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मुक्केबाज़ी लड़ाई का एक खेल और एक मार्शल कला है, जिसमें दो लोग अपनी मुट्ठियों का प्रयोग करके लड़ते हैं। विशिष्ट रूप से मुक्केबाज़ी का संचालन एक-से तीन-मिनटों के अंतरालों, जिन्हें चक्र (Rounds) कहा जाता है, की एक श्रृंखला के दौरान एक रेफरी के द्वारा किया जाता है, तथा मुक्केबाज़ सामान्यतः एक समान भार वाले होते हैं। जीतने के तीन तरीके हैं; यदि विरोधी को गिरा दिया जाए तथा वह रेफरी द्वारा दस सेकंड की गिनती किये जाने से पूर्व उठ पाने में सक्षम न हो सके (एक नॉक-आउट या KO) अथवा यदि यह प्रतीत हो कि विरोधी इतना अधिक घायल हो चुका है कि वह खेल जारी रख पाने में असमर्थ है (एक तकनीकी नॉक-आउट या TKO). यदि आपसी सहमति से चक्रों की पूर्व-निर्धारित संख्या से पूर्व तक लड़ाई नहीं रूकती है, तो विजेता का चुनाव रेफरी के निर्णय द्वारा अथवा निर्णायकों की अंक-तालिकाओं के द्वारा किया जाता है।
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तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व मिली सुमेरियाई नक्काशी में पहली लड़ाई चित्रित है, जबकि दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व की प्राचीन मिस्र की नक्काशी में प्रारंभिक योद्धा तथा दर्शक, दोनों ही चित्रित हैं।[1] दोनों ही चित्रण अनावृत मुट्ठियों वाले प्रतियोगियों को दर्शाते हैं।[1] 1927 में, डॉ॰ ई. ए. स्पीसर (Dr. E. A. Speiser), एक पुरातत्ववेत्ता, ने इराक़ के बग़दाद में एक मेसोपोटेमियाई शिला-खण्ड की खोज की, जिसमें एक इनामी लड़ाई के लिये तैयार हो रहे दो पुरुष चित्रित थे। ऐसा विश्वास है कि यह शिला-खण्ड 7,000 वर्ष पुराना है।[2] किसी भी प्रकार के दस्तानों के साथ लड़ी गई पहली लड़ाई का सबसे पहला प्रमाण मिनोयाई क्रीट (Minoan Crete) (c. 1500-900 ई.पू.) में तथा सार्डीनिया (Sardinia), यदि हम प्रामा पर्वतों की मुक्केबाज़ी प्रतिमाओं (c. 2000-1000 ई.पू.) पर विचार करें, में मिलता है।[1]
होमर के इलियड (Iliad) (ca. 675 ई.पू.) में किसी मुक्केबाज़ी प्रतियोगिता का पहला विस्तृत विवरण प्राप्त होता है (पुस्तक XXIII).[3] इलियड के अनुसार, माइसीनियाई योद्धाओं ने प्रतिस्पर्धाओं में मुक्केबाज़ी को भी शामिल किया था, जिनमें परास्त होने वालों को एक विशाल आयोजन के द्वारा सम्मान किया जाता था (ca. 1200 ई.पू.), हालांकि यह संभव है कि होमर के महाकाव्य बाद की संस्कृति को प्रतिबिंबित करते हों. एक अन्य कथा के अनुसार वीर शासक थीसियस (Theseus), जिसका काल नवीं सदी ई.पू. माना जाता है, ने मुक्केबाज़ी के एक प्रकार का आविष्कार किया था, जिसमें दो लोग आमने-सामने बैठकर अपनी मुट्ठियों से एक-दूसरे पर तब तक प्रहार किया करते थे, जब तक कि उनमें से किसी एक की मृत्यु न हो जाए. समय के साथ, मुक्केबाज़ों ने खड़े होकर व दस्ताने (कांटेदार) पहनकर तथा अपने हाथों पर कोहनियों के नीचे आवरण लपेटकर लड़ना प्रारंभ कर दिया, हालांकि इसके अतिरिक्त वे पूर्णतः नग्न रहा करते थे।
डेरियन विस्मयकारी है! 688 ई.पू. में पहली बार मुक्केबाज़ी को ऑलिम्पिक खेलों में सम्मिलित किया गया, जिसे पाइगेम (Pygme) अथवा पिग्माशिया (Pygmachia) कहा जाता था। प्रतिभागियों को पंचिंग बैग, (जिसे कोरिकोस (Korykos) कहा जाता था, पर प्रशिक्षण दिया जाता था। योद्धा अपने हाथों, कलाइयों और कभी-कभी सीने, पर चमड़े के पट्टे (जिन्हें हाइमेंटस (himantes) कहते थे, पहना करते थे, ताकि उनकी सुरक्षा की जा सके। ये पट्टे उनकी अंगुलियों को खुला रखते थे। एक किंवदंती के अनुसार तलवार और ढाल से लड़ाई की तैयारी करने के लिये मुक्केबाज़ी का प्रयोग सबसे पहले स्पार्टन लोगों ने किया था।
प्राचीन रोम में, मुक्केबाज़ी के दो प्रकार थे और दोनों ही एट्रुस्कैन (Etruscan) से आये थे। मुक्केबाजी का एथलेटिक रूप पूरे रोमन विश्व में लोकप्रिय बना रहा। मुक्केबाजी के अन्य रूप योद्धाओं से संबंधित थे। सामान्यतः ये योद्धा अपराधी व गुलाम हुआ करते थे, जिन्हें विजेता बनने और अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर पाने की आशा होती थी; हालांकि, स्वतंत्र पुरुष, महिलाएं और यहां तक कि अभिजात वर्ग के लोग भी लड़ा करते थे। आक्रमणों से बचने के लिये योद्धा अपनी अंगुलियों को जोड़ों पर "सेस्टी (cestae)" तथा अपनी अग्र-भुजाओं पर चमड़े के भारी-भरकम पट्टे पहना करते थे। फूलगोभी जैसे कानों वाले व बुरी तरह जख्मी क्विरीनाल (Quirinal) के मुक्केबाज़ का चित्र दर्शाता है कि यह खेल कितना अधिक नृशंस हो सकता था (मुकाबले अक्सर एक विरोधी की मृत्यु या विकलांगता के बाद खत्म होते थे).
अंततः मु्ष्टि-युद्ध इतना अधिक लोकप्रिय हो गय कि शासकों तक ने लड़ना प्रारंभ कर दिया और इस पद्धति को सीज़र नेरोनिस ने प्रोत्साहित किया। रोम के राष्ट्रीय महाकाव्य एनीड (Aeneid) (पहली सदी ईसा पूर्व) में फुर्तीले डेरस (Dares) व महाकाय एंटेलस (Entellus) के बीच एक लड़ाई का विस्तार से वर्णन किया गया है।[4]
393 ईसवी में, ईसाई शासक थियोडॉसियस (Theodosius) द्वारा ऑलिम्पिक पर पाबंदी लगा दी गई और 400 ईसवी में, थियोडॉसियस महान ने मुक्केबाज़ी को यह कहकर पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया कि यह ईश्वर का अपमान है क्योंकि यह चेहरे को बिगाड़ देती है, जो कि ईश्वर का प्रतिबिंब होता है। हालांकि, पूर्वी साम्राज्य के प्रमुख नगरों के बाहर इस फतवे का प्रभाव बहुत ही कम था।[5] इस समय तक, पश्चिमी यूरोप रोमन साम्राज्य का भाग नहीं रह गय था। पूरे मध्य युग और उसके बाद भी मुक्केबाज़ी संपूर्ण यूरोप में लोकप्रिय बनी रही. कुश्ती, तलवारबाज़ी और दौड़ (रथों की दौड़ व पैदल दौड़ दोनों) पर बाद के रोमनों द्वारा कभी पाबंदी नहीं लगाई गई क्योंकि इनसे किसी व्यक्ति का रूप नहीं बिगड़ता था।
रोमन साम्राज्य के पतन के बाद मुक्केबाज़ी की प्राचीन गतिविधियों के रिकॉर्ड लुप्त हो गए। हालांकि मुट्ठियों से लड़े जाने वाले विभिन्न खेलों के रिकॉर्ड उपलब्ध हैं, जो कि बारहवीं तथा सत्रहवीं सदियों के बीच इटली के विभिन्न शहरों और राज्यों में अनुरक्षित करके रखे गये थे। प्राचीन रुस में भी एक खेल था, जिसे मुष्टि-युद्ध कहा जाता था। बाद में अठारहवीं सदी के प्रारंभ में यह खेल इंग्लैंड में खुली अंगु्लियों वाली मुक्केबाज़ी, जिसे अक्सर प्राइज़फाइटिंग (prizefighting) भी कहा जाता है, के रूप में पुनः उभरा. इंग्लैंड में खुली-अंगुलियों वाली लड़ाई का पहला लेखबद्ध विवरण 1681 में लंडन प्रोटेस्टंट मर्क्युरी में प्रदर्शित हुआ और 1719 में जेम्स फिग खुली-अंगुलियों वाले खेल का पहला विजेता बना.[6] यही वह समय है, जब "मुक्केबाज़ी (boxin)" शब्द का पहली बार प्रयोग शुरु हुआ। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये यह कि आधुनिक मुक्केबाज़ी का यह शुरुआत रूप बहुत अधिक भिन्न था। श्री फिग के काल की प्रतियोगिताओं, मुष्टि-युद्ध के साथ ही, में तलवारबाज़ी व लाठियों से लड़ाई भी शामिल हुआ करती थी।
प्रारंभिक मुकाबलों के कोई लिखित नियम नहीं थे। उन दिनों कोई भार-विभाजन अथवा चक्र सीमाएं नहीं थीं और न ही कोई रेफरी होते थे। सामान्य रूप से, यह अत्यधिक अस्त-व्यस्त थी। उच्च भार समूह की मुक्केबाज़ी के विजेता जैक ब्रॉटन द्वारा 1743 में पहली बार मुक्केबाज़ी के नियम, जिन्हें ब्रॉटन के नियम कहा जाता है, प्रस्तुत किये गये ताकि रिंग में खिलाड़ियों को संरक्षण दिया जा सके, जहां कभी-कभी मौत भी हो जाती थी।[7] इन नियमों के तहत, यदि कोई व्यक्ति नीचे गिर जाता है और 30 सेकंड की गिनती के बाद भी खेल जारी रख पाने में सक्षम न हो, तो लड़ाई समाप्त हो जाती थी। किसी गिरे हुए योद्धा को मारना अथवा कमर के नीचे प्रहार करना प्रतिबंधित था। ब्रॉटन ने "मफलरों", गद्देदार दस्तानों का एक प्रकार, जिसका प्रयोग प्रशिक्षण व प्रदर्शनों के लिये किया जाता था, का भी आविष्कार किया व प्रचार किया। मुक्केबाज़ी पर पहले शोध-पत्र का प्रकाशन अठारहवीं सदी के अंत में बर्मिंघम के सफल मुक्केबाज़ 'विलियम फ्युट्रेल' द्वारा किया गया था, जो 9 जुलाई 1788 को स्मिथहैम बॉटम, क्रोयडॉन में एक बहुत कम आयु वाले "सज्जन" जॉन जैक्सन के साथ एक घण्टे और सत्रह मिनटों तक चले मुकाबले, जिसे देखने के लिये प्रिंस ऑफ वेल्स भी उपस्थित थे, से पूर्व तक अपराजित रहे थे।
इन नियमों ने मुक्केबाज़ों को ऐसा लाभ भी प्रदान किया, जो वर्तमान समय के मुक्केबाज़ों के पास उपलब्ध नहीं है: उन्होंने किसी भी समय 30 सेकंड की गिनती शुरु करने के लिये योद्धा को एक घुटने पर बैठ जाने की अनुमति प्रदान की। इस प्रकार, यह नियम परेशानी में घिर जाने का अहसास होने पर योद्धा को उससे उबरने का एक अवसर प्रदान करता था। हालांक, इसे "अपौरुषेय" माना जाता था[8] और सेकण्ड्स ऑफ द बॉक्सर्स द्वारा जोड़े गये अतिरिक्त नियमों के द्वारा इसे अक्सर अस्वीकृत कर दिया जाता था।[9] आधुनिक मुक्केबाज़ी की अंकीय प्रणाली में उबरने के प्रयास में जानबूझकर नीचे जाने पर खिलाड़ी को अंक गंवाने पड़ेंगे. इसके अलावा, चूंकि प्रतियोगियों के पास अपने हाथों को बचाने के लिये चमड़े के भारी दस्ताने तथा कलाइयों पर लपेटे जाने वाले पट्टे नहीं होते, अतः सिर पर वार करते समय संयम की एक विशिष्ट मात्रा की आवश्यकता थी।
1838 में, लंदन पुरस्कार रिंग के नियम संहिताबद्ध किये गये। बाद में 1853 में संशोधित ये नियम निम्नलिखित बातों को सुनिश्चित करते हैं:[10]
उन्निसवीं सदी के अंतिम भाग तक, मुक्केबाज़ी अथवा प्राइज़फाइटिंग मुख्यतः एक संदिग्ध वैधता वाला खेल था। इंग्लैंड तथा संयुक्त राज्य अमरीका के अधिकांश भाग में गैर-कानूनी घोषित की जा चुकी प्राइज़फाइट अक्सर जुए के अड्डों पर आयोजित की जाती थी, जिसे पुलिस द्वारा बीच में ही रोक दिया जाता था। उपद्रव तथा कुश्ती की तरकीबें जारी रहीं और प्राइज़फाइटों के दौरान दंगे हो जाना एक आम बात थी। इसके बावजूद, इस पूरे काल में, खुली-अंगुलियों वाली मुक्केबाज़ी के कुछ उल्लेखनीय विजेता उभरे, जिन्होंने लड़ाई के काफी परिष्कृत तरीके विकसित किये.
