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सिक्किम का पश्िचमी जिला पूर्वी हिमालय क्षेत्र के सबसे खूबसूरत और पवित्र स्थानों में एक माना जाता है। इस क्षेत्र की जैव विविधता इसे अन्य स्थानों से अलग करती है। साथ ही यहां स्थित अनेक मठों के कारण इसे मठभूमि नाम से भी संबोधित किया जाता है। यहां के कुछ मठ तो शताब्दियों पुराने हैं। एक रिज पर स्थित संगा चोलिंग मठ 1697 में बनवाया गया था। इसे सिक्किम राज्य के सबसे प्राचीन मठों में एक माना जाता है। यहां की खेचियापलरी झील धार्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। एशिया का दूसरा सबसे ऊंचा सस्पेंशन सिंगशोर ब्रिज यहां आने वाले पर्यटकों आकर्षण के केन्द्र में रहता है। पश्िचमी सिक्किम के हर हिस्से में खूबसूरत झरनों को देखा जा सकता है। इस जिले को लोकप्रिय जोंगरी-गोईचाला ट्रैकिंग रूट का प्रवेश द्वार माना जाता है।
यह मठ राज्य के सबसे प्राचीन मठों में एक है। मूलरूप से लोकप्रिय लामा ल्हातसुन चेपों द्वारा इस मठ को स्थापित किया गया था। यह प्राचीन मठ निंगमा बौद्ध से संबंधित है। प्रारंभ में राजशाही की प्रमुख धार्मिक गतिविधियां यही संपन्न होती थीं। समुद्र तल से 6840 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह मठ एक पहाड़ी के शिखर पर बना है। मठ से हिमालय पर्वत श्रंखला के खूबसूरत दृश्यों को देखा जा सकता है।
यह स्थान युकसोम के बाद सिक्किम की दूसरी पूर्ववती राजधानी थी। 1814 तक सिक्किम के राजाओं ने इसी स्थान से राज्य में शासन किया था। वर्तमान में यह स्थान क्षतिग्रस्त अवस्था में है। इन अवशेषों के शिखर से गहरी घाटियों के अलावा कंजनजंगा पर्वत शृंखला के खूबसूरत नजारे देखे जा सकते हैं।
यह मठ पेलिंग और पेमायंगत्से मठ के ऊपर एक रिज पर स्थित है। 1697 में बने इस मठ को भी सिक्किम के प्राचीनतम मठों में शुमार किया जाता है। इस मठ तक पहुंचने के लिए लगभग 40 मिनट की खड़ी चढाई चढनी होती है। इसके चारों तरफ के जंगलों की खूबसूरती देखते ही बनती है।
यह झील सिक्किम राज्य की सबसे पवित्र झीलों में एक मानी जाती है। चारो तरफ से वनों से घिरी यह झील बौद्धों और हिन्दुओं दोनों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। माना जाता है कि यहां की चिड़िया झील में एक पत्ती को भी नहीं बहने देतीं। यहां के शांत वातावरण में ठहरने की व्यवस्था है।
यह सिक्किम की प्रथम राजधानी थी। ऐतिहासिक दस्तवेजों के आधार पर कहा जाता सकता है कि सिक्किम साम्राज्य के प्रथम चोग्याल को 1641 में यहीं तीन लामाओं ने पवित्र किया था। सिक्किम का इतिहास यहीं से प्रारंभ होता है। जिले के लोगों की नजरों यह एक पवित्र स्थान माना जाता है।
यह मठ हृदय के आकार के एक पहाड़ी के शिखर पर बना है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार गुरु पद्मसंभव ने 8वीं शताब्दी में यहीं पर सिक्किमवासियों को आशीर्वाद दिया था। यद्यपि इस मठ को 18वीं शताब्दी में गदक सेंपा चेंपो ने बनवाया था। यह उन तीन लामाओं में एक थे जिन्होनें प्रथम चोग्यल को पवित्र किया था। यह मठ अति पवित्र चोरटन के लिए प्रसिद्ध है। भूमचू नामक यहां का जल पर्व भी बेहद लोकप्रिय है।
यह स्थान समुद्र तल से 10000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। वारसी रोडोडेनड्रोन अभयारण्य के लिए प्रसिद्ध है। हिमालय की खूबसूरती को यहां से निहारा जा सकता है। यह स्थान ट्रैकिंग के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां आने वाले पर्यटन गुरूकुंज में ठहर सकते हैं।
बागडोगरा में सिक्किम का करीबी एयरपोर्ट है, जो कोलकाता, मुंबई, दिल्ली आदि प्रमुख शहरों से वायुमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
रेलमार्ग से सिक्किम जाने के लिए न्यू जलपाईगुडी और सिलीगुड़ी से होकर जाना पड़ता है। यहां से बस या टैक्सी के द्वारा पश्चिमी सिक्किम पहुंचा जा सकता है।
सिलीगुडी और कलिंगपोंग से सड़क मार्ग द्वारा सीधे यहां पहुंचा जा सकता है। पड़ोसी राज्यों और राज्य के अन्य हिस्सों से यहां के लिए नियमित बसें चलती रहती हैं।
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