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जर्मन लेखक और बहुज्ञ (२८ अगस्त १७४९ -२२ मार्च १८३२) विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
योहान वुल्फगांग फान गेटे (Johann Wolfgang von Goethe) (२८ अगस्त १७४९ - २२ मार्च १८३२) जर्मनी के लेखक, दार्शनिक और विचारक थे। उन्होने कविता, नाटक, धर्म, मानवता और विज्ञान जैसे विविध क्षेत्रों में कार्य किया। उनका लिखा नाटक फ़ाउस्ट (Faust) विश्व साहित्य में उच्च स्थान रखता है। गोथे की दूसरी रचनाओं में "सोरॉ ऑफ यंग वर्टर" शामिल है। गोथे जर्मनी के महानतम साहित्यिक हस्तियों में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में विमर क्लासिसिज्म (Weimar Classicism) नाम से विख्यात आंदोलन की शुरुआत की। वेमर आंदोलन बोध, संवेदना और रोमांटिज्म का मिलाजुला रूप है।
उन्होने कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम् का जर्मन भाषा में अनुवाद किया। गेटे ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् के बारे में कहा था-
गेटे का ८२ वर्ष लंबा जीवनकाल यूरोपीय इतिहास के ऐसे युग से संबंधित है जो बड़ी बड़ी क्रांतियों तथा भयंकर उथल पुथल का समय माना गया है। उसके युवावस्था के आरंभ में जर्मन साहित्य में क्रांति का उदय हुआ, जिसके फलस्वरूप पुरानी मान्यताओं तथा साहित्यिक सिद्धांतों का तीव्र विरोध हुआ और कवि तथा कलाकार की स्वतंत्रता तथा राष्ट्रीय साहित्य के पुराने गौरव के पुनरूद्धार का जोरदार समर्थन हुआ। इस ‘तूफानी युग’ में क्रांति की भावना एक प्रचंड आँधी के समान प्रकट हुई, जिसने पुराने विचारों तथा जर्जर सिद्धांतों के खंडहर धराशायी कर दिए। इसके पश्चात उसके जीवन के मध्याह्न में फ्रांस की राजनीतिक क्रांति का तूफान आया जिसने पुरानी व्यवस्था की भित्ति हिला दी और लाखों व्यक्तियों के हृदय में स्वर्णयुग के सुंदर स्वप्न का सृजन किया, यद्यपि यह स्वप्न मृगमरीचिका के समान ही क्षणिक सिद्ध हुआ, क्योंकि इसी के गर्भ से नैपोलियन का आविर्भाव हुआ, जिसकी द्रुतगामी विजयवाहिनी ने यूरोप में आशा के स्थान पर पूर्ण नैराश्य का साम्राज्य स्थापित किया। अंत में अपने जीवन के संध्याकाल में उसने औद्योगिक क्रांति के व्यापक परिवर्तनों का पूर्ण अनुभव किया और उस नवीन आर्थिक व्यवस्था का उदय भी देखा जो समाज के पुराने ढाँचे को तोड़ फोड़कर धीरे धीरे स्पष्ट हो रही थी।
इन सभी अनुभवों की छाप उसकी कृतियों में स्पष्ट है, क्योंकि उसका संवेदनशील हृदय बाह्य परिस्थितियों से त्वरित प्रभावित होता था। वह अत्यंत भाग्यशाली पुरूष था। उसके जीवन में अभाव की छाया कभी नहीं आई। प्रकृति ने सौंदर्य तथा स्वास्थ्य के साथ ही साथ उसे बहुमुखी प्रतिभा का वरदान दिया था जिसने उसे विभिन्न कार्यक्षेत्रों में सफल तथा प्रतिष्ठिन बनाया। वह केवल कवि या कलाकार ही नहीं था, अपितु एक सफल वैज्ञानिक, साधक तथा दार्शनिक भी था। उसका अधिकार यूरोप की कई भाषाओं पर था; उसकी ज्ञानपिपासा असीम थी और बीमेर रियासत में उसने अपने जीवन का बहुमुल्य भाग राजशासन तथा रंगमंच संचालन जैसे उत्तरदायित्वपूर्ण कामों में बिताया था। इन बातों को ध्यान में रखने पर यह समझने में कठिनाई नहीं होगी कि उसने जर्मन साहित्य के सभी अंगों को सबल तथा सुसमृद्ध बनाया और उसपर इतना गहरा तथा व्यापक प्रभाव डाला कि उसके पश्चात् शायद ही कोई लब्धप्रतिष्ठ जर्मन कवि या कलाकार उससे अछूता बचा हो। उसकी सबल लेखनी ने गीतकाव्य, महाकाव्य, उपन्यास, नाटक, तथा आलोचनात्मक प्रबंधों का प्रचुर मात्रा में सृजन किया और उसने किसी भी विषय को स्पर्श करके अपनी शक्ति, नवीनता तथा मौलिकता से अप्रभावित नहीं छोड़ा।
