द्विध्रुवी ट्रांजिस्टर की अभिनति
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द्विध्रुवी ट्रांजिस्टर से बने प्रवर्धक को समुचित ढंग से अभिनत करना पड़ता है तभी यह अपेक्षित ढंग से कार्य कर सकता है अन्यथा विविध प्रकार की समस्याएँ आ सकतीं हैं। बीजेटी को अभिनत करने के लिए कई तरह के नेटवर्क प्रयोग किए जाते हैं, जिनकी अपनी-अपने गुणदोष हैं। अलग-अलग बीजेटी से निर्मित प्रवर्धकों में प्रायः प्रतिरोधों के विभिन्न विन्यासों की सहायता से अभिनत किया जाता है जबकि एकीकृत परिपथों में इसकी अपेक्षा अधिक उन्नत अभिनति का उपयोग किया जाता है (बैण्ड-गैप वोल्टेज रिफरेन्स, करेन्ट मिरर आदि)।
अभिनति की डिजाइन में इस बात को सुनिश्चित किया जाता है कि ट्रांजिस्टर का ताप बदलने पर, ट्रांजिस्टर का β बदलने पर या थोड़ा अलग β वाला ट्रांजिस्टर लगाने पर, या डीसी सप्लाई के वोल्टेज में थोड़ा परिवर्तन होने पर भी ट्रांजिस्टर का संचालन बिन्दु उतना अधिक न बदले ताकि ट्रांजिस्टर अपने सक्रिय क्षेत्र में ही बना रहे और अपेक्षित ढंग से कार्य कर सके।
ट्रांजिस्टर के 'संचालन बिन्दु' का अर्थ है- जब इन्पुट संकेत न लगा हो उस स्थिति में ट्रांजिस्टर का डीसी कलेक्टर-एमिटर वोल्टता (Vce) और कलेक्टर धारा (Ic)। इसे 'बायस-बिन्दु' , 'क्विसेन्ट बिन्दु' या 'क्यू-बिन्दु' भी कहते हैं।