पौड़ी गढ़वाल जिला
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पौड़ी गढ़वाल भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का एक जिला है। जिले का मुख्यालय पौड़ी है। जो कि 5,440 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक दायरे में बसा है यह ज़िला एक गोले के रूप मैं बसा है जिसके उत्तर मैं चमोली, रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल है, दक्षिण मैं उधमसिंह नगर, पूर्व में अल्मोरा और नैनीताल और पश्चिम मैं देहरादून और हरिद्वार स्थित है। पौढ़ी हेडक्वार्टर है। हिमालय कि पर्वत श्रृंखलाएं इसकी सुन्दरता मैं चार चाँद लगते हैं और जंगल बड़े-बड़े पहाड़ एवं जंगल पौड़ी कि सुन्दरता को बहुत ही मनमोहक बनाते हैं।
पौड़ी गढ़वाल | |
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उत्तराखंड के जिले | |
ऊपर-बाएं से दक्षिणावर्त: बिनसर महादेव मंदिर, पीठसैंण से ब्रह्मडुंगी का दृश्य, थलीसैंण के पास की पहाड़ियां, पौड़ी का पहाड़ी दृश्य, नीलकंठ महादेव मंदिर | |
निर्देशांक (पौड़ी): 30.15°N 78.78°E | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तराखंड |
डिवीजन | गढ़वाल |
मुख्यालय | पौड़ी |
तहसील | 13 |
शासन | |
• जिला कलेक्टर | विजय कुमार जोगदंडे , भारतीय प्रशासनिक सेवा |
• लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र | गढ़वाल |
• विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र | श्रीनगर, पौड़ी, यमकेश्वर, चौबट्टाखाल, लैंसडाउन, कोटद्वार |
क्षेत्रफल | |
• संपूर्ण | 5329 किमी2 (2,058 वर्गमील) |
जनसंख्या (2011) | |
• संपूर्ण | 687,271 |
• घनत्व | 130 किमी2 (330 वर्गमील) |
• महानगर | 12.89% |
जनसांख्यिकी | |
• साक्षरता | 82.02% |
• लिंग अनुपात | 1103 |
समय मण्डल | आईएसटी (यूटीसी+05:30) |
दूरभाष कोड | 01368 |
वाहन पंजीकरण | UK-12 |
प्रमुख राजमार्ग | राष्ट्रीय राजमार्ग 121, राष्ट्रीय राजमार्ग 534, राष्ट्रीय राजमार्ग 58 |
औसत वार्षिक वर्षा | 1,545 मिलीमीटर (60.8 इंच) मिमी |
वेबसाइट | pauri |
संपूर्ण वर्ष मैं यहाँ का वातावरण बहुत ही सुहावना रहता है यहाँ की मुख्य नदियों मैं अलखनंदा ,हेंवल और नायर प्रमुख हैं। पौढ़ी गढ़वाल की मुख्य बोली गढ़वाली है अन्य भाषा मैं हिन्दी और इंग्लिश भी यहाँ के लोग बखूबी बोलते हैं। यहाँ के लोक गीत, संगीत एवं नृत्य यहाँ की संस्कृति की संपूर्ण जगत मैं अपनी अमित चाप छोड़ती है। यहाँ की महिलाएं जब खेतों मई काम करती है या जंगलों मैं घास काटने जाती हैं तब अपने लोक गीतों को खूब गाती हैं इसी प्रकार अपने अराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए ये लोक नृत्य करते हैं। पौढ़ी गढ़वाल त्योंहारों मैं ग्राम सभा तमलाग पट्टी गगवाड़स्यूं में हर बारह साल में लगने वाला मौरी मेला (Mauri Mela),[1] [2] [3] [4] साल्टा महादेव का मेला, देवी का मेला, भौं