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रसायन सतह या अंतरापृष्ठ पर होने वाली परिघटनाओं से सबंधित क्षेत्र है। अंतरापृष्ठ या सतह को स्थूल प्रावस्थाओं से अलग दर्शाने के लिए एक हाइफन (-) या स्लैश ( / ) का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, एक ठोस एवं गैस के बीच अंतरापृष्ठ को, ठोस-गैस या ठोस/गैस द्वारा दर्शाया जाता है। पूर्ण मिश्रणीयता के कारण गैसों के मध्य कोई अंतरापृष्ठ नहीं होता। पृष्ठ रसायन में हम जिन स्थूल प्रावस्थाओं के संपर्क में आते हैं वे शुद्ध यौगिक या विलयन हो सकते हैं। अंतरापृष्ठ की मोटाई बहुधा कुछ अणुओं तक सीमित रहती है, परंतु इसका क्षेत्रफल स्थूल प्रावस्थाओं के कणों के आकार पर निर्भर करता है। बहुत-सी ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण परिधटनाएं जैसे संक्षारण, इलेवट्रोड प्रक्रम, विषमांगी उत्प्रेरण, विलीनीकरण एवं क्रिस्टलोकरण, अंतरापृष्ठ पर परिलक्षित होती हैं। पृष्ठ रसायन का विषय उद्योग, विश्लेषण कार्य एवं दैनिक जीवन को परिस्थितियों में कई अनुप्रयोग पता है।
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पृष्ठ अध्ययनों को सतर्कतापूर्वक निष्पादित करने हेतु पृष्ठ का वस्तुत: स्वच्छ होना अतिआवश्यक है। अति उच्च कोटि के निर्वात में आजकल धातुओं के अत्यधिक स्वच्छ पृष्ठ प्राप्त करना संभव है। ऐसे स्वच्छ सतह वाले ठोस पदार्थों को निर्वात में ही भंडारित करना चाहिए अन्यथा उनका पृष्ठ, वायु के प्रमुख अवयवों अर्थात् डाइनाइट्रोजन एवं डाइऑक्सीजन के अणुओं से आच्छादित हो जाएगा।[1]
ऐसे अनेक उदाहरण है जो यह प्रदर्शित करते हैं कि किसी ठोस के पृष्ठ की प्रवृत्ति, संपर्क में आने वली प्रावस्था के अणुओं को आकर्षित कर धारित करने की होती है। यह अणु केवल पृष्ठ पर ही रहते है एवं स्थूल में गहराई पर नहीं जाते। अणुक स्पीशीज का किसी ठोस या दव के स्थूल की अपेक्षा पृष्ठ पर संचित होना अधिशोषण कहलाता हे। अणुक स्पीशीज़ या पदार्थ जो कि पृष्ठ यर सांद्रित या संचित होता है अधिशोष्य कहलाता है एवं पदार्थ जिसके पृष्ठ पर अधिशोषण होता है, अधिशोषक कहलाता है। अधिशोषण निश्चित रूप से पृष्ठीय परिघटना है। विशेष रूप से बारीक चूर्ण अवस्था में ठोस, जो अधिक पृष्ठ क्षेत्रफल के होते हैं, जैसे चारकोल, सिलिका जेल, ऐलुमिना जेल, मिट्टी, कोलॉइड सूक्ष्म विभाजित धातुएं इत्यादि अच्छे अवशोषक का कार्य करते हैं।
यदि चूर्णित्त चारकोल वाले बंद पात्र में कई गैसें ली जाएं, तो ऐसा देखा जाता है कि पात्र में गैस का दाब घट जाता है। गैस के अणु चारकोल की सतह पर सांद्रित हो जाते है अर्थात् गैसें सतह पर अधिशोषित हो जाती हैं। एक कार्बनिक रंजक जैसे मेथिलीन ब्लू के विलयन में जब जांतव चारकोल मिलाकर विलयन को अच्छी प्रकार हिलाया जाता है, तो निस्यद (छनित्र) रंगहीन हो जाता है क्योकि रंजक के अणु चारकोल को सतह पर एकत्रित हो जाते हैं अर्थात् अधिशोषित हो जाते हैं।
अपरिष्कृत शर्करा के जलीय विलयन को जब जांतव चारकोल को परतों यर से प्रवाहित किया जाता है तो यह रंगहीन हो जाता है; क्योंकि रंगीन पदार्थ चारकोल द्वारा अधिशोषित कर लिए जाते हैं। सिलिका जैल की उपस्थिति में वायु शुष्क हो जाती है, क्योकि जल के अणु जेल की सतह पर अधिशोषित हो जाते हैं।[2] उपरोक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि ठोस पृष्ठ गैस या द्रव के अणुओं को अधिशोषण के कारण बंधे रखती हैं। किसी अधिशोषित पदार्थ को उस पृष्ठ से हटाना जिस पर वह अधिशोषित है, विशोषण कहलाता है।
