Loading AI tools
भारत में ब्रिटिश द्वारा आयोजित सभा, जब सम्राट या महारानी उत्तराधिकार संभालते हैं विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
दिल्ली दरबार, दिल्ली, भारत में राजसी दरबार होता था। यह इंगलैंड के महाराजा या महारानी के राजतिलक की शोभा में सजते थे। ब्रिटिश साम्राज्य चरम काल में, सन 1877 से 1911 के बीच तीन दरबार लगे थे। सन 1911 का दरबार एकमात्र ऐसा था कि जिसमें सम्राट स्वयं, जॉर्ज पंचमआये थे।
सन 1877 का दरबार, जिसे प्रोक्लेमेशन दरबार, या घोषणा दरबार कहा गया है, 1 जनवरी 1877 को महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित और राजतिलक करने हेतु लगा था। 1877 का दरबार, मुख्यतः एक आधिकारिक घटना मात्र थी, जिसमें 1903 एवं 1911 जैसी रौनक नहीं थी। इसमें लाय्टन के प्रथम अर्ल, रॉबर्ट बल्वर लाएटन, भारत के वाइसरॉय, कई महाराजा, नवाब और बुद्धिजीवी पधारे थे। इस दरबार का मुख्य बिन्दु था- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से अधिकांश सत्ता परिवर्तन बर्तानिया सरकार को होना था। यही दरबार, भारत के महान परिवर्तन का आरम्भ था। इसमें स्वतंत्र भारत का अभियान, औपचारिक तौर पर आरम्भ हुआ था।[1]
विक्टोरिया मेमोरियल, कोलकाता के अंदर महारानी विक्टोरिया के संदेश का अंश शिलालेखित है, जो कि भारत की जनता को 1877 के दरबार में प्रस्तुत किया गया था।
सभी सम्मानित अतिथियों को महारानी को भारत की साम्राज्ञी बनने की इस घोषणा के स्मारक रूप में एक पदक भेंट किया गया था।[2]
रामनाथ टैगोर को लॉर्ड लिट्टन, भारत के वाइसरॉय द्वारा, महाराजा बनाया गया।[3]
यह वही जगमगाता दरबार था, जिसमें घर के कते हुए स्वच्छ खादी में आया एक युवक उठा और पुणे सार्वजनिक सभा की ओर से एक दृष्टांत पढ़ा। गणेश वासुदेव जोशी ने, अति शिष्ट भाषा में अपनी एक मांग पढ़ी।
इस मांग से, यह कहा जा सकता है, कि एक स्वतंत्र भारत का अभियान औपचारिक तौर पर आरम्भ हो गया था।[4]
यह दरबार एडवर्ड सप्तम एवं महारानी एलेक्जैंड्रा को भारत के सम्राट एवं सम्राज्ञी घोषित करने हेतु लगा था। लॉर्ड कर्ज़न द्वारा दो पूरे सप्ताहों के कार्यक्रम आयोजित करवाये गये थे। यह शान शौकत के प्रदर्शन का एक बड़ा मौका था। इस धूम धाम का मुकाबला ना तो 1877 का, ना ही आनेवाला 1911 का दरबार कर पाया। 1902 के अंतिम कुछ ही महीनों में, एक निर्वासित समतल मैदान को एक सुंदर भव्य अस्थायी नगर में परिवर्तित कर दिया गया था। इसमें एक अस्थायी छोटी रेलगाड़ी प्रणाली लोगों की बड़ी भीड़ को दिल्ली के बाहर से यहां तक लाने-ले जाने हेतु चलायी गयी थी। एक पोस्ट ऑफिस, जिसकी अपनी मुहर थी। दूरभाष एवं बेतार सुविधाएं, विशेष रूप से निर्धरित वर्दी में एक पुलिस बल, तरह तरह की दुकानें, अस्पताल, मैजिस्ट्रेट का दरबार, जटिल स्वच्छता प्रणाली, विद्युत प्रकाश प्रयोजन, इत्यादि, बहुत कुछ यहां था। इस कैम्प मैदान के स्मरणीय नक्शे एवं मार्गदर्शिकाएम बांटे गये। विशेष कार्यों के लिये पदक निर्धारण, प्रदर्शनियां, अतिशबाजी एवं भड़कीले नृत्य आयोजन भी किये गये थे।
लेकिन कर्ज़न को गहन निराशा हुई, जब एडवर्ड सप्तम ने इस आयोजन में स्वयं ना आकर, अपने भाई, ड्यूक ऑफ कनाट को भेज दिया। वह बम्बई से ट्रेन से, कई बड़ी हस्तियों सहित एकदम तभी आया, जब कर्ज़न और उसकी सरकार के लोग, दूसरी दिशा से, कलकत्ता से पहुंचे। उनकी प्रतीक्षारत समूह में हीरे जवाहरातों का शायद सबसे बड़ा प्रदर्शन उपस्थित था। प्रत्येक भारतीय राजकुमार एवं राजा, सदियों से संचित जवाहरातों से सजे हुए थे। ये सभी महाराजागण भारत के सभी प्रांतों से आये हुए थे, कई तो आपस में पहली बार मिल रहे थे। वहीं भारतीय सेना ने अपने सेनाध्यक्ष (कमाण्डर-इन-चीफ) लॉर्ड किश्नर की अगुआई में परेड निकाली, बैण्ड बजाये, एवं जनसाधारण की भीड़ को संभाला।[5]
