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मदनमोहन मालवीय
भारतीय नेता व शिक्षाविद् / From Wikipedia, the free encyclopedia
महामना मदन मोहन मालवीय (25 दिसम्बर 1861 - 12 नवंबर 1946) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे।
महामना मदनमोहन मालवीय | |
![]() संसद में लगे महामना मदनमोहन मालवीय का तैलचित्र जिसका विमोचन 19 दिसम्बर 1957 को राजेन्द्र प्रसाद ने किया था | |
कार्यकाल 1909–10; 1918–19; 1930-1931; 1932-1933 | |
जन्म | 25 दिसम्बर 1861 प्रयाग, ब्रिटिश भारत |
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मृत्यु | 12 नवम्बर 1946 (आयु: 85 वर्ष) बनारस, ब्रिटिश भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राजनैतिक पार्टी | हिन्दू महासभा |
विद्या अर्जन | प्रयाग विश्वविद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय |
धर्म | हिन्दू |
कर्म ही उनका जीवन था। अनेक संस्थाओं के जनक एवं सफल संचालक के रूप में उनकी अपनी विधि व्यवस्था का सुचारु सम्पादन करते हुए उन्होंने कभी भी रोष अथवा कड़ी भाषा का प्रयोग नहीं किया।
भारत सरकार ने २४ दिसम्बर २०१४ को उन्हें भारत रत्न से अलंकृत किया।[1]