बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ की एक ऐतिहासिक धरोहर है इसे भूल भुलैया भी कहते हैं इसको अवध के नवाब अशिफुद्दौला ने (1784 -94) के मध्य बनवाया गया था इसे भूल भुलैया के नाम से भी जाना जाता है।

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बड़ा इमामबाड़ा, लखनऊ

निर्माण

इस इमामबाड़े का निर्माण आसफ़उद्दौला ने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत करवाया था। यह विशाल गुम्बदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। अनुमानतः इसे बनाने में उस ज़माने में पाँच से दस लाख रुपए की लागत आई थी। यही नहीं, इस इमारत के पूरा होने के बाद भी नवाब इसकी साज सज्जा पर ही चार से पाँच लाख रुपए सालाना खर्च करते थे।[1]

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बड़ा इमामबाड़ा

ईरानी निर्माण शैली की यह विशाल गुंबदनुमा इमारत देखने और महसूस करने लायक है। इसे इमाम हुसैन इब्ने अली अलैहिस्सलाम की शहादत की याद में बनाया गया है। इमारत की छत तक जाने के लिए ८४ सीढ़ियां हैं जो ऐसे रास्ते से जाती हैं जो किसी अन्जान व्यक्ति को भ्रम में डाल दें ताकि आवांछित व्यक्ति इसमें भटक जाए और बाहर न निकल सके. इसीलिए इसे भूलभुलैया कहा जाता है। इस इमारत की कल्पना और कारीगरी कमाल की है। ऐसे झरोखे बनाए गये हैं जहाँ वे मुख्य द्वारों से प्रविष्ट होने वाले हर व्यक्ति पर नज़र रखी जा सकती है जबकि झरोखे में बैठे व्यक्ति को वह नहीं देख सकता। ऊपर जाने के तंग रास्तों में ऐसी व्यवस्था की गयी है ताकि हवा और दिन का प्रकाश आता रहे. दीवारों को इस तकनीक से बनाया गया है ताकि यदि कोई फुसफुसाकर भी बात करे तो दूर तक भी वह आवाज साफ़ सुनाई पड़ती है। छत पर खड़े होकर लखनऊ का नज़ारा बेहद खूबसूरत लगता है। आप कभी लखनऊ जाएं तो इन्हें अवश्य देखिए, शानदार हैं ये।

इस इमामबाड़े में एक अस़फी मस्जिद भी है जहां गैर मुस्लिम लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। मस्जिद परिसर के आंगन में दो ऊंची मीनारें हैं।

इसमें विश्व-प्रसिद्ध भूलभुलैया बनी है, जो अनचाहे प्रवेश करने वाले को रास्ता भुला कर आने से रोकती थी। इसका निर्माण नवाब ने राज्य में पड़े दुर्भिक्ष से निबटने हेतु किया था। इसमें एक गहरा कुँआ भी है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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