प्रवेशद्वार:दर्शनशास्त्र/चयनित सूक्ति/5From Wikipedia, the free encyclopedia “ ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्यं, जीवो ब्रह्मैव नापरःब्रह्म ही सत्य है, जगत माया है, जीव और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं ” — आदिशंकराचार्य प्राचीन भारतीय दार्शनिक, अद्वैत दर्शन को सारांशित करते हुए
“ ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्यं, जीवो ब्रह्मैव नापरःब्रह्म ही सत्य है, जगत माया है, जीव और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं ” — आदिशंकराचार्य प्राचीन भारतीय दार्शनिक, अद्वैत दर्शन को सारांशित करते हुए