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फ़िरोज़ाबाद (Firozabad) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के फ़िरोज़ाबाद ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। राष्ट्रीय राजमार्ग 19 यहाँ से गुज़रता है।[1][2]
फ़िरोज़ाबाद Firozabad | |
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फ़िरोज़ाबाद का महावीर दिगाम्बर जैन मंदिर | |
निर्देशांक: 27.15°N 78.42°E | |
ज़िला | फ़िरोज़ाबाद ज़िला |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
देश | भारत |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 6,04,214 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिन | 283203 |
टेलीफोन कोड | 05612 |
वाहन पंजीकरण | UP 83 |
वेबसाइट | firozabad |
फ़िरोज़ाबाद का पुराना नाम चंदवार के नाम से जाना जाता था। यह शहर चूड़ियों के निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। यह आगरा से 40 किलोमीटर और राजधानी दिल्ली से 250 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व की तरफ स्थित है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ यहाँ से लगभग 250 किमी पूर्व की तरफ है। फिरोज़ाबाद ज़िले के अन्तर्गत बड़े कस्बे टुंडला , सिरसागंज, और शिकोहाबाद आते हैं। टुंडला पश्चिम तथा शिकोहाबाद शहर के पूर्व में स्थित है। फिरोज़ाबाद में मुख्यतः चूडियों का कारोबार होता है। यहाँ पर आप रंग बिरंगी चूडियों को अपने चारों ओर देख सकते हैं। लेकिन अब यहाँ पर गैस का कारोबार होता है। यहाँ पर काँच का अन्य सामान (जैसे काँच के झूमर) भी बनते हैं। इस शहर की आबो हवा गरम है। यहाँ की आबादी बहुत घनी है। यहाँ के ज्यादातर लोग कोरोबार से जुडे हैं। घरों के अन्दर महिलाएं भी चूडियों पर पालिश और हिल लगाकर रोजगार अर्जित कर लेती हैं। बाल मज़दूरी यहाँ आम है। सरकार तमाम प्रयासों के बावजूद उन पर अंकुश नहीं लगा सकी है। प्राचीन समय में चन्द्रनगर के नाम से जाना जाता था
फ़िरोज़ाबाद का पुराना नाम चंदवार बताया जाता है। उस समय चंद्रवार के राजा चन्द्रसेन, जो हिंदू (जैन)धर्म के अनुयायी थे। फ़िरोज़ाबाद की भगवान चन्दाप्रभु की स्फटिक मणि की प्रतिमा विश्व की सबसे बड़ी स्फटिक मणि की प्रतिमा है, जो की राजा चन्द्रसेन के समय में प्राप्त हुयी थी। उस चंदाप्रभु भगवान् की प्रतिमा के कारण और राजा चन्द्रसेन के नाम के कारण उस समय चंद्रवार का नाम पड़ा। आज भी फ़िरोज़ाबाद के चदरवार नगर जो यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है, पर राजा चन्द्रसेन का खंडहर हुआ पुराना किले के अवशेष और प्राचीन जैन मंदिर मौजूद है यहाँ पसीने वाले हनुमान जी का मदिर और एक पुराना शिव मंदिर भी है। वर्तमान नाम अकबर के समय में मनसबदार फ़िरोज़शाह द्वारा 1566 में दिया गया।[3]
