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बाणीकांत काकति (असमिया : বাণীকান্ত কাকতি ; 15 नवम्बर 1894 - 15 नवम्बर 1952) असमिया भाषा के प्रमुख साहित्यकार, आलोचक तथा विद्वान थे। उन्होने असमिया भाषा, साहित्य और संस्कृति की एकननिष्ठ सेवा की। साहित्यचर्चा इनके जीवन का एकमात्र व्रत थी। आधुनिक असमिया समालोचकों में काकति को सर्वोच्च स्थान दिया जा सकता है। साधारण असमिया शब्दों का प्रयोग इनकी शैली की विशेषता हैं; कहीं-कहीं इनकी भाषा, गद्यसुलभ काव्य में परिणत हो गई है और उसमें छंदों की झनकार सुनाई देती है।
काकति का जन्म नवंबर, 1894 ई. में कामरूप जिले के बाटीकुरिहा ग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम ललितराम काकति, माता का लाहोबाला काकति तथा पत्नी का कनकलता था। 1918 में इनकी नियुक्ति कॉटन कालेज में अध्यापक पद पर हुई। उक्त कालेज में अध्यापन कार्य करते हुए इन्होंने असमिया भाषा, इसके गठन और क्रमपरिवर्तन, विषय पर शोधप्रबंध लिखकर कलकता विश्वविद्यालय से 'पी-एच.डी.' की उपाधि प्राप्त की। ये दो वर्ष तक कॉटन कालेज के प्रधानाचार्य भी रहे। अवकाश प्राप्त करने के कुछ दिनों पश्चात् इनकी नियुक्ति गौहाटी विश्वविद्यालय के डीन, फ़ैकल्टी ऑव आर्ट्स पद पर हुई और मृत्युपर्यंत ये इसी पद पर कार्य करते रहे। कामरूप अनुसंधान समिति के पुनर्गठन का श्रेय इन्हीं को है। 15 नवम्बर 1952 को शनिवार के दिन इनका निधन हुआ।
इनकी रहन-सहन सर्वसाधारण से भिन्न न थी। सत्य तथा ईश्वर में इनका अगाध विश्वास था, किंतु ये किसी कार्य को ईश्वर के भेरोसे न छोड़ते थे। कठोर परिश्रम द्वारा व्यक्ति अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता है, इस सिद्धांत में इनकी आस्था थी। स्पष्टवादिता और कठोर सत्य बोलने के कारण कुछ लोग इनसे अप्रसन्न भी रहते थे।
इनके ग्रंथों के नाम इस प्रकार है –
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