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पर्णहरित, हरितलवक, (chlorophyll) पर्ण हरिम या क्लोरोफिल एक प्रोटीनयुक्त जटिल रासायनिक यौगिक है। यह वर्णक पत्तों के हरे रंग का कारण है। यह प्रकाश-संश्लेषण का मुख्य वर्णक है। इसे फोटोसिन्थेटिक पिगमेंट भी कहते हैं। इसका गठन भी पत्तों में पाए जाते हैं।
क्लोरोफिल का महत्व इस कारण है कि यही सूर्यप्रकाश की ऊर्जा का अवशोषण कर वायु के कार्बन डाइऑक्साइड से पौधों में शर्कराओं, पॉलिशर्कराओं तथा अन्य जटिल कार्बनिक यौगिकों का सृजन करता है। यह स्वयं भी सूर्य के प्रकाश द्वारा ही बनता है। बहुत समय तक इसके संघटन के संबंध में हमारा ज्ञान अधूरा था। विल्स्टेटर (Willstatter) नामक जर्मन रसायनज्ञ ने 1911 ई. में इस वर्णक को शुद्ध रूप में पृथक् किया और इसके विघटित अवयवों के संघटन का अध्ययन करके इसका अस्थायी रासायनिक सूत्र निर्धारित किया। उन्हांने यह भी पता लगाया कि क्लोरोफिल दो प्रकार के होते हैं। एक को उन्होंने क्लारोफिल ऐल्फा, या क्लोरोफिल-ए और दूसरे को क्लारोफिल बीटा, या क्लारोफिल-बी, की संज्ञा दी। ये दोनों 3:1 के अनुपात में पत्तों में पाए जाते हैं। हरे पत्तों के 1,000 भाग में 2 भाग क्लोरोफिल-ए का, 3/4 भाग क्लोरोफिल-बी का, भाग ज़ैंथोफिल का और 1/6 भाग कैरोटीन का रहता है।
हरे पत्तों या सूखे पत्तों के चूर्ण से 85% ऐल्कोहल या 80% ऐसीटोन विलायक द्वारा क्लोरोफिल का निष्कर्ष निकाला जाता है। सूखे चूर्ण के लगभग दो किलोग्राम से प्राय: 13 ग्राम क्लोरोफिल प्राप्त होता है। क्लोरीफिल-ए कुछ नीलापन लिए हरे रंग का होता है और क्लोरोफिल-बी कुछ पीलापन लिए हरे रंग का। दोनों के संघटन में कोई विशेष अंतर नहीं है। एक में जहाँ मेथिल मूलक है, दूसरे में उसके स्थान में ऐल्डिहाइड़ मूलक है। इससे दोनों की ऑक्सीकरण क्रिया में अंतर आ जाता है। ऐल्फा क्लोरोफिल का विशिष्ट घूर्णन - 262 डिग्री और बीटा का - 267 डिग्री है। क्लोरोफिल-ए का आणविक सूत्र C55 H72 O5 N4 Mg और क्लोरोफिल-बी का C55 H70 O6 N4 Mg है।
क्लोरोफिल, में 2.6% मैग्नीशियम रहता है। इसमें लोहा या फॉस्फोरस नहीं होता। इसके जलविश्लेषण से मेथिल ऐल्कोहल और फीटोल ऐल्कोहल (C20 H400) तथा 8 पाइरोल केंद्रक प्राप्त होते हैं।
क्लोरोफिल, हीमोग्लोबिन से बहुत कुछ समानता रखता है। हीमोग्लोबिन मानव तथा अन्य प्राणियों के रक्त का आवश्यक अवयव है। इनमें कुछ अंतर भी है। क्लोरोफिल मोम सा पदार्थ है। हीमोग्लोबिन °हीम और ग्लोबिन का आणविक यौगिक है। क्लोरोफिल वस्तुत: एस्टर प्रकार का यौगिक है, जिसमें मेथिल और फीटोल ऐल्कोहल संयुक्त हैं।
क्लोरोफिल के जलविश्लेषण से मेथिल और फीटोल ऐल्कोहलों के साथ-साथ कार्बोक्सीलिक अम्लों के लवण प्राप्त होते हैं, जिन्हें क्लोरोफिलिन कहते हैं। क्लोरोफिलिन में अब भी मैग्नीशियम रहता है, जिसके कारण उसका रंग हरा होता है। यदि क्लोरोफिल का जल विश्लेषण क्लोरोफिलेज नामक एंजाइम में किया जाय, तो जो उत्पाद प्राप्त होता है उसे क्लोरोफिलाइड कहते हैं। क्लोरोफिलाइड सूक्ष्म क्रिस्टलीय पदार्थ है, जबकि क्लोरोफिल अक्रिस्टली होता है। अम्लों के उपचार से मैग्निशियम निकल जाता है और अब जो उत्पाद प्राप्त होता है उसे पॉरफिरिन कहते हैं। पॉरफिरिन में अम्ल और क्षार दोनों के गुण होते हैं। विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न अभिकर्मकों के उपचार से क्लोरोफिल से अनेक उत्पाद प्राप्त हुए हैं, जिनसे पता लगता है कि क्लोरोफिल में पाइरोल केंद्रक रहते हैं। इन उत्पादों के संघटन के आधार पर क्लोरोफिल का फिशर ने एक रासायनिक सूत्र 1939 ई. में दिया था।
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