रक्षाबन्धन
बहन भाई के पवित्र रिश्ते का पर्व रक्षाबंधन / From Wikipedia, the free encyclopedia
रक्षाबन्धन[1] भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबन्धन[2] का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं। यह एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं।[3] रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है। रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपने बहन को राखी के बदले कुछ उपहार देते है।
रक्षाबन्धन | |
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राखियाँ, जिन्हें रक्षाबन्धन के अवसर पर बहनें भाइयों के हाथ में बाँधती हैं। | |
आधिकारिक नाम | रक्षाबन्धन |
अन्य नाम | राखी, सलूनो, श्रावणी |
अनुयायी | हिंदू धर्म व जैन धर्म |
प्रकार | Hindu |
उद्देश्य | भ्रातृभावना और सहयोग |
उत्सव | राखी बाँधना, उपहार, भोज |
अनुष्ठान | पूजा, प्रसाद |
आरम्भ | पौराणिक काल से |
तिथि | श्रावण पूर्णिमा |
समान पर्व | भैया दूज |
हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र -)-
- येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
- तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)"