1867 में लिली ब्रिज (Lillie Bridge), लंदन में कम-भार (Lightweights), मध्यम-भार (Middleweights) तथा उच्च-भार (Heavyweight) वाले शौकिया खिलाड़ियों के लिये आयोजित शौकिया प्रतियोगिताओं के लिये जॉन चेंबर्स द्वारा मार्क्वेस ऑफ क्वीन्सबेरी नियम तैयार किये गये। ये नियम मार्क्वेस ऑफ क्वीन्सबेरी के संरक्षण में प्रकाशित हुए, जिनका नाम सदैव ही इन नियमों के साथ जोड़ा जाता रहा है।
कुल मिलाकर बारह चक्र हुए और उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि लड़ाइयां एक 24-फुट-वर्ग या समान रिंग में "एक न्यायसंगत खड़ी मुक्केबाज़ी के मुकाबलों" के रूप में होनी चाहिये. चक्र तीन मिनट लंबे थे, जिनके बीच विश्राम के लिये एक मिनट का अंतराल हुआ करता था। यदी किसी खिलाड़ी को नीचे गिरा दिया गया हो, तो उसे दस-सेकंड का समय दिया जाता था और कुश्ती प्रतिबंधित थी।
"न्यायसंगत आकार" के दस्तानों की प्रस्तुति ने भी मुक्केबाज़ी के मुकाबलों के स्वरूप को बदल दिया। मुक्केबाज़ी के दस्तानों का एक औसत जोड़ा फूले हुए दस्तानों के एक जोड़े के समान दिखाई देता है और इसे कलाइयों पर बांधा जाता है।[12] दस्ताने का प्रयोग प्रतिद्वंद्वी के हमलों को रोकने में किया जा सकता है। इनका प्रयोग शुरु किये जाने के कारण, मुक्केबाज़ी के मुकाबले ज्यादा लंबे और अधिक रणनीतिपूर्ण हो गये हैं, तथा फिसलने, झांसा देने, प्रत्युत्तर देने और जकड़ने जैसी प्रतिरक्षात्मक चालों का महत्व अधिक बढ़ गया है। चूंकि अग्र-भुजाओं के प्रयोग पर कम तथा दस्तानों पर अधिक प्रतिरक्षात्मक ज़ोर दिया गया था, अतः खुली-अंगुलियों वाले मुक्केबाज़ द्वारा पारंपरिक रूप से अग्र-भुजाओं को बाहर की ओर रखते हुए, धड़ को पीछे की ओर झुकाने की मुद्रा एक ज्यादा आधुनिक मुद्रा में बदल गई, जिसमें धड़ को आगे की ओर झुकाया जाता है और हाथ अपने मुंह के पास रखे जाते हैं।
1882 में आर वी. कोने (R v. Coney) के अंग्रेज़ मामले ने पाया कि प्रतिभागी की सम्मति के बावजूद खुली-अंगुलियों वाली लड़ाई एक हमले के समान थी, जिसमें कभी-कभी शरीर पर सचमुच चोट लग जाया करती थी. यह इंग्लैंड में व्यापक रूप से प्रचलित खुली-अंगुलियों वाली लड़ाई का अंत था।
क्वीन्सबेरी नियमों के अंतर्गत पहले उच्च-भार विजेता "जेंटलमैन जिम" कॉर्बेट थे, जिन्होंने 1893 में न्यू ऑर्लियान्स के पेलिकन एथलेटिक क्लब में जॉन एल. सुलिवन को मात दी। [13]
बीसवीं सदी के प्रारंभिक काल के दौरान, मुक्केबाज़ों ने वैधता प्राप्त करने के लिये संघर्ष किया और टेक्स रिकार्ड जैसे प्रायोजकों तथा जॉन एल. सुलिवन से लेकर जैक डेम्प्सी तक के महान विजेताओं का प्रभाव भी इसमें सहायक सिद्ध हुआ। इस युग के शीघ्र बाद, इस खेल पर नियंत्रण रखने तथा वैश्विक रूप से स्वीकृत विजेताओं को स्थापित करने के लिये बॉक्सिंग कमीशन तथा अनुमोदक संस्थाओं की स्थापना की गई।
1867 में उनके प्रकाशन के समय से ही मार्क्वेस ऑफ क्वीन्सबेरी नियम आधुनिक मुक्केबाज़ी के संचालक नियम रहे हैं।
मुक्केबाज़ी के मुकाबले में विशिष्ट रूप से तीन-मिनटों के चक्रों की एक निर्धारित संख्या होती है, जो अधिकतम 12 चक्रों (पूर्व में 15) तक हो सकती है। विशिष्ट रूप से प्रत्येक चक्र के बीच एक मिनट का अंतराल होता है, जिसके दौरान खिलाड़ी उन्हें आवंटित कोनों में अपने प्रशिक्षक तथा कर्मचारियों से सलाह और सहायता प्राप्त करते हैं। लड़ाई का नियंत्रण एक रेफरी द्वारा किया जाता है, जो रिंग के भीतर खिलाड़ियों के व्यवहार को परखने तथा उस पर नियंत्रण रखने, सुरक्षित रूप से लड़ने की उनकी क्षमता का नियमन करने, नॉक-डाउन किये गये खिलाड़ियों को उठने का अवसर देने के लिये गिनती करने तथा फाउल का नियमन करने का कार्य करता है। मुक्केबाज़ी के मुकाबले में अंक देने तथा संपर्क, प्रतिरक्षा, नॉकडाउन, तथा अन्य, अधिक व्यक्तिगत, मापनों के आधार पर खिलाड़ियों को अंक आवंटित करने के लिये रिंग के पास विशिष्ट रूप से अधिकतम तीन निर्णायक उपस्थित होते हैं। मुक्केबाजी के निर्णयन की मुक्त-शैली के कारण, अनेक मुकाबलों के परिणाम विवादास्पद होते हैं, जिनमें एक (या दोनों) खिलाड़ियों का यह विश्वास होता है कि उन्हें "लूट" लिया गया है अथवा अन्यायपूर्ण ढ़ंग से जीत से वंचित रखा गया है। प्रत्येक खिलाड़ी को रिंग का एक कोना आवंटित किया जाता है, जहां उसके प्रशिक्षक तथा साथ ही एक या अधिक "सहायक" खेल की शुरुआत में व चक्रों के बीच खिलाड़ी का संचालन कर सकते हैं। प्रत्येक चक्र की शुरुआत होने पर प्रत्येक मुक्केबाज़ उसके लिये आवंटित कोने से रिंग में प्रवेश करता है और प्रत्येक चक्र की समाप्ति का संकेत मिलते ही लड़ाई रोक देना और अपने कोने में वापस लौट जाना उसके लिये अनिवार्य होता है।
जिस मुकाबले में चक्रों की पूर्व निर्धारित संख्या पूरी हो चुकी हो, उसका निर्धारण निर्णायकों द्वारा किया जाता है और उसे "दूरी तक जाता हुआ (go the distance)" कहा जाता है। लड़ाई के अंत में जिस खिलाड़ी का स्कोर उच्चतर हो, उसे विजेता घोषित किया जाता है। तीन निर्णायकों के साथ, सर्वसम्मत तथा विभाजित निर्णय व साथ ही मुकाबले बराबरी पर समाप्त हो जाना भी संभव है। किसी निर्णय पर पहुंच पाने से पूर्व कोई मुक्केबाज़ एक नॉकाआउट के द्वारा मुकाबले को जीत सकता है; ऐसे मुकाबलों को "दूरी के भीतर (inside the distance)" कहा जाता है। यदि लड़ाई के दौरान किसी खिलाड़ी को नीचे गिरा दिया जाता है, जिसका निर्धारण इस बात से होता है कि क्या खिलाड़ी ने विपक्षी के मुक्के के कारण अपने पैरों के अतिरिक्त शरीर के किसी भी अन्य भाग से कैनवास के फर्श को स्पर्श किया है, न कि फिसल जाने पर, जैसा कि रेफरी के द्वारा निर्धारित किया जाता है, तो रेफरी तब तक गिनती गिनना शुरु करता है, जब तक कि खिलाड़ी अपने पैरों पर पुनः खड़ा न हो जाए और खेल आगे न बढ़ने लगे। यदि रेफरी दस तक की गिनती पूरी कर ले, तो नीचे गिरे हुए मुक्केबाज़ को "नॉक-आउट हो चुका" करार दिया जाता है (चाहे वह बेहोश हुआ हो या न हुआ हो) और दूसरे मुक्केबाज़ को नॉकआउट (KO) के द्वारा विजेता घोषित कर दिया जाता है। एक "तकनीकी नॉकआउट (TKO) भी संभव है और इसका निर्णय रेफरी, लड़ाई के दौरान उपस्थित चिकित्सक, अथवा यदि खिलाड़ी सुरक्षित रूप से खेल जारी रख पाने में सक्षम न हो, तो उसके कोने द्वारा, चोटों के आधार पर अथवा प्रभावी रूप से स्वयं की रक्षा कर पाने में अक्षम पाए जाने पर लिया जाता है। अनेक न्यायाधिकार-क्षेत्रों तथा अनुमोदन अभिकरणों में भी एक "तीन-नॉकडाउन नियम" होता है, जिसके अंतर्गत किसी एक चक्र में तीन नॉकडाउन हो जाने पर इसे एक टीकेओ (TKO) घोषित कर दिया जाता है। एक टीकेओ (TKO) को उस खिलाड़ी के रिकॉर्ड में एक नॉकआउट माना जाता है। एक "खड़े आठ" की गिनती का नियम भी प्रभावी हो सकता है। यदि रेफरी को यह महसूस हो कि कोई खिलाड़ी खतरे में है, तो यह नियम रेफरी को बीच में दखल देने व उस खिलाड़ी के लिये आठ तक की गिनती गिनने का अधिकार देता है, भले ही कोई नॉकडाउन न हुआ हो। गिनती गिनने के बाद रेफरी उस खिलाड़ी का अवलोकन करके यह निर्णय लेगा कि वह खेल पाने योग्य है या नहीं. स्कोरिंग के उद्देश्य से, खड़े आठ की गिनती को एक नॉकडाउन माना जाता है।
