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अंतर सरकारी सैन्य गठबंधन विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (अंग्रेज़ी: North Atlantic Treaty Organization, NATO ; नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन, नाटो ) एक सैन्य गठबंधन है, जिसकी स्थापना 4अप्रैल 1949 को हुई। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। संगठन ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके अन्तर्गत सदस्य राज्य बाहरी आक्रमण की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे।
नाटो गठबन्धन का ध्वज | |
स्थापना | ४ अप्रैल १९४९ |
---|---|
मुख्यालय | ब्रुसेल्स, बेल्जियम |
सदस्यता |
30+1 राज्य
प्रमुख देश जो रूसी संगठन का भाग नहीं थे अलबानिया
बेल्जियम बुल्गारिया कनाडा क्रोएशिया चेक गणराज्य डेनमार्क एस्तोनिया फ्रांस जर्मनी यूनान हंगरी आइसलैंड इटली लात्विया लिथुआनिया लक्ज़मबर्ग नीदरलैण्ड नॉर्वे पोलैंड पुर्तगाल रोमानिया स्लोवाकिया स्लोवेनिया स्पेन तुर्की यूनाइटेड किंगडम संयुक्त राज्य अमेरिका |
आधिकारिक भाषा |
अंग्रेजी फ्रांसीसी |
महासचिव |
जेन्स स्टोल्टेनबर्ग |
सैन्य समिति के अध्यक्ष |
गियामपाओलो दी पाओला |
जालस्थल |
www |
गठन के प्रारम्भ के कुछ वर्षों में यह संगठन एक राजनीतिक संगठन से अधिक नहीं था। किन्तु कोरियाई युद्ध ने सदस्य देशों को प्रेरक का काम किया और दो अमरीकी सर्वोच्च कमाण्डरों के दिशानिर्देशन में एक एकीकृत सैन्य संरचना निर्मित की गई। लॉर्ड इश्मे पहले नाटो महासचिव बने, जिनकी संगठन के उद्देश्य पर की गई टिप्पणी, "रूसियों को बाहर रखने, अमेरीकियों को अन्दर और जर्मनों को नीचे रखने" (के लिए गई है।) खासी चर्चित रही। यूरोपीय और अमरीका के बीच सम्बन्ध की भाँति ही संगठन की ताकत घटती-बढ़ती रही। इन्हीं परिस्थितियों में फ्रांस स्वतन्त्र परमाणु निवारक बनाते हुए नाटो की सैनिक संरचना से 1966 से अलग हो गया। मैसिडोनिया ६ फरवरी 2019 को नाटो का ३०वाँ सदस्य देश बना।[1]
1989 में बर्लिन की दीवार के गिरने के पश्चात संगठन का पूर्व की तरफ बाल्कन हिस्सों में हुआ और वारसा संधि से जुड़े हुए अनेक देश 1999 और 2004 में इस गठबन्धन में शामिल हुए। १ अप्रैल 2009 को अल्बानिया और क्रोएशिया के प्रवेश के साथ गठबन्धन की सदस्य संख्या बढ़कर 28 हो गई। संयुक्त राज्य अमेरिका में 11 सितम्बर 2001 के आतंकवादी आक्रमण के पश्चात नाटो नई चुनौतियों का सामना करने के लिए नए सिरे से तैयारी कर रहा है, जिसके तहत अफ़गानिस्तान में सैनिकों की और इराक में प्रशिक्षकों की नियुक्ति की गई है।
बर्लिन प्लस समझौता नाटो और यूरोपीय संघ के बीच 16 दिसम्बर 2002 को बनाया का एक व्यापक पैकेज है, जिसमें यूरोपीय संघ को किसी अन्तरराष्ट्रीय विवाद की स्थिति में कार्यवाही के लिए नाटो परिसम्पत्तियों का उपयोग करने की छूट दी गई है, बशर्ते नाटो इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं करना चाहता हो। नाटो के सभी सदस्यों की संयुक्त सैन्य खर्च दुनिया के रक्षा व्यय का 70% से अधिक है, जिसका संयुक्त राज्य अमेरिका अकेले दुनिया का कुल सैन्य खर्च का आधा हिस्सा खर्च करता है और ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और इटली 15% खर्च करते हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व रंगमंच पर अवतरित हुई दो महाशक्तियों सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का प्रखर विकास हुआ। फुल्टन भाषण व ट्रूमैन सिद्धान्त के तहत जब साम्यवादी प्रसार को रोकने बात कही गई तो प्रत्युत्तर में सोवियत संघ ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर १९४८ में बर्लिन की नाकेबन्दी कर दी। इसी क्रम में यह विचार किया जाने लगा कि एक ऐसा संगठन बनाया जाए जिसकी संयुक्त सेनाएँ अपने सदस्य देशों की रक्षा कर सके।
