रक्तशर्कराल्पता
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रक्तशर्कराल्पता या हाइपोग्लाइसेमिया सामान्य से नीचे स्तर में रक्त-शर्करा की बनने की अवस्था के लिए चिकित्सकीय शब्दावली है।[1] शब्दावली का शाब्दिक अर्थ है, "अन्तः रक्त शर्करा" (ग्रीक में, हाइपो-, ग्लिकिस, हेमिया). यह कई प्रकार के लक्षण और प्रभाव पैदा कर सकता है किन्तु समस्या तब पैदा होती है जब मस्तिष्क को अपर्याप्त ग्लूकोज़ (शर्करा) की आपूर्ति होने लगती है, जिसके फलस्वरूप मस्तिष्क की क्रियाशीलता में विकृति अथवा क्षति (तंत्रिकीय शर्कराल्पता) (न्यूरोग्लाइकोपिनिया) पैदा हो जाती है। मोटे तौर पर इसके प्रभाव "घबराहट महसूस" करने से लेकर दौरे पड़ने, बेहोशी तथा (कभी-कभी) स्थायी तौर पर दिमागी क्षति अथवा मृत्यु तक भी दूरगामी हो सकते हैं।
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Hypoglycemia वर्गीकरण व बाहरी संसाधन | |
Glucose meter | |
आईसीडी-१० | E16.0-E16.2 |
आईसीडी-९ | 250.8, 251.0, 251.1, 251.2, 270.3, 775.6, 962.3 |
रोग डाटाबेस | 6431 |
मेडलाइन+ | 000386 |
ई-मेडिसिन | emerg/272 med/1123 med/1939 ped/1117 |
एमईएसएच | D007003 |
सबसे आम तौर पर मधुमेह के इंसुलिन अथवा खानेवाली दवाओं के जटिल उपचार के कारण भी रक्तशर्कराल्पता पैदा हो सकती है। रक्तशर्कराल्पता कम गैर मधुमेह व्यक्तियों में आम है, लेकिन किसी भी उम्र में कई कारणों से हो सकती हैं। इन कारणों में, शारीर में अत्यधिक मात्रा में इन्सुलिन का उत्पन्न होना, जन्मजात त्रुटियां, औषधियों और विष, शराब, हॉर्मोन की कमी लम्बी मुखभरी, संक्रमण, तथा अंग की क्रियाशीलता में विफलता से जुड़े चायपचय आदि हैं।
ग्लूकोज़ (डेक्स्ट्रोज़) के अंतर्ग्रहण अथवा शरीर में संचालन कर के द्वारा तथा कार्बोहाइड्रेट वाले आहार रक्त-शर्करा के स्तर को सामान्य कर रक्तशर्कराल्पता का इलाज किया जा सकता है। लुच परिस्थितियों में इंजेक्शन के सवार अथवा ग्लुकागों को शरीर में प्रवेश कराकर इसका इलाज किया जा सकता है। आवर्तक (बार-बार) होने वाली रक्तशर्कराल्पता का प्रतिकार अन्तर्निहित कारणों को प्रतिकूल बनाकर अथवा हटाकर ही किया जा सकता है, आहार की बारबारता को बढ़ाकर, औषधि के व्यवहार जैसे कि डायाजोक्साइड, औक्ट्रेयोटाइड या ग्लुकोकोर्टीक्वाइड्स, अथवा शल्यचिकित्सा के द्वारा अग्नाशय (पेन्क्रिअस) के अधिकांश को हटाकर किया जा सकता है।
रक्तशर्करा का नीचा स्तर भिन्न लोगों में भिन्न शर्कराल्पता, भिन्न परिस्थितियों में, तथा भिन्न उद्देश्यों के लिए, इसकी परिभाषा कभी-कभी यह विवाद का विषय बना रहा है। अधिकांश स्वस्थ वयस्कों में उपवास की अवस्था में ग्लूकोज़ (शर्करा) का स्तर 70 मिग्रा/डीएल (3.9 मि.मीओएल/एल), एवं रक्तशर्कराल्पता के लक्षण विकसित होने लगते हैं जब ग्लूकोज़ का स्तर 55 मिग्रा/डीएल (3 मिमी ओल/एल) तक पहुंच जाता है।[2] कभी कभी यह निर्धारित करना कठिन हो जाता है। कभी-कभी यह निर्धारित करना कठिन हो जाता है कि क्या व्यक्ति के रोग के लक्षण क्या रक्तशर्कराल्पता के कारण तो नहीं। रक्तशर्कराल्पता के रोग-निर्धारित के विह्पल के त्रयी के मानदंड का उपयोग किया जाता है।[3]
- लक्षण जो रक्तशर्कराल्पता के कारण के रूप में माने जाते हैं।
- रोग के लक्षण के समय शर्करा (ग्लूकोज़) का कम होना
- लक्षणों अथवा समस्यों का उत्क्रमण या उनमें सुधार जब ग्लूकोज़ का पुनः सामान्य कर दिया जाता है।
आमतौर पर रक्तशर्कराल्पता (हाइपोगिल्केमिया) (उपर्युक्त) लोकप्रिय संस्कृति में शब्दावली है एवं आम लोगों के लिए वैकल्पिक चिकित्सा है, अक्सर आत्म-परिक्षण कर कंपन, अस्थिरता तथा मन और सोच में बदलाव, किन्तु शर्करा के निम्न स्तर को बिना मापे ही अथवा जोखिम भरे नुकसान के बिना ही. आहार के अभ्यास (पैटर्न) में परिवर्तन कर इसकी चिकित्सा की जाती है।