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हवेली टोडर मल् जैन (जो जहाज हवेली या जहाज महल के नाम से प्रसिद्ध है) १७वीं शताब्दी के टोडर मल की हवेली है। टोडर मल सरहिंद के एक [khatri
]] थे जो नवाब वजीर खाँ के दीवान रहे। वर्तमान समय में यह हवेली जहाज हवेली के रूप में गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब के सामने की तरफ तकरीबन एक किलोमीटर दूर स्थित है, और सोने की मोहरों से खरीदा गया स्थान गुरु गोविन्द सिंह के शहीद पुत्रों और माता गुजरी के अन्तिम संस्कार स्थल के रूप में गुरुद्वारा ज्योति स्वरूप के रूप में प्रसिद्ध है।
यह हवेली सरहिंद-रूपनगर रेलवे लाइन के पूर्व में स्थित हरनाम नगर में स्थित है जो फतेहगढ़ साहिब से केवल १ किमी दूरी पर स्थित है। इसकी देखरेख अब पंजाब सरकार और इंटक (INTACH) की मदद से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति करती है। [1] [2] [3] [4]
सरहिंदी ईंटों द्वारा निर्मित यह हवेली मुगल गवर्नर नवाब वज़ीर खान के महल के ठीक बाहर स्थित है।
दीवान टोडर मल एक जैन विद्वान थे और सरहिंद के नवाब वजीर खान के दरबार में दीवान थे। [5] [6] और फुलकियान राज्य गजेटियर के अनुसार, वह पटियाला से कुछ मील की दूरी पर स्थित काकड़ा गाँव के थे। [7]
सिख इतिहास में, उन्हें बहुत बड़ी कीमत पर एक छोटी सी भूमि खरीदने के लिए याद किया जाता है, जिसे उन्होने माता गुजरी, साहिबज़ादा जोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह, दोनों के शवों के अंतिम संस्कार के लिए खरीदी थी। [8]
दीवान टोडर मल इस क्षेत्र के एक धनी व्यक्ति थे और गुरु गोविंद सिंह जी एवं उनके परिवार के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार थे। उन्होंने वज़ीर खान से साहिबज़ादों के पार्थिव शरीर की माँग की और वह भूमि जहाँ वह शहीद हुए थे, वहीं पर उनकी अंत्येष्टि करने की इच्छा प्रकट की। वज़ीर खान ने धृष्टता दिखाते हुए भूमि देने के लिए एक अटपटी और अनुचित माँग रखी। वज़ीर खान ने माँग रखी कि इस भूमि पर सोने की मोहरें बिछाने पर जितनी मोहरें आएँगी वही इस भूमि का दाम होगा। दीवान टोडर मल के अपने सब भण्डार खाली करके जब मोहरें भूमि पर बिछानी शुरू कीं तो वज़ीर खान ने धृष्टता की पराकाष्ठा पार करते हुए कहा कि मोहरें बिछा कर नहीं बल्कि खड़ी करके रखी जाएँगी। ख़ैर…..दीवान टोडर माल ने अपना सब कुछ बेच-बाच कर और मोहरें इकट्ठी कीं और 78000 सोने की मोहरें देकर चार गज़ भूमि को खरीदा ताकि गुरु जी के साहिबज़ादों का अंतिम संस्कार वहाँ किया जा सके। विश्व के इतिहास में ना तो ऐसे त्याग की कहीं कोई और उदाहरण नहीं मिलता, ना ही किसी भूमि के टुकड़े का इतना भारी मूल्य कहीं और आज तक चुकाया गया।
जब बाद में गुरु गोविन्द सिंह जी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने दीवान टोडर मल से कृतज्ञता प्रकट की और उनसे कहा की वे उनके त्याग से बहुत प्रभावित हैं और उनसे इस त्याग के बदले में कुछ माँगने को कहा। दीवान टोडर मल जी ने गुरु जी से कहा की यदि कुछ देना ही चाहते हैं तो कुछ ऐसा वर दीजिए की मेरे घर पर कोई पुत्र ना जन्म ले और मेरी वंशावली यहीं मेरे साथ ही समाप्त हो जाए। इस अप्रत्याशित माँग पर गुरु जी सहित सब लोग हक्के-बक्के रह गए। गुरु जी ने दीवान जी से इस अद्भुत माँग का कारण पूछा तो दीवान जी का उत्तर ऐसा था जो रोंगटे खड़े कर दे। दीवान टोडर मल ने उत्तर दिया कि गुरु जी, यह जो भूमि इतना महंगा दाम देकर खरीदी गयी और आपके चरणों में न्योछावर की गयी। मैं नहीं चाहता की कल मेरे वंशज कहें कि यह भूमि मेरे पुरखों ने खरीदी थी।
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