गेटे की विभिन्न कृतियों में उसके व्यक्तिगत अनुभवों का समावेश हुआ है और उन सभी को एक सूत्र में बाँधनेवाला तत्व उसका व्यक्तित्व है जो समय के साथ साथ विकसित होता रहा। इसलिए यह कहा जा सकता है कि उसकी विभिन्नकालीन कृतियों में उसका नैतिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक चरित् निहित है। जीवन के वसंत काल में उसकी भावनाएँ तीव्र तथा सरल थीं और उसका अभिव्यंजन सरल किंतु जोरदार भाषा में होता था जो भावुक हृदय का नैसर्गिक उद्गार प्रतीत होती थी। परंतु मस्तष्क की परिपक्वता के साथ ही साथ भाव की गरिमा तथा भाषा का परिष्कार और छंदों की जटिलता उत्तरोत्तर बढ़ने लगी और अंत में उसके शब्द भावों से बोझिल हो गए एवं हृदय के भाव मस्तष्क के अनुशासन से नियंत्रित हुए। इसका अर्थ यह है कि उसने अपने व्यक्तित्व की विरोधी प्रवृत्तियों में समन्वय स्थापित करने का सफल प्रयास किया और उसका समस्त साहित्य तथा दर्शन इसी तरह से समन्वय के पुनीत कर्तव्य का उपदेश देता है।
उसने इस बात पर विशेष जोर दिया कि मनुष्य की अंतर्मुखी प्रवृति हानिकारक है और इसे बहिर्मुखी बनाना अत्यावश्यक है जिससे व्यक्ति तथा समाज, आत्मा तथा बाह्य प्रकृति में स्वस्थ सामंजस्य हो सके। इस तथ्य का परिचय उसकी सभी कृतियों में मिलता है। उसके गीतकाव्य व्यक्तिगत प्रेम से आरंभ होते हैं परंतु कालांतर में मनुष्य तथा प्रकृति का दृढ़ संबंध उनका मुख्य विषय होता है-वह प्रकृति जो ब्रह्ममय है और जिसके साथ मानव की आत्मा का अटूट संबंध है क्योंकि सृष्टि के विविध प्राणी एकता के सूत्र में बँधे हैं।
उसके तीन प्रधान उपन्यास भी उसके विकास के तीन विभिन्न पहलुओं के द्योतक हैं। उनमें प्रथम तथा सर्वाधिक प्रसिद्धिप्राप्त ‘वर्दर’ हैं, जो ‘रोमांटिक’ कालीन यूरोप की आत्मा का प्रभावशाली चित्र है। यह ऐसे नवयुवक का चित्र है जो जीवन से ऊब गया है क्योंकि बाह्य जगत में उसके लिए कोई रस या सार नहीं है। उसका हृदय विचित्रनिराशा से ओत प्रोत है और अंत में उसका एकाकीपन इतना कटु हो जाता है कि उसका अंत आत्महत्या में ही होता है। गेटे के बाद के लिखे हुए दो उपन्यास ‘विलहेम मीस्तर’ और इसका परवर्ती संस्करण शैली के विकास के साथ ही साथ व्यक्ति तथा समाज के सामंजस्य का मार्ग प्रशस्त करते हैं और आखिरी ग्रंथ में तो लेखक ने औद्योगिक युगीन समाज व्यवस्था तथा उसमें निहित समस्याओं का सफल तथा सजीव विश्लेषण किया है।
गेटे की कृतियों में नाटकों का विशेष स्थान है और उनमें मुख्य हैं ‘गोट्ज’, ‘यगमांट’, ‘इफींजीनी’, ‘तासो’ और ‘फाउस्ट’। यहाँ पर इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि ‘फाउस्ट’ गेटे की प्रतिभा का सर्वोत्तम प्रतीक तथा विश्वसाहित्य का अमूल्य रत्न है। इसकी रचना का इतिहास ‘गेटे’ के विकास का इतिहास है और नाटक के नायक की जीवनकथा मानव आत्मा के विकास की कथा है। ‘फाउस्ट’ मध्ययुगीन लोकसाहित्य का पूर्वपरिचित पात्र है जिसको गेटे ने मानवता का प्रतीक माना है। यह व्यक्ति आरंभ में वर्दर के ही समान अहंभाव से आक्रांत है परंतु धीरे धीरे उसका मन अन्य व्यक्तियों तथा बाह्य संसार की ओर आकृष्ट होता है। पहला चरण एक अबोध लड़की से प्रेम है जिसका अंत दु:खमय सिद्ध होता है, फिर उसका प्रवेश समाज में होता है और हेलेन के संपर्क में आकर वह कर्म की उपादेयता का पाठ पढ़ता है और अंत में एक विस्तृत भूखंड का स्वामी होकर उसके विकास में लगा हुआ अपनी जीवनलीला समाप्त करता है। ‘फाउस्ट’ का व्याख्यासाहित्य काफी विस्तृत है। गेटे की पैनी दृष्टि ने बहुत से तत्वों का आविष्कार किया जिनका विकसित रूप कालांतर में बोधगम्य हुआ। उसकी कृतियों में विकासवाद तथा मार्क्सवाद के मूल सिद्धांत निहित हैं और उनमें उस विचारधारा के लिए भी पर्याप्त समर्थन मिलता है जिसने हिटलर जैसे निरंकुश शासकों तथा नेताओं को जर्मनी में लोकप्रिय तथा जनता की श्रद्धा तथा पूजा का पात्र बनाया, यद्यपि उनकी समस्त शक्ति विध्वंस कार्य ही में बर्बाद हुई। अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि आर्नल्ड ने गेटे को ‘लौह युग का चिकित्सक’ बताया है, पर गेटे के विचार आज भी नवीन तथा सजीव हैं। कालिदास के शाकुंतल के लिए उसने प्रशंसा के जिन शब्दों का प्रयोग किया है वही उसकी कृतियों के लिए भी उपयुक्त है-क्योंकि उनमें भी वसंत का सौरभ तथा शिशिर का मधुर रस पूर्णरूप से मिश्रित है।
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