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दशहरा पर्व ( dushera festival) पर इस पक्षी के दर्शन को शुभ और भाग्य को जगाने वाला माना जाता है। विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
नीलकंठ (अंग्रेजी:Indian roller, वैज्ञानिक नाम : कोरेशियस बेन्गालेन्सिस) रोलर वर्ग का पक्षी है। यह मुख्यतः उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में पाया जाता है जिसमें पश्चिमी एशिया से भारतीय उपमहाद्वीप तक शामिल हैं। इसे आईयूसीएन लाल सूची में अल्पतम चिन्ता की स्थिति में सूचीबद्ध किया गया है।[1]
नीलकंठ इंडियन रोलर | |
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बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, भारत में नीलकंठ पक्षी | |
LC (IUCN3.1[1]) | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | रज्जुकी (Chordata) |
वर्ग: | पक्षी (Aves) |
गण: | कोरैसीफ़ोर्मीस (Coraciiformes) |
कुल: | कोरैसीडाए (Coraciidae) |
वंश: | कोरेशियस |
जाति: | C. benghalensis |
द्विपद नाम | |
Coracias benghalensis (लीनियस, १७५८) | |
यह पक्षी मुख्य रूप से प्रजनन के मौसम में नर की हवाई कलाबाजी के लिए जाना जाता है। यह अक्सर सड़क के किनारे पेड़ों और तारों में बैठे हुए देखे जाते है और आमतौर पर खुले घास के मैदान और झाड़ियों के जंगलों में देखे जाते है। इन पक्षियों की सबसे बड़ी आबादी भारत में पायी जाती है और भारत के कई राज्यों ने इसे राज्य पक्षी के रूप में चुना है। इस लेख के सुधार हेतु......। आभार आपका, लेखक हिमांशु तिवारी(छोटी काशी) गोला गोकर्णनाथ जनपद खीरी।। @lekhk_
नीलकंठ 26-27 सेंटीमीटर लम्बा एक गठीला पक्षी है और इसी के प्रवासी यूरोपीय रोलर पक्षी से अपनी बनावट में यह समान दिखाई देता है। यूरोपियन रोलर का अग्रणी भाग नीला होता है, उसके विपरीत भारतीय रोलर (नीलकंठ) भूरा होता है। इसके सिर का ऊपरी हिस्सा (ताज) और पिछला हिसा (वेंट) नीला होता हैं। पंख सुरमई रंग की एक पट्टी के साथ गहरे बैंगनी-नीले रंग के होते हैं। पूंछ का रंग प्रशियाई नीला होता है जिसमें आकाशीय नीले रंग की पट्टी होती है और इसका मध्य भाग हल्का हरा होता है। गर्दन और गले सफेद धारियों के साथ बैगनी रंग के हैं। आँख के चारों ओर गेरुआ रंग के धब्बे होते हैं। पैरों की तीन आगे की उंगलियां तले में एकीकृत होती हैं। नीलकंठ के चोंच का उपरी भाग घुमावदार होता है जिसका अग्रभाग हुकनुमा होता है तथा पूरी चोंच लम्बी एवं संकुचित होती है। इसके नथुने लंबे और अनावृत होते हैं तथा चोंच के आधार पर लंबे, खड़े एवं कड़े बाल होते हैं।[2][3][4]
आमतौर पर इसकी तीन उप-प्रजातियां अभिज्ञात हैं। इसकी नामांकित प्रजाति पश्चिमी एशिया (इराक, अरब) से पूर्व में भारतीय उपमहाद्वीप में और भारत के भीतर उत्तर में विंध्य पर्वत श्रृंखला में पाया जाता है। उप-प्रजाति इंडिकस प्रायद्वीपीय भारत और श्रीलंका में पाया जाता है। दक्षिण में पाये जाने वाले प्रजाती में गर्दन गहरा लाल रंग का होता है जो नामांकित प्रजाती में अनुपस्थित है।
नीलकंठ एशिया में, इराक और संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण-पश्चिमी एशिया में भारतीय उपमहाद्वीप तक फैले हुए है, जिसमें श्रीलंका, लक्षद्वीप और मालदीव द्वीप शामिल हैं।[4] इसके मुख्य आवास में कृषि क्षेत्र, कम घने जंगल और घास के मैदान शामिल हैं।[2]
नीलकंठ को अक्सर प्रमुख पेड़ों या तारों पर देखा जाता है। वे अपने शिकार को पकड़ने के लिए जमीन पर उतरते हैं जिसमें कीड़े, मकड़ी, बिच्छू, छोटे सांप और उभयचर शामिल हो सकते हैं।[5][6][7] आग उन्हें आकर्षित करती है।[2] दक्षिणी भारत में कृषि आवासों में, वे लगभग 50 पक्षी प्रति वर्ग किमी के घनत्व पर पाए गए हैं। वे मुख्य रूप से 3-10 मीटर ऊंचे बसेरो पर बैठते हैं और ज्यादातर जमीन के कीड़ों को खाते हैं। उनके शिकार का लगभग 50% भृंग और 25% टिड्डे और झींगुर होते हैं।[8][9][10]
नीलकंठ भारत के आबादी वाले मैदानों और हिंदू किंवदंतियों से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि विष्णु के लिए इसकी पूजा की जाती है, और दशहरा या दुर्गा पूजा के अंतिम दिन जैसे त्योहारों के दौरान इसको पकड़ा एवं छोड़ा जाता है।[11] इसका नाम नीलकंठ का अर्थ "नीला गला" होता है,[12] जोकि हिन्दू देवता शिव से जुड़ा एक नाम (जिनका जहर पीने के कारण गला नील हो गया था) है।[13][14] ऐसा माना जाता था कि इसके छोडे हुए पंख को घास में मिलाकर गायों को खिलाने से उनकी दूध की पैदावार में वृद्धि होती है।[15] नीलकंठ को ओडिशा, कर्नाटक और तेलंगाना के भारतीय राज्यों द्वारा राज्य पक्षी के रूप में चुना गया है।[16][17]
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