सामान्य तौर पर, मुक्केबाजों को बेल्ट से नीचे वार करने, पकड़ने, ठोकर मारने, काटने, थूकने अथवा कुश्ती लड़ने से प्रतिबिंधित किया गया है। मुक्केबाज़ की जांघिया उठी हुई होती है, ताकि प्रतिद्वंद्वी को पेट व जांघ के बीच वाले क्षेत्र में मारने की अनुमति न मिल सके। उन्हें लात मारने, सिर से ठोकर लगाने, अथवा बंधी हुई मुट्ठी के जोड़ों के अतिरिक्त बांह के किसी भी अन्य भाग (कोहनी, कंधे या अग्र-बाहु तथा साथ ही खुले दस्तानों, कलाई, हाथ के भीतरी, पिछले या बगल वाले हिस्से सहित) से मारने से भी रोका गया है। पीठ पर, गरदन अथवा सिर के पिछले हिस्से (जिसे एक "रैबिट-पंच" कहा जाता है) अथवा किडनियों पर प्रहार करना भी निषिद्ध है। उन्हें मुक्का मारते समय सहारे के लिये रस्सियों को पकड़ने, मुक्का मारते समय प्रतिद्वंद्वी को पकड़कर रखने, अथवा प्रतिद्वंद्वी के बेल्ट से नीचे झुकने (प्रतिद्वंद्वी की कमर से नीचे झुकना, भले ही दूरी कितनी भी क्यों न हो) की भी अनुमति नहीं होती. यदि एक "पकड़"- एक रक्षात्मक चाल, जिसमें मुक्केबाज़ अपने प्रतिद्वंद्वी की भुजाओं को लपेट लेता है और एक विराम निर्मित कर देता है-को रेफरी द्वारा तोड़ा जाता है, तो पुनः खेल शुरु करने से पूर्व प्रत्येक खिलाड़ी के लिये एक पूरा कदम पीछे की ओर हटना अनिवार्य होता है (वैकल्पिक रूप से, रेफरी खिलाड़ियों को पकड़ से "पंच आउट" करने का निर्देश भी दे सकता है). जब एक मुक्केबाज़ को नीचे गिरा दिया जाता है, तो दूसरे मुक्केबाज़ के लिये तुरंत लड़ाई को रोक देना तथा जब तक रेफरी एक नॉक-आउट की घोषणा न कर दे या खेल को जारी रखने का आदेश न दे, तब तक के रिंग के दूरस्थ निष्पक्ष छोर की ओर जाना अनिवार्य होता है।
इन नियमों के उल्लंघनों को रेफरी द्वारा "फाउल" करार दिया जा सकता है, जो कि उल्लंघन की गंभीरता व इरादे के आधार पर चेतावनियां जारी कर सकता है, अंक काट सकता है, या किसी नियमों का उल्लंघन करने वाले मुक्केबाज़ को अयोग्य घोषित कर सकता है, जिससे खिलाड़ी स्वतः ही मुकाबला गंवा देता है। यदि जानबूझकर किये गये फाउल के कारण ऐसी चोट लग जाए, जिससे खेल को आगे जारी रख पाना संभव न हो, तो ऐसी स्थिति में फाउल करने वाले खिलाड़ी को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। यदि किसी खिलाड़ी को गलती से हल्की-सी ठोकर लगी हो, तो उसे उबरने के लिये पांच मिनट तक का समय दिया जा सकता है और यदि वे इसके बाद भी खेल जारी रख पाने में अक्षम हों, तो उन्हें नॉक-आउट घोषित किया जा सकता है। यदि दुर्घटनावश हुए किसी फाउल के करण ऐसी चोट लग जाए कि मुकाबले को रोक देना पड़े, तो इसका परिणाम "कोई स्पर्धा नहीं" के रूप में मिलता है अथवा यदि पर्याप्त चक्र (विशिष्टतः चार या अधिक, या चार चक्रों वाले मुकाबले में कम से कम तीन) पूर्ण हो चुके हों, तो मुकाबले के परिणाम के बारे में निर्णय के रूप में मिलता है। yah shi hai bro
सत्रहवीं सदी से लेकर उन्नीसवीं सदी के दौरान, मुक्केबाज़ी के मुकाबलों को धन के द्वारा प्रेरणा मिलती थी क्योंकि मुक्केबाज़ इनाम की राशि के लिये प्रतिस्पर्धा किया करते थे, प्रायोजक द्वार का नियंत्रण करते थे तथा दर्शक परिणामों पर सट्टा लगाया करते थे। आधुनिक ऑलिम्पिक आंदोलन ने शौकिया खेलों में रुचि को दोबारा प्रचलित किया और 1908 में शौकिया मुक्केबाज़ी एक ऑलिम्पिक खेल बन गई। इसके वर्तमान स्वरूप में, ऑलिम्पिक और अन्य शौकिया मुकाबले विशिष्टतः तीन या चार चक्रों तक सीमित होते हैं, अंकों की गणना मुक्कों के प्रभाव के प्रति निरपेक्ष रहते हुए, इनकी संख्या के आधार पर की जाती है और खिलाड़ी सिर पर रक्षात्मक कवच पहनते हैं, जिससे चोटों, नॉक-डाउन और नॉक-आउट की संख्या में कमी आती है। वर्तवान समय में, शौकिया मुक्केबाज़ी में स्कोरिंग मुक्के रिंग के बाहर स्थित निर्णायकों द्वारा व्यक्तिगत रूप से गिने जाते हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट फॉर स्पोर्ट्स (Australian Institute for Sports) ने एक ऑटोमैटेड बॉक्सिंग स्कोरिंग सिस्टम (Automated Boxing Scoring System) का एक प्रतिमान प्रस्तुत किया है, जो स्कोरिंग निष्पक्षता को प्रदर्शित करता है, सुरक्षा को बढ़ाता है और विवादास्पद रूप से खेल को दर्शकों के लिये अधिक मनोरंजक बनाता है। व्यावसायिक मुक्केबाज़ी अभी तक दुनिया का सर्वाधिक लोकप्रिय खेल बना हुआ है, हालांकि क्युबा तथा कुछ भूतपूर्व सोवियत गणराज्यों में शौकिया मुक्केबाज़ी का वर्चस्व है। अधिकांश खिलाड़ियों के लिये, एक शौकिया कॅरियर, विशेष रूप से ऑलिम्पिक में, व्यावसायिक मुक्केबाज़ी की तैयारी के लिये अपने कौशल को विकसित करने तथा अनुभव प्राप्त करने में सहायक होता है।
शौकिया मुक्केबाज़ी महाविद्यालयीन स्तर पर, ऑलिम्पिक खेलों में, कॉमनवेल्थ खेलों में तथा शौकिया मुक्केबाज़ी संघठनों द्वारा स्वीकृत अनेक अन्य स्थलों पर देखी जा सकती है। शौकिया मुक्केबाज़ी में एक अंक स्कोरिंग प्रणाली होती है, जो शारीरिक हानि के बजाय सफल मुक्कों की संख्या का मापन करती है। ऑलिम्पिक तथा कॉमनवेल्थ खेलों में होने वाले मुकाबलों में तीन मिनट के तीन चक्र होते हैं और राष्ट्रीय एबीए (ABA) (एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसियेशन (Ameteur Boxing Association)) में होने वाले मुकाबलों में तीन मिनट के तीन चक्र होते हैं, जिनमें से प्रत्येक में चक्रो के बीच एक-मिनट का एक अंतराल होता है।
प्रतियोगी सिर पर रक्षात्मक कवच और हाथों में दस्ताने पहनते हैं, जिनमें अंगुलियों को जोड़ों पर एक सफेद पट्टी होती है। किसी भी मुक्के के लिये अंक केवल तभी मिलते हैं, जब मुक्केबाज़ ने दस्ताने के सफेद भाग के द्वारा संपर्क किया हो। पर्याप्त बल के साथ सिर अथवा धड़ पर स्पष्ट रूप से पड़ने वाले प्रत्येक घूंसे के लिये एक अंक दिया जाता है। मुकाबले का निरीक्षण एक रेफरी द्वारा किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतियोगी केवल वैध मुक्कों का प्रयोग कर रहे हैं। शरीर पर पहना गया एक बेल्ट मुक्कों की निचली सीमा को दर्शाता है- यदि कोई मुक्केबाज़ बार-बार निचले घूंसे (बेल्ट के नीचे) मार रहा हो, तो उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। रेफरी इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि प्रतिद्वंद्वी को दोलन से रोकने के लिये मुक्केबाज़ उसे पकड़ने का तरीका न अपना रहे हों. यदि ऐसा होता है, तो रेफरी प्रतिद्वंद्वियों को एक-दूसरे से अलग करता है और मुक्केबाज़ी जारी रखने का आदेश देता है। एक-दूसरे को बार-बार पकड़ने के परिणामस्वरूप एक मुक्केबाज़ को दण्डित और अंततः अयोग्य घोषित भी किया जा सकता है। यदि कोई मुक्केबाज़ गंभीर रूप से घायल हो जाए, एक मुक्केबाज़ दूसरे पर बहुत अधिक हावी हो रहा हो, या यदि स्कोर बहुत अधिक असंतुलित हो गया हो, तो रेफरी मुकाबले को रोक देगा। [14] इस प्रकार समाप्त होने वाले शौकिया मुकाबलों को एक बेहतर प्रतिद्वंद्वी (RSCO), अधिक अंक लेकर हराने वाले प्रतिद्वंद्वी (RSCOS), चोट (RSCI) अथवा सिर की चोट (RSCH) के संकेतों के साथ "आर एस सी (RSC)" (रेफरी द्वारा रोकी गई प्रतियोगिता) के रूप में दर्ज किया जाता है।
सामान्यतः व्यावसायिक मुकाबलों की अवधि शौकिया मुकाबलों की तुलना में बहुत अधिक, विशिष्टतः दस से बारह चक्रों तक, होती है, हालांकि कम अनुभवी खिलाड़ियों अथवा क्लब के खिलाड़ियों के लिये चार चक्रों के मुकाबले आम हैं। कहीं-कहीं, विशेषतः ऑस्ट्रेलिया में, दो-[15] तथा तीन-चक्रों वाले व्यावसायिक मुकाबले[16] भी होते हैं। बीसवीं सदी के शुरुआती दौर में, मुकाबलों में असीमित चक्र होना एक आम बात थी, जिसमें मुकाबले केवल तभी समाप्त होते थे, जब कोई एक खिलाड़ी खेल छोड़ दे, जो कि जैक डेंप्से (Jack Dempsey) जैसे उच्च-ऊर्जायुक्त खिलाड़ियों के लिये लाभदायक थे। 1980 के दशक की शुरुआत में मुक्केबाज़ डुक कू किम (Duk Koo Kim) की मृत्यु के बाद चक्रों की संख्या को घटाकर बारह किये जाने से पूर्व, बीसवीं सदी के अधिकांश काल के दौरान पंद्रह चक्रों की सीमा ही चैम्पियनशिप मुकाबलों के लिये अंतर्राष्ट्रीय तौर पर स्वीकृत सीमा बनी रही.
