पदार्थ
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चिरसम्मत भौतिकी और सामान्य रासायनिकी में, पदार्थ कोई भी वस्तु है जिसमें द्रव्यमान होता है और आयतन होने के कारण स्थान लेता है।[1][2] दैनन्दिन जिन वस्तुओंको छुआ जा सकता है, वे अन्ततः परमाणुओं से बनी होती हैं, जो अन्तःक्रियात्मक उपपारमाण्विक कणों से बनी होती हैं, और वैज्ञानिक उपयोग में, "पदार्थ" में साधारणतः परमाणु और उनसे बनी कोई भी वस्तु, और कोई भी कण (या संयोजन) जो इस तरह कार्य करते हैं जैसे कि उनके पास द्रव्यमान और आयतन दोनों हैं। यद्यपि इसमें द्रव्यमानरहित कण जैसे फोटॉन, या अन्य ऊर्जा परिघटनाएँ या तरंगें जैसे प्रकाश या ऊष्मा शामिल नहीं हैं। पदार्थ विभिन्न अवस्थाओं में उपस्थित है। इनमें ठोस, तरल और गैस जैसे चिरसम्मत अवस्थाएँ शामिल हैं - उदाहरणार्थ जल हिम, तरल पानी और वाष्प के रूप में मौजूद है - परन्तु अन्य अवस्थाएँ सम्भव हैं, जिनमें प्लास्मा, बोस-आइंस्टाइन संघनन, फर्मीओनिक संघनन और क्वार्क-ग्लूऑन प्लास्मा शामिल हैं।
पदार्थ की एक सामान्य या पारम्परिक परिभाषा है "कुछ भी जिसमें द्रव्यमान और आयतन होता है (स्थान घेरता है)"।
पदार्थ के कणों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
प्रत्येक पदार्थ के विशिष्ट या अभिलाक्षणिक गुणधर्म होते हैं। इन धर्मों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है- भौतिक गुणधर्म उदाहरणार्थ रंग, गन्ध, गलनांक, क्वथनांक, घनत्व आदि और रासायनिक गुणधर्म जैसे संगठन, ज्वलनशीलता, अम्ल, क्षार इत्यादि के साथ अभिक्रियाशीलता।
भौतिक गुणधर्मो को पदार्थ की पहचान या संगठन को परिवर्तित किए बिना मापा या देखा जा सकता है। रासायनिक गुणधर्मों को मापने या देखने हेतु रासायनिक परिवर्तन का होना आवश्यक होता है। भौतिक गुणों को मापने हेतु रासायनिक परिवर्तन का होना आवश्यक नहीं होता। विभिन्न पदार्थों की अभिलाक्षणिक अभिक्रियाएँ (जैसे आम्ल्य, क्षार्य, दाह्यता आदि) रासायनिक गुणधर्मों के उदाहरण हैं। रसायनज्ञ भौतिक एवं रासायनिक गुणों के आधार पर पदार्थ के व्यवहार का पूर्वानुमान तथा व्याख्या करते हैं। यह सब सावधानी पूर्वक परीक्षण एवं मापन से निर्धारित होता है।
पदार्थ तीन अवस्थाओं- ठोस, द्रव और गैस में पाये जाते हैं। ताप और दाब की दी गई निश्चित परिस्थितियों में, कोई पदार्थ किस अवस्था में रहेगा यह पदार्थ के कणों के मध्य के दो विरोधी कारकों अंतराआण्विक बल और उष्मीय ऊर्जा के सम्मिलित प्रभाव पर निर्भर करता है। अंतराआण्विक बलों की प्रवृत्ति अणुओं (अथवा परमाणुओं अथवा आयनों) को समीप रखने की होती है, जबकि उष्मीय ऊर्जा की प्रवृत्ति उन कणों को तीव्रगामी बनाकर पृथक रखने की होती है।[3]
ठोस |पदार्थ की ठोस अवस्था]]
ठोस में, कण बारीकी से भरे होते हैं। ठोस के कणों में आकर्षण बल (Force of attaraction) आधिक होने के कारण इनका निश्चित आकार और आयतन होता है। ठोस के कुछ आम उद्हरण - ex,-, ईट, बॉल, कार, बस आदि।
द्रव में कणों के मध्य बन्धन ठोस की तुलना में कम होती है अतः कण गतिमान होते हैं। इसका निश्चित आकर नहीं होता मतलब इसे जिस आकार में ढाल दो उसी में ढल जाता है लेकिन इसका आयतन निश्चित होता है।
गैस में कणों के मध्य बन्धन ठोस और द्रव की तुलना में कम होती है अतः कण बहुत गतिमान होते हैं। इनका न तो निश्चित आकार (Shape) और न ही निश्चित आयतन (Volume) होता है।
पदार्थ तीन भौतिक अवस्था में रह सकते है :- ठोस अवस्था, द्रव अवस्था और गैस अवस्था। उदाहरण के तौर पर, पानी बर्फ के रूप में ठोस अवस्था में रह सकता है, पानी के रूप में द्रव अवस्था में रह सकता है और भाप के रूप में गैस अवस्था में रह सकता है।
भारत के विभिन्न दर्शनकारों ने पदार्थों की भिन्न-भिन्न संख्या मानी है। गौतम ने 16 पदार्थ माने, वेदान्तियों ने चित् और अचित् दो पदार्थ माने, रामानुज ने उनमें एक 'ईश्वर' और जोड़ दिया। सांख्यदर्शन में 25 तत्त्व हैं और मीमांसकों ने 8 तत्त्व माने हैं। वस्तुतः इन सभी दर्शनों में ‘पदार्थ’ शब्द का प्रयोग किसी एक विशिष्ट अर्थ में नहीं किया गया, प्रत्युत उन सभी विषयों का, जिनका विवेचन उन-उन दर्शनों में है, पदार्थ नाम दे दिया गया।
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