चंदवार (या चंदावर) में चौहान वंश के राजा चन्द्रसेन और मुहम्मद ग़ोरी के बीच 1194 ई। में युद्ध लड़ा गया जिसमें राजा जयचन्द की हार हुई फ़िरोज़ाबाद का प्राचीन नाम चंदवार नगर था। फ़िरोज़ाबाद का नाम अकबर के शासन में फिरोज शाह मनसब दार द्वारा 1566 में दिया गया था। कहते हैं कि राजा टोडरमल गया से तीर्थ यात्रा कर के इस शहर के माध्यम से लौट रहे थे ,तब उन्हें लुटेरो ने लूट लिया|उनके अनुरोध पर, अकबर ने मनसबदार फिरोज शाह को यहा भेजा| फिरोज शाह दतौजि, रसूलपुर,मोहम्मदपुर गजमलपुर ,सुखमलपुर निज़ामाबाद, प्रेमपुर रैपुरा के आस-पास उतरा|फिरोज शाह का मकबरा और कतरा पठनं के खंडहर इस तथ्य का सबूत है और इतिहासकारों का मानना है कि फिरोजशाह ने भारी संख्या में हिंदू का जबरन धर्म परिवर्तित करवाया।[4][5]
ईस्ट इंडिया कंपनी से सम्बंदित एक व्यापारी पीटर ने 9 अगस्त 1632 में यहाँ का दौरा किया और शहर को अच्छी हालत में पाया|यह आगरा और मथुरा की विवरणिका में लिखा है की फ़िरोज़ाबाद को एक परगना के रूप में उन्नत किया गया था|शाहजहां के शाशन में नबाब सादुल्ला को फ़िरोज़ाबाद जागीर के रूप में प्रदान किया गया|Jahangir ने 1605 से 1627 तक शाशन किया|इटावा, बदायूं मैनपुरी, फ़िरोज़ाबाद सम्राट फर्रुखसियर के प्रथम श्रेणी मनसबदार के अंतर्गत थे।
बाजीराव पेशवा ने मोहम्मद शाह के शासन में 1737 में फ़िरोज़ाबाद और एतमादपुर लूटा|महावन के जाटों ने फौजदार हाकिम काजिम पर हमला किया और उसे 9 मई 1739 में मारे दिया|जाटों ने फ़िरोज़ाबाद पर 30 साल शासन किया।
मिर्जा नबाब खान यहाँ 1782 तक रुके थे। 18 वीं सदी के अंत में फ़िरोज़ाबाद पर मराठाओं के सहयोग के साथ हिम्मत बहादुर गुसाईं द्वारा शासन किया गया। फ्रेंच, आर्मी चीफ डी. वायन ने नवंबर 1794 में एक आयुध फैक्टरी की स्थापना की। श्री थॉमस ट्रविंग ने भी अपनी पुस्तक 'Travels in India ' में इस तथ्य का उल्लेख किया है।
मराठाओं ने सूबेदार लकवाददस को यहां नियुक्त किया,जिसने पुरानी तहसील के पास एक किले का निर्माण कराया जो वर्तमान में गाढ़ी के पास स्थित है|जनरल लेक और जनरल वेल्लजल्ल्य ने 1802 में फ़िरोज़ाबाद पर आक्रमण किया|ब्रिटिश शासन की शुरुआत में फ़िरोज़ाबाद इटावा जिले में था। लेकिन कुछ समय बाद यह अलीगढ़ जिले में संलग्न किया गया| जब 1832 में सादाबाद को नया ज़िला बनाया गया तो फ़िरोज़ाबाद को इस में सम्मिलित कर दिया गया। पर बाद में 1833 में फ़िरोज़ाबाद को आगरा में सम्मिलित कर दिया गया।1847 में लाख का व्यापर यहाँ बहुत फल-फूल रहा था।
1857 के स्वतंत्रा संग्राम में चंदवार के जमींदारो ने स्थानीय मलहो के साथ सक्रिय भाग लिया ग्राम- हिरनगऊ वर्तमान-(राजस्व ग्राम हिरनगाँव) जनपद फिरोजाबाद निवासी क्रांतिकारी ,क्रांतिकारी पंडित तेजसिंह तिवारी द्वारा 1857 क्रांति की लो को स्थानीय लोगों के दिलों में जलाते रहे प्रसिद्ध उर्दू कवि मुनीर शिकोहाबादी को ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने काला पानी की सजा सुनाई थी। इस शहर के लोगो ने 'खिलाफत आंदोलन', 'भारत छोड़ो आंदोलन' और 'नमक सत्याग्रह' में भाग लिया और राष्ट्रीय आंदोलनों के दौरान जेल गये।। इसी जिले के निवासी अश्वनी कुमार के आर पी जी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के तौर पर कार्य कर रहे हैं।