व्यावसायिक मुकाबलों में सिर पर कवच पहनने की अनुमति नहीं होती और किसी मुकाबले को रोक देने से पूर्व मुक्केबाज़ों को सामान्यतः बहुत अधिक सज़ा भुगतने दी जाती है। हालांकि, यदि रेफरी को यह महसूस हो कि कोई एक प्रतिभागी अपनी चोट के कारण स्वयंकी रक्षा नहीं कर सकता, तो रेफरि किसी भी समय प्रतियोगिता को रोक सकता है। ऐसी स्थिति में, दूसरे प्रतिभागी को एक तकनीकी नॉक-आउट जीत प्रदान की जाती है। एक तकनीकी नॉक-आउट उस स्थिति में दिया जाएगा, जब किसी खिलाड़ी द्वारा मारे गये घूंसे के कारण प्रतिद्वंद्वी को कोई चोट लग जाए और बाद में चिकित्सक द्वारा यह घोषित कर दिया जाए कि वह खिलाड़ी उस चोट के कारण खेल को आगे जारी रख पाने में सक्षम नहीं है। इस कारण के लिये, खिलाड़ी अक्सर चोट-निवारक (Cutmen) व्यक्ति को नियुक्त करते हैं, जिसका कार्य चक्रों के बीच चोट का इलाज करना होता है, ताकि चोट के बावजूद भी खिलाड़ी खेल को जारी रख पाने में सक्षम हो सके। यदि कोई मुक्केबाज़ यूं ही खेल छोड़कर बाहर निकल जाए अथवा यदि उसका छोर लड़ाई को रोक दे, तब भी जीतने वाले मुक्केबाज़ को एक तकनीकी नॉक-आउट जीत प्रदान की जाती है। शौकिया मुक्केबाज़ी के विपरीत, व्यावसायिक पुरूष मुक्केबाज़ों को सीना खुला रखकर लड़ना होता है।[17]
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अपनी भार श्रेणी के निरपेक्ष, सभी मुक्केबाज़ों के लिये विशिष्ट प्रकार के वस्र मुकाबले के लिये आवश्यक होते हैं। व्यावसायिक मुक्केबाज़ शौकिया मुक्केबाज़ों से भिन्न प्रकार के वस्र पहनते हैं, लेकिन उनमें एक बुनियादी विचार या अर्थ होता है। अनुमोदित मुकाबलों में शामिल सभी मुक्केबाज़ों के लिये हस्त-आवरण (handwraps), दस्ताने, उरू-मूल रक्षक (groin protectors), मुख-रक्षक (mouth guards) तथा मुलायम तलवों वाले जूते पहनना आवश्यक होता है।
शौकिया मुक्केबाज़ी में, प्रत्येक मुक्केबाज़ अपने छोर के रंग में अपनी अनुमोदन संस्था द्वारा अनुमोदित रंग की शॉर्ट्स पहनता है। व्यावसायिक मुक्केबाज़ी में, शॉर्ट्स के रंग और डिज़ाइन का चयन प्रत्येक खिलाड़ी पर छोड़ दिया जाता है और इसका नियमन नहीं किया जाता. शॉर्ट्स के अनेक प्रकार चटख रंगों के साथ पट्टेदार होते हैं। कई मुक्केबाज़ शॉर्ट्स के कमरबंद पर अपना नाम या उपनाम लिखवा लेते हैं, साथ ही उनके प्रायोजकों और यहां तक कि उन अनुमोदन संस्थाओं के प्रतीक-चिह्न भी होते हैं, जिन्होंने उन्होंने बेल्ट आवंटित किया हो। अनेक मुक्केबाज़, जैसे प्रिंस नसीम हामिद, अत्यधिक अलंकृत शॉर्ट्स पहनते हैं, जबकि माइक टाइसन जैसे अन्य मुक्केबाज़ सादगीपूर्ण शॉर्ट्स पसंद करते हैं। आधुनिक युग में शॉर्ट्स पिछली पीढ़ी की तु्लना में बहुत अधिक ढीली-ढाली होती हैं, ताकि अधिक गतिशीलता, आराम व विशिष्टता प्राप्त की जा सके।
व्यावसायिक महिला मुक्केबाज़ों की तरह शौकिया मुक्केबाज़ भी टैंक टॉप शर्ट पहनते हैं। कुछ महिला मुक्केबाज़ टैंक टॉप के बजाय खेलों के लिये बनाये गये अंतर्वस्र पहनना पसंद करती हैं। ऊपरी शरीर का आवरण प्रत्येक खिलाड़ी की व्यक्तिगत पसंद के अनुसार बदलता रहता है। व्यावसायिक पुरूष मुक्केबाज़ सदैव ही अपने शरीर के ऊपरी हिस्से के वस्रों को उतारकर ही मुकाबला करते हैं।
शौकिया मुक्केबाज़ों के लिये सिर पर अपने छोर के रंग का कवच और एक बिना बांह का शर्ट पहनना आवश्यक होता है, जबकि व्यावसायिक मुक्केबाज़ खुले सीने और सिर पर कवच के बिना लड़ते हैं। शौकिया स्तर की महिला मुक्केबाज़ों को एक छोटी बांह का शर्ट पहनने की अनुमति दी जाती है, जबकि व्यावसायिक महिला मुक्केबाज़ एक बिना बांह का शर्ट पहनती हैं। सभी महिला मुक्केबाज़ों को सीने की सुरक्षा करने वाला कवच पहनने की अनुमति होती है। एक माउथपीस सभी मुक्केबाज़ों के लिये आवश्यक होता है, जिसका निर्माण अनुमोदन संस्था व मुक्केबाज़ पर निर्भर होता है। अनुमोदित मुकाबलों में सभी मुक्केबाज़ों के लिये एक फाउल रक्षक का होना आवश्यक होता है, जो उनके उरु मूल और पेट के निचले भाग को बचाता है। महिला फाउल रक्षकों में उरु मूल वाले स्थान पर कम पैडिंग होती है, लेकिन फिर भी अनुमोदित मुकाबलों में उनके लिये इन्हें पहनना आवश्यक होता है। सभी मुक्केबाज़ दस्ताने पहनते हैं, जिनका भार शौकिया मुकाबलों में 8-16 औंस तथा व्यावसायिक मुकाबलों में में 6-12 औंस के बीच होता है। शौकिया मुक्केबाज़ों के लिये एक अनुमोदित दस्ताने का होना अनिवार्य होता है, जबकि व्यावसायिक मुक्केबाज़ों के लिये केवल एक न्यूनतम भार का पालन आवश्यक होता है, जिसके सटीक भार और यहां तक कि ब्रांड का निर्धारण मुकाबले से पूर्व आपसी सहमति के द्वारा किया जा सकता है। मुकाबले से पूर्व अनुमोदक संस्था के प्रतिनिधियों तथा विपक्षी खिलाड़ी के छोर के लोगों द्वारा दस्तानों का निरीक्षण किया जाता है। इसके बाद ढीला होने से बचाने के लिये उन पर टेप लगा दिया जाता है और सामान्यतः अनुमोदन संस्था के प्रतिनिधि उस पर हस्ताक्षर करते हैं, ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है। हस्त-आवरण (Handwraps) पहनना भी मुक्केबाज़ों के लिये आवश्यक होता है। यूएसए बॉक्सिंग (USA Boxing) पुन:प्रयोग किये जा सकने योग्य सूती हस्त-आवरण की अनुमति देती है, जिनमें एक हुक व एक पाश संवरक होता है, जबकि व्यावसायिक मु्काबलों के लिये चिपकाये जा सकने वाले तथा एक ही बार प्रयोग किये जा सकने वाले आवरण आवश्यक होते हैं। इन आवरणों का भी परीक्षण किया जाता है, जिसका एक उल्लेखनीय उदाहरण शेन मोस्ले और एंटोनियो मार्गारिटो के बीच हुआ मुकाबला है, जिसमें मार्गारिटो के आवरणों में प्लास्टर जैसा एक पदार्थ पाया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें "कम से कम एक वर्ष" के लिये निलंबित कर दिया गया। आधुनिक व्यावसायिक मुक्केबाज़ी में, पुरूषों के लिये एक कमरबंद पहनना आवश्यक होता है, जिसे उनकी जांघ के ऊपरी हिस्से और कमर के निचले हिस्से में लपेटा जाता है। सामान्यतः यह कमरबंद काले अथवा लाल रंग का होता है और रबर (कभी-कभी चमड़े) का बना होता है, ताकि खिलाड़ी के शरीर को नर-शरीर के सबसे संवेदनशील भाग-उसके लिंग- की ओर होने वाले किसी भी जानलेवा वार से बचाया जा सके। हालांकि, कमरबंद पहनने के बावजूद भी किसी घूंसे के कारण लिंग पर चोट लग जाना संभव है, जो कि घूंसे की शक्ति पर निर्भर होता है। मुकाबले के दौरान कमरबंद झुककर मुड़ जाता है और अक्सर मुक्केबाज़ की शॉर्ट्स के बाहर चिपक जाता है, जिससे उसके पेट पर थोड़ा दबाव पड़ता है। 1980 के दशक से पूर्व, कमरबंद बहुत छोटा होता था; इससे मुक्केबाज़ के पेडू को अधिक क्षति पहुंचती है।
सभी मुक्केबाज़ों के लिये मुलायम तली वाले जूते पहनना आवश्यक होता है, ताकि पैरों पर गलती से अथवा जानबूझकर दूसरे खिलाड़ी का पैर पड़ जाने से होने वाली क्षति न्यूनतम हो। जूते का निर्माण खिलाड़ी पर निर्भर होता है, जिनमें से अनेक आंतरिक खिलाड़ी अधिक कर्षण पाने के लिये बुनावट वाली रबर की तली को पसंद करते हैं और अनेक बाहरी खिलाड़ी कम घर्षण और सरल गतिशिलता के लिये चिकनी तली को प्राथमिकता देते हैं।
मुक्केबाज़ी में, किन्हीं दो खिलाड़ियों की शैलियां एक समान नहीं होती. मुक्केबाज़ अपने अभ्यास के दौरान जो कुछ भी सीखते हैं और उनके स्वयं के लिये जो भी उपयुक्त होता है, उसे लागू करते जाने पर उनकी शैली विकसित होती है। फिर भी, ऐसी अनेक शब्दावलियों का प्रयोग किया जाता है, जो मोटे तौर पर एक मुक्केबाज़ की शैली[उद्धरण चाहिए] का वर्णन करती हैं। ध्यान दें कि किसी मुक्केबाज़ का वर्णन करने के लिये इनमें से किसी एक शब्दावली तक ही सीमित रहना आवश्यक नहीं होता. कोई खिलाड़ी आंतरिक लड़ाई और बाह्य लड़ाई दोनों में पूर्ण हो सकता है, जिसका एक अच्छा उदाहरण मैनी पक्वेओ और बर्नार्ड हॉपकिन्स हैं और मुक्केबाज़ों की कोई अद्वितीय शैली भी हो सकती है, जो किसी भी श्रेणी में सरलता से समाहित न की जा सकती हो, जैसे नसीम हामिद.
