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बंगाली मुसलमान (बांग्ला: বাঙালি মুসলমান)[12][13] से आशय उन लोगों से है जो भाषायी तथा नृजातीय दृष्टि से बंगाली हैं और इस्लाम के अनुयायी हैं। वर्तमान समय में बांग्लादेश की अधिकांश लोग बंगाली मुसलमान हैं जब कि भारत के पश्चिम बंगाल और असम के एक बड़ी अल्पसंख्यक आबादी बंगाली मुसलमान है।[14][15]
कुल जनसंख्या | |
---|---|
लगभग १८८ मिल्योन | |
विशेष निवासक्षेत्र | |
Bangladesh | १४६०००००० (२०११)[1] |
India | ३६४००००० (२०११)[2] |
Pakistan | २०००००० (२०११)[3] |
Saudi Arabia | १२००००० (२०१०)[4] |
UAE | ७००००० (२०१३)[5] |
Malaysia | ५००००० (२००९)[6] |
UK | ३७७१२६ (२०११)[7] |
Kuwait | २३०००० (२००८)[8] |
Oman | २००००० (२०१०)[9] |
Qatar | १५०००० (२०१४)[10] |
USA | १४३६१९ (२००७) |
Italy | ११५७४६ (२०१३)[11] |
भाषाएँ | |
Bengali | |
धर्म | |
इस्लाम सुन्नी (बहुसंख्यक), शिया (अल्पसंख्याक) |
नृतात्त्विक और भाषागत परम्परा से बंगाल में रहने बाला बंगाली भाषा में बात करने बाला लोग बंगाली हैं। इस्लाम पहली सहस्राब्दी में पहुंचकर देशी बंगाली संस्कृति को प्रभावित किया। फ़ारसी, तुर्की, अरब और मुगल बसने वालों का योगदान ने इस क्षेत्र के सांस्कृतिक परिचय को विविधता दिया।[16]
इतिहासकारों के अनुसार, बंगाली मुस्लिम परिचय की उत्पत्ति मध्य कालीन बंगाल में मध्य एशियाई, तुर्क और अरबों के आप्रवासन में निहित है, जिन्हें मंगोलों ने अपनी जन्मभूमि से खदेड़ दिया था। वे ज्यादातर भाग्यान्वेषी वाले थे और उन्हें अपने परिवार को पीछे छोड़ना पड़ा था। इन अप्रवासियों ने जल्द ही स्थानीय महिलाओं के साथ शादी करके और स्थानीय संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों को अपनाकर स्थानीय आबादी के साथ घुलना-मिलना शुरू कर दिया। मुगल काल के दौरान विशेष रूप से पूर्वी बंगाल में कृषि और प्रशासनिक सुधारों के साथ बंगाल में मुस्लिम आबादी में और वृद्धि हुई। मुगलों ने पूर्वी बंगाल में विशाल निर्जन जंगलों को साफ किया और मुगल, मध्य एशियाई, फारसी और तुर्क कुलीनों, योद्धाओं, व्यापारियों और सूफियों को भूमि के स्वामित्व के दिया, जिन्होंने इन क्षेत्रों को उत्पादक कृषि भूमि में बदल दिया, जिसके कारण इस क्षेत्र का आर्थिक और जनसांख्यिक विकास हुआ।[16]
वर्तमान काल में ज्यादातर बंगाली मुस्लिम चतुर्थ वृहत् मुस्लिम बहुल बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल एवं असम में रहते हैं।
अधिकतर बंगाली मुस्लिम सुन्नी मज़हब के हनफी फिक्ह़ को मानते है। इसके अलावा शिया, अहमदिया और सलफी मुस्लिम भी बां मिलते है।[17]
दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में बंगाल में चावल की खेती करने वाले समुदाय मौजूद थे। यह क्षेत्र भारतीय धर्म से मामूली रूप में प्रभावित एक बड़ी कृषिवादी आबादी का घर था।[18]
बौद्ध धर्म ने पहली सहस्राब्दी में इस क्षेत्र को प्रभावित किया। बंगाली भाषा अपभ्रंश और मगधी प्राकृत से ७वीं और १०वीं शताब्दी के बीच विकसित हुई। भाषाओं के अलग होने से पहले ये असमिया और उड़िया के साथ एक बड़ा इंडो-आर्यन शाखा गठन किया था।[19]
ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि शुरुआती मुस्लिम व्यापारियों और किरायेदारों ने पहली सहस्राब्दी में सिल्क रोड को इस्तमान करते हुए बंगाल का दौरा किया था। दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक उत्तरी बांग्लादेश में खुदाई से मिली है, जो पैगंबर मुहम्मद के जीवनकाल के आसपास के समय में मुसलमानों की उपस्थिति का संकेत देती है।[20] ९वीं शताब्दी का शुरुआत में, मुस्लिम व्यापारियों ने बंगाल के बंदरगाहों के माध्यम से व्यापार बढ़ाया।[21]
बंगाल और अरबी अब्बासिद खिलाफत के बीच बढ़ते व्यापार के कारण स्वरूप, मुसलमान पहली बार पाल शासन के दौरान बंगाल में दिखाई दिए।[22] अब्बासिद खलीफा के सिक्के बंगाल क्षेत्र के कई हिस्सों में पाए गए हैं।[23]
दक्षिण-पूर्वी बंगाल के समतट का लोग १०वीं शताब्दी में विभिन्न धार्मिक समुदायों में स्थित थे। इस समय अरब भूगोलवेत्ता अल-मसुदी ने इस क्षेत्र को भ्रमण किया और यहां रहने वाले निवासियों में मुस्लिम समुदाय को भी देखा।[24]
व्यापार के अलावा सूफी प्रचारकों ने बंगाल के लोगों को इस्लाम का पेहचन पेश किया जा रहा था। सबसे पहले ज्ञात सूफी प्रचारक थे ११वीं शताब्दी के सैयद शाह सुरखुल अतिया और उसके छात्र शाह सुल्तान रूमी। रूमी वर्तमान समय नेत्रोकोना जिला में बस गए, जहां उन्होंने स्थानीय शासक और आबादी को इस्लाम अपनाने के लिए प्रभावित किया।[25]
जब बंगाल हिंदू सेना साम्राज्य के अधीन था, क्रमान्वय मुस्लिम विजय ने पूरे क्षेत्र में इस्लाम को फैलाने में मदद की।[26]बख्तियार खिलजी, एक तुर्किक मुस्लिम सेनापति ने १२०४ ई. में राजा लक्ष्मण सेन को हराया और बंगाल के बड़े हिस्से को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।[27] इस प्रारंभिक विजय के बाद, बंगाल में मिशनरियों की आना शुरु हुई और कई बंगालियों ने इस्लाम को अपने जीवन के तरीके के रूप में अपनाना शुरू कर दिया। सुल्तान बल्खी और शाह मखदूम रूपोस उत्तरी बंगाल में वर्तमान राजशाही डिवीजन में बस गए, वहां के समुदायों को उपदेश दिया। बुरहानुद्दीन के नेतृत्व में १३ मुस्लिम परिवारों का एक समुदाय उत्तरपूर्वी हिंदू शहर श्रीहट्टा (सिलहट) में भी मौजूद था, जो दावा करता था कि उनके वंशज चटगांव से आए हैं।[28]१३०३ तक, शाह जलाल के नेतृत्व में सैकड़ों सूफी प्रचारकों ने बंगाल में मुस्लिम शासकों को सिलहट का जीत में सहायता की, इस शहर को धार्मिक गतिविधियों के लिए जलाल का मुख्यालय में बदल दिया। विजय के बाद, जलाल ने इस्लाम फैलाने के लिए बंगाल के विभिन्न हिस्सों में अपने अनुयायियों का प्रसार किया, और बंगाली मुसलमानों के बीच एक घरेलू नाम बन गया।[29]
1576 में अधिकांश बंगाल मुगल साम्राज्य के नियंत्रण में आया था। उस समय, ढाका मुगल सैन्य आधार के रूप में उभरा। टाउनशिप और आवास के विकास के परिणामस्वरूप जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, क्योंकि इस शहर के दौरान 1608 में बंगाल सुबाह की राजधानी सुबाहदार इस्लाम खान प्रथम द्वारा शहर घोषित किया गया था, इस दौरान कई मस्जिदों और किलों का निर्माण किया गया था। बारा कटरा 1644 और 1646 सीई के बीच सम्राट शाहजहां के दूसरे पुत्र मुगल राजकुमार शाह शुजा का आधिकारिक निवास होने के लिए बनाया गया था।[30]
