नलकूबर, कुबेर के पुत्र हैं जिन्हें कभी-कभी नलकुबेर भी कहा जाता है। इनके जन्म के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ हैं। वायुपुराण में इनका जन्म कुबेर की पत्नी ऋद्धि से बताया जाता है और स्कन्दपुराण में ऋद्धि के स्थान पर वृद्धि नाम मिलता है। महाभारत के अनुसार कौकेर तीर्थ में तपस्या करने से कुबेर को पुत्र प्राप्त हुआ और स्कंदपुराणानुसार उनकी पत्नी श्रीमुखी के अभीष्ट तृतीय व्रत करने से नलकुबेर का जन्म हुआ।

स्कंदपुराण में ही लिखा है कि गंधमादनपर्वत के लक्ष्मी तीर्थ में स्नान करने से ही नलकुबेर को रंभा अप्सरा की प्राप्ति हुई। नलकुबेर और उनके भाई मणिग्रीव सुरापान में मस्त होकर हिमालय के पास गंगा जी में स्त्रियों के साथ विहार कर रहे थे कि उधर से नारद जी निकले। उन्हें देखकर स्त्रियों ने तो अपने वस्त्र सँभाल लिए पर दोनों भाइयों ने ऋषि को पहचाना तक नहीं। इसपर नारद जी ने उन दोनों को वृक्ष हो जाने का शाप दे दिया।

कहीं-कहीं लिखा है कि शाप देवल ऋषि ने दिया था। इसका सुन्दर वर्णन श्रीमद्भागवत में है। इस शाप के अनुसार ये दोनों वृन्दावन मे यमलार्जुन हुए और श्रीकृष्ण जी के उन्हें छू देने पर ही दोनों का उद्धार हुआ। रामायण के अनुसार नलकुबेर की स्त्री रंभा को रावण उठा ले गया था और उन्हीं के शाप से रावण के मस्तक के सात टुकड़े हो गए थे।

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