एक पारंपरिक "मुक्केबाज़" या शैलीकार (जिसे "बाह्य-योद्धा" भी कहा जाता है) तेज़ी से, लंबी दूरी के मुक्के मारते हुए, सर्वाधिक उल्लेखनीय रूप से चुभाते हुए और अंततः अपने प्रतिद्वंद्वी को नीचे गिरा कर अपने और प्रतिद्वंद्वी के बीच अंतर बनाए रखने का प्रयास करता है। कमज़ोर मुक्कों के प्रति इस निर्भरता के कारण, बाह्य-योद्धा नॉक-आउट के बजाय अंकों के निर्णय द्वारा जीतने की ओर प्रवृत्त होता है, हालांकि कुछ बाह्य-योद्धाओं का नॉक-आउट रिकार्ड उल्लेखनीय है। अक्सर उन्हें मुक्केबाज़ी के सर्वश्रेष्ठ रणनीतिकार भी माना जाता है क्योंकि उनमें लड़ाई की गति को नियंत्रित कर पाने और अपने प्रतिद्वंद्वी का नेतृत्व करने की क्षमता होती है, जिसके द्वारा वे योजनाबद्ध रूप से उसे पराजित कर देते हैं और किसी ब्रॉलर[उद्धरण चाहिए] की तुलना में अधिक कुशलता और योग्यता का परिचय देते हैं। बाह्य-योद्धाओं को पहुंच, हाथों की गति, प्रतिक्रिया और पैरों की गतिविधि की आवश्यकता होती है।
उल्लेखनीय बाह्य-योद्धाओं में मुहम्मद अली, जीन टनी,[18] एज़ार्ड चार्ल्स,[19] विली पेप,[20] मेल्ड्रिक टेलर, लैरी होम्स, रॉय जोन्स जूनियर, शुगर रे लियोनार्ड, ऑस्कर डे ला होया और जो काल्ज़ेग शामिल हैं।
एक मुक्केबाज़-पंचर (Boxer-Puncher) एक पूर्णतः विकसित मुक्केबाज़ होता है, जो तकनीक और शक्ति के संयोजन के साथ कम दूरी पर रहकर लड़ पाने में सक्षम होता है और अक्सर एक संयोजन के द्वारा और कुछ स्थितियों में एक ही मुक्के में अपने प्रतिद्वंद्वी को हरा देता है। उनकी गतिविधि और कौशल एक बाह्य-योद्धा के समान ही होते हैं (हालांकि, सामान्यतः वे बाह्य-योद्धा जितने गतिशील नहीं होते), लेकिन निर्णय के द्वारा जीतने के बजाय वे संयोजनों का प्रयोग अपने प्रतिद्वंद्वी से आगे बढ़ने और एक नॉक-आउट स्कोर प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस शैली का प्रयोग कर पाने के लिये एक मुक्केबाज़ को पूर्णतः विकसित होना चाहिये.
उल्लेखनीय पंचरों में मैनी पक्वेओ, सैम लैंगफोर्ड,[21] हेनरी आर्मस्ट्रांग,[22] जो लुईस,[23] शुगर रे रॉबिन्सन,[24] टोनी ज़ेल, आर्ची मूर, कार्लोस मॉनज़ॉन,[25] एलेक्सिस आर्ग्वेलो, एरिक मोरेल्स, लेन्नॉक्स लेविस, व्लादिमिर क्लित्श्को, टेरी नॉरिस और थॉमस हर्न्स शामिल हैं।
एक ब्रॉलर एक ऐसा खिलाड़ी होता है, जिसमें योग्यता की और रिंग में पैरों की गतिविधि की कमी होती है, लेकिन जो इसकी पूर्ति मुक्के मारने में अपनी प्रवीणता के द्वारा करता है। अनेक ब्रॉलर गतिशीलता को कम रखने का प्रयास करते हैं, कम गतिशील रहने को प्राथमिकता देते हैं, अधिक स्थिर धरातल चाहते हैं और अपने पैरों को तेज़ गति से चलाने वाले खिलाड़ियों का मुकाबला कर पाने में उन्हें कठिनाई महसूस होती है। उनमें संयोजन मुक्केबाज़ी को उपेक्षित करने और इसके बजाय एक हाथ से लगातार मुक्के-मारने तथा कम गति वाले और अधिक शक्तिशाली मुक्के (जैसे हूक और अपर-कट) मारने की प्रवृत्ति भी हो सकती है। उनकी मंद गति और पूर्वानुमेय पैटर्न (स्वाभाविक पहल के साथ एकल मुक्के) के कारण अक्सर उन्हें प्रतिकारक मुक्कों का भी सामना करना पड़ता है, अतः सफल ब्रॉलरों के लिये यह अनिवार्य है कि वे सज़ा को पर्याप्त मात्रा को सह पाने में सक्षम हों. शक्ति और सहनशीलता (सज़ा को सहते हुए मुक्केबाज़ी जारी रख पाने की क्षमता) एक ब्रॉलर की सर्वाधिक महत्वपूर्ण संपत्तियां होती हैं।
उल्लेखनीय ब्रॉलरों में डेविड ट्युआ, रिकी हैटन, स्टैनले केशेल,[26] मैक्स बेयर,[27] जैक लैमोटा, रॉबर्टो ड्युरान, रॉकी ग्रेज़ियानो,[28] सॉनी लिस्टन[29] और जॉर्ज फोरमैन, जुआन उरांगो शामिल हैं।
अंतःयोद्धा/स्वॉर्मर (जिसे कभी-कभी "दबाव योद्धा" भी कहते हैं) अपने प्रतिद्वंद्वी के निकट बने रहने का प्रयास करता है और अचानक तीव्र आक्रमण करते हुए और हूक तथा अपर-कट के संयोजन का प्रयोग करता है। एक सफल अंतःयोद्धा के लिये अक्सर एक अच्छी "ठोढ़ी"की आवश्यकता होती है क्योंकि स्वॉर्मिंग में अपने प्रतिद्वंद्वी के निकट पहुंच पाने, जहां वे अधिक प्रभावी होते हैं, से पूर्व अक्सर अनेक जैब का आक्रमण झेलना पड़ता है। अंतःयोद्धा कम दूरी पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं क्योंकि सामान्यतः वे छोटे कद के होते हैं और प्रतिद्वंद्वी की तुलना में उनकी पहुंच कम होती है और इसलिये वे कम दूरी पर ज्यादा प्रभावी होते हैं, जहां उनके प्रतिद्वंद्वी को अपने लंबे हाथों के कारण मुक्के मारने में कठिनाई होती है। हालांकि कुछ ऐसे खिलाड़ी भी हैं, जिन्होंने अपनी श्रेणी की तुलना में लंबे होते हुए भी अंतःयुद्ध और बाह्य-युद्ध दोनों को अच्छी तरह अपना लिया है। एक स्वॉर्मर का मूल-मंत्र बिना रूके हमला करते रहना है। छोटे कद वाले कई अंतःयोद्धा अपने कद का लाभ उठाते हैं और बॉब-एण्ड-वीव रक्षा का प्रयोग करके अपनी कमर को थोड़ा झुकाकर रखते हुए मुक्कों से नीचे या उनके बगल में हटकर अपना बचाव करते हैं। अवरोध के विपरीत, यदि प्रतिद्वंद्वी के मुक्का व्यर्थ चला जाए, तो इससे उसका ताल-मेल बिगड़ जाता है, जिससे खिलाड़ी को आगे बढ़कर प्रतिद्वंद्वी मुक्केबाज़ की तनी हुई बांह की सीमा के भीतर पहुंच जाने का मौका मिल जाता है और जवाबी हमला करने के लिये उसके हाथ खुले हुए होते हैं। अंतःयोद्धाओं को मिलनेवाला एक विशिष्ट लाभ अपरकट मारते समय मिलता है, जिसमें वे मुक्के के साथ अपने पूरे शरीर का भार लगा सकते हैं; माइक टाइसन विध्वंसक अपरकट के लिये प्रसिद्ध थे। कुछ अंतःयोद्धा अपने कठोर वार के लिये कुख्यात रहे हैं। आक्रमकता, धैर्य, सहनशीलता और बॉबिंग-एण्ड-वीविंग एक स्वॉर्मर के लिये सबसे महत्वपूर्ण हैं।
उल्लेखनीय अंतःयोद्धाओं में माइक टाइसन, हैरी ग्रेब,[30] जैक डेम्प्सी,[31] रॉकी मार्सियानो,[32] जो फ्रेज़ियर, जेक लामोटा और जुलियो सीज़र शावेज़ शामिल हैं।
प्रत्युत्तरकारी मुक्केबाज़ अनिश्चित, रक्षात्मक शैली वाले खिलाड़ी होते हैं, जो अक्सर लाभ प्राप्त करने, चाहे वह स्कोर कार्ड पर हो या अधिक बेहतर रूप से एक नॉक-आउट, के लिये अपने प्रतिद्वंद्वी की गलतियों पर निर्भर होते हैं। वे हमलों से बचने के लिये अपनी पूर्ण विकसित प्रतिरक्षा का प्रयोग करते हैं और फिर सही समय पर एक सटीक मुक्का मार कर अपने प्रतिद्वंद्वी को तुरंत परास्त कर देते हैं। इस प्रकार, प्रत्युत्तरकारी मुक्केबाज़ के खिलाफ लड़ने के लिये सतत छल करने और कभी भी अपने मुक्के का अनुमान न लगाने देने की आवश्यकता होती है, ताकि प्रत्युत्तरकारी मुक्केबाज़ एक अच्छा आक्रमण न कर सके। इस शैली का प्रयोग करके सफल होने के लिये उनमें अच्छी प्रतिक्रिया, बुद्धि, मुक्के की अचूकता और हाथों की अच्छी गति होना अनिवार्य होता है।
उल्लेखनीय प्रत्युत्तरकारी मुक्केबाज़ों में फ़्लायड मेवेदर, जूनियर, जेरी क्वेरी, रिकार्डो लोपेज़, बर्नार्ड हॉप्किन्स, विताली क्लित्श्को, जेम्स टोनी, मार्विन हैग्लर, इवेंडर होलीफील्ड, जुआन मैन्युएल मार्क्वेज़ और पर्नेल व्हाइटेकर शामिल हैं।
अन्य शैलियों के विरुद्ध इनमें से प्रत्येक मुक्केबाज़ी शैली से मिलने वाले लाभ के बारे में एक सामान्यतः स्वीकृत नियम है। सामान्य रूप से, एक अंतः योद्धा को एक बाह्य-योद्धा की तुलना में अधिक लाभ होता है, एक बाह्य-योद्धा एक पंचर से अधिक फायदे में रहता है और एक पंचर को एक अंतःयोद्धा से अधिक लाभ मिलता है; इस प्रकार प्रत्येक शैली एक शैली की तुलना में मज़बूत और दूसरी शैली की तुलना में कमज़ोर होने के कारण एक प्रकार का चक्र बन जाता है और रॉक-पेपर-सिज़र्स के खेल की तरह इसमें कोई भी किसी दूसरे पर हावी नहीं होता. स्वाभाविक रूप से, अनेक अन्य कारक, जैसे कुशलता का स्तर और खिलाड़ियों का प्रशिक्षण, मुकाबले के परिणाम का निर्धारण करते हैं, लेकिन मुक्केबाज़ी के प्रशंसकों और लेखकों के मन में शैलियों के बीच संबंध को लेकर व्यापक तौर पर स्वीकृत यह विश्वास इस कहावत में सम्मिलित है कि "शैली से ही लड़ाई में जीत मिलती है (styles make fights)."
