Loading AI tools
तिब्बत के योगी विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
मिलारेपा (तिब्बती: རྗེ་བཙུན་མི་ལ་རས་པ, Wylie: rje btsun mi la ras pa) (1052 ई. – 1135 ई.) तिब्बत के सबसे प्रसिद्ध योगियों तथा कवियों में से एक थे। यह युवा जीवन में हत्यारे जाने गए, जो बाद में बदल गए और बौद्ध धर्म के अनुयायी बने। यह मार्पा लोत्सावा के शिष्य बने और कग्यु संप्रदाय के महान व्यक्तियों में जाने गए। इन्होंने कैलास पर्वत को भी पार किया था।
बौद्ध धर्म |
बौद्ध धर्म का इतिहास · बौद्ध धर्म का कालक्रम · बौद्ध संस्कृति |
बुनियादी मनोभाव |
चार आर्य सत्य · आर्य अष्टांग मार्ग · निर्वाण · त्रिरत्न · पँचशील |
अहम व्यक्ति |
गौतम बुद्ध · बोधिसत्व |
क्षेत्रानुसार बौद्ध धर्म |
दक्षिण-पूर्वी बौद्ध धर्म · चीनी बौद्ध धर्म · तिब्बती बौद्ध धर्म · पश्चिमी बौद्ध धर्म |
बौद्ध साम्प्रदाय |
थेरावाद · महायान · वज्रयान |
बौद्ध साहित्य |
त्रिपतक · पाळी ग्रंथ संग्रह · विनय · पाऴि सूत्र · महायान सूत्र · अभिधर्म · बौद्ध तंत्र |
मिला रस्पा (थोस्पा गाह्) का जन्म 1052 ई. में भाद्रपद के पच्चीसवें दिन पर हुआ था। मिला उनका परिवारिक नाम था। उनका जन्म तिब्बत के मंड्युल गुडथड प्रान्त के क्याडाचा में हुआ था। पिता मिला शेसरब् ग्यलछन और माता ञड्छा कर्ग्यन थीं। एक छोटी बहन पेतागोन्किद् चार साल बाद पैदा हुई। मिला परिवार अपने क्षेत्र में अत्यधिक संपन्न था। [1]
इनके सात वर्ष की आयु में पिता वसीयत लिखकर चाचा और बुआ को सौंपकर मृत्यु को प्राप्त हुए। इसके बाद चाचा और बुआ ने इनकी सारी संपत्ति पर अधिकार कर लिया और माँ-पुत्र और पुत्री को अत्यधिक कष्ट पहुंचाया गया। ग्रीष्मकाल में जब कृषि कार्य होता था तो चाचा का नौकर बनना पड़ता। शीतकाल में जब ऊन से सम्बंधित कार्य प्रगति पर होता था तो बुआ का नौकर बनना पड़ता। इनका भोजन कुत्ते के भोजन से भी बदतर था और कार्य गधे से भी कहीं अधिक। इनके पंद्रह साल का होने पर मां ने वसीयतनामे के अनुसार संपत्ति वापस मांगी तो भरी सभा में चाचा ने मां-बेटे को पीटा। [2]
इससे अत्यन्त पीड़ित होकर मां ने इन्हें काला जादू सीखने और प्रतिशोध लेने को कहा। चाचा-बुआ और अन्य पड़ोसियों का सर्वनाश न करने पर मां ने आत्महत्या की चेतावनी दी।[3] मिलारेपा ने काला जादू सीखा और उसके प्रयोग से चाचा के घर पर विवाहोत्सव में एकत्रित परिवार, संबधियों और पड़ोसियों समेत पैंतीस लोगों को मार डाला। पूरे गांव की खड़ी फसल को ओला-वृष्टि से नष्ट भी कर दिया।[4]
इसके बाद मिलारेपा को पाप का भार महसूस हुआ और बहुत पश्चाताप हुआ।[5]
मिलारेपा ने गुरू की खोज शुरू की और मर्पा लोचावा के बारे में सुनकर लोडग् नामक स्थान पर डोवोलुड् विहार गए। मर्पा भारतीय महासिद्ध नरोपा के प्रत्यक्ष शिष्य थे।[6]
गुरू ने उनकी अनेक प्रकार से परीक्षा ली जिसमें मकान बनाना, फिर तुड़वाना, दोबारा तिबारा बनवाना और तुड़वा देना था।[7] इससे मिलारेपा की पाप-शुद्धि हुई और गुरू मर्पा ने उन्हें शिष्य बनाया।[8]
मिलारेपा ने ग्यारह महीने तक लोडग तग्ञ की गुफा में एकांत में साधना की। इसकी समाप्ति पर उन्होंने अपना पहला गीत गाया था। इस तरह गुरू के पास कुछ वर्ष साघना करने के बाद उन्होंने अपने गांव वापस जाने की आज्ञा ली।[9]आठ साल बाद अपने गांव और घर पहुंचने पर उन्हें पता चला कि मां का निधन हो चुका है और बहन भिखारिन बनकर कहीं चली गई है[10] इससे मिलारेपा को संसार की सारहीनता का तीव्र बोध हुआ। घर त्यागकर उन्होंने पास की एक गुफा में उग्र तपस्या की।[11]इसके परिणाम स्वरूप इच्छानुसार काया परिवर्तन और आकाश-गमन सिद्धियों का प्रयोग करने में समर्थ हुए। मिलारेपा को आकाश-गमन करते हुए गांव के लोगों ने भी देखा। इससे प्रसिद्धि होने पर उन्होंने स्थान बदल दिया और गुरू मर्पा के बताए स्थान छुअर गुफा में तपस्या करने लगे।[12]
चौरासी वर्ष की आयु में 1134 ई. माघ महीने में चतुर्दशी को योगी मिलारेपा ने शरीर त्याग किया। इस समय आकाश में इंद्रधनुष दिखने जैसी दुर्लभ घटना भी हुई।[13] इन्होंने अपने जीवन काल में एक हजार गीतों की रचना की जो 'मिलोरेपा के सहस्र गीत' नाम से प्रचलित हैं।[14]
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.