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लसबेला या लस बेला (उर्दू व बलोच: لسبیلہ, अंग्रेज़ी: Lasbela) पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रान्त का एक तटवर्ती ज़िला है। इसे सिन्धी लहजे में लस बेलो कहते हैं। यह ३० जून १९५४ को उस समय के कलात विभाग के अन्दर एक अलग ज़िले के रूप में गठित किया गया था। इस ज़िले में ९ तहसीलें और २१ संघीय काउंसिल आती हैं।
लसबेला में बलोच लोगों और सिन्धी लोगों का एक मिश्रण रहता है। यहाँ पर सिंधियों का जामोट (جاموٹ, Jamote) समुदाय भारी संख्या में है। जामोट एक राजपूत समुदाय है जो स्वयं को सम्माँ राजवंश का वंशज समझता है।[1] लगभग सभी लोग मुस्लिम हैं हालांकि एक छोटा हिन्दू समुदाय भी मौजूद है। यहाँ के सिन्धी एक 'लासी' नामक सिन्धी उपभाषा बोलते हैं जो मानक सिन्धी भाषा से थोड़ी अलग है।[2][3]
मध्य पूर्व और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच यदि मकरान का तटीय रास्ता अपनाया जाए तो लसबेला उसपर पड़ता है। सिकंदर महान जब पश्चिमोत्तर भारत पर क़ब्ज़ा करने के बाद बैबिलोन लौट रहा था तो लसबेला से गुज़रा था। ७११ ईसवी में उमय्यद ख़िलाफ़त का सिपहसालार मुहम्मद बिन क़ासिम भी सिंध पर हमला करने के लिए लसबेला से निकला था। भारत की आज़ादी और विभाजन से पहले लस बेला ब्रिटिश राज के प्रशासन में एक अलग रियासत हुआ करती थी जिसका शासक जामोट समुदाय का था और 'जाम' की उपाधि रखता था।[4] स्वतंत्रता के बाद १९५४-१९५५ में इसका पाकिस्तान में विलय कर दिया गया। आज भी लसबेला से चंद किलोमीटर दूर लगभग सौ क़ब्रों का एक समाधिक्षेत्र है जहाँ लसबेला के पुराने शाही परिवारों के सदस्य दफ़्न हैं।
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