ब्रॉलर स्वॉर्मरों या अंतःयोद्धाओं पर हावी होने का प्रयास करते हैं क्योंकि स्लगर के निकट आने का प्रयास करने पर, अंतः योद्धा को निरपवाद रूप से बहुत अधिक कठोरतापूर्वक आक्रमण कर रहे ब्रॉलर की बंदूक का सामना करना पड़ेगा, अतः, जब तक अंतःयोद्धा में बहुत अधिक सहनशीलता न हो और ब्रॉलर की शक्ति बहुत कमज़ोर न हो, तब तक ब्रॉलर की मज़बूत शक्ति ही विजयी होगी. जो फ्रेज़ियर के खिलाफ जॉर्ज फोरमैन की नॉक-आउट जीत इस प्रकार के मिलान के लाभ का एक प्रसिद्ध उदाहरण है।
हालांकि अंतः योद्धा भारी स्लगरों के खिलाफ संघर्ष करते हैं, लेकिन विशिष्ट रूप से उन्हें बाह्य-योद्धाओं अथवा मुक्केबाज़ों के खिलाफ अधिक सफलता का आनंद मिलता है। बाह्य-योद्धा एक धीमी लड़ाई पसंद करते हैं, जिसमें उनके और प्रतिद्वंद्वी के बीच कुछ अंतर हो। अंतःयोद्धा इस अंतर को पाटने और उग्र आक्रमणों को उजागर करने का प्रयास करते हैं। भीतरी भाग में, बाह्य-योद्धा अपनी लड़ने की प्रभावकारिता का बहुत सारा भाग खो देता है क्योंकि वह कठोर मुक्के मार पाने में सक्षम नहीं होता. सामान्यतः इस स्थिति में अंतःयोद्धा सफल रहता है क्योंकि अपने प्रतिद्वंद्वी पर लाभ की तीव्रता और अच्छी दक्षता के कारण उसे हरा पाना कठिन हो जाता है। उदाहरणार्थ, स्लगर जॉर्ज फोरमैन द्वारा सरलता से पराजित कर दिया गया स्वॉर्मर जो फ्रेज़ियर मुक्केबाज़ मुहम्मद अली के साथ हुए अपने तीन मुकाबलों में उसके लिये अनेक अन्य समस्याएं खड़ी कर पाने में सक्षम रहा था। सन्यास के बाद जो लुईस ने यह स्वीकार किया कि उन्हें घिर जाने से नफरत थी और मुक्त/अपराजित विजेता रॉकी मार्सियानो जैसे स्वॉर्मर लुइस के सर्वश्रेष्ठ दौर में भी उनके लिये शैली की समस्या उत्पन्न कर पाने में सक्षम हुए होते.
मुक्केबाज़ या बाह्य-योद्धा एक ब्रॉलर, जिसकी धीमी गति (दोनों हाथ और दोनों पैर) तथा कमज़ोर तकनीक उसे तेज़ बाह्य-योद्धा के आक्रमण का एक सरल लक्ष्य बनाती है, के विपरीत सर्वाधिक सफल रहते हैं। बाह्य-योद्धा की मुख्य चिंता सजग बने रहना होती है क्योंकि ब्रॉलर को अपना खेल पूरा करने के लिये केवल एक अच्छा मुक्का मारने की ज़रूरत होती है। यदि बाह्य-योद्धा उन शक्तिशाली मुक्कों से बच सके, तो वह अक्सर अपने तीव्र मुक्कों के द्वारा ब्रॉलर को थकाकर उसे हरा सकता है। यदि वह पर्याप्त रूप से सफल हो, तो बाद के चक्रों में अतिरिक्त दबाव डालकर वह एक नॉक-आउट हासिल करने का प्रयास भी कर सकता है। मुहम्मद अली जैसे अधिकांश पारंपरिक मुक्केबाज़ों ने स्लगरों के विरूद्ध ही अपनी सर्वश्रेष्ठ सफलताओं का आनंद लिया था।
मेल्ड्रिक टेलर, मुक्केबाज़ या बाह्य-योद्धा, के खिलाफ जुलियो सीज़र शावेज़, एक स्वॉर्मर या अंतःयोद्धा, के बीच ऐतिहासिक मुकाबला शैली मिलान का एक उदाहरण है (शावेज़ बनाम टेलर देखें). शावेज़ की ज़बरदस्त मुक्केबाज़ी क्षमता और टेलर की अंधाधुंध गति के एक संकेत के रूप में इस मुकाबले को "थण्डर मीट्स लाइटनिंग" की संज्ञा दी गई थी। शावेज़ मुक्केबाज़ी की "मैक्सिकन" शैली के प्रतीक थे। वे लगातार पीछा करते रहते थे और दूसरे खिलाड़ी की सीमा में आगे बढ़ते रहते थे, भले ही उन्हें निकट दूरी पर आने के कारण कितनी ही सज़ा भुगतनी पड़े, जिसके बाद वे अपने प्रतिद्वंद्वी को सज़ा दिया करते थे, जो या तो शरीर पर एक भयंकर आक्रमण के रूप में होता था, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिद्वंद्वी या तो दर्द और थकान के कारण गिर जाता था या अत्यधिक थकान के कारण अपना बचाव कर पाने में असमर्थ हो जाता है और तब शावेज़ उसके सिर पर हमला करके उसे एक नॉक-आउट के द्वारा परास्त कर देते थे। लड़ाई के दौरान, टेलर के हाथों और पैरों की शानदार गति और उनकी मुक्केबाज़ी की क्षमताओं से उन्हें शुरुआती लाभ मिला, जिससे उन्होंने अंकों की एक बड़ी बढ़त बनानी शुरू कर दी, लेकिन अंत में शावेज़ की सज़ा ने टेलर को परास्त कर दिया और अंतिम चरण में दायें हाथ से मारे गये एक भीषण घूंसे ने उन्हें नॉक-डाउन कर दिया, जिससे उनकी हार हो गई।
चूंकि मुक्केबाज़ी में शक्ति के साथ लगातार मुक्के मारना शामिल होता है, अतः हाथों की हड्डियों में होने वाली क्षति से बचाव के लिये सावधानियां बरतना अनिवार्य है। अधिकांश प्रशिक्षक मुक्केबाज़ों को हाथों/कलाई के आवरणों और मुक्केबाज़ी के दस्तानों को पहने बिना प्रशिक्षण लेने और अभ्यास करने की अनुमति नहीं देते. हाथों के आवरणों का प्रयोग हाथों की हड्डियों की सुरक्षा के लिये किया जाता है और दस्तानों का प्रयोग हाथों को किसी घातक चोट से बचाने के लिये किया जाता है, जिससे मुक्केबाज़ों को उसकी तुलना में अधिक बल के साथ मुक्के मारने का मौका मिलता, जितना कि वे इनका प्रयोग किये बिना मार सके होते. उन्नीसवीं सदी के अंतिम भाग से ही दस्ताने प्रतिस्पर्धा के लिये आवश्यक रहे हैं, हालांकि मुक्केबाज़ी के आधुनिक दस्ताने बीसवीं-सदी के प्रारंभिक दौर के खिलाड़ियों द्वारा पहने जाने वाले दस्तानों से बहुत अधिक भारी होते हैं। मुक्केबाज़ी के मुकाबले से पूर्व, दोनों मुक्केबाज़ मुकाबले में प्रयोग किये जाने वाले दस्तानों के भार पर आपसी सहमति बना लेते हैं, इस समझ के साथ कि हल्के दस्ताने भारी मुक्केबाज़ों को अधिक क्षति पहुंचाते हैं। दस्तानों का ब्रांड भी मुक्कों के असर को प्रभावित कर सकता है, अतः मुकाबले से पूर्व अक्सर इस पर भी सहमति बनाई जाती है। दातों व मसूड़ों को चोट से बचाने के लिये और ठोढ़ी का बचाव करने के लिये एक मुख-रक्षक भी आवश्यक होता है, जिससे नॉक-आउट की संभावना कम हो जाती है।
मुक्केबाज़ दो बुनियादी प्रकार की पंचिंग बैग पर अपने कौशल का अभ्यास करते हैं। प्रतिक्रियाओं और दोहरावपूर्ण ढंग से मुक्के मारने के कौशल को पैना करने के लिये एक छोटी, आंसू की बूंद के आकार की "स्पीड बैग" का प्रयोग किया जाता है, जबकि शक्तिशाली ढंग से मुक्के मारने और शरीर पर होने वाले भीषण प्रहारों का अभ्यास करने के लिये एक बड़ी बेलनाकार "हैवी बैग" का प्रयोग किया जाता है, जो रेत, एक संश्लेषित पदार्थ अथवा जल से भरी हुई होती है। उपकरणों की इन विशिष्ट सामग्रियों के अतिरिक्त, मुक्केबाज़ अपनी शक्ति, गति और धैर्य को बढ़ाने के लिये अधिक सामान्य प्रशिक्षण उपकरणों का प्रयोग भी करते हैं। सामान्य प्रशिक्षण उपकरणों में फ्री वेट्स, रोविंग मशीन, जंप रोप और मेडिसिन बॉल्स शामिल हैं।
आधुनिक मुक्केबाज़ी की मुद्रा उन्नीसवीं सदी और बीसवीं की सदी के प्रारंभिक दौर की विशिष्ट मुक्केबाज़ी मुद्राओं से बहुत अधिक भिन्न है। आधुनिक मुद्रा में हाथों की रक्षा के लिये एक ज्यादा ऊर्ध्व गार्ड होता है, जबकि बीसवीं सदी के प्रारंभिक दौर के हूक प्रयोक्ताओं, जैसे जैक जॉन्सन, द्वारा अपनाया गया गार्ड अधिक क्षैतिज होता था, जिसमें अंगुलियों के जोड़ सामने की ओर हुआ करते थे।
एक पूर्णतः खड़ी मुद्रा में, मुक्केबाज़ पैरों को अपने दोनों कंधों के बराबर की दूरी पर रखकर खड़ा होता है और पिछला पैर अगले पैर से आधा-कदम पीछे रखा जाता है। दाहिनी हाथ से लड़नेवाला या रुढ़िवादी मुक्केबाज़ अपने बायें पैर और बायीं मुट्ठी को आगे रखता है। दोनों पैर समानांतर होते हैं और दाहिनी एड़ी ज़मीन से ऊपर उठी हुई होती है। अगली (बायीं) मुट्ठी आंखों की सीध में चेहरे के सामने लगभग छः इंच की दूरी पर ऊर्ध्व रूप से स्थित होती है। पिछली (दाहिनी) मुट्ठी को ठोढ़ी की बगल में रखा जाता है और कोहनी पसलियों के ढांचे के सामने होती है, ताकि शरीर की रक्षा की जा सके। ठोढ़ी को सीने की ओर झुकाकर रखा जाता है, ताकि जबड़े पर पड़ने वाले मुक्कों से बचा जा सके, जो अक्सर नॉक-आउट का कारण बनते हैं और ठोढ़ी अक्सर केंद्र से थोड़ी दूर होती है। कलाइयां थोड़ी झुकी हुई होती हैं, ताकि मुक्के मारते समय होने वाली किसी संभावित क्षति से बचा जा सके और पसलियों की सुरक्षा के लिये कोहनियों को दबाकर रखा जाता है। कुछ मुक्केबाज़ आगे की ओर थोड़ा झुककर दुबकने की मुद्रा में लड़ते हैं और अपने पैर पास-पास रखते हैं। यहां वर्णित मुद्रा को "टेक्स्टबुक" मुद्रा माना जाता है और खिलाड़ियों को इस बात के लिये प्रोत्साहित किया जाता है कि एक बार इसमें महारत हासिल कर लेने पर इसे आधार मानकर वे इसमें बदलाव करते रहें. इसी बिंदु का ध्यान रखते हुए, कुछ तेज़ मुक्केबाज़ अपने हाथों को नीचे रखते हैं और उनके पैर लगभग अतिशयोक्तिपूर्ण मुद्रा में होते हैं, जबकि ब्रॉलर अथवा बुली मुक्केबाज़ धीमी गति से अपने प्रतिद्वंद्वियों का सामना करने का प्रयास करते है।
