश्वास और द्वेष की भावना को जगा दिया था इन परिस्थितियों द्वारा खड़े हुए अतिसंवेदनशील राजनैतिक माहौल ने भी पाकिस्तान बनाने के उस प्रस्ताव को बढ़ावा दिया था[6]
इस प्रस्ताव की पेशी के उपलक्ष में प्रतीवर्ष 23 मार्च को पाकिस्तान में यौम-ए-पाकिस्तान(पाकिस्तान दिवस) के रूप में मनाया जाता है।
23 मार्च को लाहौर के मिंटो पार्क में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के तीन दिवसीय वार्षिक बैठक के अंत में वह ऐतिहासिक संकल्प पारित किया गया था, जिसके आधार पर मुस्लिम लीग ने भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के अलग देश के अधिग्रहण के लिए आंदोलन शुरू किया था और सात साल के बाद अपनी मांग पारित कराने में सफल रही।
उपमहाद्वीप में ब्रिटिश राज द्वारा सत्ता जनता को सौंपने की प्रक्रिया के पहले चरण में 1936/1937 में पहले आम चुनाव हुए थे उनमें मुस्लिम लीग को बुरी तरह से हार उठानी पड़ी थी और उसके इस दावे को गंभीर नीचा पहुंची थी कि वह उपमहाद्वीप के मुसलमानों के एकमात्र प्रतिनिधि सभा है। इसलिए मुस्लिम लीग नेतृत्व और कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गए थे और उन पर एक अजब बेबसी का आलम था।
कांग्रेस को मद्रास, यू पी, सी पी, बिहार और उड़ीसा में स्पष्ट बहुमत हासिल हुई थी, सीमा और बम्बई में उसने दूसरे दलों के साथ मिलकर गठबंधन सरकार का गठन किया था और सिंध और असम में जहां मुस्लिम हावी थे कांग्रेस को काफी सफलता मिली थी।
पंजाब में अलबत्ता सिर इनाम हुसैन के यूनीनसट पार्टी और बंगाल में मौलवी कृपा हक की प्रजा कृषक पार्टी को जीत हुई थी।
ग़रज़ भारत के 11 प्रांतों में से किसी एक राज्य में भी मुस्लिम लीग को सत्ता प्राप्त न हो सका। इन परिस्थितियों में मुस्लिम लीग ऐसा लगता था, उपमहाद्वीप के राजनीतिक धारा से अलग होती जा रही है।
इस दौरान कांग्रेस ने जो पहली बार सत्ता के नशे में कुछ ज्यादा ही सिर शार थी, ऐसे उपाय किए जिनसे मुसलमानों के दिलों में भय और खतरों ने जन्म लेना शुरू कर दिया। जैसे कांग्रेस ने हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया, गाओ क्षय पर पाबंदी लगा दी और कांग्रेस के तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज का दर्जा दिया।
इस मामले में मुस्लिम लीग की सत्ता खोने के साथ अपने नेतृत्व में यह भावना पैदा हो रहा था कि मुस्लिम लीग सत्ता से इस आधार पर वंचित कर दी गई है कि वह अपने आप को मुसलमानों की प्रतिनिधि सभा कहलाती है। यही प्रारंभ बिंदु था मुस्लिम लीग के नेतृत्व में दो अलग राष्ट्रों की भावना जागरूकता कि।
इसी दौरान द्वितीय विश्व युद्ध समर्थन के बदले सत्ता की भरपूर हस्तांतरण के मसले पर ब्रिटिश राज और कांग्रेस के बीच चर्चा भड़का और कांग्रेस सत्ता से अलग हो गई तो मुस्लिम लीग के लिए कुछ दरवाजे खुलते दिखाई दिए। और इसी पृष्ठभूमि में लाहौर में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग 'का यह 3 दिवसीय बैठक 22 मार्च को शुरू हुआ।
