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1958 की बिमल रॉय की फ़िल्म विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
मधुमती 1958 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। यह शायद पहली हिन्दी फ़िल्म है जिसमें एक कलाकार (वैजयन्ती माला) ने तीन-तीन रोल निभाये हों। इस फ़िल्म के निर्माता और निर्देशक बिमल रॉय थे। फ़िल्म में मुख्य भूमिका दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला और जॉनी वॉकर ने निभाई है। इस फ़िल्म को सन् १९५८ में अन्य पुरस्कारों के अलावा फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था।
मधुमती | |
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मधुमती का पोस्टर | |
निर्देशक | बिमल रॉय |
लेखक |
ऋतविक घटक राजिंदर सिंह बेदी (डायलॉग) |
कहानी | ऋतविक घटक |
निर्माता | बिमल रॉय |
अभिनेता |
दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला, जॉनी वॉकर, प्राण, जयंत |
छायाकार | दिलिप गुप्ता |
संपादक | ऋषिकेश मुखर्जी |
संगीतकार |
सलिल चौधरी (संगीत) शैलेन्द्र (गीत) |
निर्माण कंपनी |
मोहन स्टूडियोज़ |
वितरक | बिमल रॉय प्रोडक्शन्स |
प्रदर्शन तिथि |
1958 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
इस फिल्म पे कइ रिमेक फिलमे भी बनी जैसे , कुदरत, बीस साल बाद, और ओम शांति ओम
फ़िल्म वर्तमान समय से शुरु होती है। देवेन्द्र (दिलीप कुमार), जो एक अभियन्ता है, अपने दोस्त डॉक्टर (तरुण बोस) के साथ कार से रात को तूफ़ान और बारिश में पहाड़ी रास्तों से होकर अपनी पत्नी और नवजात बच्चे को लेने रेलवे स्टेशन जा रहा है। रास्ते में भूस्खलन के कारण रास्ता बन्द हो जाता है तो कार का ड्राइवर मदद लेने के लिए जाता है और दोनों दोस्त एक पुरानी हवेली में पनाह लेते हैं। वहाँ देवेन्द्र को हवेली जानी पहचानी सी लगती है और उसे धीरे-धीरे पुराने जन्म की बातें याद आने लगती हैं। वह अपने डॉक्टर दोस्त और हवेली के चौकीदार को कहानी सुनाना शुरु करता है।
अब फ़िल्म बीते हुये समय में जाती है। आनन्द (दिलीप कुमार) श्यामनगर टिम्बर ऍस्टेट में, जहाँ पेड़ों की कटाई का कारोबार होता है, नया मैनेजर बनकर आता है। वहाँ उसकी मुलाक़ात वहीं के जंगलों में रहने वाली लड़की मधुमती (वैजयन्ती माला) से होती है और दोनों में प्यार हो जाता है। आनन्द अपने ख़ाली समय में एक चित्रकार भी है और वह मधुमती का चित्र तैयार करने लगता है। कारोबार का मालिक़ राजा उग्रनारायण (प्राण) बड़ा ज़ालिम आदमी है। वह मधुमती को अपना बनाने के लिये आनन्द को बाहर काम से भेज देता है और धोखे से मधुमती को अपनी हवेली बुला भेजता है। जब मधुमती हवेली में दाख़िल होती है तो रात के ठीक आठ बज रहे होते हैं।
आनन्द जब लौट कर आता है तो मधुमती को न पाकर बदहवास सा हो जाता है। जंगल में आनन्द का नौकर चरनदास (जॉनी वॉकर) उसे सारी सच्चाई बताता है। आनन्द उग्रनारायण से बदला लेने के लिये उसकी हवेली जाता है लेकिन वहाँ उग्रनारायण के नौकर उसे मार-मार कर अधमरा कर देते हैं। जब उग्रनारायण का वफ़ादार बीर सिंह आनन्द को मरा हुआ समझकर खाई में फेंकने जा रहा होता है तो उसका रास्ता मधुमती का पिता पवन राजा (जयन्त) रोक लेता है और हाथापाई में बीर सिंह और पवन राजा दोनों ही मारे जाते हैं और मौका देखकर चरनदास आनन्द को बचा ले जाता है।
ज़ख़्म भर जाने के बाद आनन्द चरनदास की मदद से रामपुर डाक बंगले में रहने लगता है और पागल सा होकर मधुमती का चित्र लेकर जंगलों में इधर-उधर भटकने लगता है। वहीं उसकी मुलाक़ात शहर से आयी एक लड़की माधवी (वैजयन्ती माला) से होती है जिसको वह ग़लती से मधुमती समझ बैठता है। वह माधवी के पीछे-पीछे मधुमती का नाम पुकारता हुआ भागता है तो माधवी के साथी उसकी पिटाई करते हैं। लेकिन माधवी को वहाँ आनन्द द्वारा बनाया हुआ मधुमती का चित्र मिल जाता है और वह समझ जाती है कि आनन्द सच कह रहा था।
