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डॉ॰ बाबुराम भट्टराई नेपाल के ३५वें प्रधानमन्त्री रह चुके हैं। नेपालमे गणतन्त्र आनेके बाद हुई संविधान सभाकि चुनावमे सबसे ज्यादा मत और मतान्तरसे विजयी होनेवाले माओवादी सभासद् डॉ॰बाबुराम भट्टराई हैं। उन्होने ४६ हजार २ सौ ७२ मत पाकर कांग्रेसके नेता चन्द्रप्रसाद न्यौपानेको ४० हजार मतकि अन्तरसे पराजित किया था। उनका जन्म नेपाल के गोर्खा जिले में 26 मई 1954 में हुआ था।
बाबुराम भट्टराई | |
पदस्थ | |
कार्यभार ग्रहण भाद्र ११, २०६८ | |
राष्ट्रपति | रामवरण यादव |
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पूर्व अधिकारी | झलनाथ खनाल |
उत्तराधिकारी | खिलराज रेग्मी |
जन्म | 26 मई 1954 बेलबास,गोरखा जिल्ला, नेपाल |
राजनैतिक पार्टी | नेपाल समाजवादी पार्टी |
विद्या अर्जन | अमृत साइन्स कॉलेज चण्डीगढ़ कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर स्कूल अफ प्लानिंग एण्ड आर्किटेक्चर जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय |
बाबूराम भट्टराई राजनीतिक बुलंदियों पर पहुंचने के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं। वामपंथी राजनीति में शामिल होने से पहले वे अपने प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं।
प्रधानमंत्री पद के लिए २८ अगस्त को हुए मतदान में वे चुनाव जीत गए। 57वर्षिय वे नेपाल के 35वें प्रधानमंत्री बने।
पश्चिमी नेपाल के गोरखा जिले से आने वाले भट्टराई कभी नेपाल के शाही परिवार के भी नजदीक रहे। उन्होंने वर्ष 1970 में अमर ज्योति जनता माध्यमिक विद्यालय से 10वीं की परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया और काठमांडू के अमृत साइंस कैम्पस से विज्ञान के छात्र के रूप में इन्होंने 12वीं की पढ़ाई की। भट्टराई ने 12वीं की बोर्ड परीक्षा भी टॉप की। शिक्षा के क्षेत्र में शानदार उपलब्धि हासिल करने पर इन्हें कोलंबो प्लान के तहत वजीफा मिला जिसने उनके भारत के साथ शैक्षणिक रिश्तों को मजबूत किया। भट्टराई ने चंडीगढ़ कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर से स्थापत्य कला में ग्रैजुएशन और इसके बाद इसी विषय में दिल्ली स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर से पोस्ट ग्रैजुएशन किया।
दिल्ली स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में ही वह हिसिला यामी के सम्पर्क में आए जो बाद में उनकी पत्नी बनीं। भट्टराई की भारतीय लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति रॉय से भी यहीं पहचान हुई।
भट्टराई ने वर्ष 1986 में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से अपनी पीएचडी पूरी की। भट्टराई मानते हैं कि जेएनयू ने ही उन्हें पहली बार साम्यवाद का पाठ पढ़ाया।
माओवादियों द्वारा 'पीपुल्स वार' की शुरुआत करने पर वह वर्ष 1996 में अंडरग्राउंड हो गए। माओवादियों ने यह लड़ाई राजशाही के खात्मे और देश का संविधान निर्वाचित सदस्यों द्वारा लिखने की मांग को लेकर शुरू की थी। इस संकट काल में भट्टराई भारतीय शहरों में छिपे और यहां के कम्युनिस्ट नेताओं के सम्पर्क में रहे।
वर्ष 2004-05 के दौरान भट्टराई के सम्बंध माओवादी प्रमुख पुष्प कमल दहल प्रचंड से अच्छे नहीं रहे जिसकी वजह से उन्हें और उनकी पत्नी को पार्टी से सस्पेंड कर दिया गया। यही नहीं नेपाल के एक गांव में पति-पत्नी को नजरबंदी में रखा गया।
इस बीच, राजशाही के खात्मे के समय माओवादी नेताओं और उनके बीच मतभेद कम हुए। माना जाता है कि भट्टराई और माओवादी नेताओं के बीच सुलह कराने में भारतीय नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वर्ष 2006 में नेपाल की प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ समझौता करने के बाद माओवादियों ने जनता के साथ देश में 19 दिनों का प्रदर्शन किया। जनता के दबाव के चलते राजा ज्ञानेन्द्र को सत्ता से हटना पड़ा।
इसके दो वर्ष बाद हुए ऐतिहासिक आम चुनावों में माओवादी सबसे बड़े दल के रूप में उभरे और गोरखा से भट्टराई सर्वाधिक मतों से विजयी हुए। थोडे़ समय तक सत्ता में रहने वाली प्रचंड की सरकार में भट्टराई वित्त मंत्री बने। उनके वित्त मंत्री रहते नेपाल के राजस्व में काफी बढ़ोतरी हुई।
वर्ष 2009 में प्रचंड की सरकार गिरने के बाद दोनों में मतभेद एक बार फिर बढ़े जिसकी वजह से प्रचंड ने उनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे नहीं किया। इसके बाद बदले राजनीतिक घटनाक्रम के बीच प्रचंड ने प्रधानमंत्री पद के लिए भट्टराई को अपना उम्मीदवार बनाया।
उल्लेखनीय है कि माओवादी पार्टी में भट्टराई एक उदार चेहरे के रूप में देखे जाते हैं। वह भारत के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन शुरू करने की जगह शांति प्रक्रिया से मसलों का हल ढूढ़ने के पक्षधर रहे हैं।
प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें पार्टी के दिग्गज नेताओं को अपने साथ रखने और भारत और चीन के बीच एक बेहतर संतुलन कायम करना होगा।
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