निद्रा
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निद्रा अपेक्षाकृत निलंबित संवेदी और संचालक गतिविधि की चेतना की एक प्राकृतिक बार-बार आनेवाली रूपांतरित स्थिति है, जो लगभग सभी स्वैच्छिक मांसपेशियों की निष्क्रियता की विशेषता लिए हुए होता है।[1] इसे एकदम से जाग्रत अवस्था, जब किसी उद्दीपन या उत्तेजन पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता कम हो जाती है और अचेतावस्था से भी अलग रखा जाता है, क्योंकि शीत निद्रा या कोमा की तुलना में निद्रा से बाहर आना कहीं आसान है। निद्रा एक उन्नत निर्माण क्रिया विषयक (एनाबोलिक) स्थिति है, जो विकास पर जोर देती है और जो रोगक्षम तंत्र (इम्यून), तंत्रिका तंत्र, कंकालीय और मांसपेशी प्रणाली में नयी जान डाल देती है। सभी स्तनपायियों में, सभी पंछियों और अनेक सरीसृपों, उभयचरों और मछलियों में इसका अनुपालन होता है। यह अत्यावश्यक है। एक निश्चित आयुवर्ग के व्यक्तियों को निर्धारित सीमा में निद्रा अवश्य लेना चाहिए। जिस प्रकार शरीर को भोजन की आवश्यकता होती है,ठीक उसी तरह निद्रा भी ज़रूरी है।[2] निद्रा के उद्देश्य और प्रक्रिया सिर्फ आंशिक रूप से ही स्पष्ट हैं और ये गहन शोध के विषय हैं।