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निकिता सरगेयेविच ख़्रुश्चेव (रूसी: Никита Сергеевич Хрущёв, अंग्रेज़ी: Nikita Sergeyevich Khrushchev, जन्म : १५ अप्रैल १८९४, देहांत:११ सितम्बर १९७१) शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता थे। १९५३ से १९६४ में वह सोवियत साम्यवादी पार्टी के प्रथम सचिव रहे और फिर १९५८ से १९६४ तक सोवियत संघ के प्रधान मंत्री रहे। उनके काल में भूतपूर्व सोवियत तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन की कुछ नीतियाँ हटाई गई, राजनैतिक और आर्थिक मामलों कुछ खुलापन लाया गया और सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम को बढ़ावा दिया गया।[1] उन्ही के शासनकाल में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच क्यूबाई मिसाइल संकट नामक घटना भी हुई जो कुछ समीक्षकों के अनुसार शीत युद्ध का सबसे ख़तरनाक मोड़ था।[2] साधारण नागरिकों का जीवन बेहतर बनाने के लिए उन्होने बहुत सी नीतियाँ अपनाई लेकिन वह ज़्यादातर विफल रहीं, मसलन कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए चलाया गया नई भूमि अभियान।[3] १९६४ में उनके साम्यवादी पार्टी के साथियों ने उन्हें अध्यक्षता से हटा दिया और उनके स्थान पर लियोनिद ब्रेझ़नेव महासचिव की कुर्सी पर और अलिक्सेय कोसिगिन प्रधान मंत्री की जगह बैठे। उसके बाद उनकी कोई राजनैतिक भूमिका नहीं रही और १९७१ को उनका दिल के दौरे से देहांत हो गया।[4][5]
निकिता सेर्ग्येयेविच ख्रुश्चेव सोवियत संघ के साम्यवादी दल एवं आंतर्जातिक क्रांति आंदोलन के कार्यकर्ता, सोवियत संघ के साम्यवादी दल की केंद्रीय समिति के प्रथम सचिव तथा सोवियत संघीय मंत्रिमंडल के अध्यक्ष थे। इनका जन्म 17 जनवरी 1894 को कुर्स्की प्रांत के कालीनोवोक स्थान में एक सामान्य खान मजदूर परिवार में हुआ था। बाल्यावस्था से ही इनका जीवन श्रमशील रहा। सर्वप्रथम इन्होंने चरवाहे के रूप में, तदनंतर कुछ दिनों तक विभिन्न संस्थाओं-जैसे मशीन निर्माणशाला (वर्कशॉप), मशीनी पुरजों का मरम्मती कारखाना तथा दोनेत्स्क और यूक्रेन के कोयला क्षेत्र, कोक के रासायनिक कारखाने आदि में - काम सीखा और किया।
1918 ई. में साम्यवादी दल में सम्मिलित हुए। तब से 1920 तक गृहयुद्ध में दक्षिणी मोर्चे पर सक्रिय भाग लिया। युद्ध के पश्चात् दनबस की खान में सहायक व्यवस्थापक के पद पर रहे। पुन: दोनेत्स्क के औद्योगिक शिक्षण संस्थान में श्रम विभाग का कार्य सीखते रहे। इस बीच वे अनेक बार दल के सचिव निर्वाचित हुए। श्रमिक विभाग का कार्यसमापन करने के पश्चात उन्होंने दल की कलिंस्की जिला समिति के पेत्रवासिक शाखा के सचिव रूप में कार्य किया तथा यूजझ्का (आजकल दोनेत्स्क) नगर की दलीय जिला समिति के संचालक बने। तत्पश्चात् कियवे के दलीय कार्य का नेतृत्व किया। सन् 1929 में मस्कर की औद्योगिक विज्ञान परिषद में शिक्षा ली। वहाँ ये दलीय समिति के सचिव भी चुने गए। जनवरी, 1931 से मास्को में दल का नेतृत्व करते रहे। 1935 से 1938 तक मास्को क्षेत्र तथा नगर दल समिति के प्रथम सचिव बनाए गए। 1934 में दल की केंद्रीय समिति के सदस्य बने। जनवरी, 1938 में यूक्रेन साम्यवादी दल की केंद्रीय समिति के प्रथम सचिव नियुक्त हुए। 1938 में केंद्रीय समिति के पोलित ब्यूरो के उम्मीदवार सदस्य चुने गए तथा 1939 में सोवियत संघ की केंद्रीय समिति के पोलित ब्यूरो के सदस्य। सन् 1941 से 45 तक चलनेवाले महान् देशभक्तिपूर्ण युद्ध में दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र, स्तालिनग्राद, दक्षिणी क्षेत्र तथा यूक्रेन के मुख्य मोरचे के लिए गठित युद्धपरिषद के विशिष्ट सदस्य नियुक्त हुए। शत्रु पक्ष से चतुर्दिक, घिरे हुए सोवियत यूक्रेन क्षेत्र के गुरिल्ला युद्ध का संचालन किया तथा जर्मन फासिस्त आक्रामकों से यूक्रेन को मुक्त कराने में बड़े जीवट का परिचय दिया। फरवरी, 1944 में ये लेफ्टिनेंट जनरल बनाए गए। 1947 में मार्च से दिसंबर तक सोवियत यूक्रेन की मंत्रिपरिषद् के अध्यक्ष हुए। दिसंबर, 1947 से दिसंबर, 1949 तक पुन: यूक्रेन की साम्यवादी दल की केंद्रीय समिति के प्रधान सचिव रहे। दिसंबर, 1949 से मार्च, 1952 तक साम्यवादी दल की केंद्रीय तथा मास्कोक्षेत्रीय समिति के सचिव नियुक्त हुए। 1952 में सोवियत संघ के साम्यवादी दल की केंद्रीय समिति के सचिव तथा सभापति मंडल के सदस्य चुने गए। सिंतबर, 1953 में ये सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के प्रधान सचिव बनाए गए। मार्च, 1958 में ये सोवियम संघ के प्रधान हुए।
