राना टिग्रिना नामक मेढ़क भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला बड़े आकार का मेढ़क है।इसे भारतीय बुल फ्रॉग कहते है ।
सामान्य भारतीय मेंढक अर्थात् राना टिग्रिना (Rana tigrina) सामान्यतः स्थिर मृदुजलीय तथा धीमी बहने वाली जल प्रणालियों जैसे गड्ढे, पूल, तालाब, झील, झरना, नदियों आदि में पाए जाते हैं। वर्षा काल में ये अपने वास स्थान से काफी दूर जैसे खेत, बगीचों, सड़क आदि जगहों पर फुदकते हुए चले जाते हैं। पानी में ये त्वचा को नम रखते हैं तथा क्यूटेनियस श्वसन (Cutaneos respiration) करते हैं। स्थल पर ये फेफड़ों के सहायता से श्वसन करते हैं। ये पानी के आस-पास ही रहते हैं क्योंकि यदि इनकी त्वचा शुष्क होने लगे तो ये शीघ्रता से जल में जाकर उसे नम रख सकें क्योंकि इनकी त्वचा नम रहने पर इन्हें फिसलने लायक बनाकर रखती है जिससे ये आवश्यकता पड़ने पर अपने शत्रुओं से स्वयं रक्षा की कर सकते हैं।
इसका शरीर नौकाकार (Spandle shaped) तथा प्रिष्ठाधारी चपटा होता है।
इसका शरीर सिर एवं धड़ में विभाजित होता है। इसमें गर्दन तथा पूँछ अनुपस्थित होता है। इसके शरीर के ऊपरी भाग जैतुनी हरा तथा बीच-बीच में काले धब्बे युक्त होता है। इसकी अन्य जातियों जैसे ब्यूफो (Bufo) में त्वचा शुष्क तथा खुरदुरा होता है।
इसका सिर लगभग तिकोना तथा चपटा होता है। इसके शीर्ष हिस्से को थूथन (Snouy) कहते हैं, जिसके दोनों ओर पार्श्व में नासिका छिद्र (Nostrils) होते हैं।
सिर के ऊपर क्षेत्र में दोनों ओर दो उभरी हुई आंखें होती है जो कि अचल उपरी पलक तथा चल निचले पलक से घिरी होती है। निकली पलक का ऊपरी हिस्सा झिल्लीनुमा पारदर्शक होता है जिसे निक्टिटेटिंग मेम्ब्रेन (Nictitating membrane) कहते हैं। जो कि आँख को पूर्णतः ढंक सकता है। तैरने की स्थिति में मेंढक इसी की सहायता से ढंके रहता है तथा आसानी से चारों तरफ देख भी सकता है।
गर्दन की अनुपस्थिति के कारण सिर सीधे धड़ से जुड़ा होता है यही कारण है कि मेंढक का सिर अचल होता है।
धड़ से दो जोड़े में पाद जुड़े होते हैं। अग्रपाद (Forelimb) शरीर के अगले हिस्से अर्थात् सिर की ओर इसके भाग से जुड़ा तथा छोटा होता है। अग्रपाद के धड़ के अंतिम हिस्से की ओर तथा काफी बड़ा होता है। पश्चपाद (Hindlimb) आराम के क्षणों में 'Z' अक्षर की तरह सिमटा रहता है। अग्रपाद मेंढक को जकड़ कर बैठने तथा कूदने के समयशरीर को सहारा प्रदान करता है जबकि पश्चपाद तैरने में मदद करते हैं क्योंकि इनकी उंगलियों के बीच जाल (Web) उपस्थित होता है।
इसके शरीर के पीछे छोर पर अवस्कर द्वार (Cloacal aperture) होता है, जिससे मेंढक मल-मूत्र का त्याग करता है।
मेंढक एकलिंगी होता है अर्थात् नर मेंढक तथा मादा मेंढक अलग-अलग होते हैं नर मेंढक में वाक् कोष (Vocal card) विकसित होते हैं जिससे ये टर्र-टर्र आवाज करता है। नर मेंढक टर्र-टर्र की आवाज मादा मेंढक को आकर्षित करने के लिए करते हैं. जिससे आकर्षित होकर मादा मेंढक, नर मेंढक के पास चली आती है. मैथुन गद्दी (Copulatory pads) उपस्थित होती है। मेंढक में मैथुन न होकर केवल मैथुनी आलिंगन होता है, क्योंकि नर मेंढक में शिश्न का अभाव होता है. मैथुनी आलिंगन के तुरंत बाद मादा मेंढक अन्डे देती है, जो एक जैलिनुमा पदार्थ के द्वारा आपस में जुड़े होते हैं एवं पानी में बहने से बचे रहते हैं. मादा मेंढक के अन्डें देने के तुरंत बाद नर मेंढक अपने अवस्कर द्वार के द्वारा अपना वीर्य छोड़ता है, वीर्य में उपस्थित शुक्राणुओं के द्वारा ही इन अण्डों का निषेचन होता है. नर मेंढक की त्वचा मादा मेंढक की तुलना में गाढ़े रंग की होती है।