फिरोजाबाद के कुछ जैन समझते है के यह स्फटिक मणि की प्रतिमा आचार्य समंतभद्र स्वामी ने अपने योगवल से दर्शाई थी पर फिरोजाबाद के जैन समाज को शायद यह नही पता के यह प्रतिमा जमुना के फूल ठहरने से मिली थी समंतभद्र स्वामी ने जिस प्रतिमा को निकाला वो प्रतिमा चंद्रपुरी बनारस में है जैन लोग अपना सही इतिहास भी नही पता होता और तर्क भी शंशय उत्पन्न करते है ।
समंतभद्र मुनिवर ने ध्याया पिंडी फटी दर्शन तुम पाया
यह फटे महादेव के नाम से पिंडी बनारस में है
और उस प्रतिमा से जो चंदप्रभु भगवान उत्पन्न हुए वो चंद्रपुरी जो बनारस के पास का चंदप्रभू भगवान की जन्मस्थली है के मंदिर मैं विराजमान है ।
वर्ष #इटावा जनपद के अंतर्गत था
वर्ष #अलीगढ़ जनपद के अंतर्गत था
1832 मैं यह #सादाबाद जनपद के अंतर्गत था
1833 में यह #आगरा जनपद के अंतर्गत था
1989 से यह #फिरोजाबाद जनपद के अंतर्गत है
हिरनगऊ से प्राचीनतम, ऐतिहासिक, धार्मिक स्थलों का दृष्टिकोण -
1. प्राचीन बरगद वृक्ष - हिरनगऊ ग्राम में स्थित बरगद वृक्ष प्रभागीय निदेशक समाजिक वानिकी प्रभाग फिरोजाबाद द्वारा लगभग 250 वर्ष पुराना बताया है, बरगद वृक्ष की गोलाई वर्तमान में 4.5 मीटर है।
2. पंण्डित तेज सिंह तिवारी - 1800 शताब्दी के क्रांतिकारी पंण्डित तेज सिंह तिवारी की जन्म स्थली ग्राम हिरनगऊ में है, जिन्होंने 1857 की क्रांति मैं भाग लिया था।
3. बाबा नीम करौली जन्म स्थल धाम फिरोजाबाद - हिरनगऊ से 1 किलोमीटर दूरी पर बाबा नीम करौली जन्म स्थल ग्राम अकबरपुर में है नीम करौली बाबा की गणना 20 वीं शताब्दी के सबसे महान संतों में होती है इनका आश्रम देव भूमि कैची धाम उत्तराखण्ड में है।
4. राजा का ताल फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर राजा का ताल बना हुआ है, फिरोजाबाद गजेटियर द्वारा राजा के ताल का निर्माण सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक मंत्री राजा टोडरमल द्वारा कराया गया था, आगरा मार्ग के किनारे लाल पत्थर से बना राजा का ताल राजा टोडरमल का स्मर्ण करता है, इस ताल के मध्य में पत्थर का बना एक मंदिर है जहां एक बांध पुल द्वारा पहुंचा जा सकता था परन्तु वर्तमान में यह ताल नाम मात्र का रह गया है एवं कहीं कहीं लाल ककरी की दिवार नाम मात्र के रूप में नजर आती है।
5. श्री हनुमान मंदिर फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभग 9 किलोमीटर दूरी पर मराठा शासन काल में श्री वाजीराव पेशवा द्वितीय द्वारा इस मंदिर की स्थापना एक मठिया के रूप में की गयी थी यहां 19 वीं शताब्दी के ख्याति प्राप्त तपस्वी चमत्कारिक महात्मा वावा प्रयागदास की चरण पादुकाएं भी स्थित है।