निकिता ख्रुश्चेव के दिखलाए पथ पर सोवियत साम्यवादी दल तथा सरकार ने सन् 1951 में सर्वप्रथम महान राजनीतिक तथा अर्थनीतिक दिशा में वैधानिक योजनाएँ बनानी प्रारंभ की, सोवियत समाज को साम्यवाद की दिशा में तीव्र गति से संचालित किया और स्तालिन के काल में देश में जो कुछ अवैध होता था उसे समाप्त कर लेनिन के महान आदेश तथा मानक पर राष्ट्रीय और दलीय जनतंत्रवाद का पुन:स्थापन किया। सोवियत अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के पश्चात आगे चलकर औद्योगीकरण तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जनतंत्रीकरण का प्रबंध कर सोवियत संस्थाओं में सही कदम उठाया। ख्रुश्चेव ने अछूती तथा परती धरती पर अन्न उत्पादन के लिए लोगों को सर्वप्रथम अनुप्रेरित किया। देश की जनता के आर्थिक विकास तथा गृहनिर्माण में महान सफलता प्राप्त की। श्रमजीवी वर्ग के जीवन के भौतिक तथा सांस्कृतिक स्तर की प्रगति हुई। देश के महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों, मिलों, राजकीय सोवियत फार्मों में स्वयं जाकर नियमित रूप से मिलते थे। इस प्रकार इन्होंने नगरों तथा ग्रामों के श्रमजीवियों से घनिष्ठतम संबंध स्थापित किया। असाधारण प्रतिभाशाली नेता लेनिन के समान इनका भी मानवजीवन के विषय में गंभीर ज्ञान था।
ख्रुश्चेव साम्यवादी दल के महान प्रचारक तथा विचारक थे। मार्क्सवादी तथा लेनिनवादी सिद्धांतों के महत्वपूर्ण विषयों पर इन्होंने रचनात्मक विकास किया। ख्रुश्चेव विश्वशांति के लिए, विश्व के विभिन्न देशों की समाजवादी व्यवस्था के शांतिपूर्ण सहअस्तित्व तथा जनमैत्री के लिए महान प्रयास करते रहे। ये विभिन्न महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं में सक्रिय भाग लेते रहे। जुलाई, 1955 में चार बड़े राष्ट्रों के प्रधानों के सम्मेलन में निकिता ख्रुश्चेव ने भी भाग लिया था। विश्वशांति करने, जनमैत्री बढ़ाने तथा विदेशों के राजनीतिज्ञों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करने के महान उद्देश्य से प्रेरित होकर ख्रुश्चेव ने सन 1954 से 1962 तक यूरोप, एशिया तथा अमरीका आदि के विभिन्न देशों की कई बार यात्राएँ कीं।
1959 तथा 1960 में ख्रुश्चेव ने न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्रसंघ के साधारण अधिवेशन में भाषण दिया। वहाँ इन्होंने विश्वशांति पर सोवियत संघ के साधारण अधिवेशन में भाषण दिया। विश्वशांति के हेतु सोवियत संघ की विदेशनीति पर प्रकाश डाला। 18 सितंबर 1959 को ख्रुश्चेव ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के साधारण अधिवेशन की 14वीं बैठक में आम तथा पूर्ण निरस्त्रीकरण पर प्रारूप उपस्थित किया। एक वर्ष में ही इन्होंने पुन: 13 सितंबर 1960 को, संयुक्त राष्ट्रसंघ के साधारण अधिवेशन की 15वीं बैठक में औपनिवेशक देशों तथा जनता के स्वाधीनतादान की घोषणा में निरस्त्रीकरण के संबंध में सोवियत सरकार का वक्तव्य तथा आम और पूर्ण निरस्त्रीकरण पर मौलिक स्थिति की संधि पर अपना विचार प्रकट किया।
कम्यूनिस्ट पार्टी तथा सोवियत जनजीवन पर असाधारण स्वीकृतियों के कारण इनको तीन बार 1954, 1957, 1961 में समाजवादी श्रमवीर की उपाधि प्रदान की गई। विश्वशांति की रक्षा के लिए इनकी असाधारण प्रतिभा पर मानवजाति में शांति दृढ़ करने के लिए अंतरराष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार प्रदान किया गया।
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