मेला सुभनाथ का मेला और पटोरिया मेला प्रसिद्द हैं इसी प्रकार यहाँ के पर्यटन स्थल मैं कंडोलिया का शिव मन्दिर,केतुखाल में भैरोंगढ़ी में भैरव नाथ का मंदिर, बिनसर महादेव, खिर्सू, लाल टिब्बा, ताराकुण्ड, ज्वाल्पा देवी मन्दिर नील कंठ का शिव मंदिर, देवी खाल का माँ बाल कुँवारी मंदिर ओर यमकेश्वर का भुम्या देव प्रमुख हैं। पौढ़ी गढ़वाल जिला गोलाकार आकार में है। इसके उत्तर में चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल दक्षिण में उधम सिंह नगर पूर्व में अल्मोड़ा तथा पश्चिम में देहरादून जिला स्थित है। यहां के बड़े बड़े पहाड़ और जंगल इसकी खूबसूरती का और भी ज्यादा आकर्षण बना देते हैं। यहां से बर्फ से ढके हिमालय के बेहद खूबसूरत और आकर्षक नजारा देखने को मिलते हैं। [5] यहाँ से नजदीक हवाई अड्डा जोली ग्रांट जो की पौढ़ी से 150-160 किमी की दुरी पर है रेलवे का नजदीक स्टेशन कोटद्वार ओर ऋषिकेश है एवं सड़क मार्ग मैं यह ऋषिकेश, कोटद्वार, हरिद्वार एवं देहरादून से जुडा है।
जिले के प्रशासनिक मुख्यालय पौड़ी नगर में स्थित हैं। प्रशासनिक कार्यों से जिले को ६ उपखण्डों में बांटा गया है, जो आगे १२ तहसीलों और १ उप-तहसील में विभाजित हैं। ये हैं: पौड़ी उपखण्ड (पौड़ी, चौबट्टाखाल); श्रीनगर उपखण्ड (श्रीनगर); लैंसडौन उपखण्ड (लैंसडौन, सतपुली, जाखनीखाल, रिखनीखाल [उप-तहसील]), कोटद्वार उपखण्ड (कोटद्वार, यमकेश्वर); थलीसैण उपखण्ड (थलीसैंण, चाकीसैण, बीरोंखाल) और धूमाकोट उपखण्ड (धूमाकोट)। इसके अतिरिक्त, जिले को १५ विकासखंडों में भी बांटा गया है: पौड़ी, कोट, कल्जीखाल, खिर्सू, पाबौ, थलीसैंण, बीरोंखाल, नैनिडांडा, एकेश्वर, पोखड़ा, रिखनीखाल, जयहरीखाल, द्वारीखाल, दुगड्डा और यमकेश्वर। जिले में एक संसदीय क्षेत्र, और ६ उत्तराखण्ड विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं, जिनमें यमकेश्वर, पौड़ी, श्रीनगर, चौबट्टाखाल, लैंसडौन और कोटद्वार शामिल हैं।
सदियों से गढ़वाल हिमालय में मानव सभ्यता का विकास शेष भारतीय उप-महाद्वीपों के समानांतर रहा है। कत्युरी पहला ऐतिहासिक राजवंश था, जिसने एकीकृत उत्तराखंड पर शासन किया और शिलालेख और मंदिरों के रूप में कुछ महत्वपूर्ण अभिलेख छोड़ दिए | कत्युरी के पतन के बाद की अवधि में, यह माना जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र 64 (चौसठ) से अधिक रियासतों में विखंडित हो गया था और मुख्य रियासतों में से एक चंद्रपुरगढ़ थी , जिस पर कनकपाल के वंशजो थे। 15 वीं शताब्दी के मध्य में चंद्रपुररगढ़ जगतपाल (1455 से 14 9 3 ईसवी), जो कनकपाल के वंशज थे, के शासन के तहत एक शक्तिशाली रियासत के रूप में उभरा । 15 वीं शताब्दी के अंत में अजयपाल ने चंदपुरगढ़ पर सिंहासन किया और कई रियासतों को उनके सरदारों के साथ एकजुट करके एक ही राज्य में समायोजित कर लिया और इस राज्य को गढ़वाल के नाम से जाना जाने लगा। इसके बाद उन्होंने 1506 से पहले अपनी राजधानी चांदपुर से देवलगढ़ और बाद में 1506 से 1519 ईसवी के दौरान श्रीनगर स्थानांतरित कर दी थी।