एक समारोह में आनन्द माधवी को स्थानीय लिबास में नाचते हुये देखता है तो उसके मन में एक विचार आता है। वह राजा उग्रनारायण की हवेली में जाता है और उससे कहता है कि उसे वापस घर जाने के लिये पैसों की ज़ुरूरत है लेकिन वह भीख नहीं लेगा बल्कि राजा उग्रनारायण का चित्र बनाएगा। राजा उग्रनारायण राज़ी हो जाता है और आनन्द को अगले दिन शाम को आने के लिये कहता है। वह माधवी के पास जाकर उससे कहता है कि वह अगले दिन ठीक रात को आठ बजे राजा उग्रनारायण की हवेली में वही भेस बनाकर आये जिस भेस में आख़िरी बार मधुमती राजा उग्रनारायण की हवेली में गयी थी। माधवी राज़ी हो जाती है। आनन्द पुलिस को अपनी तरक़ीब बताता है और पुलिस भी उसका साथ देने को तैयार हो जाती है।
अगली शाम को आनन्द राजा उग्रनारायण की हवेली में पहुँच जाता है। पुलिस छुपकर बाहर रहती है। भयंकर तूफ़ान और बारिश की रात होती है। रात ठीक आठ बजे मधुमती बनी माधवी राजा उग्रनारायण की हवेली में प्रवेश करती है। राजा उग्रनारायण डर के मारे सारा सच उगल देता है कि कैसे मधुमती की मौत हुयी। मधुमती-माधवी जब राजा उग्रनारायण को यह बताती है कि राजा उग्रनारायण ने उसकी लाश को कहाँ ठिकाने लगाया है तो राजा उग्रनारायण हामी भर देता है। तभी बाहर से पुलिस आकर राजा उग्रनारायण को पकड़ लेती है। उसी समय आनन्द का माथा ठनकता है कि माधवी को कैसे पता कि मधुमती की लाश कहाँ ठिकाने लगाई गई है। और बाहर से माधवी यह कहते हुये अन्दर दाख़िल होती है कि कार ख़राब हो जाने के कारण वह समय पर नहीं पहुँच सकी। आनन्द समझ जाता है कि उसकी मदद मधुमती की रुह ने की है और अब वही रुह उसको उसी जगह से पुकारती है जहाँ से मधुमती अपनी मौत के लिये गिरी थी। आनन्द भी उसके पीछे-पीछे जाकर मौत के आग़ोश में समां जाता है।
फ़िल्म फिर वर्तमान में आ जाती है और देवेन्द्र को कहानी सुनाते हुये सुबह हो गयी है। देवेन्द्र कहता है कि इस जनम में भी उसकी पत्नी वही है, नाम है राधा। तभी उनकी कार का ड्राइवर आकर बताता है कि रास्ता तो अब खुल गया है लेकिन जिस ट्रेन से राधा आ रही थी, वह दुर्घटनाग्रस्त हो गयी है। दोनों दोस्त तुरन्त रेलवे स्टेशन के लिये रवाना होते हैं और वहाँ जाकर देखते हैं कि राधा (वैजयन्ती माला) अपने बच्चे के साथ सुरक्षित है। देवेन्द्र राधा के पास जाकर कहता है कि उनका साथ इसी जन्म का नहीं बल्कि कई जन्मों का है।
इस फ़िल्म का संगीत दिया है सलिल चौधरी ने और गीतकार हैं शैलेन्द्र।
गीत | गायक/गायिका | मिनट | |
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१ | जुल्मी संग आँख लड़ी | लता मंगेशकर | ३.२८ |
२ | आजा रे परदेसी | लता मंगेशकर | ४.२९ |
३ | चढ़ गयो पापी बिछुआ | लता मंगेशकर, मन्ना डे | ५.५८ |
४ | दिल तड़प तड़प के | लता मंगेशकर, मुकेश | ३.२८ |
५ | घड़ी घड़ी मोरा दिल धड़के | लता मंगेशकर | ३.१९ |
६ | हम हाल-ऐ-दिल सुनाएंगे | मुबारक बेगम | ३.२५ |
७ | जंगल में मोर नाचा | मोहम्मद रफ़ी | ३.०८ |
८ | सुहाना सफ़र | मुकेश | ३.४९ |
९ | टूटे हुये ख़्वाबों ने | मोहम्मद रफ़ी | ३.१९ |
विजेता
नामांकित
राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म (हिन्दी) - विजेता - बिमल रॉय
यह भारतीय फ़िल्म से सम्बंधित लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |
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