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यूइची (Yue-Tche) या युएझ़ी, युएज़ी या रुझ़ी (अंग्रेज़ी: Yuezhi, चीनी: 月支, 'झ़' के उच्चारण पर ध्यान दें, यह 'झ' से भिन्न है) प्राचीन काल में मध्य एशिया में बसने वाली एक जाति थी। माना जाता है कि यह एक हिन्द-यूरोपीय लोग थे जो शायद खस लोगों से सम्बंधित रहें हों। शुरू में यह तारिम द्रोणी के पूर्व के शुष्क घास के मैदानी स्तेपी इलाक़े के वासी थे, जो आधुनिक काल में चीन के शिंजियांग और गांसू प्रान्तों में पड़ता है। समय के साथ वे मध्य एशिया के अन्य इलाक़ों, बैक्ट्रिया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्रों में फैल गए। संभव है कि भारत के कुशान साम्राज्य और खस साम्राज्य की स्थापना में भी उनका हाथ रहा हो।[1][2]
मध्य एशिया तथा चीन के विस्तृत क्षेत्र में जिन खूँखार जातियों ने एक-दूसरे को हराकर राजनीतिक उथल-पुथल कर दी थी उनमें यूइची उल्लेखनीय हैं। द्वितीय शताब्दी ईसवी पूर्व में इसके हिउंग नु तथा वु सुन के साथ संघर्ष का विवरण चीनी स्रोतों में मिलता हैं। वहाँ के कई ग्रन्थों में यूवची के अन्य जातियों के साथ संघर्ष तथा अपने निवासस्थान को छोड़ पश्चिमी क्षेत्र की ओर बढने और राज्य स्थापित करने का उल्लेख हैं। इनसे मूलतया यह प्रतीत होता हैं कि लगभग ईसा पूर्व १७६ में हिउंग नु के शासक माओ तनु ने चीन सम्राट को एक संदेंश भेजा कि उसने यूवची को हटाकर तुनू हुआंग तथा कि लिएन के बीच के क्षेत्र में खदेड़ दिया हैं। यूवची पश्चिम की ओर बढते हुए साइवंग (शकों) के क्षेत्र में पहुँचे और उनको वहाँ से हटा दिया। बाद में यूवची जाति को वसुन के आक्रमण के कारण उस क्षेत्र को स्वय छोड़ना पड़ा। उसके बाद वे याहिया की और बढ़े। ई० पू० १२६ में चीनी राजदूत चांग किएन ने यूवची की जाति को अक्षु नदी के उतर में पाया। यूवची की मुख्य शाखा ने आगे चलकर पुन: शको को हराया और कपिश पर अधिकार कर लिया। इसी समय से यूवची जाति का ऐतिहासिक संबंध भारत से भी आरम्भ होता हैं। कहा जाता हैं, यूवची जाति के पाँच कबीलों में बँट गई और उनमें कुइ शुआंग अथवा कुशान- कुषाण जाति के कियुल कथफिस कजकुल कैडाफिसिज ने अन्य और जातिओं को हटाकर अपनी शक्ति संगठित की, काबुल की और यूनानीयों का अंत कर वहाँ का शासक बन बैठा।
इसके विपक्ष में कुछ विद्वान् यूइची तथा कुषाण वंश में कोई संबंध नहीं पाते। उनका कथन है कि कुषाण वास्तव में शक जाति के ही एक अंग थे और यूइची ने जब शकों को हराया तो इसी वंश के कुछ प्रमुख सरदार यूइची में मिल गए। बाद के चीनी इतिहासकारों ने इन दोनों जातियों की पृथकता नहीं समझी। कुषाणों के अतिरिक्त चार और जातियों (यवगुओं) ने यूइची आधिपत्य स्वीकार कर लिया था। वास्तव में यूइची का हिउंगनु तथा नुसुन नामक उन जातियों के साथ संघर्ष तथा एक का दूसरे के प्रति रक्तपिपासु होना कुजुल कैडफसिज़ की अपने 'सत्यधर्म प्रवर्तक' उपाधि ग्रहण करने के साथ उचित प्रतीत नहीं होता। हूणों सहित मध्य एशिया से सब जातियाँ अपनी बर्बरता के लिये प्राचीन इतिहास में प्रसिद्ध हैं। इनके विपक्ष में शक कुषाणों की धार्मिक प्रवृत्तियों तथा सहनशीलता का परिचय लेखों तथा सिक्कों से होता है। प्रसिद्ध कुषण सम्राट् कनिष्क छोटी यूइची जाति का था और उसने उत्तरी भारत पर आक्रमण किया तथा पाटलिपुत्र तक पहुँचा। यद्यपि इस शासक का साम्राज्य उत्तरी भारत में वाराणसी तक अवश्य फैला था, तथापि उसके यइची होने में संदेह है।
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