6. गोपाल आश्रम फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभग 9 किलोमीटर दूर सेठ रामगोपाल मित्तल द्वारा बाई पास रोड स्थित गोपाल आश्रम का निर्माण 1953 में कराया गया, आश्रम में 57 फीट ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है, इस आश्रम में एक विशाल सत्संग भवन है यहां पर प्रतिदिन सत्संग होता है।
7. पंचमुखी महादेव मंदिर फिरोजाबाद- हिरनगऊ से लगभग 10 किलोमीटर दूरी पर फिरोजाबाद जिले के मौहल्ला दुली स्थित प्राचीन श्री पंचमुखी महादेव मंदिर का इतिहास काफी पुराना है मान्यता है कि दुलीचंद ने इसका निर्माण कराया था।
8. धीरपुरा का किला फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभग 10 किलोमीटर दूर ग्राम धीरपुरा बसा हुआ है स्थानीय चौहान सरदार धीरसिंह ने धीरपुरा किला की स्थापना की थी, सरदार धीरसिंह के नाम पर इस ग्राम का नाम धीरपुरा रखा गया।
9. कोटला का किला फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभग 12 किलोमीटर दूरी पर 1884 के गजेटियर के अनुसार कोटला का किला जिसकी खाई 20 फीट चौडी, 14 फीट गहरी, 40 फीट ऊंची दर्शायी गयी है भूमि की परधि 284 फीट उत्तर, 220 फीट दक्षिण तथा 320 फीट पूर्व तथा 480 फीट पश्चिम में थी वर्तमान में ये किला नष्ट हो गया है किन्तु अब भी इसके अवशेष देखने को मिलते है।
10. जारखी रियासत फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभग 12 किलोमीटर दूरी पर बसा गांव जारखी सन् 1803 में जारखी के सुंदर सिंह व दिलीप सिंह के पास 41 गांव थे पहले इनका सम्बन्ध भरतपुर और मराठो से रहा था। सन् 1816 और 1820 के बीच डेहरी सिंह जो कि दिलीप सिंह के पोते थे इस रियासत के मालिक थे उन्होंने सरकारी मालगुजारी बंद कर दी, इसलिए रियासत हाथरस के राजा दयासिंह के पास चली गयी किन्तु जब अग्रेजों और दयासिंह में मतभेद हुए तो सरकार ने यह रियासत डेहरी सिंह के पुत्र जुगल किशोर सिंह को वापस कर दी।
11. चंद्रवार का किला फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभग 13 किलोमीटर दूर यमुना तट पर ग्राम चंद्रवार बसा हुआ है यहां पर मौहम्मद गौरी एवं जयचंद का युद्ध हुआ था, इसी युद्ध में कन्नौज के सम्राट जयचंद को वीरगति प्राप्त हुयी थी, जैन विद्वानों की यह मान्यता थी कि यह क्षेत्र श्रीकृष्ण भगवान के पिता वासुदेव द्वारा शासित रहा है।
12. प्राचीन शांतेश्वर महादेव शिवजी मंदिर- हिरनगऊ से लगभग13 किलोमीटर दूरी पर हाथवंत रोड पर स्थित गांव सांती बसा हुआ है, जो सेकडों साल पुराना है सांती गांव में बसे हुए इस मंदिर का जिक्र फिरोजाबाद गजेटियर में आता है, गजेटियर के मुताबिक महाभारत कालीन राजा शान्तुन ने इस मंदिर की स्थापना करायी थी, मंदिर में जहां पर शिवलिंग स्थापित है वहां नित्य प्रतिदिन 1 सर्प आता था, राजा शान्तुन को साप को देखकर कोई चमत्कार होने की उम्मीद लगी, तो उन्होंने यहा खुदाई करायी, खुदायी के दौरान स्वंय एक शिवलिंग प्रकट हुआ तभी राजा शान्तुन ने यहां मंदिर की स्थापना करायी जो शातेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