मार्च १९४८ में ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड तथा लक्सेमबर्ग ने बूसेल्स की सन्धि पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य सामूहिक सैनिक सहायता व सामाजिक-आर्थिक सहयोग था। साथ ही सन्धिकर्ताओं ने यह वचन दिया कि यूरोप में उनमें से किसी पर आक्रमण हुआ तो शेष सभी चारों देश हर सम्भव सहायता देगे।[2]
इसी पृष्ठभूमि में बर्लिन की घेराबन्दी और बढ़ते सोवियत प्रभाव को ध्यान में रखकर अमेरिका ने स्थिति को स्वयं अपने हाथों में लिया और सैनिक गुटबन्दी दिशा में पहला अति शक्तिशाली कदम उठाते हुए उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन अर्थात् नाटो की स्थापना की। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद १५ में क्षेत्रीय संगठनों के प्रावधानों के अधीन उत्तर अटलांटिक सन्धि पर हस्ताक्षर किए गए। उसकी स्थापना ४ अप्रैल, १९४९ को वांशिगटन में हुई थी जिस पर १२ देशों ने हस्ताक्षर किए थे। ये देश थे- फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका।[3]
शीत युद्ध की समाप्ति से पूर्व यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी, स्पेन भी सदस्य बने और शीत युद्ध के बाद भी नाटों की सदस्य संख्या का विस्तार होता रहा। १९९९ में मिसौरी सम्मेलन में पोलैण्ड, हंगरी, और चेक गणराज्य के शामिल होने से सदस्य संख्या १९ हो गई। मार्च २००४ में ७ नए राष्ट्रों को इसका सदस्य बनाया गया फलस्वरूप सदस्य संख्या बढ़कर २६ हो गई। इस संगठन का मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में हैं।[4]
नाटों का मुख्यालय ब्रसेल्स में हैं। इसकी संरचना 4 अंगों से मिलकर बनी है-
1. परिषद : यह नाटों का सर्वोच्च अंग है। इसका निर्माण राज्य के मंत्रियों से होता है। इसकी मंत्रिस्तरीय बैठक वर्ष में एक बार होती है। परिषद् का मुख्य उत्तरायित्व समझौते की धाराओं को लागू करना है।[1]
2. उप परिषद् : यह परिषद् नाटों के सदस्य देशों द्वारा नियुक्त कूटनीतिक प्रतिनिधियों की परिषद् है। ये नाटो के संगठन से सम्बद्ध सामान्य हितों वाले विषयों पर विचार करते हैं।
3. प्रतिरक्षा समिति : इसमें नाटों के सदस्य देशों के प्रतिरक्षा मंत्री शामिल होते हैं। इसका मुख्य कार्य प्रतिरक्षा, रणनीति तथा नाटों और गैर नाटों देशों में सैन्य संबंधी विषयों पर विचार विमर्श करना है।
4. सैनिक समिति : इसका मुख्य कार्य नाटों परिषद् एवं उसकी प्रतिरक्षा समिति को सलाह देना है। इसमें सदस्य देशों के सेनाध्यक्ष शामिल होते हैं।
1. नाटों के स्वरूप व उसकी भूमिका को उसके संधि प्रावधानों के आलोक में समझा जा सकता है। संधि के आरंभ में ही कहा गया हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र के सदस्य देशों की स्वतंत्रता, ऐतिहासिक विरासत, वहाँ के लोगों की सभ्यता, लोकतांत्रिक मूल्यों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के शासन की रक्षा की जिम्मेदारी लेगे। एक दूसरे के साथ सहयोग करना इन राष्ट्रों का कर्तव्य होगा इस तरीके से यह संधि एक सहयोगात्मक संधि का स्वरूप लिए हुए थी।[6]
2. संधि प्रावधानों के अनुच्छेद 5 में कहा गया कि संधि के किसी एक देश या एक से अधिक देशों पर आक्रमण की स्थिति में इसे सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों पर आक्रमण माना जाएगा और संधिकर्ता सभी राष्ट्र एकजुट होकर सैनिक कार्यवाही के माध्यम से एकजुट होकर इस स्थिति का मुकाबला करेंगे। इस दृष्टि से उस संधि का स्वरूप सदस्य देशों को सुरक्षा छतरी प्रदान करने वाला है।
3. सोवियत संघ ने नाटो को साम्राज्यवादी और आक्रामक देशों के सैनिक संगठन की संज्ञा दी और उसे साम्यवाद विरोधी स्वरूप वाला घोषित किया।
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