प्रथम दिन कर्जन इस धूमधाम में हाथी पर सवार महाराजाओं सहित निकले। इनमें से कई हाथियों के दांतों पर सोना मढ़ा हुआ था। दरबार की रस्म नव वर्ष के दिन पड़ी, जिसके बाद कई दिनों तक पोलो क्रीड़ा, अन्य खेल, महाभोज, बॉल नृत्य, सेना अवलोकन, बैण्ड, प्रदर्शनियों का तांता चला। इस घटना की चलचित्र स्मृति भारत के सिनेमाघरों में कई दिनों तक चली। यही शायद देश में आरम्भिक फिल्म उद्योग का कारण रहा।[6][7]
आगा खां तृतीय ने इस अवसर को भारत पर्यन्त शिक्षण सुविधाओं के प्रसार के बारे में बोलने के लिये प्रयोग किया।[8]
यह घटन अपनी पराकाष्ठ पर तब पहुंची, जब एक महा नृत्य (बॉल) सभा का आयोजन हुआ, जिसमें सभी उच्च श्रेणी के अतिथियों ने भाग लिया, एवं स्बसे ऊपर लॉर्ड एवं लेडी कर्ज़न ने अपने जगर मगर करते जवाहरातों से परिपूर्ण शाही मयूर चोगे में नृत्य किया।[9]
दिसंबर में महाराजा जॉर्ज पंचम एवं महारानी मैरी के भारत के सम्राट एवं सम्राज्ञी बनने पर राजतिलक समारोह हुआ था। व्यवहारिक रूप से प्रत्येक शासक राजकुमार, महाराजा एवं नवाब तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति, सभापतियों को अपना आदर व्यक्त करने पहुंचे। सम्राट्गण अपनी शाही राजतिलक वेशभूषा में आये थे। सम्राट ने आठ मेहराबों युक्त भारत का इम्पीरियल मुकुट पहना, जिसमें छः हजार एक सौ सत्तर उत्कृष्ट तराशे हीरे, जिनके साथ नीलम, पन्ना और माणिक्य जड़े थे। साथ ही एक शनील और मिनिवर टोपी भी थी, जिन सब का भार 965 ग्राम था। फिर वे लाल किले के एक झरोखे में दर्शन के लिये आये, जहां दस लाख से अधिक लोग दर्शन हेतु उपस्थित थे।[10] [11]
दिल्ली दरबार मुकुट के नाम से सम्राज्ञी का एक भव्य मुकुट था। महारानी को पटियाला की महारानी की ओर से गले का खूबसूरत हार भेंट किया गया था। यह भारत की सभी स्त्रियों की ओर से महारानी की पहली भारत यात्रा के स्मारक स्वरूप था। सम्राज्ञी की विशेष आग्रह पर, यह हार, उनकी दरबार की पन्ने युक्त वेशभूषा से मेल खाता बनवाया गया था। 1912 में गेरार्ड कम्पनी ने इस हार में एक छोटा सा बदलाव किया, जिससे कि पूर्व पन्ने का लोलक (पेंडेंट) हटाने योग्य हो गया और उसके स्थान पर एक दूसरा हटने योग्य हीरे का लोलक लगाया गया। यह एक 8.8 कैरेट का मार्क्यूज़ हीरा था, जिसे कुलिनैन सप्तम बुलाया गया। यह कुलिनैन हीरे में से कटे नौ में से एक भाग से बना था। यह हार महारानी द्वारा 1953 में संभाला गया।[12] और हाल ही में डचेस ऑफ कॉर्नवाल द्वारा एक बॉल में धारण किया गया, जहां वे एक नॉर्वेजियाई परिवार से मिलीं थीं।
दिल्ली दरबार 1911 में लगभग 26,800 पदक दिये गये, जो कि अधिकांशतः ब्रिटिश रेजिमेंट के अधिकारी एवं सैनिकों को दिये गये थे। भारतीय रजवाड़ों के शासकों और उच्च पदस्थ अधिकारियों को भी एक छोटी संख्या में स्वर्ण पदक दिये गये थे।[13]
आज दिल्ली का कोरोनेशन पार्क उत्तरी दिल्ली में खाली पड़ा एक मैदान मात्र है, जिसका रिक्त स्थान, दिल्ली के अतीव ट्रैफिक एवं शहरी फैलाव के बावजूद, आश्चर्यजनक है। यह अधिकतर जंगली झाड़ियों से ढंका, उपेक्षित पड़ा है। यह मैदान, यदा कदा धार्मिक आयोजनों, या नगरमहापालिका की सभाओं हेतु प्रयोग में आता है।[14]
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.