13. राजा शान्तनु का किला फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभग 13 किलोमीटर दूरी पर हाथवंत रोड पर स्थित सांती ग्राम में राजा शान्तनु का किला था।
14. देवर्षि नारद मुनि आश्रम फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभक25 किलोमीटर दूर ग्राम नारखी देवर्षि नारद मुनि जी के आश्रम/तपोभूमि के लिए जाना जाता है नारद जी के नाम पर ग्राम का नाम नारखी पडा है, यहां पर नारद जी मंदिर व आश्रम बना हुआ है।
15. फतेहपुर करखा रियासत फिरोजाबाद - हिरनगऊ से 49 किलोमीटर से दूर शिकोहाबाद क्षेत्र का फतेहपुर करखा ग्राम सेकडों वर्ष पुराना ऐतिहासिक ग्राम है, यह सिरसागंज बटेश्वर मार्ग पर बसा हुआ है यहां मुस्लिम काल में कई युद्ध लडे गये है मेवातियों ने रपडी के राजाओं को यही हुये युद्ध में हराया था खेतों की खुदाई में 10 वीं शताब्दी तक के कई अवशेष प्राप्त हुये है इस ग्राम के चारो ओर तालाब व पुराने कुऐं अब भी जीर्णावस्था में मौजूद है। आल्हा ऊदल के समय के माणों परिवार के लोग यहां आकर बसे थें 17 वीं व 18 वीं शताब्दी में चोबें लोगों की यहां जमीदारी रही है।
16. परीक्षित नगरी पाढम फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभग50 किलोेमीटर दूरी पर एका शिकोहाबाद मार्ग पर स्थित परीक्षित नगरी पाढम की मान्यता है कि अर्जुन के पौत्र तथा अभिमन्यु के पुत्र महाराजा परीक्षित की नागदंश के फलस्वरूप मृत्यु के उपरान्त उनके पुत्र जनमेजय ने पृथ्वी के समस्त नागों को नष्ट करने के लिए इसी स्थान पर नाग यज्ञ किया था पाढम खेढे की ऊंचाई 200 फुट है इस खेढे की खुदाई में 3.5 गज की मौटी दिवारे निकली है खुदाई से प्राप्त ईटे विभिन्न आकार में 1 फुट से लेकर 1.5 फुट तक लम्बी है खेढे पर एक प्रचीन कुआ है जिसे परीक्षित कूप कहा जाता है जनमेजय का नाम यज्ञ कुण्ड भी खेढे की समीप ही है।
17. रपडी का किला फिरोजाबाद - हिरनगऊ से लगभग 52 किलोमीटर दूर शिकोहाबाद से दक्षिण किनारे यमुना नदी के निकट राय जोरावर सिंह ने रपडी को बसाया था इस छोटे राज्य का विस्तार यमुना के खारों और शिकोहाबाद मुस्ताफाबाद, घिरोर तथा बरनाहल के परगने तक था राजा जयचंद को पराजित करने के बाद विजयी मुस्लिम सेना ने सन् 1194 में रपडी के राजा पर आक्रमण कर करखा युद्ध में पराजित किया तब से रपडी मुगल शासन की जागीर के रूप में रही, पुराने समय में लगभग 1 किलोमीटर के दायरा में विशाल किला बना होगा।
आगरा गजेटियर 1965 के पृष्ठ 263 के अनुसार फिरोजावाद नगर पालिका की स्थापना सन् 1868 में प्रारम्भ हुई, अनेक वर्षों तक जुवान्त मजिस्ट्रेट इसका अध्यक्छ हुआ करता था। उस समय पुलिस की व्यवस्था भी नगर पालिका के अंतर्गत थी।
