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उदरगुहा में द्रव संचय होकर उदर (पेट) का बड़ा दिखना जलोदर (Ascites) कहलाता है। यह अशोथयुक्त (Noninflammatory) होता है। यह रोग नहीं बल्कि हृदय, वृक्क, यकृत इत्यादि में उत्पन्न हुए विकारों का प्रधान लक्षण है। यकृत के प्रतिहारिणी (portal) रक्तसंचरण की बाधा हमेशा तथा विशेष रूप से दिखाई देनेवाले जलोदर का सर्वसाधारण कारण है। यह बाधा कर्कट (Cancer) और सूत्रणरोग (Cirrhosis) जैसे यकृत के अन्दर कुछ विकारों में तथा आमाशय, ग्रहणी, अग्न्याशय इत्यादि एवं विदर (Fissure) में बढ़ी हुई लसीका ग्रंथियों जैसे यकृत के बाहर के कुछ विकारों में प्रतिहारिणी शिराओं पर दबाव पड़ने से उत्पन्न होती है।
यकृत के विकारों में प्रथम जलोदर होकर पश्चात् उदरगुहागत शिराओं पर द्रव का दबाव पड़ने से पैरों पर सूजन आती है। हृदय-रोगों में प्रथम पैरों पर सूजन, दिल में धड़कन, साँस की कठिनाई इत्यादि लक्षण मिलते हैं और कुछ काल के पश्चात् जलोदर उत्पन्न होता है। वृक्कविकार में प्रथम देह शीथ का, विशेषतया प्रात:काल चेहरे तथा आँखों पर सूजन दिखाई देने का इतिहास मिलता है और कुछ काल के पश्चात् जलोदर होता है। इन सामान्य कारणों के अतिरिक्त कभी-कभी तरुणों में जीर्ण क्षय पेटझिल्लीशोथ (chronic tuberculous peritonitis) और अधिक उम्र के रोगियों में कर्कट एवं दुष्ट रक्तक्षीणता (pernicious anaemia) भी जलोदर के कारण हो सकते हैं।
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