वर्तमान में बांग्लादेश में भारतीय मुगल वास्तुकला सुबेदार शास्ता खान के शासनकाल के दौरान अपने चरम पर पहुंच गई, जिन्होंने ढाका में आधुनिक टाउनशिप और सार्वजनिक कार्यों के निर्माण को प्रोत्साहित किया, जिससे बड़े पैमाने पर शहरी और आर्थिक विस्तार हुआ। वह कला के संरक्षक थे और मुगल वास्तुकला में बेहतरीन प्रतिनिधित्व करने वाले मस्जिदों, मकबरे और महल समेत प्रांत भर में राजसी स्मारकों के निर्माण को प्रोत्साहित करते थे। खान ने लालबाग किला (फोर्ट औरंगाबाद), चौक बाजार मस्जिद, साट मस्जिद और चोटो कटरा का विस्तार किया। उन्होंने अपनी बेटी बीबी पारि के लिए मकबरे के निर्माण की भी निगरानी की।[30]
बंगाली लोगों की मातृभाषा बांग्ला है। जब बांग्लादेश पाकिस्तान का अंश था तब बांग्ला भाषा की "राष्ट्रभाषा" मांग पर प्रदर्शन में पुलिस की गुलिबारी में बहुक लोगों का मौत और कई लोगों घाएल हुए थे। उस दिन को आंतर्जातिक मातृभाषा दिवस के स्वरूप मनाई जाती है।[31]
काजी नजरुल इस्लाम बांग्लादेश के जातीय कवि है।[32]
बंगाली संगीत किसी भी अन्य शैली की तुलना बहुत ही सरल है और बांग्लादेश में ऐसे बहुत से संगीतकार हैं जैसे विभिन्न लोक परंपराओं के लोगों में से लानन फ़क़ीर, राधारमन दत्त, हसन राजा, ख़ुर्शीद नूरली (शीराज़ी), रमेश शील, क़ारी अमीर उदीन अहमद और अब्बास उद्दीन बांग्लादेश के संगीत में एक अहम भूमिका निभाए हैं। लोक गीतों को सरल संगीत संरचना और शब्दों द्वारा वर्णित किया जाता है। रेडियो के आगमन से पहले, ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन लोक गायकों द्वारा मंच प्रदर्शन पर काफी हद तक निर्भर था। '''गाजीर गान''' बांग्लादेश का एक लोक संगीत है यह एक भक्ति संगीत है जो गाजी पीर को समर्पित है.[33]| बांग्लादेश में एक झुमुर लोक संगीत काफी प्रसिद्ध है यह पारंपरिक नृत्य गीत बांग्लादेश और भारत के पूर्वी हिस्से की रूप है৷[34]|बांग्लादेश में पाला गान[35] भी एक क़िसम का लोक संगीत है[36]
बांग्लादेश में 'पहला फागुन’ नामक वसंत का पहला दिन मनाया जाता है. सांस्कृतिक संगठनों ने वसंत की शुरुआत करने के लिए शहर के विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित करते है. शिल्पकला अकादमी में नंदन मंच, सोहरावर्दी उद्यान और कई अन्य स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते है।[37]
विश्व इज्तेमा बांग्लादेश में आयोजित एक वार्षिक कार्यक्रम है। यह 1967 से ढाका के बाहरी इलाके में 160 एकड़ के मैदान में आयोजित किया जाता है। लाखों की संख्या में मुसल्लीआन इसमें हिस्सा लेने के लिए पहुंचते हैं।[38]
बंगाली मुस्लिम समुदाय के लिए कोई एक गभर्निं बडी नहीं है। धार्मिक सिद्धांत के लिए जिम्मेदारी वाला एक संगठनों पर नहीं है। हालाँकि, अर्ध-स्वायत्त इस्लामिक फ़ाउंडेशन बांग्लादेश, एक सरकारी संस्था, बांग्लादेश में इस्लामी मामलों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिसमें त्योहार की तारीखें और ज़कात से संबंधित मामलात शामिल हैं। धार्मिक लोगों के सदस्यों में मौलाना, इमाम, उलामा और मुफ्ती शामिल हैं।[39]
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