अलीगढ इंस्टिट्यूट गजट सन 1880 के पृष्ठ 1083 पर उर्दू के कवि मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली ने लिखा है कि फ़िरोज़ाबाद में खजूर के पटटे की पंखिया एशी उम्दा वनती है कि हिंदुस्तान में शायद ही कही वनती हो। सादी पंखिया जिसमे किसी कदर रेशम का काम होता है एक रुपया कीमत की हमने भी यहाँ देखी। इस कथन से स्पस्ट होता है कि 1880 तक यहाँ काँच उद्योग का प्रारम्भ नहीं हुआ था, आगरा गजेटियर 1884 के पृष्ठ 740 के अनुसार उस समय फ़िरोज़ाबाद में लाख का व्यवसाय भी अच्छी स्थिति में था ये व्यवसाय कालान्तर में समाप्त हो गया है ,परंतु वर्तमान में भारत में सबसे अधिक काँच की चूड़ियाँ, सजावट की काँच की वस्तुएँ, वैज्ञानिक उपकरण, बल्ब आदि फ़िरोज़ाबाद में बनाये जाते हैं।[उद्धरण चाहिए] फ़िरोज़ाबाद में मुख्यत:चूड़ियों का व्यवसाय होता है। यहाँ पर आप रंगबिरंगी चूड़ियों की दुकानें चारों ओर देख सकते हैं। घरों के अन्दर महिलाएँ भी चूडियों पर पॉलिश लगाकर रोजगार अर्जित कर लेती हैं। भारत में काँच का सर्वाधिक फ़िरोज़ाबाद नामक छोटे से शहर में बनाया जाता है। इस शहर के अधिकांश लोग काँच के किसी न किसी सामान के निर्माण से जुड़े उद्यम में लगे हैं। सबसे अधिक काँच की चूड़ियों का निर्माण इसी शहर में होता है। रंगीन काँच को गलाने के बाद उसे खींच कर तार के समान बनाया जाता है और एक बेलनाकार ढाँचे पर कुंडली के आकार में लपेटा जाता है। स्प्रिंग के समान दिखने वाली इस संरचना को काट कर खुले सिरों वाली चूड़ियाँ तैयार कर ली जातीं हैं। अब इन खुले सिरों वाली चूड़ियों के विधिपूर्वक न सिर्फ़ ये सिरे जोड़े जाते हैं बल्कि चूड़ियाँ एकरूप भी की जाती हैं ताकि जुड़े सिरों पर काँच का कोई टुकड़ा निकला न रह जाये। यह एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें काँच को गर्म व ठण्डा करना पड़ता है।[उद्धरण चाहिए]
सन 1862 में 1 अप्रेल को टूंडला से शिकोहाबाद के लिए पहली रेलगाड़ी चालू हुई इससे अगले वर्ष मार्च 1863 ई0 से टूंडला से अलीगढ तक रेल चलने लगी।
1-जनपद फिरोजाबाद में सन 1850 में तहसीली स्कूलों की स्थापना का कार्य एवं सन 1851 से ग्राम पाठशालाओं की स्थापना का कार्य प्रारंभ हुआ
2-फिरोजाबाद जनपद में सर्वप्रथम हाई स्कूल की शिक्षा 1919 एवं इंटरमीडिएट की शिक्षा 1926 से प्रारंभ हुई l
3-जनपद फिरोजाबाद में सर्वप्रथम वर्ष 1947 में डिग्री कॉलेज की स्थापना हुई थी
सन 1872 ई0 में 10,76005
सन 1881 ई0 में 09,74656
सन 1901 ई0 में 10,60528
सन 1911 ई0 में
यह आगरा और इटावा के बीच प्रमुख रेलवे जंक्शन है। दिल्ली से रेल द्वारा आसानी से टूंडला जंक्शन एवम् हिरनगाँव रेलवे स्टेशन होते हुए फ़िरोज़ाबाद रेलगाड़ी से पंहुचा जा सकता है एवम् फ़िरोज़ाबाद पहुँचने हेतु बस आदि की भी समुचित व्यवस्ता है।
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