बैठक से 4 दिन पहले लाहौर में अल्लामा पूर्वी के दीन पार्टी ने पाबंदी तोड़ते हुए एक सैन्य परेड की थी जिसे रोकने के लिए पुलिस ने गोलीबारी की। 35 के करीब दीन मारे गए। इस घटना की वजह से लाहौर में जबरदस्त तनाव था और पंजाब में मुस्लिम लीग की सहयोगी पार्टी यूनीनसट पार्टी सत्ता थी और इस बात का खतरा था कि दीन के फावड़ा वाहक कार्यकर्ता , मुस्लिम लीग का यह बैठक न होने दें या इस अवसर पर हंगामा बरपा है।
संयोग ही गंभीरता के मद्देनजर मुहम्मद अली जिन्ना ने उद्घाटन सत्र को संबोधित किया जिसमें उन्होंने पहली बार कहा कि भारत में समस्या सांप्रदायिक ोरारना तरह का नहीं है बल्कि बेन इंटरनेशनल है यानी यह दो देशों की समस्या है।
उन्होंने कहा कि हिंदुओं और मुसलमानों में अंतर इतना बड़ा और स्पष्ट है कि एक केंद्रीय सरकार के तहत उनका गठबंधन खतरों से भरपूर होगा। उन्होंने कहा कि इस मामले में एक ही रास्ता है कि उन्हें अलग ममलकतें हूँ।
दूसरे दिन इन्हीं पदों पर 23 मार्च को इस समय के बंगाल के मुख्यमंत्री मौलवी कृपा हक ने संकल्प लाहौर दिया जिसमें कहा गया था कि इस तब तक कोई संवैधानिक योजना न तो व्यवहार्य होगा और न मुसलमानों को होगा जब तक एक दूसरे से मिले हुए भौगोलिक इकाइयों अलग गाना क्षेत्रों में परिसीमन न हो। संकल्प में कहा गया था कि इन क्षेत्रों में जहां मुसलमानों की संख्यात्मक बहुमत है जैसे कि भारत के उत्तर पश्चिमी और पूर्वोत्तर क्षेत्र, उन्हें संयोजन उन्हें मुक्त ममलकतें स्थापित की जाएं जिनमें शामिल इकाइयों को स्वायत्तता और संप्रभुता उच्च मिल।
मौलवी इनाम उल द्वारा की पेशकश की इस संकल्प का समर्थन यूपी के मुस्लिम लेगी नेता चौधरी रिएक ाल्समाँ, पंजाब मौलाना जफर अली खान, सीमा से सरदार औरंगजेब सिंध से सिर अब्दुल्ला हारून और बलूचिस्तान से काजी ईसा ने की। संकल्प 23 मार्च को समापन सत्र में पारित किया गया।
अप्रैल सन् 1941 में मद्रास में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में संकल्प लाहौर को पार्टी के संविधान में शामिल किया गया और इसी के आधार पर पाकिस्तान आंदोलन शुरू हुई। लेकिन फिर भी इन क्षेत्रों की स्पष्ट पहचान नहीं की गई थी, जिनमें शामिल अलग मुस्लिम राज्यों की मांग किया जा रहा था।
पहली बार पाकिस्तान की मांग के लिए क्षेत्रों की पहचान 7 अप्रैल सन् 1946 दिल्ली के तीन दिवसीय सम्मेलन में की गई जिसमें केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के मुस्लिम लेगी सदस्यों ने भाग लिया था। इस सम्मेलन में ब्रिटेन से आने वाले कैबिनेट मिशन के प्रतिनिधिमंडल के सामने मुस्लिम लीग की मांग पेश करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिसका मसौदा मुस्लिम लीग की कार्यकारिणी के दो सदस्यों चौधरी रिएक ाल्समाँ और हसन इस्फ़हानी ने तैयार किया था। इस करादाद में स्पष्ट रूप से पाकिस्तान में शामिल किए जाने वाले क्षेत्रों की पहचान की गई थी। पूर्वोत्तर में बंगाल और असम और उत्तर पश्चिम में पंजाब, सीमा, सिंध और बलूचिस्तान। आश्चर्य की बात है कि इस संकल्प में कश्मीर का कोई जिक्र नहीं था हालांकि उत्तर पश्चिम में मुस्लिम बहुल क्षेत्र था और पंजाब से जुड़ा हुआ था।
यह बात बेहद महत्वपूर्ण है कि दिल्ली कन्वेंशन इस संकल्प में दो राज्यों का उल्लेख बिल्कुल हटा दिया गया था जो संकल्प लाहौर में बहुत स्पष्ट रूप से था उसकी जगह पाकिस्तान की एकमात्र राज्य की मांग की गई थी।
