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पवन द्वारा रेत एवं बालू के निक्षेप से निर्मित टीलों को बालुका स्तूप अथवा टिब्बा कहते हैं। भौतिक भूगोल में, एक टिब्बा एक टीला या पहाड़ी है, जिसका निर्माण वायूढ़ प्रक्रियाओं द्वारा होता है। इन स्तूपो के आकार में तथा स्वरुप में बहुत विविधता देखने को मिलती हैं। टिब्बा विभिन्न स्वरूपों और आकारों में निर्मित हो सकता है और यह सब वायु की दिशा और गति पर निर्भर करता है।
बालुका स्तूपो का निर्माण शुष्क तथा अर्धशुष्क भागों के अलावा सागर तटीय भागों, झीलों के रेतीलो तटों पर रेतीले प्रदेशों से होकर प्रवाहित होने वाली सरिताओं के बाढ़ जे क्षेत्रों में, प्लिस्टोसिन हिमानीक्रत क्षेत्रों की सीमा के पास रेतीले भागों में बालुका प्रस्तर वाले कुछ मैदानी भागों में जहां पर बालुका प्रस्तर से रेत अधिक मात्रा में सुलभ हो सके, आदि स्थानों में भी होता हैं। अधिकांश टिब्बे वायु की दिशा की ओर से लम्बे होते हैं क्योंकि इस ओर से हवा रेत को ढकेलती है और रेत को टीले का आकार देती है, तथा वायु की विपरीत दिशा का फलक जिसे "फिसल फलक" कहा जाता है छोटा होता है। टिब्बों के बीच की "घाटी" या गर्त को द्रोण कहा जाता है। एक "टिब्बा क्षेत्र" वह क्षेत्र होता है जिस पर व्यापक रूप से रेत के टिब्बों का निर्माण होता है। एक बडा़ टिब्बा क्षेत्र अर्ग के नाम से जाना जाता है।
टिब्बों का निर्माण जलोढ़ प्रक्रियाओं द्वारा भी नदियों, ज्वारनदमुख और समुद्र के रेत के या बजरी के तल पर होता है।
चापाकार टिब्बे का आकार आमतौर पर लंबाई की तुलना में चौड़ाई में अधिक होता है। टिब्बे का फिसल फलक इसकी अवतल पार्श्व में होता है। इन टिब्बों का निर्माण एक ही दिशा से बहने वाली हवाओं के द्वारा किया जाता है इन्हें बरखान या अनुप्रस्थ टिब्बा भी कहा जाता है।
सीधे या थोड़े टेढ़े रेत के टीलों को जिनकी लंबाई, चौड़ाई की तुलना में अधिक होती है उन्हें रैखिक या रेखीय टिब्बा कहते हैं। यह 160 किलोमीटर (99 मील) तक लंबे हो सकते हैं। कुछ रैखिक टिब्बे मिल कर अंग्रेजी के Y (वाई) के सदृश आकार का मिश्रित टिब्बा बनाते हैं। इनका निर्माण अक्सर दो दिशा से आने वाली हवाओं के द्वारा होता है। इन टिब्बों का लंबा अक्ष रेत संचलन की परिणामी दिशा में विस्तारित होता है।
अरीय रूप से सममित, तारे के आकार के टिब्बे पिरामिड सदृश होते हैं, जिनका फिसलफलक इस पिरामिड के केन्द्र से निकलने वाली तीन या इससे अधिक भुजाओं में उपस्थित होता है। यह उन क्षेत्रों में निर्मित होते हैं जहाँ वायु कई दिशाओं से बहती है। यह टिब्बे ऊपर की तरफ बढ़ते हैं। निर्माण जैसलमेर के मोहनगढ व पोखरण में होता है
अंडाकार या गोलाकार दुर्लभ टिब्बे जिनमें आम तौर पर फिसलफलक का अभाव होता है। बालुका स्तूप नेवछा बालुका स्तूप झाड़ियों के चारों और बनते हैं उपनाम सबकाफीज बालुका स्तूप है
परवलय या यू (U) आकारी टिब्बे वह रेतीले टीले होते हैं, जिनमें एक उत्तल नासिका और दोनो ओर फैली भुजायें होती हैं। इन्हें हेयरपिन टिब्बा भी कहा जाता है और यह अमूमन तटीय रेगिस्तान में पाये जाते हैं। यह पश्चिम राजस्थान का हिस्सा है
यह बालुका स्तूप किसी अवरोध के कारण बालू के जमाव से बनते हैं।इन बालुका स्तूपों पर वनस्पति का आवरण होने के कारण यह स्थिर प्रवृत्ति के होते हैं।
यह लेख स्थलाकृति सम्बंधित एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |
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