राजा अजयपाल और उनके उत्तराधिकारियों ने लगभग तीन सौ साल तक गढ़वाल पर शासन किया था, इस अवधि के दौरान उन्होंने कुमाऊं, मुगल, सिख, रोहिल्ला के कई हमलों का सामना किया था। गढ़वाल के इतिहास में गोरखा आक्रमण एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह अत्यधिक क्रूरता के रूप में चिह्नित थी और ‘गोरखायनी’ शब्द नरसंहार और लूटमार सेनाओं का पर्याय बन गया था। दती और कुमाऊं के अधीन होने के बाद, गोरखा ने गढ़वाल पर हमला किया और गढ़वाली सेनाओ द्वारा कठोर प्रतिरोधों के बावजूद लंगूरगढ़ तक पहुंच गए। लेकिन इस बीच, चीनी आक्रमण की खबर आ गयी और गोरखाओं को घेराबंदी करने के लिए मजबूर किया गया। हालांकि 1803 में उन्होंने फिर से एक आक्रमण किया। कुमाऊं को अपने अधीन करने के बाद गढ़वाल में त्रिय(तीन) स्तम्भ आक्रमण किया हैं। पांच हज़ार गढ़वाली सैनिक उनके इस आक्रमण के रोष के सामने टिक नही सके और राजा प्रदीमन शाह अपना बचाव करने के लिए देहरादून भाग गए। लेकिन उनकी सेनाएं की गोरखा सेनाओ के साथ कोई तुलना नही हो सकती थी । गढ़वाली सैनिकों भारी मात्रा में मारे गए और खुद राजा खुडबुडा की लड़ाई में मारे गए । 1804 में गोरखा पूरे गढ़वाल के स्वामी बन गए और बारह साल तक क्षेत्र पर शासन किया।
सन 1815 में गोरखों का शासन गढ़वाल क्षेत्र से समाप्त हुआ, जब अंग्रेजों ने गोरखाओं को उनके कड़े विरोध के बावजूद पश्चिम में काली नदी तक खिसका दिया था। गोरखा सेना की हार के बाद, 21 अप्रैल 1815 को अंग्रेजों ने गढ़वाल क्षेत्र के पूर्वी, गढ़वाल का आधा हिस्सा, जो कि अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के पूर्व में स्थित है, जोकि बाद में, ‘ब्रिटिश गढ़वाल’ और देहरादून के दून के रूप में जाना जाता है, पर अपना शासन स्थापित करने का निर्णय लिया । पश्चिम में गढ़वाल के शेष भाग जो राजा सुदर्शन शाह के पास था, उन्होंने टिहरी में अपनी राजधानी स्थापित की । प्रारंभ में कुमाऊं और गढ़वाल के आयुक्त का मुख्यालय नैनीताल में ही था लेकिन बाद में गढ़वाल अलग हो गया और 1840 में सहायक आयुक्त के अंतर्गत पौड़ी जिले के रूप में स्थापित हुआ और उसका मुख्यालय पौड़ी में गठित किया गया।
आजादी के समय, गढ़वाल, अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों को कुमाऊं डिवीजन के आयुक्त द्वारा प्रशासित किया जाता था । 1960 के शुरुआती दिनों में, गढ़वाल जिले से चमोली जिले का गठन किया गया । 1969 में गढ़वाल मण्डल पौड़ी मुख्यालय के साथ गठित किया गया । 1998 में रुद्रप्रयाग के नए जिले के निर्माण के लिए जिला पौड़ी गढ़वाल के खिर्सू विकास खंड के 72 गांवों के लेने के बाद जिला पौड़ी गढ़वाल आज अपने वर्तमान रूप में पहुंच गया है।[6]
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