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मुगलों का शासनकाल भारत की स्थापत्य कला का स्वर्ण-युग माना जाता है। उनके शासनकाल में कई खूबसूरत इमारतों, स्तूपों का निर्माण किया गया। उन्हीं के काल में निर्मित मस्जिदें आज भी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना मानी जाती हैं। ऐसी ही कुछ मस्जिदें भारत में हैं, जो देखने वालों को हतप्रभ कर देती है।
दिल्ली स्थित जामा-मस्जिद भारत की विशालतम मस्जिद है। जिसे शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया था। ऐसा माना जाता है कि इस मस्जिद को पूरा होने में करीब छ: साल का वक्त लगा था और अरबों रुपए खर्च किए गए थे। यह रेतीले और सफेद पत्थरों का बना हुआ है। इस मस्जिद की खासियत है कि इसके उत्तर और दक्षिण दोनों ओर द्वार बने हुए हैं, जिसके जरिए लोग आ-जा सकते हैं। ईद के मौके पर यहाँ की रौनक देखते ही बनती है।
भारत के सबसे ऊँची मस्जिदों में ताज-उल-मस्जिद का नाम शुमार है। भोपाल स्थित इस मस्जिद को ‘मस्जिदों का मस्जिद’ की संज्ञा दी गई है। इसका मुख्य भाग गुलाबी रंग का है और इसके ऊपर दो सफेद गुंबद बने हुए हैं। ये गुंबद ऊपर की ओर हैं, जिससे ऐसा माना जाता है कि यह खुदा की ओर जाने का रास्ता है। काफी समय तक इसका निर्माण पैसे के अभाव में नहीं हो पाया था, लेकिन सन् 1971 में इसके निर्माण का कार्य पूरा किया गया। इस मस्जिद में मुस्लिम समुदाय के बच्चों के लिए मदरसे की भी व्यवस्था है।
यह मस्जिद भी दिल्ली में स्थित है। जिसके निर्माण का कार्य 1192 में कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा आरंभ करवाया गया था, लेकिन उसके बाद इस मस्जिद को [[इल्तुतमिश]] ने 1230 और 1315 में अलाउद्दीन खिलजी ने पूरा करवाया। इसे इस्लामिक कला का बेजोड़ नमूना कहा जा सकता है। इस मस्जिद के निर्माण के दौरान रायपिथौड़ा स्थित कई मंदिरों से उसके स्तंभ लाए गए थे, इसलिए इस मस्जिद पर हिन्दू कला की छाप मिलती है।
जैसे-जैसे इस मस्जिद के अंदर प्रवेश करते हैं, इसकी गोलाकार छतें बरबस ही ध्यान खिंचती है। बाद में इस मस्जिद को कुतुबुद्दीन के दामाद अल्तमश ने इसके निर्माण में इजाफा करते हुए प्रार्थना हॉल के तीन मेहराबों को बढ़ाकर पाँच कर दिया। इस मस्जिद में इमाम जमीम का मकबरा काफी खूबसूरती से बनाया गया है। इमाम जमीम सिकंदर लोदी के शासनकाल में प्रधान धर्मगुरु थे।
सिंकदर जहाँ बेगम द्वारा मोती मस्जिद का निर्माण करवाया गया था, जो भोपाल में स्थित है। यह सन् 1860 में बनवाया गया था। सफेद पत्थरों से निर्मित इस मस्जिद की कारीगरी देखते ही बनती है।
यह मस्जिद अजमेर में स्थित है। इसके साथ कई मान्यताएँ प्रचलित हैं। किसी का कहना है कि इस मस्जिद को बनने में ढाई दिन का वक्त लगा था, इसलिए इसे अढ़ाई-दिन का झोपड़ा कहा गया। बहुत से लोग ये मानते हैं कि, चूँकि हर साल यहाँ ढाई दिन का मेला लगता था, इसलिए इसे यह नाम दिया गया। पहले यह संस्कृत कंठाभरण पाठशाला एवम सरस्वती मंदिर था। [ कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे 1198 में मस्जिद में तब्दील कर दिया और इसका निर्माण और बेहतर तरीके से करवाया। इस मस्जिद की डिजाइन अबु बकर ने तैयार की थी। मस्जिद का अंदरूनी हिस्सा किसी मस्जिद की तुलना में मंदिर की तरह दिखता है। यह राजस्थान की प्रथम मज्जिद थी
इस मस्जिद की हाल ही में मरम्मत की गई है। इस मस्जिद के निर्माण का कार्य सिकंदर लोदी के शासनकाल में 1528 ईसवी में हुआ था और लगभग 1536 में हुमायूं के शासनकाल में खत्म हुआ। जमाली एक सूफी संत थे और सिकंदर लोदी के दरबार में थे और हुमाऊँ के शासनकाल में उनकी मौत हुई थी। यह मकबरा मस्जिद के पीछे स्थित है और एक छोटे से हिस्से में बना है, लेकिन जैसे ही इसकी दीवारों और छत पर नजर जाती है यह काफी आकर्षक दिखता है।
या शाहजहाँ की मस्जिद अजमेर स्थित जामी मस्जिद को शाहजहाँ का मस्जिद भी कहते हैं। यह मस्जिद लगभग 45 मीटर लंबी है, जिसकी 11 मेहराबें हैं। इस मस्जिद को बनाने के लिए मकराना से पत्थर मँगवाए गए थे।
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