मौफलांग
पूर्व खासी हिल्स ज़िले, मेघालय, भारत का गाँव विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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मौफलांग (Mawphlang) भारत के मेघालय राज्य के पूर्व खासी हिल्स ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह राज्य राजधानी, शिलांग, से २५ किमी दूर स्थित है। स्थानीय खासी भाषा में इसका अर्थ है माव=पत्थर और फलांग= घास, यानि घास वाला पत्थर। यह नाम अन्य बहुत से उन गांवों के नाम में से एक है जो वहाँ स्थापित मोनोलिथ संरचनाओं पर आधारित हैं। [3][4][5]
मौफलांग Mawphlang | |
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मौफलांग घाटी और गाँव | |
निर्देशांक: 25.449°N 91.756°E | |
ज़िला | पूर्व खासी हिल्स ज़िला |
प्रान्त | मेघालय |
देश | भारत |
जनसंख्या (2001) | |
• कुल | 156 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | खासी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
१८९० के दशक में मौफलांग खासी पर्वत पर प्रेसबिटेरियन गिरजे मिशनरी एवं चिकित्सा गतिविधियों का केन्द्र रहा है। यहाँ १८७८ में ब्रिनमॉवर, ऍबर्डेरॉन के डॉ॰ग्रिफ़िथ ग्रिफ़िथ्स द्वारा एक डिस्पेन्सरी और (तब) क्लीनिक भी खोले गए थे, बाद में डॉक्तर की मृत्यु भी २२ अप्रैल १८९२ में मौफलांग में ही हुई थी। उनके बाद एक अन्य डॉ॰विलियम विलियम्स (मिशनरी) यहां आये और मृत्योपर्यन्त यहीं रहे।
मौफलांग पवित्र वन (अंग्रेज़ी:मौफलांग सैकरेड फ़ॉरेस्ट, खासी :लाव लिंगडोह) मेघालय की राजधानी शिलांग से लगभग २७ कि॰मी. दूर पूर्वी खासी हिल्स जिले में स्थित मौफलांग ग्राम में स्थित एक संरक्षित एवं स्थानीय खासी लोगों द्वारा पवित्र माना जाने वाला एक वन है। सागर सतह से ५,००० फीट की ऊँचाई पर बसे इस स्थान का इतिहास काफ़ी पुराना है।[6] आंकड़ों के अनुसार इन पवित्र जंगलों में ३४० वंश और १३१ कुलों का प्रतिनिधित्व करने वाली कम से कम ५१४ प्रजातियां उपस्थित हैं।[7] भारत के अन्य राज्यों से अलग मेघालय राज्य के अधिकांश पर्वत व पहाड़ियां निजी स्वामित्व के अधीन हैं। अधिकतर संरक्षित वन नदियों के तराई क्षेत्रों में हैं। लुम-शिलांग नोंगक्रिम पवित्र वन ८ धाराओं के स्रोत हैं।
एक स्थानीय के अनुसार यहां मान्यता है कि पवित्र जंगल में उनके देवताओं का अदृश्य रूप में वास है तथा इसकी किसी भी प्रकार की हानि करना अथवा जंगल के भीतर बुरा सोचना-बोलना किसी बड़े अपराध से कम नहीं। यहां के स्थानीय देवता इसकी अत्यन्त घातक सजा दे सकते हैं। इसी विश्वास और जंगल पर सामुदायिक अधिकार ने लम्बे समय तक मौफलांग के वन को बचाए रखा[8]। इस वन पर अधिकार और उत्तरदायित्त्व दोनों ही स्थानीय हिमाओं के हाथ में है। हिमा अर्थात खासी आदिवासी सामुदायिक सत्ता, जिसे संवैधानिक शब्दों में कई ग्राम समूहों की अपनी सरकार कह सकते हैं। मौफलांग के वन के बीच खडे़ विशाल पाषाण शिलाएं इस सत्य की मूक साक्षी हैं कि हिमाओं ने इन वनों की ब्रिटिश काल में भी सुरक्षा की और इसके लिये ब्रिटिश से सामुदायिक अधिकार हेतु खड़े थे।[6]