शायद बहुत कम लोगों को यह पता है कि संकल्प लाहौर का मूल मसौदा उस ज़माने के पंजाब के यूनीनसट मुख्यमंत्री सर सिकंदर हयात खान ने तैयार किया था। यूनीनसट पार्टी उस ज़माने में मुस्लिम लीग में एकीकृत हो गई थी और सिर सिकंदर हयात खान पंजाब मुस्लिम लीग के अध्यक्ष थे।
सिर सिकंदर हयात खान ने संकल्प के मूल मसौदे में उपमहाद्वीप में एक केंद्रीय सरकार के आधार पर लगभग कंडरेशन प्रस्तावित थी लेकिन जब मसौदा मुस्लिम लीग सब्जेक्ट कमेटी में विचार किया गया तो कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने खुद इस मसौदे में एकमात्र केंद्र सरकार का उल्लेख मौलिक काट दिया।
सिर सिकंदर हयात खान इस बात पर सख्त नाराज थे और उन्होंने 11 मार्च सन् 1941 को पंजाब विधानसभा में साफ-साफ कहा था कि उनका पाकिस्तान का नजरिया जिन्ना साहब के सिद्धांत मुख्य रूप से अलग है। उनका कहना था कि वह भारत में एक ओर हिन्दउ राज और दूसरी ओर मुस्लिम राज के आधार पर वितरण के सख्त खिलाफ हैं और वह ऐसी बकौल उनके विनाशकारी वितरण का डटकर मुकाबला करेंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ।
सिर सिकंदर हयात खान दूसरे वर्ष सन 1942 में 50 साल की उम्र में निधन हो गया यूं पंजाब में मुहम्मद अली जिन्ना तीव्र विरोध के उठते हुए हिसार से मुक्ति मिल गई।
सन् 1946 के दिल्ली अधिवेशन में पाकिस्तान की मांग संकल्प हुसैन शहीद सोहरावर्दी ने पेश की और यूपी के मुस्लिम लेगी नेता चौधरी रिएक ाल्समाँ ने इसकी तायद की थी। संकल्प लाहौर पेश करने वाले मौलवी कृपा हक इस सम्मेलन में शरीक नहीं हुए क्योंकि उन्हें सुन 1941 में मुस्लिम लीग सेखारज कर दिया गया था।
दिल्ली सम्मेलन में बंगाल के नेता अबू अलहाश्म ने इस संकल्प पर जोर विरोध किया और यह तर्क दिया है कि इस संकल्प लाहौर संकल्प से काफी अलग है जो मुस्लिम लीग के संविधान का हिस्सा है- उनका कहना था कि संकल्प लाहौर में स्पष्ट रूप से दो राज्यों के गठन की मांग की गई थी इसलिए दिल्ली कन्वेंशन को मुस्लिम लीग की इस बुनियादी संकल्प में संशोधन का कतई कोई विकल्प नहीं-
अबवालहाश्म के अनुसार कायदे आजम ने इसी सम्मेलन में और बाद में बम्बई में एक बैठक में यह समझाया था कि इस समय के बाद उपमहाद्वीप में दो अलग संविधान विधानसभाओं के गठन की बात हो रही है तो दिल्ली कन्वेंशन संकल्प में एक राज्य का उल्लेख किया गया है।
लेकिन जब पाकिस्तान की संविधान सभा संविधान सेट करेगी तो वह इस समस्या के अंतिम मध्यस्थ होगी और यह दो अलग राज्यों के गठन के फैसले का पूरा अधिकार होगा।
लेकिन पाकिस्तान की संविधान सभा ने न तो कायदे आजम जीवन में और न जब सन 1956 में देश का पहला संविधान पारित हो रहा था उपमहाद्वीप में मुसलमानों की दो स्वतंत्र और स्वायत्त राज्यों के स्थापना पर विचार किया।
25 साल की राजनीतिक उथल-पुथल और संघर्ष और सुन 1971 में बांग्लादेश युद्ध के विनाश के बाद लेकिन उपमहाद्वीप में मुसलमानों की दो अलग ममलकतें उभरीं जिनका मांग संकल्प लाहौर के मामले में आज भी सुरक्षित है।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.