अधिशोषण को उत्पत्ति इस तथ्य से होती है कि अधिशोषक के पृष्ठीय कण वैसे वातावरण में नहीं होते जिसमें स्थूल के अंदर के कण होते हैं। अधिशोषक के अंदर के कणों पर लगने वाले सभी बल आपस में संतुलित होते हैं परंतु पृष्ठीय कण सभी दिशाओं में अपनी प्रकार के परमाणुओं या अणुओं से घिरे नहीं होते, अत: उन पर असंतुलित या अधिशेष आकर्षण बल होते हैं। अधिशोषक के ये बल ही अधिशोषक कणों को आकर्षित करने के लिए उत्तरदायी होते हैँ। एक दिए गए ताप एवं दाब पर अधिशोषण की सीमा अधिशोषक के प्रति इकाई द्रव्यमान का क्षेत्रफल बढ़ने के साथ बढ़ती है।
दूसरा महत्वपूर्ण कारक जो अधिशोषण की विशेषता चित्रित करता है, वह है अधिशोषण ऊष्मा। अधिशोषण होने पर पृष्ठ के अवशिष्ट बलों में सदैव कमी आती है अर्थात् पृष्ठ ऊर्जा में कमी आती है जो कि ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है। अत: अधिशोषण सदा एक ऊष्माक्षेपी प्रक्रम होता है। दूसरे शब्दों में, अधिशोषण के तापीय धारिता में हमेशा ऋणात्मक बदलाव होता है। जब एक गैस अधिशोषित होती है, तो इसके अणुओं का संचलन सीमित हो जाता है। इससे अधिशोषण के पश्चात् गैस की एन्ट्रापी घट जाती है। अर्थात् एन्ट्रापी में ऋणात्मक परिवर्तन होता है। इस प्रकार अधिशोषण होने पर निकाय की एन्ट्रापी एवं तापीय धारिता घटती हैं। किसी प्रक्रम के स्वत: प्रवर्तित होने के लिए, ऊष्मागतिर्काय आवश्यकता यह है कि स्थिर ताप एवं दाब पर गिब्स ऊर्जा के क्षेत्र में ऋणात्मक परिवर्तन डोना चाहिए अर्थात् गिब्स ऊर्जा में कमी होनी चाहिए।
ठोसों पर गैसों के अधिशोषण दो प्रकार के होते हैं। यदि किसी ठोस के पृष्ठ पर गैंस का संचयन दुर्बल वान्डरवालस बलों के कारण होता है तो अधिशोषण को भौतिक अथिशोषण कहते हैं। जब गैस के अणु या परमाणु ठोस पृष्ठ पर रासायनिक बंधों से जुड़ते हैं तो अधिशोषण, रासायनिक अधिशोषण कहलाता हैं। रासायनिक बंध प्रकृति में सहसंयोजक या आयनिक डो सकते हैं। रासायनिक अधिशोषण में उच्च सक्रियण ऊर्जा सम्मिलित होती है, अत: इसे सामान्यतया सक्रियत अधिशोषण सदंभित किया जाता है। कभी-कभी ये दोनों प्रक्रम साथ-साथ होते है एवं अधिशोषण का प्रकार निश्चित करना आसान नहीं होता। निम्न ताप पर होने बाला भौतिक अधिशोषण ताप बढाने पर रस्रोवशोषण में बदल जाता है। उदाहरण के लिए, डाइहाइड्रोजन पहले निकेल को सतह पर वान्डरवालस बस्तों के द्वारा अधिशोषित होती है। तत्पश्चात् हाइड्रोजन के अणु, परमाणुओं में वियोजित होते हैं, जो कि रसोवशोषण द्वारा निकेल को सतह पर बंधे रहते हैं।[3]
विशिष्टता की कमी - एक अधिशोषक को दी गई सतह किसी विशिष्ट गैस के लिए कोई प्राथमिकता नहीं दर्शाती क्योकि वान्डरवालस बल व्यापक हौते हैं।
अधिक्योंष्य की प्रकृति - किसी ठोस द्वारा अधिशोषित गैस को मात्रा गैस का प्रकृति पर निर्भर करती है। सामान्यतया, सरलतापूर्वक द्रवणीय गैसें (यानि उच्च क्रांतिक तापों वाली) आसानी से अधिशोषित हो जाती हैं, क्यूंकि वान्डरवालस बल क्रांतिक तापों के निकट अधिक प्रबल होते हैं। इसीलिए एक ग्राम सक्रियत चारकोल, मेथेन (क्रांतिक ताप १९० केल्विन) को अपेक्षा अधिक सल्फर डाइअंविसाइड (क्रांतिक ताप ६३० केल्विन) को अधिशोषित करता है जो कि साढ़े चार एमएल- उइहाइन्होंजन (क्रांतिक ताप तैंतीस एमएल) से भी अधिक है।
