नरक
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
नरक, स्वर्ग का विलोमार्थक है। विश्व की प्राय: सभी जातियों और धर्मों की आदिम तथा प्राचीन मान्यता के अनुसार मरणोत्तर अधौलोक, स्थान या अवस्था जहाँ किसी देवता, देवदूत या राक्षस द्वारा अधर्मी, नास्तिक, पापी और अपराधी दुष्टात्माएँ दंडित होती हैं।
सामान्यतः ठंडे देशों में नरक की कल्पना हिमाच्छादित लोक और गर्म देशों में अग्नितप्त लोक के रूप में मिलती है। इसकी स्थिति, संख्या, प्रकार और दंडयातना के संबंध में विविध कल्पनाएँ हैं।
हिंदू नरक दक्षिण और पाताल के निम्नतल भाग में कल्पित है, जहाँ चित्रगुप्त की पुष्टि पर यमदेवता पापी को उसके अपराध के अनुसार 28 नरकों में से किन्हीं की यातना देने का निर्णय अपने दूतों को देते हैं। अथर्ववेद से भागवत पुराण तक आते आते नरकों की संख्या 50 करोड़ हो गई जिनमें 21, 28 या 40 मुख्य हैं।
मुस्लिम नरक ('नरक (दोजख)' और 'जहन्नुम') विशाल अग्निपुंज के समान है और सातवें तबके में तहत-उल-शरी में स्थित है जहाँ मालिक नामक देवदूत के अनुशासन में 19 स्वीरों (जबानिया) या दूतों द्वारा ईश्वरी कृपा से वंचित गुनहगारों को धकेल दिया जाता है।
पारसी नरक (गाथा के अनुसार 'द्रूजो देमन', 'पहलवी' द्रूजोत्मन) उत्तर दिशा में स्थित अंधकार तथा दुर्गंधपूर्ण, आर्तनाद से मुखरित और असह्य शीतल है।
ईसाई नरक तिमिराच्छन्न बृहत् गर्त, यंत्रणाभोग का कारागार, चिर प्रज्वलित अग्निलोक और अग्निसरोवर के रूप में वर्णित है।
इस प्रकार मुख्यतः दो ढंग के नरकों का उल्लेख मिलता है - शीतकर और दाहकर। बौद्धधर्म में इन दोनों प्रकार के नरकों की अलग अलग संख्याएँ क्रमश: आठ और सात हैं। विद्वानों का मत है कि आग्नेय नर की कल्पना ईसाई मूल की है किंतु इसे पूरी तरह सही नहीं कहा जा सकता।
नरक के स्वरूपों और परलोक में पापियों के प्रति दंड की धारणा का क्रमिक विकास हुआ है। भारतीय नरक कल्पना का इतिहास ऋग्वैदिक अथवा उससे भी प्राचीन हो सकता है। इसका क्रमिक विकास अथर्ववेद (1/11, 4/5/5, 5/3/11, 5/19, 8/2/24, 11/6/11, 18/3/3), वाजसनेय संहिता (30/5), शतपथ ब्राह्मण (6/2/3/27) और परवर्ती पुराण साहित्य (पद्म. अ. 34, पाताल खं. अ. 47; वि.पु. 2/6/7- 32; मार्क.पु. 19/3/39 ब्रह्म वै., प्रकृति खं., अ. 27- 28, भा.पु. 5/26/5) में हुआ है। इस क्रम में कठोपनिषद् तथा दर्शनशास्त्र में नरक और मृतात्मा के स्वरूप की दार्शनिक व्यख्याएँ भी हुई हैं। इसी प्रकार बाइबिल में आए अनके पदों के अंग्रेजी रूपांतर 'हेल' के अर्थ में ईसाई नरक की विभिन्न व्याख्याएँ प्राप्त होती हैं। यह पहले मुख्यत: ओल्ड टेस्टामेंट के 'शिऊन' शब्द का अंग्रेजी रूपांतर था जो प्राचीन यहूदी दृष्टिकोण के अनुसार मृतात्माओं का आवास है। फिर वही शब्द 'हेडेस' (Hedes) के लिए प्रयुक्त होने लगा। लेकिन इसका प्रयोग 'जेहेन्ना' के लिए सर्वाधिक होता है जिसका नामकरण हेनोम की घाटी के एक स्थान के नाम पर हुआ और बाद में 'भावीदंड' के लिए प्रसिद्ध हुआ। 'हेल' के संबंध में परंपरित मान्यता के विरुद्ध ईसाई धर्मसुधारकों के विचार कुछ दूसरे थे। मार्टिन लूथर का विचार था कि पापात्माएँ मृत्यु की स्थिति में अपनी नास्तिक और मलिन वृत्ति के कारण 'अंतिम दिन' के पूर्व तक पीड़ित होती हैं। नरक को व ईश्वर के उपदेशों और आस्तिकता से शून्य दूषित अंत: करण की संज्ञा देते हैं। इस प्रकार ईसाई नरक और नरकदंड की मान्यताओं का विकास स्वयंसिद्ध है। इसके अतिरिक्त नरकभोग की अवधि, परिमाण, यंत्रणा की प्रकृति आदि को लेकर भी पाश्चात्य तथा प्राच्य धर्मों में मतभेद है।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.