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भारत का कानून मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित प्रथाओं और धार्मिक निर्देशों से विकसित होते हुए वर्तमान समय में वहाँ पहुँच गया है जहाँ इसका संविधान आधुनिक अच्छी तरह से संहिताबद्ध अधिनियमों और कानूनों के रूप में। भारतीय कानून के विकास को मोटे तौर पर चार चरणों को के रूप में वर्गीकृत किया गया है - वैदिक काल, इस्लामी काल, ब्रिटिश काल और स्वतंत्रता के बाद का भारतीय कानून।
आधुनिक कानून की तुलना में, शास्त्रीय हिंदू कानून एक विशिष्ट कानूनी प्रणाली थी। यह कानून और राजनीति की एक अनूठे व्यवस्था का पालन करता था जिसमें मूल्यों की एक अनूठी योजना थी। प्राचीन भारत ने कानून की एक अलग परंपरा थी और ऐतिहासिक रूप से इसके कानूनी सिद्धांत एवं व्यवहार का एक स्वतंत्र सम्प्रदाय था। वैदिक काल में कानून का मुख्य उद्देश्य "धर्म" का पालन था, जहाँ धर्म का अर्थ मोटे तौर पर कर्तव्य (करने योग्य) से है।[1] धर्म में कानूनी कर्तव्य और धार्मिक कर्तव्य दोनों शामिल हैं। इसमें न केवल कानून और न्यायालयीन प्रक्रियाएं शामिल हैं, बल्कि अनुष्ठान, शुद्धिकरण, व्यक्तिगत स्वच्छता व्यवस्था और वस्त्र आदि धारण करने के तरीके जैसी मानव गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला भी शामिल है। धर्म एक प्रमुख मार्गदर्शह सिद्धान्त था जिसके अनुसार व्यक्ति अपना जीवन जीने का प्रयास करता था।
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