बायें हाथ वाले या साउथपॉ (Southpaw) खिलाड़ी रुढ़िवादी मुद्रा की प्रतिबिंब मुद्रा का प्रयोग करते हैं, जिससे रुढ़िवादी खिलाड़ियों के सामने समस्य उत्पन्न हो सकती है, जो विपरीत दिशा से हमले, हूक अथवा क्रॉस झेलने के अभ्यस्त नहीं होते. इसके विपरीत यह साउथपॉ मुद्रा, सीधे दाहिने हाथ के खिलाफ कमज़ोर साबित होती है।
उत्तरी अमरीकी खिलाड़ी एक अधिक संतुलित मुद्रा को पसंद करते हैं, जिसमें वे लगभग वर्गाकार रूप से प्रतिद्वंद्वी के सामने खड़े होकर उसका मुकाबला करते हैं, जबकि अनेक यूरोपीय खिलाड़ियों की मुद्रा इस प्रकार की होती है कि उनका धड़ बगल में अधिक मुड़ा हुआ होता है। हाथों की स्थिति में भी अंतर हो सकता है क्योंकि कुछ खिलाड़ी दोनों हाथों को चेहरे के सामने उठाकर रखना पसंद करते हैं, जिससे शरीर पर होने वाले प्रहारों का खतरा बढ़ जाता है।
कभी-कभी आधुनिक मुक्केबाज़ों को अपने गालों या माथे को अपनी मुट्ठियों से थपथपाते हुए देखा जा सकता है, जिसके द्वारा वे स्वयं को याद दिलाते हैं कि उन्हें अपने हाथ ऊपर रखने हैं (जो कि लंबे मुकाबलों के दौरान कठिन हो जाता है). मुक्केबाज़ों को अपने पैरों को गतिशील बनाए रखने का प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे प्रभावी रूप से अपनी चाल चल सकें. अग्र-गमन में सामने वाले पैर को उठाना और पिछले पैर से आगे बढ़ना शामिल होता है। पश्च-गमन में पिछले पैर को उठाना और अगले पैर से पीछे की ओर बढ़ना शामिल होता है। पार्श्विक गति के दौरान गति की दिशा में स्थित पैर पहले बढ़ता है, जबकि विपरीत दिशा में स्थित पैर शरीर को हिलाने के आवश्यक बल प्रदान करता है।
मुक्केबाज़ी में घूंसे मूलतः चार प्रकार के होते हैं: जैब, सीधा दाहिना/बायां हाथ, हूक और अपरकट. यदि कोई मुक्केबाज़ दाहिने हाथ से खेलता है (रुढ़िवादी), तो उसका बांया हाथ अगला हाथ और दाहिना हाथ पिछला हाथ होता है। एक बायें हाथ वाले मुक्केबाज़ या साउथपॉ के लिये, हाथों की यह स्थिति उल्टी हो जाती है। स्पष्टता के लिये, निम्नलिखित चर्चा एक दाहिने हाथ के मुक्केबाज़ पर विचार करती है।
मुक्कों के ये विभिन्न प्रकार अनेक संयोजनों या "कॉम्बो" का निर्माण करने के लिये तीव्र अनुक्रम में प्रयोग किये जा सकते हैं। जैब और क्रॉस का संयोजन सबसे आम है, जिसे "वन-टू कॉम्बो" का नाम दिया गया है। यह सामान्यतः एक प्रभावी संयोजन होता है क्योंकि जैब के कारण प्रतिद्वंद्वी क्रॉस को देख नहीं पाता, जिससे इसका प्रयोग अधिक सफाई और बल के साथ कर पाना सरल हो जाता है।
मुर्गे जैसी पीठ वाली स्थिति से शुरु होने वाला एक बड़ा, झूलता हुआ वृत्ताकार घूंसा, जिसमें हाथ हूक की तुलना में अधिक लंबी दूरी तक विस्तारित होता है और इसके पीछे खिलाड़ी का सारी शक्ति लगी होती है, कभी-कभी एक "राउंडहाउस", "हेमेकर" या सकर-पंच भी कहलाता है। शरीर के भार और एक व्यापक चाप के भीतर केन्द्राभिसारी बल के आधार पर, राउंडहाउस एक शक्तिशाली प्रहार हो सकता है, लेकिन यह अक्सर जंगली और अनियंत्रित घूंसा होता है, जिसे मारने वाला खिलाड़ी इसके बाद अपना संतुलन खो देता है और उसका रक्षा-कवच खुल जाता है। चौड़े, चक्रीय घूंसों की एक अन्य कमी यह है कि उन्हें मारने में समय भी अधिक लगता है, जिससे प्रतिद्वंद्वी को प्रतिक्रिया करने व प्रत्युत्तर देने के लिये पर्याप्त चेतावनी मिल जाती है। इस कारण, हेमेकर या राउंडहाउस एक पारंपरिक घूंसा नहीं है और प्रशिक्षक इसे कमज़ोर तकनीक या हताशा का प्रतीक मानते हैं। इसकी अत्यधिक संभावित शक्ति के कारण कभी-कभी इसका प्रयोग किसी ऐसे प्रतिद्वंद्वी का खेल समाप्त करने के लिये किया जाता रहा है, जो पहले से ही लड़खड़ा रहा हो और उसके द्वारा उस कमज़ोर स्थिति का लाभ उठाए जाने की संभावना अथवा क्षमता न दिखाई दे रही हो, जिसमें यह घूंसा इसका प्रयोग करने वाले को ले आता है।
दुर्लभ अवसरों पर प्रयोग किया जाने वाला एक अन्य अपरंपरागत घूंसा "बोलो पंच (bolo punch)" है, जिसमें प्रतिद्वंद्वी अपने एक हाथ को एक चौड़े चाप में कई बार झुलाता है, सामान्यतः ध्यान बंटाने के लिये और इसके बाद उसी हाथ से या दूसरे हाथ से घूंसा मारता है।
एक मुक्केबाज़ मुक्कों से बचने या उन्हें रोकने के लिये अनेक बुनियादी चालों का प्रयोग कर सकता है, जिन्हें नीचे प्रदर्शित व वर्णित किया गया है।
अनेक रक्षात्मक स्थितियां (रक्षक या शैलियां) हैं, जिनका प्रयोग मुक्केबाज़ी में किया जाता है। प्रत्येक शैली के भीतर, मुक्केबाज़ों के बीच पर्याप्त विविधता होती है क्योंकि कुछ मुक्केबाज़ अपने सिर का बचाव करने के लिये रक्षक को ऊंचाई पर रख सकते हैं, जबकि अन्य मुक्केबाज़ शरीर पर आने वाले घूंसों से बचाव के लिये अपने रक्षक को नीचे रख सकते हैं। अनेक खिलाड़ी पूरे मुकाबले के दौरान अपनी रक्षात्मक शैली को बदलते रहते हैं, ताकि उस पल की स्थिति के अनुसार अपना बचाव करने के लिये सर्वाधिक उपयुक्त अवस्था का चयन किया जा सके।
एक सीधी खड़ी मुद्रा का प्रयोग करने वाले मुक्केबाज़ अपनी ठोढ़ी का बचाव पिछले हाथ के द्वारा एक निचली या मिश्रित रक्षक शैली में करते हैं, जो कि नीचे प्रदर्शित है। दुबकने की मुद्रा में लड़ने वाले खिलाड़ी सामान्यतः "पीक-अ-बू (Peek-a-boo)" शैली का प्रयोग करते हैं, जिसकी चर्चा नीचे की गई है।
सामान्यतः मुक्केबाज़ उच्च, तीव्र संयोजनों का प्रयोग करने और उसके बाद तुरंत अपनी स्थिति बदल लेने का प्रयास करते हैं, ताकि प्रतिद्वंद्वी की ओर से होने वाली किसी भी संभावित प्रतिक्रिया से बचा जा सके। रणनीतिक रूप से, सामान्यतः इस चक्र के केंद्र में रहना वांछित होता है क्योंकि ऐसा होने पर मुक्केबाज़ अपने प्रतिद्वंद्वी को उनके चारों ओर स्थित वृत्त पर जाने पर बाध्य करके गतिविधि को उलट पाने में सक्षम हो जाता है। यदि मुक्केबाज़ केंद्र में हो, तो उसे पीछे की ओर धकेल कर रिंग को चारों ओर से घेर कर रखनेवाली रस्सियों पर गिराये जाने और उस पर अधिकार कर लिये जाने की संभावना भी कम हो जाती है। मुक्केबाज़ की शैली के आधार पर, केंद्रीय स्थिति वांछित होती है क्योंकि प्रतिद्वंद्वी पर अधिकार कर लेना सदैव ही एक अच्छी रणनीति है। हालांकि, अधिकांश खिलाड़ी केंद्र में स्थित मुक्केबाज़ के आस-पास नहीं घूमेंगे क्योंकि ऐसा करने पर वे अच्छे कोणों पर किये गये प्रहारों के प्रति असुरक्षित हो जाते हैं। गतिशीलता ही रिंग में सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है और यह खिलाड़ी को उन मुक्कों से बचने का मौका देती है, जिनका अनुमान नहीं किया गया था। यदि कोई मुक्केबाज़ स्थिर खड़ा है, तो उसके प्रतिद्वंद्वी के पास उस पर प्रहार करने का एक बेहतर मौका होता है। स्थिर रहकर किसी प्रहार का पूर्वानुमान कर रहे खिलाड़ी के बच पाने की संभावना गतिशील खिलाड़ी की तुलना में कम होती है।
फ्लाएड मेवेदर जूनियर ने रिकी हैटन के खिलाफ एक चेक हूक का प्रयोग किया था, जिसके परिणामस्वरूप पहले हैटन का सिर कोने पर स्थित खंबे से टकराया और फिर उन्हें नॉकडाउन कर दिया गया। नॉकडाउन के बाद भी हैटन पुनः अपने पैरों पर खड़े हो पाने में सफल रहे, लेकिन स्पष्ट रूप से वे स्तब्ध दिखाई दे रहे थे और कुछ ही क्षणों बाद मेवेदर ने मुक्कों की झड़ी लगा दी, जिसके कारण हैटन कैनवास पर गिर पड़े और मेवेदर को दसवें चक्र में एक टी के ओ (TKO) जीत तथा हैटन को उनकी आज तक की पहली हार मिली।
मुक्केबाज़ी में, प्रत्येक खिलाड़ी को रिंग में एक कोना दिया जाता है, जहां वह चक्रों के बीच विश्राम करता है और जहां प्रशिक्षक खड़े रहते हैं। विशिष्ट रूप से, कोने में स्वतः मुक्केबाज़ के अतिरिक्त तीन लोग खड़े रहते हैं; ये हैं, प्रशिक्षक, सहायक प्रशिक्षक तथा कटमैन. सामान्यतः प्रशिक्षक व सहायक मुक्केबाज़ को इस बारे में सलाह देते हैं कि वह कहां गलती कर रहा है और यदि वह हार रहा हो, तो उसका हौसला बढ़ाते हैं। कटमैन एक त्वचा-चिकित्सक होता है, जिसकी ज़िम्मेदारी मुक्केबाज़ के चेहरे और आंखों को घावों और खून से मुक्त रखने की होती है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि अनेक मुकाबले ऐसे घावों के कारण रोक दिये जाते हैं, जिनसे मुक्केबाज़ की आंखों पर आघात होने का भय हो।