स्थानीय मान्यता अनुसार मौफलांग के कई वृक्षों की आयु उतनी ही है, जितनी कि खासी जनजाति की, अर्थात लगभग ८००-१००० वर्ष। किंतु इस काल में एक समय ऐसा भी आया था, जब मौफलांग के जंगलों पर तथाकथित उन्नति करने वालों का अधिकार होने लगा था जिसके चलते बाहरी लोगों के सहयोग से २००० से वर्ष २००५ के बीच मौफलांग वन में लगातार गिरावट हुई। पूर्वी खासी पर्वत जिले के वन क्षेत्रफल प्रतिशत में ५.६ की गिरावट दर्ज की गई थी। यहां कोयले, चूने और भवन निर्माण सामग्री हेतु किये गए अत्यधिक खनन तथा निर्बाध वन कटाव ने जिले के वनों को बड़े स्तर पर बर्बाद किया। इसी हानि पर मौफलांग की स्थानीय खासी आदिवासी सामुदायिक सत्ता - हिमा ने साहसिक कदम उठाए। हिमाओं को कम्युनिटी फाॅरेस्टरी इंटरनेशनल नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन (सीएफआई) के सहयोग से मेघालय में वन-संरक्षण के सामुदायिक प्रयासों को संरक्षण देने में सहायता मिली। तब तक वन-संरक्षण को वायुमण्डल में हानिकारक विकिरणों व गैसों की मात्रा में कमी करने जैसे योगदान पर ध्यान रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ’कार्बन क्रेडिट’ कार्यक्रम का आरम्भ होने लगा था। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से कार्बन क्रेडिट हेतु मानक व प्रक्रिया भी बनाये जा चुके थे।
मौफलांग के जैविक विविधता की समृद्धि एवं भूमिगत जल भण्डार का आधार स्थानीय खासी समुदायों की आस्था और पारंपरिक जीवन शैली ही है। संस्था द्वारा इस पारम्परिक ज्ञान और व्यवहार के आधार पर मौफलांग समुदाय को भारत का प्रथम रेड पायलट समुदाय चयनित करने की मुहिम आरम्भ की। मेघालय सरकार और खासी हिल स्वायत्त जिला परिषद के द्वारा इसका भरपूर समर्थन किया गया। इस कार्य में बेथानी सोसाइटी ने समन्वयक का कार्य किया। १० हिमाओं (४२५० परिवार) ने इस काम के लिए आपसी एकजुटता दिखाई एवं तम्बोर लिंगदोह ने इसका नेतृत्व किया। इस परियोजना क्षेत्र के रूप ८,३७९ हेक्टेयर भूमि तय की गई। इस तरह ’रेड’ प्रक्रिया और वन संरक्षण, प्रबंधन और पुनर्जीवन गतिविधियों की योजना हेतु सीएफआई और मौफलांग के हिमाओं के संघ के बीच सहयोग तय हुआ।
रेड (REDD) – रिड्युसिंग एमिशंस फ्रॉम डीफ़ॉरेस्टेशन एण्ड डीग्रेडेशन -अर्थात वनों की कटाई और वन क्षरण से होने वाले उत्सर्जन की रोकथांम। इस परियोजना के लिए मौफलांग को भारत का प्रथम रेड पायलट समुदाय बनाया गया है।[8] वैसे इस परियोजना में वन में नये सिरे से वृक्षारोपण किया गया, जबकि वास्तव में यह एक जल परियोजना है। गाँवों के लिये बिना धुंए का चूल्हा, मवेशियों के लिए चारे की विशेष व्यवस्था, किसी प्रकार के खनन पर प्रतिबंध, वन में पुनर्वृक्षारोण तथा जल संचयन जैसे कार्य किये गए। संरक्षण हेतु निकटवर्ती उमियम झील बेसिन का ७५ हेक्टेयर का क्षेत्र प्रयोग किया गया। इस प्रकार के कई वर्षों के सतत् प्रयासों परिणामस्वरूप इस परियोजना को प्लान विवो मानक के तहत् मई, २०११ में खासी हिल्स कम्युनिटी रेड प्लस प्रोजेक्ट का प्रमाणपत्र दिया गया। संरक्षण, प्रबंधन और पुनर्जीवन प्रथम चरण २०१६ में पूर्ण हुआ एवं द्वितीय चरण २०१७-२०२१ में चालू है।
यहां की धरोहर परियोजना बहुत उत्साह और जोरशोर के साथ आरम्भ तो हुई थी और किसी तरह प्रथम चरण पूर्ण भी हो गया, किन्तु सरकार की उदासीनता तथा भ्रष्टाचार के चलते इसे बहुत हानि हुई और अब ढुलमुल रवैये के कारण शिथिल सी होती जा रही है।[9]
वर्ष २०११ के आँकडे़ के अनुसार, मौफलांग समुदाय को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर १३,७६१ कार्बन क्रेडिट मिले हैं, जिन्हें अन्तरराष्ट्रीय बाजार में ४२ हजार से ८० हजार अमेरिकी डाॅलर में बदला जा सकता है। प्रथम चरण ही होने के कारण हालांकि यह कोई बड़ी धनराशि नहीं थी किन्तु मान्यता देने वाली अन्तर्राष्ट्रीय संस्था तथा सलाहकार के शुल्क का भुगतान भी इसी में से किया गया, और इस प्रकार संरक्षण से आय भी होती है।[6]
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