पाँच 'क'
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पाँच ककार (पंजाबी: ਪੰਜ ਕਕਾਰ पंज ककार) का अर्थ "क" शब्द से नाम प्रारंभ होने वाली उन ५ चीजों से है जिन्हें सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह द्वारा बख्शी गई रहित मर्यादा अनुसार सभी अनृतधारी सिखों को धारण करना लाजमी हैं।
ये चीजें हैं - केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कछैरा। इन के बिना खालसा पूर्ण नहीं माना जाता।
इनमें केश सबसे पहले आते है। केश सीखों की ऐसी निशानी है जो उनको बाकी मनुखता से अलग पहचान बनती है। सच्चे सिख को अपने शरीर का अकाल पुरख का हुक्म जान के उनकी संभाल रखनी है और केश कटवाने नही है। सिख रहित मर्यादा अनुसार केश कटवाने को केश कतल करना कहा गया है।
कड़ा सिख की अपने हाथों से अच्छे कर्म करने और धर्म की कीरत ( जीविका कमाने के लिए किया जाने वाला काम) करने की पहचान है।
पाँच ककार केवल प्रतीक नहीं, बल्कि खालसा भक्त की आस्था का आधार हैं जो सामूहिक रूप से बाहरी पहचान और सिख रहन-सहन, "सिख जीवन का आचरण"[1] के लिए प्रतिबद्धता का निर्माण करते हैं। एक सिख जिसने अमृत पान किया है और सभी पाँच ककार को खालसा ("शुद्ध") या अमृतधारी सिख ("अमृत संस्कार प्रतिभागी") के रूप में जाना जाता है, जबकि एक सिख जिसने अमृत नहीं लिया है, लेकिन श्री गुरु ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं का पालन करता है। जिसे सहजधारी सिख कहा जाता है।