उत्कमर्णाय प्रकृति - गैंस का ठोस पर अधिशोषण सामान्याया उत्कमणीय होता है।
अत: ठोस + गैस = गैस/ठोस + ऊर्जा
दाब बढाने पर अधिक गैंस अधिशोषित होती है क्योकि इससे गैस का आयतन कम होता है (ले-शातैलिए का सिद्धांत) और दाब घटाकर गैस को निकाला जा सकता है। अधिशोषण प्रक्रम ऊष्माक्षेपी होने के कारण हैं भौतिक अधिशोषण निम्न ताप पर सहजता से होता है और ताप बढ़ने रम घटता है (ले-शातैलिए का सिद्धांत)
अधिशोषक का पृष्ठीय क्षेत्रफल - अधिशोषण का परिमाण अधिशोषक के पृष्ठीय क्षेत्रफल के बढ़ने के साथ बढ़ता है। अत: महीन चूर्णित धातुएं एवं सरंध्र पदार्थ जिनका पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होता है, अच्छे अधिशोषक होते हैं।
अधिशोषण की एन्थाल्पी - निसंदेह, भौतिक अधिकांश एक ऊष्माक्षेपी प्रक्रम है परंतु अधिशोषण की एदृथैल्मी, अत्यधिक कम होती है। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि गैसीय अणुओं एवं ठोस सतह के मध्य आकर्षण केवल दुर्बल वान्डरवालस बलों के कारण होता है।
उच्व विशिष्टता - रसोवशोषण अतिविशिष्ट होता है एवं यह केवल तभी होता हैं जब अधिशोषक एवं अधिशोष्य के मध्य रासायनिक बंध बनने का कोई संभावना डो। उदाहरणार्थ, आँक्सीजन धातुओं पर आँक्साइड बनने के कारण अधिशोषित होती है एवं हाइड्रोजन का संक्रमण धातुओं द्वारा अवशोषण डाइड्राइड बनने के कारण होता है।
अनुत्कमर्णायता - रसोवशोषण में यौगिक बनने के कारण इसको प्रकृति अनुत्कमणीय होती है। रसोवशोषण भी एक ऊष्माक्षेपी प्रक्रम हैं परंतु उच्च सक्रियण ऊर्जा के कारण निम्न तापों पर यह बहुत धीमा हौता है। अधिकांश रासायनिक परिवर्तनों के समान अधिशोषण ताप बढने पर प्राय: बढ़ता है। निम्नताप पर गैस का भौतिक अधिशोषण, उच्च ताप पर रसोवशोषण में बदल सकता है। साधारणतया उच्च दाब भी रसोवशोषण के लिए सहायक होता है।
पृष्ठीय क्षेत्रफलड - भौतिक अधिशीषण के समान रसोवशोषण भी अधिशोषक का पृष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ने पर बढ़ता हैं। अधिशोषण की एन्थाल्पी - रसोवशोषण की एन्थाल्पी उच्च होती है क्योंकि इसमें रासायनिक बंध का निर्माण होता है।
अधिशोषण में पदार्थ केवल पृष्ठ पर सांद्रित होता है एवं अधिशोषक की सतह से स्थूल में प्रवेश नहीं करता, जबकि अवशोषण में पदार्थ, ठोस के संपूर्ण स्थूल में समानरूप से वितरित हो जाता है। उदाहरण के लिए जब एक चाक को स्याही में डुबोया जाता है तो चाक की सतह रंजक अणुओं के अधिशोषण के कारण स्याही का रंग धारण कर लेती है। केवल स्याही का विलायक अवशोषण के करण चाक में अंदर तक चला जाता है। चाक को तोड़ने पर यह अंदर से सफेद निकलती है। जल वाष्प का उदाहरण लेकर अधिशोषण एव अवशोषण में विभेद किया जा सकता है। जल वाष्प शुष्क कैल्सियम क्लोराइड के द्वारा अवशोषित होती है जबकि सिलिका जेल द्वारा अधिशोषित होती है। दूसरे शब्दों में, अधिशोषण में अधिशोष्य की सांद्रता केवल अधिशोषक के पृष्ठ पर बढ़ती है जबकि अवशोषण में सांद्रता ठोस के संपूर्ण स्थूल में एक समान रहती है।[4]
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