राष्ट्र संघ
20वीं सदी का अंतरसरकारी संगठन, संयुक्त राष्ट्र का पूर्ववर्ती / From Wikipedia, the free encyclopedia
राष्ट्र संघ (लीग ऑफ़ नेशन्स) पेरिस शान्ति सम्मेलन के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्ववर्ती के रूप में गठित एक अन्तरशासकीय संगठन था। 28 सितम्बर 1934 से 23 फरवरी 1935 तक अपने सबसे बड़े प्रसार के समय इसके सदस्यों की संख्या 58 थी। इसके प्रतिज्ञा-पत्र में जैसा कहा गया है, इसके प्राथमिक लक्ष्यों में सामूहिक सुरक्षा द्वारा युद्ध को रोकना, निःशस्त्रीकरण, तथा अन्तरराष्ट्रीय विवादों का बातचीत एवं मध्यस्थता द्वारा समाधान करना शामिल थे।[1] इस तथा अन्य सम्बन्धित सन्धियों में शामिल अन्य लक्ष्यों में श्रम दशाएँ, मूल निवासियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार, मानव एवं दवाओं का अवैध व्यापार, शस्त्र व्यपार, वैश्विक स्वास्थ्य, युद्धबन्दी तथा यूरोप में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा थे।[2] राष्ट्र संघ के उद्देश्य एक आपसी विवाद सुलझाना शिक्षा की व्यवस्था करना दो सभी राष्ट्रों के भौतिक व मानसिक सहयोग ओपन देना 3:00 पर शांति समझौते के द्वारा सौंपे गए कर्तव्य को पूरा करना राशन के राशन के तीन प्रमुख अंग थे असेम्बली काउंसिल सचिवालय इसके अलावा इसके 201 अंक थे अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय अन्तरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन राष्ट्र संघ की स्थापना के उद्देश्य तो विश्व समुदाय के अच्छे थे लेकिन यह माँ शक्तियों के असहयोग और मनमानी गतिविधियों के कारण मात्र एक औपचारिक संगठन ही बनकर रह गया अपने उद्देश्य में इसे सफलता संघ के पीछे कूटनीतिक दर्शन ने पूर्ववर्ती सौ साल के विचारों में एक बुनियादी बदलाव का प्रतिनिधित्व किया। चूंकि संघ के पास अपना कोई बल नहीं था, इसलिए इसे अपने किसी संकल्प का प्रवर्तन करने, संघ द्वारा आदेशित आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने या आवश्यकता पड़ने पर संघ के उपयोग के लिए सेना प्रदान करने के लिए महाशक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता था। हालाँकि, वे अक्सर ऐसा करने के लिए अनिच्छुक रहते थे।
राष्ट्र संघ का प्रतीक | |
मुख्यालय | जिनेवा, स्विट्जरलैंड |
सदस्य वर्ग | |
अधिकारी भाषाएं | अंग्रेज़ी, फ़्रांसीसी, और स्पेनी |
अध्यक्ष | महासचिव |
जालस्थल | {{{जालस्थल}}} |
प्रतिबन्धों से संघ के सदस्यों को हानि हो सकती थी, अतः वे उनका पालन करने के लिए अनिच्छुक रहते थे। जब द्वितीय इटली-अबीसीनिया युद्ध के दौरान संघ ने इटली के सैनिकों पर रेडक्रॉस के मेडिकल तंबू को लक्ष्य बनाने का आरोप लगाया था, तो बेनिटो मुसोलिनी ने पलट कर जवाब दिया था कि “संघ तभी तक अच्छा है जब गोरैया चिल्लाती हैं, लेकिन जब चीलें झगड़ती हैं तो संघ बिलकुल भी अच्छा नहीं है”.[3]
1920 के दशक में कुछ आरम्भिक विफलताओं तथा कई उल्लेखनीय सफलताओं के बाद 1930 के दशक में अन्ततः संघ धुरी राष्ट्रों के आक्रमऩ को रोकने में अक्षम सिद्ध हुआ। मई 1933 में, एक यहूदी फ्रांज बर्नहीम ने शिकायत की कि ऊपरी सिलेसिया के जर्मन प्रशासन द्वारा एक अल्पसंख्यक के रूप में उसके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा था जिसने यहूदी-विरोधी कानूनों के प्रवर्तन को कई वर्ष तक टालने के लिए जर्मनों को प्रेरित किया था, जब तक कि 1937 में सम्बन्धित सन्धि समाप्त नहीं हो गई, उसके बाद उन्होंने संघ के प्राधिकार का आगे पुनर्नवीकरण करने से इंकार कर दिया और यहूदी-विरोधी उत्पाड़न को पुनर्नवीकृत कर दिया। [4]
हिटलर ने दावा किया कि ये धाराएँ जर्मनी की सम्प्रभुता का उल्लंघन करती थी। जर्मनी संघ से हट गया, जल्दी ही कई अन्य आक्रामक शक्तियों ने भी उसका अनुसरण किया। द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत से पता चला कि संघ भविष्य में युद्ध न होने देने के अपने प्राथमिक उद्देश्य में असफल रहा था। युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसका स्थान लिया तथा संघ द्वारा स्थापित कई एजेंसियाँ और संगठन उत्तराधिकार में प्राप्त किए।