इसके अतिरिक्त, यदि कोने में खड़े लोग यह महसूस करें कि उनके खिलाड़ी पर किसी स्थायी चोट का गंभीर खतरा है, तब भी खेल को रुकवाना उनकी ज़िम्मेदारी होती है। कभी-कभी कोने में खड़े लोग एक सफेद तौलिया भी फेकेंगे, जो एक मुक्केबाज़ के आत्म-समर्पण को सूचित करता है (मुहावरेदार वाक्यांश "तौलिया फेंकना", जिसका अर्थ हार मान लेना होता है, इसी विधि से बना है).[33] इसे डियेगो कॉरेल्स और फ्लायड मेवेदर के बीच हुई लड़ाई में देखा जा सकता है। उस लड़ाई में, कॉरेल्स के कोने में खड़े लोगों ने कॉरेल्स के दृढ़ इंकार के बावजूद आत्म-समर्पण कर दिया था।
किसी व्यक्ति को मुक्का मारकर बेहोश कर देने या यहां तक कि कम गंभीर आघात लगाने पर भी स्थायी रूप से मस्तिष्क को क्षति पहुंच सकती है।[34] इस बात का कोई स्पष्ट विभाजन नहीं है कि किसी व्यक्ति को गिराने के लिये कितने बल की आवश्यकता है और कितना बल लगाने पर किसी व्यक्ति की मौत हो सकती है। 1980 से, रिंग के भीतर या प्रशिक्षण के दौरान लगी चोटों के कारण 200 से अधिक शौकिया और व्यावसायिक मुक्केबाज़ और टफमैन खिलाड़ियों की मौत हो चुकी है।[35] अतः 1983 में जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसियेशन (Journal of the American Medical Association) ने मुक्केबाज़ी को प्रतिबंधित करने की मांग की थी। इसके संपादक डॉक्टर जॉर्ज लुंडबर्ग ने मुक्केबाज़ी को एक "फूहड़ता" क़रार दिया, "जिसे किसी भी सभ्य समाज द्वारा स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए."[36] तभी से, ब्रिटिश,[37] कनाडाई[38] और ऑस्ट्रेलियाई[39] मेडिकल एसोसियेशन भी मुक्केबाज़ी को प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं।
इस प्रतिबंध के समर्थकों का तर्क है कि मुक्केबाज़ी ही एक मात्र ऐसा खेल है, जिसका लक्ष्य ही दूसरे खिलाड़ी को हानि पहुंचाना है। ब्रिटिश मेडिकल एसोसियेशन (British Medical Association) के मुक्केबाज़ी प्रवक्ता डॉक्टर बिल ओ' नील ने मुक्केबाज़ी पर बी एम ए (BMA) के प्रस्तावित प्रतिबंध का समर्थन किया है: "यह अकेला ऐसा खेल है, जिसका लक्ष्य आपके प्रतिद्वंद्वी को गंभीर चोट पहुंचाना होता है और हम यह महसूस करते हैं कि हमें अवश्य ही मुक्केबाज़ी को पूर्ण-रूप से प्रतिबंधित कर देना चाहिए."[40] 2007 में, शौकिया मुक्केबाज़ों पर किये गये एक अध्ययन ने दर्शाया कि सिर पर पहने जाने वाले रक्षात्मक कवच ने मस्तिष्क को होने वाली क्षति से रक्षा नहीं की,[41] और एक अन्य अध्ययन ने पाया कि शौकिया मुक्केबाज़ों में मस्तिष्क की क्षति का अत्यधिक खतरा था।[42]
1997 में, मुक्केबाज़ी में होने वाली चोटों को रोकने के लिये अनुसंधान तथा शिक्षा के माध्यम से चिकित्सीय प्रोटोकॉल निर्मित करने के लिये अमेरिकन एसोसियेशन ऑफ प्रोफेशनल रिंगसाइड फिजिशियन्स (American Association of Professional Ringside Physicians) की स्थापना की गई।[43][44]
नॉर्वे, आइसलैण्ड, क्यूबा, इरान और उत्तरी कोरिया में व्यावसायिक मुक्केबज़ी प्रतिबंधित है। अभी हाल[कब?] तक यह स्वीडन में प्रतिबंधित थी, जब प्रतिबंध तो हटा लिया गया, लेकिन कड़ी शर्तें, जिनमें मुकाबलों के लिये तीन-मिनट के चार चक्र रखने सहित, लाद दी गईं[तथ्य वांछित].
मुक्केबाज़ी के खेल के दो अंतर्राष्ट्रीय तौर पर स्वीकृत बॉक्सिंग हॉल ऑफ फेम हैं; इंटरनैशनल बॉक्सिंग हॉल ऑफ फेम (International Boxing Hall of Fame) (आईबीएचओएफ) (IBHOF) और वर्ल्ड बॉक्सिंग हॉल ऑफ फेम (World Boxing Hall of Fame) (डब्ल्यूबीएचएफ़) (WBHF), जिनमें से आई ओ बी एच एफ (IOBHF) अधिक व्यापक रूप से मान्य बॉक्सिंग हॉल ऑफ फेम है।
डब्ल्यू बी एच एफ (WBHF) की स्थापना 1980 में एवरेट एल. सैण्डर्स के द्वारा की गई थी। अपने जन्म से ही डब्ल्यू बी एच एफ (WBHF) का कभी भी कोई स्थायी कार्यालय या संग्रहालय नहीं रहा है, जिसके कारण अधिक हालिया आई बी एच हो एफ (IBHOF) को ज्यादा लोकप्रियता और सम्मान प्राप्त करने का मौका मिला है। डब्ल्यू बी एच एफ (WBHF) के उल्लेखनीय नामों में रिकार्डो "फिनिटो" लोपेज़, गैब्रियल "फ्लैश" एलोरेड, माइकल कार्बाजल, खाओसाई गैलेक्सी, हेनरी आर्मस्ट्रॉन्ग, जैक जॉनसन, रॉबर्टो ड्युरान, जॉर्ज फोरमैन, कैफेरिनो गार्शिया और सैल्वाडोर सांचेज़ शामिल हैं। मुक्केबाज़ी का अंतर्राष्ट्रीय हॉल ऑफ फेम 1982 में एक अमरीकी कस्बे द्वारा दो स्थानीय नायकों के लिये आयोजित एक सम्मान समारोह से प्रेरित था। यह नगर, कैनेस्टोटा, न्यूयॉर्क (जो न्यूयॉर्क स्टेट थ्रूवे से हो्कर सिरेक्यूज़ के पूर्व में लगभग 15 मील (24 कि॰मी॰) की दूरी पर स्थित है), ने वेल्टरवेट/मिडिलवेट के पूर्व विश्व-विजेता कार्मेन बैसिलियो और उनके भतीजे, पूर्व विश्व हेवीवेट विजेता बिली बैक्कस को सम्मानित किया। कैनेस्टोटा के लोगों ने इस सम्मान समारोह के लिये धन एकत्र किया, जिससे उल्लेखनीय मुक्केबाज़ों के लिये एक आधिकारिक, वार्षिक हॉल ऑफ फेम बनाने के विचार की प्रेरणा मिली।
1989 में कैनेस्टोटा में इंटरनैशनल बॉक्सिंग हॉल ऑफ फेम का उदघाटन हुआ। 1990 में इसमें शामिल होने वाले सबसे पहले मुक्केबाज़ों में जैक जॉन्सन, बेनी लियोनार्ड, जैक डेम्पसी, हेनरी आर्मस्ट्रॉन्ग, शुगर रे रॉबिन्सन, आर्ची मूर और मुहम्मद अली शामिल थे। विश्व-स्तर की अन्य शख्सियतों में रॉबर्टो "मैनोस डे पीड्रा" ड्युरान, रिकार्डो लोपेज़, गैब्रियल "फ्लैश" एलॉर्ड, वाइसेंटे साल्दिवर, इस्माएल लैग्युना, युस्बियो पेड्रोज़ा, कार्लोस मॉन्ज़ॉन, अज़ुमाह नेल्सन, रॉकी मार्सियानो, पाइपिनो क्युवास और केन बुकानन शामिल हैं। प्रतिवर्ष जून में चार-दिनों के एक आयोजन के भाग के रूप में हॉल ऑफ फेम में प्रवेश का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
प्रवेश सप्ताहांत के लिये कैनेस्टोटा आने वाले प्रशंसकों के लिये अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जिनमें हस्ताक्षर सत्र, मुक्केबाज़ी के प्रदर्शन, पूर्व तथा वर्तमान प्रवेशधारियों को प्रदर्शित करने वाली एक परेड और स्वतः प्रवेश आयोजन शामिल हैं।
संचालन निकाय | वेबसाइट |
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ब्रिटिश बॉक्सिंग बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल (British Boxing Board of Control) (बीबीबीऑफसी) (BBBofC) | https://web.archive.org/web/20100815010940/http://www.bbbofc.com/ |
नेवादा स्टेट एथलेटिक कमीशन (Nevada State Athletic Commission) | https://web.archive.org/web/20110612063553/http://boxing.nv.gov/ |
अमेरिकन एसोसियेशन ऑफ प्रोफेशनल रिंगसाइड फिज़िशियन्स (Amrican Association of Professional Ringside Physicians)(एएपीआरपी) (AAPRP) | https://web.archive.org/web/20100211135806/http://www.aaprp.org/ |
यूरोपियन बॉक्सिंग यूनियन | https://web.archive.org/web/20100210224858/http://www.boxebu.com/ |
अनुमोदन संस्था | वेबसाइट |
वर्ल्ड बॉक्सिंग एसोसियेशन (World Boxing Association) (डब्ल्यू.बी.ए.) (W.B.A.) | https://web.archive.org/web/20160313025600/http://www.wbaonline.com/ |
वर्ल्ड बॉक्सिंग काउंसिल (world Boxing Council) (डब्ल्यू.बी.सी.) (W.B.C.) | https://web.archive.org/web/20130207073522/http://wbcboxing.com/ |
इंटरनैशनल बॉक्सिंग फेडरेशन (International Boxing Federation)(आई.बी.एफ़.) (I.B.F.) | https://web.archive.org/web/20130116074300/http://ibf-usba-boxing.com/ |
वर्ल्ड बॉक्सिंग ओर्गनाइज़ेशन (World Boxing Organization)(डब्ल्यू.बी.ओ.) (W.B.O.) | https://web.archive.org/web/19991002054847/http://www.wbo-int.com/ |
वर्ल्ड प्रोफेशनल बॉक्सिंग फेडरेशन (World Professional Boxing Federation)(डब्ल्यू.पी.बी.एफ़.) (W.P.B.F.) | https://web.archive.org/web/20130727120006/http://www.wpbf-usbc.org/ |
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