नलचम्पू
From Wikipedia, the free encyclopedia
नलचम्पू एक चम्पूकाव्य है जिसके रचयिता त्रिविक्रम भट्ट हैं। संस्कृत साहित्य में चम्पूकाव्य का प्रथम निदर्शन इसी ग्रन्थ में हुआ है।[उद्धरण चाहिए] इसमें चंपू का वैशिष्ट्य स्फुटतया उद्भासित हुआ है। [उद्धरण चाहिए]
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (जून 2014) स्रोत खोजें: "नलचम्पू" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
दक्षिण भारत के राष्ट्रकूटवंशी राजा कृष्ण (द्वितीय) के पौत्र, राजा जगतुग और लक्ष्मी के पुत्र, इंद्रराज (तृतीय) के आश्रय में रहकर त्रिविक्रम ने इस रुचिर चंपू की रचना की थी।[उद्धरण चाहिए] इंद्रराज का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 972 (915 ई.) में हुआ था और उनके आश्रित होने से कवि का भी वही समय है- दशम शती का पूर्वार्ध। इस चंपू के सात उच्छ्वासों में नल तथा दमयंती की विख्यात प्रणयकथा का बड़ा ही चमत्कारी वर्णन किया गया है। काव्य में सर्वत्र शुभग संभग श्लेष का प्रसाद लक्षित होता है।[उद्धरण चाहिए]